पुरानी बात है। तब मछली आसमान में भी उड़ती थी। मन करता तो पानी में तैरने लग जाती। पशु क्या और पक्षी क्या! सब मछली को चाहते थे। वह पशुओं के बच्चों और पक्षियों के अंडों की देखभाल जो करती थी।
एक दिन की बात है। सांप ने मछली से कहा,‘‘तुम दूसरों के बहुत काम आती हो। कोई तुम्हारा शुक्रिया भी अदा करता है?’’
मछली समझ न पाई। पूछने लगी,‘‘शुक्रिया? ये क्या चीज़ होती है?’’
साँप हँसने लगा। बोला,‘‘किसी के काम आना बड़ी बात है। लेकिन जिसके काम आओ वो कम से कम इस बात को समझे भी तो। याद तो रखे। अहसान तो माने।’’
मछली ज़्यादा कुछ न समझ पाई बस इतना समझ गई कि वो बच्चों और अंडों की देखभाल करती है। वह बहुत बड़ा काम है।
फिर एक सुबह की बात है। बगुला का जोड़ा आया। बगुला मछली से बोला,‘‘मेरे अंडों का ध्यान रखना। हम कुछ खाकर आते हैं।
थोड़ी देर बात मोरनी आई। वह भी मछली से बोली,‘‘मैं नदी पार जा रही हूँ। मेरे अंडों का ख्याल रखना।’’
फिर गिलहरी और चुहिया भी आए। उन दोनों ने भी अपने बच्चों की देखभाल करने के लिए मछली से कहा। फिर वे दोनों चली गईं।
मछली को साँप की बात याद थी। वह भी बिना कुछ कहे आसमान में उड़ गई। साँप सब कुछ देख रहा था। मौका पाते ही उसने बगुले और मोरनी के अंडे चट कर डाले। साँप रेंगता हुआ चुहिया और गिलहरी के बिलों में गया। एक पल की देरी किए बिना उसने सभी बच्चों को निगल लिया।
फिर क्या होना था! शाम हुई तो सब लौट आए। बगुला,मोरनी,गिलहरी और चुहिया ने मछली को घेर लिया।
बात बढ़ने लगी तो बंदर ने बताया,‘‘आजकल मछली के पास एक साँप आता रहता है। आज भी वह तुम्हारे अंडों और बच्चों के आस-पास घूम रहा था।
मोर को गुस्सा आ गया। वह बोला,‘‘साँप को तो अब मैं नहीं छोड़ूंगा।’’
चुहिया उदास थी। लेकिन उसे भी गुस्सा आ रहा था। वह बोली,‘‘साँप का तो मैं कुछ नहीं बिगाड़ सकती। लेकिन मछली मैं तूझे सबक ज़रूर सिखाऊँगी।’’ यह कहकर उसने मछली के पंख कुतर दिये। चुहिया ने मछली से कहा,‘‘आज से तू उड़ नहीं पाएगी।’’
गिलहरी ने रोते हुए कहा,‘‘तेरी वजह से हमने अपने बच्चे खो दिए हैं। जा ! अब तू सिर्फ जल में ही रहेगी। बाहर आने की कोशिश करेगी तो मर जाएगी। इससे पहले की तू छिटककर पानी में चली जाए। मैं तेरी पीठ पर चढ़ना चाहती हूँ।’’
मछली डर गई और नदी में कूद गई।
बगुला मछली से बोला,‘‘आज तो तू बच गई। लेकिन याद रखना। मैं तूझे पानी में भी नहीं छोड़ूँगा।’’
तभी से मोर साँप को देखता है तो उसे सबक सिखाता है। बगुला मछली की ताक में रहता है। मौका मिलते ही उसे खा जाता है। वहीं मछली के पंख तो होते
हैं। लेकिन वह उड़ नहीं पाती। जल से बाहर आती है तो मर जाती है।
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मनोहर चमोली ‘मनु’