भलमनसाहत की चाँदनी फैलाते हैं राकेश जुगरान
अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैंरुख़ हवाओं का जिधर का है, उधर के हम हैं जी नहीं। निदा फ़ाज़ली ने भले ही यह शेर कमोबेश पलटूओं के…
अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैंरुख़ हवाओं का जिधर का है, उधर के हम हैं जी नहीं। निदा फ़ाज़ली ने भले ही यह शेर कमोबेश पलटूओं के…
जन्मदिन की शुभकामनाएँ ! कोई कैसे एक साथ माँ, पत्नी, कवयित्री, दोस्त, लेखक और चित्रकार हो सकता है? आप कह सकते हैं क्यों नहीं? मुझे एक बात और जोड़नी है…
-मनोहर चमोली ‘मनु’ ‘‘मास्साब तनिक सुनो तो। एक बार छू लो हमें। ये आपसे कह रहे हैं!’’ किसी ने मुझसे कहा। यह आवाज़ मेरे दाएं कान ने सुनी थी। मैं…