वसंत आया तो जंगल हरा-भरा हो गया। फूलों और फलों से रंगीन हो गया। एक तितली फूलों पर मंडरा रही थी। भालू नदी की ओर जा रहा था। उसने तितली से पूछा-‘‘तुम दिन भर फूलों पर मंडराती हो। इन फूलों से बातें करती हो क्या?’’
तितली एक फूल पर बैठी हुई थी। भालू के नाक के पास पहुँची। बोली-‘‘मैं फूलों का रस चूसती हूँ।’’
भालू ने हैरानी से पूछा- ‘‘रस?’’
तितली ने बताया-‘‘हाँ रस। इन फूलों में रस होता है।’’
भालू ने पूछा-‘‘ये कैसा होता है? मेरा मतलब इनका स्वाद कैसा होता है?’’
तितली हँसने लगी। बोली-‘‘बहुत ही मीठा होता है।’’
भालू बोला-‘‘ये मीठा क्या होता है? मछली से भी अच्छा?’’
तितली ने सोचा। फिर कहा,‘‘अब मछली तो मैंने नहीं खाई। लेकिन इतना कह सकती हूँ कि स्वाद में मीठा सबसे अच्छा होता होगा।’’
भालू की लार टपकने लगी। बोला,‘‘मुझे भी चखाओ न।’’
तितली हँसते हुए बोली-‘‘मैं दिन भर रस ही तो चूसती हूँ। मैं सारा रस एक जगह पर इकट्ठा करूँ तो भी वह एक बूँद भर ही होगा। अब एक बूँद से तुम्हें स्वाद का कैसे पता चलेगा?’’
यह सुनकर भालू सोच में पड़ गया। वह मायूस हो गया।
अचानक तितली को कुछ सूझा। वह बोली-‘‘अच्छा तुम एक काम करो। रानी मधुमक्खी से बात करो। मधुमक्खियां फूलों के रस को शहद में बदल देती हैं।’’
भालू ने तितली की ओर देखा-‘‘शहद! अब ये क्या चीज़ है?’’
तितली ने पँख फैलाए। बोली-‘‘हाँ, शहद। यह बहुत ही मीठा होता है। शानदार। लाजवाब। मजेदार। असरदार। स्वादिष्ट। मधुमक्खियां मेरी तरह फूलों के मकरंद से मधुरस तैयार करती हैं।’’
भालू ने पूछा-‘‘ये रानी मधुमक्खी कहाँ मिलेगी?’’
तितली बोली-‘‘छत्ते पर। छत्ता ही उनका घर होता है।’’
भालू सिर खुजाने लगा। बोला,‘‘छत्ता!’’
तितली ने बताया,‘‘हाँ ! छत्ता! मधुमक्खियां छत्ता बनाती है। वे फलों का रस ले जाकर शहद को छत्ते में जमा करती है। अपने और अपने बच्चों के भोजन के लिए।’’
भालू हैरान था। वह धीरे से बोला-‘‘ अब ये छत्ता कहाँ मिलेगा?’’
तितली झल्लाते हुए बोली-‘‘तुमने छत्ता नहीं देखा? तुम्हारी तो सूँघने की क्षमता बहुत होती है। तुम पानी में तैर लेते हो। पेड़ पर भी चढ़ जाते हो। तुम तो सब कुछ खा लेते हो। अजीब बात है कि तुमने अभी तक शहद नहीं चखा है।’’
भालू झेंप गया। कहने लगा-‘‘अब छोड़ो न। मुझे छत्ते का पता तो बताओ।’’
तितली ने इधर-उधर देखा। कहा-‘‘देखो। कितनी सारी मधुमक्खियां हैं। ये आ-जा रही हैं। फूलों का रस चूसने के लिए सैकड़ों चक्कर लगाती हैं। रस चूसकर अपने छत्ते में ले जाती हैं। तुम पीछे-पीछे जाओ।’’
भालू मुस्कराया। उसे यह सुझाव अच्छा लगा। वह मधुमक्खियों के पीछे-पीछे चलता हुआ छत्ते तक जा ही पहुंचा।
छत्ता पेड़ की एक डाल पर बना हुआ था। भालू ने आवाज लगाई-‘‘रानी मधुमक्खी। ओ रानी मधुमक्खी।’’ एक सैनिक मधुमक्खी बाहर आई। उसने पूछा तो भालू ने कहा-‘‘मुझे थोड़ा सा शहद चाहिए। मैंने आज तक शहद नहीं चखा।’’ सैनिक मधुमक्खी ने कहा,‘‘ठहरो। में आपकी बात रानी मधुमक्खी के पास पहुँचाती हूँ।’’
सैनिक मधुमक्खी छत्ते की रानी मधुमक्खी के पास गई। उसने सारी बात बताई। रानी मधुमक्खी सोचने लगी। कहने लगी-‘‘भालू से छत्ता बचाना होगा। मैं भालू से बात करती हूँ।’’
रानी मधुमक्खी भालू से बोली-‘‘अभी तो हमने छत्ता बनाना ही शुरू किया है। बाद में आना।’’ यह सुनकर भालू चला गया। मधुमक्खियों ने राहत की सांस ली।
कुछ दिनों बाद भालू फिर आया। उसने आवाज लगाई। रानी मधुमक्खी बाहर आ गई। वह भालू से बोली-‘‘अच्छी ख़बर है। वैसे, छत्ता बन चुका है। अब मधुमक्खियां फूलों से रस इकट्ठा करेंगी। छत्ते में लाएंगी। जब छत्ता रस से भर जाएगा, तब आना।’’ यह सुनकर भालू चला गया। रानी के साथ मधुमक्खियों ने राहत की सांस ली।
दिन बीतते गए। भालू कुछ दिनों बाद फिर आया। उसने फिर पुकारा। रानी मधुमक्खी छत्ते से बाहर आई। भालू को समझाने लगी-‘‘अच्छी ख़बर यह है कि मधुमक्खियों ने बड़े जतन से फूलों का रस इकट्ठा किया है। लेकिन रस अभी चिपचिपा है। हम अब शहद बनायेंगे। ऐसा करो तुम कुछ दिन बाद आना।’’ भालू कुछ देर के लिए निराश हो गया। लेकिन मीठा शहद चखने की चाह कम नहीं हुई।
भालू कुछ दिनों बाद फिर आया। उसने फिर पुकारा। रानी मधुमक्खी बाहर आई। कहने लगी-‘‘शहद बन चुका है। लेकिन मेरे बच्चे अभी सो रहे हैं। शहद गाढ़ा है। छत्ते से शहद टपकेगा तो आवाज होगी। बच्चे जाग जायेंगे। फिर कभी आना।’’ भालू चला गया।
कुछ दिनों बाद भालू फिर आया। पूछने लगा-‘‘बच्चे जाग गए?’’ रानी मधुमक्खी ने जवाब दिया-‘‘बच्चे जाग तो गए हैं। वे अभी खाना खा रहे हैं। बाद में आना।’’ भालू बोला,‘‘मैं कल सुबह-सुबह आ जाऊँगा।’’ यह कहकर भालू चला गया। रास्ते में उसे तितली मिल गई।
तितली और भालू बात करने लगे। बातों ही बातों में तितली ने भालू से पूछा-‘‘शहद चख लिया न?’’
भालू ने सारा किस्सा सुनाया। तितली हंसते हुए बोली-‘‘अब शायद ही तुम्हें वहां शहद मिले। मधुमक्खियों का इकट्ठा किया गया शहद उनका और उनके बच्चों का भोजन था। अब तो बच्चे उड़ भी गए होंगे।’’ भालू दौड़ा-दौड़ा छत्ते के पास जा पहुंचा। उसने रानी मधुमक्खी को आवाज लगाई। रानी मधुमक्खी छत्ते से बाहर नहीं आई। भालू पेड़ पर चढ़ गया। यह क्या! छत्ते में कच्चा मोम ही बचा था।
मधुमक्खियां बच्चों समेत उड़ चुकी थीं। छत्ते में शहद की एक बूंद तक न बची थी। भालू बौखला गया। सोचने लगा-‘‘मैंने छत्ते के कई चक्कर लगाए। एक बूंद शहद नहीं मिला। कोई बात नहीं। अब मैं जान गया हूँ कि मधुमक्खियां छत्ता कब बनाती हैं। कैसे बनाती हैं। शहद बनाने में वह कितना समय लेती हैं। अब मैं शहद के लिए इतना इंतज़ार नहीं करूंगा। न ही किसी से शहद माँगूंगा।’’
बस ! तभी से भालू छत्तों पर नजर रखता है। मौका पाते ही वह छत्ते पर टूट पड़ता है। भरपेट शहद खाता है। आज भी मधुमक्खियां भालू से शहद बचाने की कोशिश में लगी है।
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