बादल बरसने वाले थे।
एक बूंद रोने लगी।
बादल ने पूछा तो वह बोली,‘‘मैं हाथी की एक आँख भी गीली नहीं कर सकूंगी।
मैं अकेली, भला किस काम की?’’
बादल बोला,‘‘राई के बीजों को उगने में मदद कर सकती हो।’’
हवा ने कहा,‘‘कई चींटीयों की प्यास बुझा सकती हो। यह काम सागर भी नहीं कर सकता।’’
अब बूंद टपकने को तैयार थी।
-मनोहर चमोली ‘मनु’