‘‘पौ फटते ही जाते हो और अंधेरा होने पर लौटते हो।’’
‘‘हम अपनी माँ को जानते तक नहीं।’’
‘‘हमारे नाम तक नहीं हैं।’’
‘‘हम बड़ी हो चुकी हैं।’’
‘‘हम लायक हैं। हमें काम चाहिए।’’
‘‘अब हम एक साथ नहीं रह सकतीं।’’
बेटियां बोलती रहीं और सूरज चुपचाप सुनता रहा। जब वह चुप हुई तब सूरज बोला,‘‘सुनो ! तुम्हारी मां धरती है ! वह यहाँ से बहुत दूर है। वह बस, तुम्हारी ही मां नहीं है। उसकी अनगिनत संताने हैं।’’ एक बेटी झट से बोल पड़ी,‘‘हमें कुछ नहीं सुनना। बस, मां के पास जाना है।’’ सूरज ने हामी भरी तो बेटियां आपस में लड़ने लगीं। सब चिल्लाने लगीं। पहले मैं-पहले मैं कहने लगीं। सूरज ने टोका। कहा,‘‘अब समय आ गया है कि तुम सब अपनी जिम्मेदारियां समझो। अपने-अपने काम पर जुटो। अब सभी को मां के पास जाना है। लेकिन, एक साथ नहीं। सबका समय अलग-अलग होगा।’’ यह सुनकर सब चुप हो गईं।
सूरज ने एक बेटी को पास बुलाया। कहा,‘‘आज से तुम्हारा नाम शरद हुआ। मां से मिलोगी तो एक काम करोगी। वहाँ का मौसम सुहावना करोगी। वहां ठंडक लाओगी। पतझड़ लाओगी ताकि पेड़ों से पुराने पत्ते टूट कर अलग हो सकें।’’ दूसरी बेटी सामने आई तो सूरज बोला,‘‘तुम्हारा नाम हेमन्त हुआ। धरती घूमते हुए मेरा चक्कर लगाती है। चक्कर लगाते-लगाते वह जब मुझसे बहुत-बहुत दूर हो जाती है, तब तुम वहां की ठंड को और बढ़ाओगी। सेहत और खान-पान बढ़ाने के लिए तुम्हें याद किया जाएगा।’’
तीसरी बेटी खड़ी हुई। बोली,‘‘मेरा काम क्या होगा?’’ सूरज ने मुस्कराते हुए जवाब दिया,‘‘तुम शीत कहलाओगी। तुम जाड़ा लेकर पहुँचोगी। इतना जाड़ा कि पेड़-पौधे भी खड़े-खड़े सोने लगें। बहुत सारे जीव गहरी नींद के लिए धरती के भीतर छिप जाएं।’’
चौथी बेटी हैरान थी। बोली,‘‘मैं क्या करूंगी?’’ सूरज कुछ पल ठहरा। बोला,‘‘तुम्हें गरमी कहा जाएगा। ठंड तभी जाएगी ,जब तुम मां से मिलोगी। तुम धरती पर ताप लाओगी।’’
पांचवी बेटी अब तक चुप थी। वह बोली,‘‘मेरे लिए तो कोई काम ही नहीं बचा।’’
सूरज ने कहा,‘‘तुम्हारा नाम बारिश है। एक काम बचा है। वह तुम करोगी। तुम वर्षा लाओगी। प्यासी धरती और उनकी संतानों को तुम पानी दोगी। पेड़-पौधों और जीवों की जीवनदायिनी बनोगी।’’
बेटियां नए नाम पाकर खुश थीं। सूरज बोला,‘‘एक बार फिर से तुम्हारे नाम गिन लूं। शरद,हेमन्त,शीत,गरमी और बारिश! अरे ! छठी कहाँ है?’’
गरमी ने गरदन झटकते हुए बताया,‘‘वो? वो तो सो रही होगी। मैं बुलाकर लाती हूँ।’’ थोड़ी देर में गरमी सबसे छोटी बहिन को हाथ पकड़कर ले आई।
‘‘मैंने इसे सब बता दिया है। पर यह तो रो रही है।’’ गरमी ने बताया। वहीं छोटी बेटी आँखें मीच रही थीं। वह सुबकते हुए सूरज से बोली,‘‘मुझे कोई प्यार नहीं करता। आप भी नहीं। तभी तो मेरा नाम तक नहीं रखा गया। और तो और, मेरे लिए कोई काम भी नहीं बचा? ’’ यह कहकर वह जोर-जोर से रोने लगी। शरद, हेमन्त, शीत, गरमी और बारिश उसे चुप कराने लगे। लेकिन वह थी कि सुबकती ही जा रही थी। तब सूरज ने उसे सहलाया। पुचकारा। कहा,‘‘रोओ मत! तुम वसंत कहलाओगी। सब तुम्हारा इंतजार करेंगे। तुम्हारा स्वागत धूमधाम से होगा। तुम धरती पर हरियाली लाओगी। रंग-बिरंगे फूल खिलाओगी। तब तितलियां फूलों पर मंडराएगी। तुम सभी श्रुतुओं का सिरमौर कहलाओगी।’’ वसंत की हिचकियां कम हुई। उसने सुबकना कम किया तो सभी बहनें एक साथ बोलीं,‘‘जाओ। सबसे पहले तुम जाओ।’’
वसंत ने सूरज को अलविदा कहा। अब वह माँ से मिलने चल पड़ी। धरती ने वसंत का स्वागत किया। वसंत के आते ही धरती हरी-भरी हो गई। सरसों के पीले फूल सोने की तरह चमकने लगे। कहते हैं, तभी से वसंत, शरद, हेमन्त, शीत, गरमी और बारिश धरती पर बारी-बारी से आती हैं। यह छह बहने ही धरती का मौसम बदलती हैं।
॰॰॰
-मनोहर चमोली ‘मनु’ गुरु भवन,निकट डिप्टी धारा,पौड़ी गढ़वाल 246001 उत्तराखण्ड
सम्पर्क: 7579111144
634