कांटेदार पेड़ पर चिडि़या घोंसला बनाने में जुटी हुई थी। पेड़ में एक कोटर था। कोटर में सांप रहता था। वह चिडि़या को निगलने की ताक में था। एक चूहा वहां से गुजर रहा था। वह चिडि़या से बोला-‘‘यहां नई आयी हो। तुम्हें घोंसला बनाने के लिए कोई दूसरा पेड़ नहीं मिला?’’ चिडि़या ने नीचे झांका। कहा-‘‘सारा जंगल जल रहा है। मुझे आस-पास दूसरा पेड़ भी नहीं दिखाई दे रहा है।’’


चूहा धीरे से बोला-‘‘वो सब तो ठीक है। लेकिन यहां एक सांप रहता है।’’ चिडि़या हंसते हुए कहने लगी-‘‘तुम कब से डरने लगे? सब जानते हैं कि जीव ही जीव का भोजन है। जंगल में हर कोई किसी न किसी का भोजन है। वैसे वह सांप मूर्ख ही होगा, जो मुझे खाएगा।’’

चूहा चौंकते हुए बोला-‘‘क्यों? कैसे?’’

चिडि़या बोली-‘‘अरे। मुझे खाने से अच्छा होगा कि वो मेरे -तीन-चार अंडे खाए। क्या उसे इंतजार नहीं करना चाहिए?’’

बातचीत चल पड़ी।
‘‘अरे हां! यह तो मैंने सोचा ही नहीं।’’
‘‘सोचना तो उस सांप को चाहिए। मैं तो कहूंगी कि उसे और बड़ा सोचना चाहिए।’’
‘‘और बड़ा सोचना चाहिए ! मतलब? मैं समझा नहीं।’’
‘‘मतलब यह कि मुझे खाने वाला सांप महामूर्ख। मेरे अण्डे खाने वाला सांप मूर्ख। मेरे बच्चों को खाने वाला सांप बुद्धिमान।’’
‘‘तुम कैसी मां हो? तुम्हारे बच्चों को खाने वाला बुद्धिमान होगा! कैसे?’’
‘‘वो ऐसे कि यदि मैं बची रहूंगी तभी तो अंडे दूंगी। अंडे बचे रहेंगे तभी अंडों से बच्चे निकलेंगे। अब यदि मैंने चार अंडे दिये तो वह बड़े होकर मेरी तरह चार पक्षी नहीं हो जाएंगे? अब तुम ही बताओ एक लड्डू खाना चाहोगे या चार-चार?’’

‘‘ठीक कहती हो। फिर भी अपना ख्याल रखना। सावधान रहना। मैं जा रहा हूं। मैं उस सांप का निवाला नहीं बनना चाहता।’’


‘‘ध्यान से जाना। मुझे तो अभी इस पेड़ पर तीन-चार महीने रहना पड़ेगा। घोंसला बना रही हूं। फिर अंडे दूंगी। पन्द्रह-बीस दिन बाद बच्चे निकलेंगे। फिर दो-तीन महीने बाद वे उड़ना सीखेंगे, तब जाकर हम कहीं ओर जा सकेंगे।’’ चिडि़या ने दिन-रात एक कर घोंसला बनाया। घोंसले में उसने चार अंडे दिए। अंडों से नन्हें बच्चें बाहर निकल आए। चिडि़या बच्चों के लिए दाना लेने बहुत दूर तक जाती। इस बीच कोटर में रहने वाला सांप पेड़ पर चढ़ता और बच्चों को बड़ा होता हुआ देखता। वह तो उस दिन से ही चिडि़या को निगलने के लिए तैयार बैठा था,जिस दिन चिडि़या पहली बार उस कंटीले पेड़ पर घोंसला बनाने आई थी।

एक दिन की बात है। चिडि़या दाना लेने गई हुई थी। सांप घोंसले तक जा पहुंचा। वह बोला-‘‘कैसे हो बच्चों?’’ बच्चे सहम गए। एक बच्चा बोला-‘‘कौन?’’ सांप बोला-‘‘मैं चूहा हूं। तुम्हारी मम्मी और मैं दोस्त हैं। मैंने ही कहा था कि यहां वह घोंसला बना ले। अच्छा अब यह बताओ कि उड़ना कब सीखोगे?’’

दूसरा बच्चा बोला-‘‘पता नहीं। मम्मी कहती है कि अभी तो हमारे ढंग से पंख भी नहीं आए हैं। अभी हमारे बदन में ताकत भी नहीं है। अंकल हम कब बड़े होंगे?’’

सांप हंसते हुए कहने लगा-‘‘अपनी मम्मी से पूछना। शायद अभी बहुत समय है। अच्छा मैं फिर आऊंगा।’’


शाम को चिडि़या आई तो बच्चों ने बताया कि कोई मिलने आया था। एक बच्चे को याद रहा कि उसने खुद को चूहा बताया था। चिडि़या चुप रही। उसने धीरे से बच्चों के कान में कुछ कहा। बच्चे दाना खाकर सो गए।

सुबह हुई। चिडि़या दाना लेने गई। सांप फिर आया। बच्चों से पूछने लगा तो एक बच्चे ने बताया-‘‘अंकल मम्मी कहती है कि अभी हम खूब बड़े होंगे। इस घोंसले से भी बड़े, तब हम उड़ना सीखेंगे। हम बड़े कब होंगे?’’

सांप कहने लगा-‘‘मैं भी तो उस दिन का इंतजार कर रहा हूं।’’

एक बच्चे ने पूछा-‘‘आप क्यों इंतजार कर रहे हो?’’

सांप ने हड़बड़ाते हुए कहा-‘‘अ…अ….फिर मैं अपना बिल आपको दिखाऊंगा। मेरा बिल थोड़ा दूर है न। जब तक तुम सब उड़ना नहीं सीख लोगे, कैसे जाओगे। वैसे क्या कह रही थी तुम्हारी मम्मी?’’

तीसरा बच्चा बोला-‘‘यही कि अभी तो बहुत समय है। शायद दो महीनों बाद ही मम्मी उड़ना सीखाए।’’

चौथा बच्चा बोला-‘‘मम्मी कह रही थी कि वो हमें सामने हरे घास के मैदान में उड़ना सीखाएगी।’’ सांप हंसते हुए चला गया। वह बुदबुदाया-‘‘जहां इतने दिन मैंने सब्र से काम ले ही लिया है,वहीं दो महीने ओर सही। अब तो कुछ दिन और भूख सहन करनी होगी। तब तक छोटा-मोटा शिकार करने के लिए जंगल की ओर निकलता हूं।’’

चिडि़या दाना लेकर लौटी तो बच्चों ने सारा किस्सा सुनाया। चिडि़या ने कहा-‘‘ध्यान से सुनो। हम आज रात से उड़ना सीखेंगे। चुपचाप। बिना किसी को बताए हुए बिना शोर किये हुए। कोई पूछे तो यही कहना है कि अभी उड़ना सीखने में दो महीने लगेंगे।’’

बच्चों ने यही किया। चिडि़या दिन में दाना लेने चली जाती और बच्चे रात में उड़ना सीखने लगे। इस बीच सांप जब भी मिलने आता, बच्चे एक ही बात कहते-‘‘मम्मी कहती है कि अभी उड़ना सीखने के लिए पंख ही नहीं आए हैं। पंख आने में समय लगेगा।’’

इस बार सांप ने कहा-‘‘ठीक है अगली बार मैं तुम्हें अपना बिल जरूर दिखाऊंगा।’’ यह कहकर सांप चला गया।

फिर एक दिन चिडि़या बच्चों से बोली-‘‘अब तुम उड़ना सीख चुके हो। एक बात ध्यान रखो। धैर्य का साथ कभी नहीं छोड़ना। कैसी भी परेशानी आए, घबराना नहीं। अब तुम्हें अपना रास्ता खुद चुनना है। सांप फिर तुमसे चूहा बनकर मिलने आए, उससे पहले फुर्र हो जाओ।’’


चिडि़या ने आगे कहा-‘‘उस सांप को मैंने पहले ही दिन पेड़ की कोटर में देख लिया था। यदि मैं खुद ही डर जाती तो घोंसला ही नहीं बना पाती। यदि में तुम्हें पहले ही बता देती कि तुमसे मिलने चूहा नहीं, सांप मिलने आया है, तो तुम डर जाते। तुम्हारा उड़ना सीखने का हौसला भी टूट सकता था।’’

चारों बच्चों ने मां को अलविदा कहा। पलक झपकते ही वह अलग-अलग दिशाओं की ओर उड़ चले।

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Manohar Chamoli MANU

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By manohar

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