सामाजिक दायित्व भी है: जगमोहन बंगाणी
जून तप रहा था। माह का ग्यारहवां दिन था। देहरादून से भाऊवाला मार्ग पर लगभग छब्बीस किलोमीटर दूर काया लर्निंग सेण्टर में ‘पड़ाव’ में पहुँचना हुआ। सुप्रसिद्ध चित्रकार जगमोहन बंगाणी उत्तराखण्ड के विभिन्न जनपदों से चयनित बीस कलाप्रेमियों के साथ सफेद कैनवास बनाने में जुटे हुए मिले। पाँच दिन वह इन चित्रकारों के साथ बिताने वाले हैं। उन्हें परामर्श, निर्देशन एवं सलाह के साथ-साथ अपनी यात्रा साझा करने वाले हैं। जगमोहन के साथ प्रख्यात चित्रकार पूनम भी हैं। हम मोहन चौहान, सतीश जोशी और अशर्फी ठाकुर एक साथ काया लर्निंग सेन्टर पहुँचे। वहीं कुछ देर बाद सुनीता मोहन, सुहानी और कई सारे रचनाधर्मी भी आ पहुँचे।
विश्व प्रसिद्ध चित्रकार जगमोहन ऐसा क्यों कर रहे हैं? क्या है यह पड़ाव? इससे हासिल क्या होने वाला है? यह सवाल मन में थे। बात से बात आगे बढ़ी तो पता चला कि जगमोहन और संतोष जी फोर्ड फाउण्डेशन के फैलो रहे हैं। दोनों अपने सामाजिक सरोकारों और प्रतिबद्धता के साथ व्यावसायिक काम कर रहे हैं। दोनों इस एक बिन्दु पर सहमत हैं कि कमाने के साथ-साथ बौद्धिक संपदा को जनसेवार्थ व्यय भी करना चाहिए।
जगमोहन बंगाणी ने सपिरवार दिल्ली से अपना व्यस्तम एक सप्ताह चुराया। निःशुल्क परामर्श-निर्देशन और समन्वय की जिम्मेदारी ली। सत्र डिजायन किए। पहले दिन से लेकर पाँच दिन कब क्या-क्या होगा। प्रत्येक प्रतिभागी के साथ कितना और कैसे समय देना है। यह तय किया। कला के विभिन्न आयामों के सत्र निर्धारित किए। जगमोहन ने प्रतिभागियों के लिए अपने स्तर से सहायक सामग्री यथा रंग,ब्रश,पेज,पेंसिल आदि। वहीं काया लर्निंग सेन्टर ने प्रतिभागियों के ठहरने-खाने का समूचा इंतजाम वहन किया। संभवतः इस तरह का यह अपने ढंग का पहला प्रयास है। यही कारण है कि इसको नाम दिया गया-‘पड़ाव’
इस पाँच दिन की कला यात्रा के पहले दिन और आखिरी दिन को देखने-समझने का मौका मिला।
जगमोहन बताते हैं कि काया लर्निंग सेन्टर में वह कई बार आ चुके हैं। पड़ाव योजना के तहत अंतिम रूप से जो सहमति बनी उस के आलोक में ‘पड़ाव’ के लिए 21 अप्रैल 2023 को ऑनलाइन विज्ञापन जारी किया गया था। इस फैलोशिप कार्यक्रम के लिए कुल 61 आवेदन प्राप्त हुए। अपने सीमित संसाधनों और रहने-खाने के इंतज़ामात को देखते हुए फिर चयन प्रकिया को अपनाया गया। इसके लिए दिल्ली कॉलेज ऑफ आर्ट के एसोसिएट प्रोफेसर प्रदीप चौहान, मूर्तिकार सुनीता चौहान, चित्रकार सत्य साईं मोथाडका, पूनम शर्मा एवं जगमोहन बंगाणी की ज्यूरी ने 20 युवाओं का चयन किया।
पड़ाव में अन्तिम रूप से शामिल होने वालों में अल्मोड़ा से भूपेन्द्र कुमार, आकाश आर्य, सुगम, रूचिर पंत, पिथौरागढ़ से योगेश सिंह भण्डारी, ऋतुराज सिहं खरायत, स्वाति बोरा, करन सिंह, पौड़ी गढ़वाल से ऋषिका नेगी, बिपेश चंद्रा, वंदिता डिमरी, देहरादून से मोहित वर्मा, रूद्रपुर से भूमिका तिवारी, पंकज दंगलपाल, तरूण शर्मा, उत्तरकाशी से तन्मय शर्मा नैनीताल से नीरज बबियारी, आकर्षण बोरा, चम्पावत से निकिता आर्य, बागेश्वर से शिवानी मरोठिया और टिहरी गढ़वाल से अनामिका पुण्डीर रहे।
जगमोहन बंगाणी की सोच प्रणम्य है। वहीं काया लर्निंग सेन्टर के सहयोग और संरक्षण के बिना यह संभव नहीं था। एक तरह से संयुक्त तत्वाधान में किसी कार्यशाला, कार्यक्रम और आयोजन को करना अपने आप में आज के दौर में सराहनीय ही कहा जाएगा। बातचीत से और पड़ाव को नजदीक से देखने पर पता चलता है कि नवोदित कह लें या अभी स्नातक या स्नातकोत्तर स्तर पर अध्ययनरत छात्र कह लें या स्वतंत्र रूप से चित्रकारी कर रहे युवा कह लें उन्हें इस तरह सीखने-सीखाने, साझाकरण की प्रक्रिया, चर्चा-कला के विविध आयामों पर सत्र, प्रस्तुतिकरण, स्वयं जगमोहन बंगाणी एवं पूनम की कला यात्रा, अनुभव आधारित साझेदारी, परामर्श, सलाह संभवतः एक औपचारिक माहौल में पहले ही कहीं मिली हो। चूंकि जगमोहन स्वयं विश्वस्तरीय चित्रकार हैं। वह देश-दुनिया की समकालीन कला के साथ कला के विभिन्न आयामों से परिचित हैं तो प्रतिभागियों की कला को निखारने का मौका भी मिला।
नृत्य, अभिनय, गायन, लेखन, चित्रकारी जैसी कई कलाएँ हैं, जिन्हें अपने अनुभव से हासिल किया जाता है। ऐसा माना जाता रहा है कि यह जन्मजात होती हैं। इन्हें सिखाया नहीं जा सकता। यह सीखी जाती हैं। यह भी माना जाता है कि अनुभव और कौशल के सामंजस्य से इन कलाओं में सिद्धहस्त हुआ जा सकता है। समय के साथ-साथ इन कलाओं को अर्जित करने के मापदण्ड भी बदले हैं। कालान्तर में महसूस किया गया कि सिद्धहस्तों के परामर्श, निर्देशन और संरक्षण में इन कलाओं में नवप्रवेशी तीव्रता के साथ बगैर गुमराह हुए पारंगत हो सकते हैं। इन दिनों तो कहानी, कविता, गायन, पेंटिंग और नृत्य कौशल अर्जित करने के लिए बाक़ायदा प्रशिक्षण संस्थान खुल गए हैं। प्रशिक्षु शुल्क देकर इन कलाओं को हासिल कर रहे हैं।
कलाएँ इंसान में जन्मजात पाई जाती हैं। कलाएँ अनुभव या आदान-प्रदान विधि और अपने परिश्रम से अर्जित की जाती हैं। इन दोनों सिरों के बीच जो फासला है वह रुचि, कौशल और वातावरण का भी है। अमूमन साझाकरण, तकनीकी और व्यावसायिक प्रशिक्षण, परामर्श और सतत् अभ्यास से इन कलाओं में मँझा जा सकता है। इन क्षेत्रों में रुचि लेने वाले, अभी-अभी प्रवेश किए हुए या नौसीखिए या विशेषज्ञता हासिल करने को इच्छुक अपनी यात्रा को अविस्मरणीय बना सकते हैं। यदि वे विविधता से भरी संगत में शामिल हों।
अनुभवी विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में इन कलाओं में नई धार या पैनापन लाने के लीक से हटकर छिटपुट प्रयास दिखाई देने लगे हैं। उम्मीद की जाती है कि कला के क्षेत्र में भी विश्व स्तर पर ख्यातिलब्ध चित्रकार अपने अनुभवों, ज्ञान एवं अंतदृष्टि से नवागंतुकों को माँझने का काम करेंगे। प्रायः शीर्ष पर पहुँच चुके चित्रकार व्यावसायिक हितों के कारण ‘एकला चलो रे’ की नीति पर चलते हैं। वे चित्रकारी के अवसरों-स्रोतों पर बात करते हैं। सफलता के क्षेत्र में हाथ-पाँव मार रहे दूसरे चित्रकारों को छिट-पुट काम भी दिला देते हैं। अपना नायाब, अलहदा और खास स्थान कैसे बनाया जाए? इस पर वे कोई बात नहीं करते।
हालांकि जगमोहन बंगाणी उन अपवादों में एक हैं। वह कला को साझा करते हैं। कला को आत्मसात् करते हैं। अपने अनुभव और ज्ञान से अर्जित कला को बाँटते हैं। कला के क्षेत्र में अलग मुकाम बनाने के लिए क्या न करें? इस पर बात करते हैं। मौलिक चित्रकारी क्या है? मौलिकता पर ही क्यों कायम रहा जाए? इस पर लगातार बात करते हैं। वे अपनी सिफर से आरंभ की गई यात्रा को ढकते नहीं हैं। पूरी ईमानदारी से उसे बार-बार साझा करते हैं। वे खुद के अनुभव और खुद अर्जित की गई पेंटिंग्स की यात्रा को बगैर संपादित किए और ढकते हुए सार्वजनिक करते हैं।
भारत की राजधानी से लगभग चार सौ साठ किलोमीटर दूर जन्में, पले-बढ़े जगमोहन कभी नहीं भूलते की पहाड़ के अभाव में चाहे कितना प्रभाव हो समयानुकूल समुचित जानकारी के अभाव में अवसर छूट जाते हैं। वह चाहते हैं कि चित्रकारी की दुनिया से लगाव रखने वाले बगैर भटके और लक्ष्यरहित काम में समय को जाया न करें।
आज जब जगमोहन स्वयं चित्रकारी की दुनिया में जाना-माना नाम हैं तो वह चाहते हैं कि वह अपना कला धर्म भी निभाएं। उन्होंने जो कुछ भी आत्मसात् किया है उसे साझा करें। जगमोहन से बात करने पर हमारा नजरिया भी समृद्ध होता है। हमें पता चलता है कि चित्रकारी का क्षेत्र बहुत विशाल है। चित्रकारी भी चकाचौंध से भरी दुनिया में शामिल है। रोजगार के साथ-साथ यह क्षेत्र मान-सम्मान और प्रतिष्ठा से युक्त है। वह बताते हैं कि हम अपने जन्म स्थान से जब जिले, राज्य और देश की चित्रकला के बारे में सोचते हैं तो नए-नए नजरिए मिलते हैं। इसी तरह चित्रकला के क्षेत्र में यूरोपीय देशों की पेंटिंग्स हमें नया नजरिया देती हैं। इटली, बेल्जियम, मेक्सिको, यूनाइटेड किंगडम, नीदरलैंड जैसे मुल्कों की चित्रकारी का पता चलता है।
जगमोहन मानते हैं कि इस दुनिया को सुन्दर बनाने और दुनिया को सुन्दर मानने के लिए संवेदनशील लोगों को साझा होकर काम करना होगा। एक अच्छे इंसान होने के लिए अर्जित अनुभवों और कामों को बाँटना होगा। यह न हुआ तो हम रुपया बटोरने वाले खालिस व्यवसायी से इतर कुछ नहीं होंगे।
जगमोहन एक सवाल के जवाब में यह जवाब देते हैं-”इस क्षेत्र में वैभव भी है। सम्पन्नता भी है लेकिन उससे पहले कैनवस, कूची और रंग से आनंद लेना भी है। किसी कलाकृति को बनाते समय उसमें रमना और आनंदित होना भी है। कैनवस पर एक-एक कूची चलाना जीना भी है। इसे सबसे पहले शामिल करना होता है। पेंटिंग्स बनी है तो अपनी सही जगह पर कभी न कभी पहुँच ही जाएगी। उस कलाकृति का ख़याल आने से लेकर उसकी निर्माण प्रक्रिया और दर्शक दीर्घा तक पहुँचने का जो जीवन है उसे आनंद के साथ जीना पहला और बड़ा काम है।”
जगमोहन इससे पहले भी ऐसी तीन कार्यशालाएं कर चुके हैं। इन पर फिर कभी। जीवन के कैनवास पर जगमोहन जैसी तूलिकाएँ स्वयं चलती हैं। जीवन के रंग से चित्र बनाती हैं। यह अच्छ बात है कि ऐसी तूलिकाएं किसी की कठपुतलियाँ नहीं हैं। ऐसे प्रयासों की पेंटिंग्स बारम्बार और कई क्षेत्रों में अलग-अलग चित्रकारों की ओर से बननी चाहिए। आपको कहीं दिखाई दें तो जरूर बताइएगा।
कला के क्षेत्र में जगमोहन बंगाणी एक ऐसे चित्रकार हैं जो अभिनव प्रयोग के लिए जाने जाते हैं। लीक से हटकर अलहदा पेंटिग के लिए वह जाने जाते हैं। भारत के उन चुनिंदा चित्रकारों में वह एक हैं जो नए प्रयोग और दृष्टि के लिए प्रसिद्ध हैं। जगमोहन अब दिल्ली में रहते हैं। अलबत्ता उनकी जड़ें उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी जनपद के विकासखण्ड मोरी के गाँव मौण्डा से जुड़ी हैं।
और आखिर में यह बताना भी बनता है कि युवा चित्रकार जो इन पाँच दिन के पड़ाव में शामिल हुए, उनसे इस कार्यक्रम के तहत कोई शुल्क नहीं लिया गया। संभवतः तभी इसे फैलोशिप नाम दिया गया। जगमोहन बताते हैं कि इससे पूर्व तीन अलग तरह की गतिविधियों में लगभग पचास युवा चित्रकारों के साथ ऐसे ही संवाद स्थापित किए गए हैं। वह चाहते हैं कि युवा चित्रकारों के साथ एक भरी-पूरी टीम बने जो समकालीन चित्रकला के साथ सामाजिक सरोकारों से भी जुड़ें। एक बेहतर इंसान बनने की प्रक्रिया में एक-दूसरे का साथ दें। एक-दूसरे को समृद्ध करें।
पड़ाव के आखिरी दिन जगमोहन एवं पूनम ने अपनी अब तक की कला यात्रा भी प्रस्तुत की। उसके बाद सवाल-जवाब भी हुए। युवा चित्रकारों ने अपने अनुभव साझा किए।
लब्बोलुआब सार यही निकला कि इस क्षेत्र में असीम संभावनाएं हैं। चित्रकला को समझने के लिए अपने अनुभवों से अकेले सीखने के साथ-साथ जानकारों-वरिष्ठों का साथ-सलाह और निर्देशन अनमोल है। इन युवा चित्रकारों में कईयों का मानना था कि अब तक वे अपने एक सीमित दायरे-संसाधनों में चित्रकारी कर रहे थे। इन पाँच दिनों में सही मायनों में पता चला कि चित्रकारी का संसार बेहद-बेहद विशाल है। अभी तक हम चल तो रहे थे। लेकिन अब पता चला कि आनंददायी, सार्थक और योजनाबद्ध यात्रा की तैयारी भी जरूरी है। सिर्फ तैयारी ही नहीं उस दिशा में चलना आरंभ भी करना है।
इस दौरान काया लर्निंग सेन्टर के संतोष पासी से भी बात हुई। उन्होंने बताया कि साल भर काया लर्निंग सेन्टर सैलानियों-घुमक्कड़ों-अतिथियों के लिए खुला है। व्यावसायिक दृष्टि से काया तीन सौ पैंसठ दिन काम कर रही है। लेकिन इन्हीं तीन सौ पैंसठ दिनों में यदि कुछ दिन कुछ सार्थक, बिना अर्थ अर्जन के बिताए जाएं तो खुद को संजाने-संवारने का काम ही है। काया लर्निंग सेन्टर के उद्देश्य और स्थापना और उसके निर्माण में भी सामाजिक सरोकार, हित और समाज की सेवाएं जुड़ी हैं। इस लिहाज से भी लोक कल्याणार्थ, संवैधानिक मूल्यों की स्थापना के विचारशील काया लर्निंग सेन्टर का उपयोग करते हैं तो काया स्वयं भी प्रसन्नता महसूस करती है।
उम्मीद की जानी चाहिए कि इस तरह उभरते और चित्रकला की यात्रा में शामिल हुए युवा पड़ाव का हिस्सा होंगे। वह जगमोहन के साथ होंगे। जगमोहन की सोच को अपने भीतर पल्लिवित कर रहे होंगे। और अंत में कि हासिल करने के साथ-साथ वितरण की सोच भी हमारी मनुष्यता का हिस्सा बने।
वाह! शानदार!!
ये वाकई एक सफल कार्यक्रम रहा, पूरी टीम को बधाई। सभी बच्चों को शुभकामनाएं।
आपने विस्तार से इस कार्यक्रम के विषय में तो बताया ही, इस क्षेत्र में नवोदित कलाकारों के काम भी दिखाए। मैं इन पेंटिंग्स को आज ढंग से देख पाई। इस detailed article के लिए बहुत बहुत बधाई और आभार।
Jagmohan Bangani is known to me as a friend and an artist for almost two decades plus. I have been following him and his art journey very closely eversince.
The artist has carved a niche for himself in the word of art and brought name and fame to the country, state of Uttarakhand and Hill folks the world over. We are proud of him.
Jagmohan has selflessly dedicated himself to art and nurtured art with great passion. Having achieved a place for himself in the galaxy of well known creative artists…. he has of late undertaken a responsible role upon himself by encouraging and guiding young potential painters from the hill regions of Uttarakhand. He bears all their expenses out of his own pocket… of course the contribution of his graceful wife Poonam, an accomplished artist heself and young son is also deeply appreciated .
It has been an honour to have been invited to his “Padav” workshop this season and witness the master with young talents who would learn and refine their art….Wishing them success..name and fame.
Kaya is a noble concept. Mr Santosh Passi has painstakingly created a wonderful space… and dream for any creative person… an experience being in touch with mother earth and nature. The contribution of Kaya towards “Padav” too has been tremendous.
ji shukriya.
शुक्रिया! शायद, हमें जितना लिखना चाहिए, स्थान देना चाहिए उतना लिख नहीं पाते। हमारे पास बहुत सारा वक़्त होता है। उस वक़्त को सार्थक कार्य कर रहे लोगों के साथ, लोगों के लिए भी देना चाहिए। आप सब समाज की जरूरत हैं। हमारी भी सामाजिक प्रतिबद्धता के साथ सहभागिता हो। हम सब लोगों को ऐसे कामों की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा करनी ही चाहिए। बस इतनी सी बात है। और फिर आप भी तो इसी तरह से जुटी हैं। आपसे प्रेरणा ही पाते हैं हम जैसे लोग।
जी! वाकई ! हम जब भी किसी आयोजन में जाते हैं। किसी जगह जाते हैं और आंख-कान खुले रखें तो सीखते हैं। समझते हैं। आजकल किसी के पास किसी के लिए फुरसत कहां। हमें प्रसन्नता है कि हमारे पास आप जैसे कुछ लोग हैं जो हमें अक्सर अच्छे,भले और शानदार लोगों से मिलवाते रहते हैं।
मनोहर जी,
आज के समय में हमारी ऊँगली, जब एक स्क्रीन से दूसरी स्क्रीन तक फिसलने के अंतराल में ही प्रयोजन, मंशा, और सन्दर्भ तक को समझते हुए प्रतिक्रिया कर जाती है, ऐसे समय में इस आलेख के लिए आपकी कोशिश एक स्फूर्तिमय प्रेरणा है, उन सभी लोगो के लिए, जो कहीं एक जीवंत दॄष्टि बचाये रखना चाहते हैं I अभिनन्दन स्वीकार करें !
मनोहर भाई , मैं पड़ाव आर्ट मेंटरिंग प्रोग्राम के बारे में आपके द्वारा लिखे आलेख के लिए अपना हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ। आपका लेख बहुत व्यापक है और कार्यक्रम के सार और उद्देश्य को खूबसूरती से दर्शाया गया है । इस लेख में अपने मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान की है और कला जगत में परामर्श के महत्व पर प्रकाश डाला। आपके शब्दों ने पड़ाव आर्ट मेंटरिंग प्रोग्राम के माध्यम से प्रतिभागियों द्वारा अनुभव किए जा सकने वाले प्रभाव और लाभों की एक ज्वलंत तस्वीर पेश की है।
इतनी जानकारीपूर्ण और हार्दिक रचना तैयार करने में आपके समर्पण के लिए धन्यवाद। आपका योगदान न केवल कार्यक्रम के बारे में जागरूकता बढ़ाता है बल्कि मेरे जैसे महत्वाकांक्षी कलाकारों को विकास और मार्गदर्शन के अवसर तलाशने के लिए भी प्रेरित करता है। एक बार फिर, मैं आपके असाधारण कार्य के लिए अपनी गहरी सराहना व्यक्त करता हूं। आपके लेखन ने सकारात्मक बदलाव लाया है और एक अमिट छाप छोड़ी है। तहे दिल से धन्यबाद।
ji shukriyaa !