प्रख्यात गीतकार एवं लोक गायक नरेन्द्र सिंह नेगी ने कहा कि जन संघर्षों के नायको की याद में इकतीस साल पहले जो पौधा लगाया गया था वह आज वृक्ष बन गया है। यह वट वृक्ष बने इसके लिए ज़रूरी है कि जनता के मुद्दों और जन सरोकारों की आवाज बनते युवाओं को लगातार लामबद्ध किया जाए। एक समय ऐसा आ गया था जब जन संघर्षों पर काम कर रहे एक्टीविस्ट महसूस करने लग गए थे कि उनके साथी एक-एक कर बिछड़ रहे हैं और युवा सामाजिक गतिविधियों में शामिल नहीं हो रहे हैं लेकिन इस बार का आयोजन आश्वस्त करता है कि प्रतिबद्धता के साथ आह्वान किया जाए तो लोग जुड़ते हैं और कारवां बढ़ता है।


नरेन्द्र सिंह नेगी पौड़ी में आयोजित तीसवें उमेश डोभाल स्मृति समारोह के अध्यक्षीय संबोधन में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि उमेश डोभाल की धारा आगे बढ़े। फले-फूले। नई सोच, नए विचार शामिल हों। नई पीढ़ी ट्रस्ट से जुड़े और अपने आस-पास सामाजिक गतिविधियों में शामिल हों। पीछे मुड़कर देखें तो याद आता है कि आम जन समस्याओं को मीडिया में उठाने वाले उमेश डोभाल जैसे पत्रकारों ने एक रस्ता बनाया। कई लोग उस रास्ते पर चले। आज नए रास्तों की भी जरूरत है। नई पौध नए रास्ते तलाशेंगे और जन हित के मुद्दों की आवाज़ बनेंगे।


आयोजन के दूसरे दिन प्रातःकालीन पंजीकरण प्रक्रिया उपरांत विचार सत्र का आयोजन हुआ। नगरपालिका सभागार में तीन सौ से अधिक सहभागियों में शिक्षक, पत्रकार, लेखक, कलाकार, संस्कृतिकर्मी, सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधि, विद्यार्थी एवं महिला स्वयं सहायता समूह की एक्टीविस्टों की भागीदारी रही।


विचार गोष्ठी की औपचारिक शुरुआत में पत्रकार एवं लेखक डॉ॰ योगेश धस्माना ने वरिष्ठ पत्रकार,धाद पत्रिका के संपादक एवं संस्कृतिकर्मी गणेश खुगशाल ‘गणी’ को संचालन हेतु आमंत्रित करते हुए कहा कि यह दौर संक्रमण का दौर है लेकिन सरोकारों की लड़ाई के संघर्षों की लड़ाई कभी खत्म नहीं हुई है हाँ कम ज़रूर हुई है। राज्य में उत्तराखण्ड आंदोलन के बाद जन सरोकार के मुद्दों के लिए जनता की पैरवी करने वाली लड़ाईयां कम हुई हैं। आधुनिक दौर का यह माहौल हमेशा नहीं रहेगा। हमें सामाजिक गतिविधियों को बढ़ाना होगा।
गणेश खुगशाल गणी ने कार्यक्रम की रूपरेखा रखते हुए कहा कि सत्तर,अस्सी और नब्बे के दशक में जन विरोधी नीतियों पर कलम चलाने के जो भी कलमकार रहे हैं उनका खून हमारी नसों में भी धड़कता है। यह धड़कन बनी रहे और बची रहे। यह जरूरी होगा कि हम लगातार प्रतिरोध के साथ-साथ समाज के संघर्षकर्मियों को पहचाने और उन्हें रेखांकित करे। उनका हौसला बढ़ाएं।


विचार गोष्ठी की शुरुआत में वरिष्ठ पत्रकार,आलोचक,समीक्षक, संपादक एवं ट्रस्ट के अध्यक्ष गोविन्द पन्त ‘राजू’ ने कहा कि हर काल में सामाजिक सरोकारों को हाशिए पर धकेलने के प्रयास होते हैं। लेकिन उमेश जैसे व्यक्ति समाज के अगुवा बनते हैं। अविभाजित प्रदेश के दौरान उत्तराखण्ड आंदोलन ने आम जन को मुख्य धारा में शामिल कर लिया था। इसी तरह उमेश की हत्या के बाद जिस तरह पौड़ी से जन आंदोलन की लहर बनी वह बेमिसाल है। आज जिस तरह के हालात प्रदेश ही नहीं देश में बन गए हैं उससे जनसरोकारी लोगों की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। उत्तराखण्ड की अस्मिता के मुद्दे और सवाल राष्ट्रीय परिदृश्य में तभी दिखाई देंगे जब जागरुक एक्टीविस्ट समाज में सक्रिय रहेंगे।
गोविन्द पन्त राजू ने उमेश डोभाल के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने अस्सी और नब्बे के दशक का रेखाचित्र भी खींचा। उन्होंने कहा कि उमेश मरे नहीं हैं। वे अपने विचारों के साथ हमारे बीच में ज़िन्दा हैं।


संचालन कर रहे पत्रकार एवं संपादक गणेश खुगशाल ‘गणी’ ने सहभागियों को आयोजन स्थल पर कविता पोस्टर प्रदर्शनी, फोटो प्रदर्शनी, प्रगतिशील पुस्तक केन्द्र,पौड़ी और समय साक्ष्य के पुस्तक स्टॉल की जानकारी भी दी। उन्होंने बताया कि शिक्षक प्रदीप रावत का रचनात्मक स्टॉल और अज़ीम प्रेमजी फाउण्डेशन, पौड़ी द्वारा शैक्षिक पुस्तकें एवं पत्रिकाओं के स्टॉल की भी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि आज लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति के स्तर पर देश की स्थिति अच्छी नहीं है लेकिन जनता की आवाज़ बुलंद करने के लिए जागरुक होने की आवश्यकता और भी बढ़ गई है।


इस अवसर पर तीसवें आयोजन के उपलक्ष्य में स्मारिका का विमोचन भी हुआ। इस अवसर पर उमेश डोभाल की कविताओं की पुस्तक ‘जागो वंसत दस्तक दे रहा है’ का दूसरे संस्करण का भी विमोचन हुआ। आयोजन के मध्य शिक्षक एवं साहित्यकार महेशा नन्द की पुस्तक तैलु घाम कविता संग्रह का विमोचन भी हुआ। आयोजन स्थल पर ही बी.मोहन नेगी, आशीष नेगी और प्रदीप रावत कृत कविता पोस्टर प्रदर्शनियों को भी आयोजन स्थल पर उपस्थित सहभागियों ने खूब सराहा। अरविंद नेगी कृत शिल्प कला प्रदर्शनी को भी खूब सराहना मिली।
विचार गोष्ठी के केन्द्र में प्रख्यात पर्यावरणविद्, भू-वैज्ञानिक एवं यायावर नवीन जुयाल का शानदार व्याख्यान रहा। उत्तराखण्ड की विकास परियोजनाएं और पर्यावरण की हकीकत विषयक हैरत भरी जानकारियाँ उन्होंने दी। उन्होंने कहा कि कम से कम भारत के कमोबेश पर्यावरणविद्ों की कार्यशैली, विचार और वक्तव्य ऐसे हो गए हैं कि ‘पर्यावरणविद्’ उपाधि गाली-सी लगती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि बड़े सम्मान और पुरस्कार जैसे-जैसे मिलते जाते हैं हमारी रीढ़ की हड्डी झुकती चली जाती है। जिस पर्यावरण के नाम पर हमारे पर्यावरणविद् मशहूर होते हैं उसी पर्यावरणीय सरोकारों को जब सबसे अधिक ज़रूरत होती है तब इन लोकप्रिय पर्यावरणविद्ों के मुख मूक हो जाते हैं। वे खामोश हो जाते हैं। सन्नाटा पसर जाता है।


हिमालयी सरोकारों के जानकार नवीन जुयाल ने कहा कि कितनी अजीब बात है कि शहरों के शहरियों के सुबह से रात तक काम आने वाले फुटपाथियों को साधारण रहन,भोजन और जीने के आम सुविधाएं मयस्सर नहीं है। उलट शहरियों को लगता है कि उनका शहर इन फुटपाथियों की वजह से भद्दा लगता है। यह सोच लगातार बढ़ती जा रही है। कोरोनाकाल में तमाम शहरों को ज़िन्दा रखने वाले कामगार जब अपने घरों को लौट रहे थे जब दुनिया को पता चला कि करोड़ों लोग शहरों में बेघर हैं।


उन्होंने कहा कि साजिशन यह प्रचारित किया जा रहा है कि पहाड़ में जो भी आपदाएं आती हैं वह प्राकृतिक हैं। उन्हें रोका नहीं जा सकता। लेकिन पहाड़वासी भी जानते हैं कि यह आधा सच है। मनुष्यजनित हिमालयी छेड़छाड़ ने इन आपदाओं को बढ़ाया है। पहाड़ के रहबासी हमारे वैज्ञानिकों और पर्यावरणविद्ों से अधिक अनुभवजनित जानकारी और ज्ञान रखते हैं। श्री जुयाल ने उत्तराखण्ड में आई आपदाओं की सिलसिलेवार जानकारी ही नहीं दी उनसे निपटने के लिए सरकारी लापरवाही को भी सामने रखा। उन्होंने तर्क और तथ्यों के साथ बाँधों के बनने, हिमालयी सड़कों के निर्माण के पीछे के स्वार्थों की भी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि हमारे पर्यावरणविद् और वैज्ञानिक विज्ञान की समझ यदि हमारी दादी-नानियों को समझा दें तो ठीक अन्यथा बड़े-बड़े सेमिनार और रिसर्च पेपरों के नाम पर करोड़ों रुपयों की तिलांजलि सालों से दी जाती रही है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि सिरोबगड़ का लैण्डस्लाइड वाले मामले में एक सौ साठ करोड़ रुपए खर्च हो गए हैं और अब उसे उसी हाल पर छोड़कर वैकल्पिक मार्ग पर काम चल रहा है। श्री जुयाल ने बाँध परियोजनाओं, भूस्खलन, आल वैदर रोड, गंगा सहित अन्य नदियों सहित हिमालयी सरोकारों पर विस्तार से अपने अनुभव रखे। उन्होंने कहा कि समस्याएँ बहुत हैं तो फिर हल क्या? उन्होंने कहा कि एक बात तो साफ है कि उच्च हिमालयी क्षेत्र को तो बिल्कुल मत छेड़िए।

उन्होंने कहा कि आल वैदर रोड़ के नाम पर 900 किलोमीटर के क्षेत्र के लाखों पेड़ों,वनस्पतियों और पारिस्थितिकीय के लिए जरूरी कीट-पतंगों की जीवन लीला से खिलवाड़ किया जा रहा है। साढ़े पांच मीटर चौड़ी सड़क को सेना-सुरक्षा के नाम पर दस मीटर किया जा रहा है। जिस सड़क को तेज गति के वाहनों के चलते हमारी घसियारिने पार नहीं कर पाती। उन्होंने कहा कि सूबे के पहाड़ एकसार नहीं हैं। एक तरह का खनन और कटिंग हमारी हिमालयी पट्टी झेल नहीं सकती। लेकिन जिस तरह के निर्णय लिए जा रहे हैं उससे साफ पता चलता है कि विज्ञान भोज के आगे नतमस्तक है। बहुत जल्दी ही यमुनोत्री और केदारनाथ मार्ग को भी हम 10 मीटर चौड़ा होता हुआ देखने जा रहे हैं। अनियोजित विकास का आलम देखिए कि आज की तारीख में केदारनाथ में तीस हजार से अधिक लोग टिके हुए हैं। क्या यह सही है? इतने इंतजाम हैं? उन्होंने कहा कि एक ही समय में नीति-नियंताओं के दो स्वर सुनने को मिलते हैं। विकास भी चाहिए पर विनाश के साथ। वैश्वीकरण स्तर भी चाहिए और स्थानीयता को बचाने की बात भी। यह कैसे संभव है? कुल मिलाकर यह कहना उचित होगा कि किसी भी स्तर पर स्थानीयता और स्थानीय जन की किसी को चिन्ता नहीं है। उन्होंने कहा कि विज्ञान का धर्म जन सरोकार है। वह यथार्थ को इस तरह से जनता के सामने रखे जिससे आम आदमी जागरुक हो न कि वह डर जाए। विज्ञान असलियत सामने रखे उसे छिपाए नहीं।


इस अवसर पर राजेन्द्र रावत ‘राजू’ जनसरोकार सम्मान प्राप्त अनिल स्वामी ने कहा कि आज जिस समय में हम जी रहे हैं। कहना भी मुश्किल है। हर बात का प्रमाण आज कागज हो गया है। हर बात के लिए सर्टिफिकेट मांगा जाता है। लेकिन तथ्यों को जिस तरह से छिपाया जा रहा है वह हैरत भरा है। लेकिन हमें हिमालय की तरह खड़ा रहने की आवश्यकता है।


उत्तराखण्ड क्रांतिदल के संस्थापक सदस्यों में अग्रणी अनिल स्वामी ने कहा कि मात्र 330 मेगावाट क्षमता की जलविद्युत परियोजना लाभकारी कम जनहानि का परिचायक अधिक साबित हो रही है। 125 करोड़ से बढ़कर यह परियोजना 330 करोड़ रुपए खर्च हो गए हैं लेकिन विद्युत उत्पादन का लक्ष्य आधा-अधूरा ही साबित हो रहा है। आल वैदर रोड में जन मानस के खयाल ऐसे बना दिए है कि डेढ़ लाख पेड़ कटना कोई मुद्दा नहीं है।


पिछले चार दशकों से आम जन के मुद्दों को उठाने वाले जन आंदोलनकारी अनिल स्वामी ने कहा कि हम पहाड़ियों के जनप्रतिनिधि कभी अविभाजित उत्तर प्रदेश में 19 थे बस अब वे 70 हो गए हैं। यदि राज्य का विकास का आंकड़ा देखें तो हालत बदतर ही हुए हैं। यह सोचना भी हैरत में डालता है कि विधायकी चुनाव में एक प्रत्याशी 32 करोड़ रुपए खर्च कर देता है। लेकिन यह बात सही है कि संघर्षशील मानस संघर्ष करते हैं तब स्थापित होते हैं। राजनीति में यह नियम लागू नहीं होता। खनन,शराब और संत्रियों का संग आसान राह है। श्री स्वामी ने सुझाव दिया कि आज ज़रूरत इस बात की है कि हम समूह में न बंटे। समूह हैं भी या सह मंच बने हैं तो भी इकट्ठा होकर जन सरोकारों की, हक-हकूकों की लड़ाई लड़ना ही श्रेयस्कर होगा।


समाज में आ रही सामाजिक गिरावट के प्रति भी वह चिंतित दिखाई दिए। उन्होंने कहा कि आस-पास में ही किसी के मरने या दाह संस्कार के दौरान 11 लोग नहीं जुटते। हाँ उसी आदमी की तेरहवीं,श्राद्ध जिसे जिम्मण कहूं तो ठीक होगा उस में 350 लोग इकट्ठा हो जाते हैं। खाने-पीने के सरोकार बढ़ रहे हैं। प्रतिरोध की रवायत ज़िंदा नहीं रही तो वह समय भी आएगा जब हिमालय बिना बर्फ का हो जाएगा।


विचार गोष्ठी में गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ जनकवि सम्मान से नवाजे सतीश धौलाखण्डी ने कहा कि मैं कोई वक्ता नहीं हूँ। जन गीतों को सड़क पर, नुक्कड़ पर और चौराहों पर गाकर कवियों,लेखकों और बुद्धिजीवियों की बात संगीत के माध्यम से फैलाता हूँ। मुझे इस बात का गर्व हो रहा है कि इतना बड़ा मंच और सम्मान आम नुक्कड़ नाटक और जनगीतों के फैलाव के लिए मुझे जैसे को मिल रहा है। यह मेरी जिम्मेदारी बढ़ा रहा है। इस अवसर पर उन्होंने एक जनगीत ‘नदी तू बहते रहना’ भी गाया। समूचा सभाकक्ष आनंदमयी हो गया। जन गायक सतीश धौलाखण्डी के साथ उपस्थित सहभागी भी शामिल हुए।


मीडिया पुरस्कार के तहत प्रिन्ट मीडिया के क्षेत्र में पुरस्कृत गंगा असनोड़ा थपलियाल ने कहा कि पौड़ी उनका ससुराल है और वह इस मंच पर पुरस्कृत होकर गौरवान्वित हो रही हैं। उन्होंने कहा कि साल 2014 में दिवंगत भवानी शंकर थपलियाल जी ने इसी पुरस्कार के लिए मेरे काम को देखकर आवेदन कराया था। मैं कभी भी आवेदन करने वाले पुरस्कारों के पक्ष में नहीं रही। लेकिन उनका जोर था कि कई बार काम को सम्मान देने के लिए काम का लेखा-जोखा जुटाना भी होता है। बहरहाल, उस साल गैरसैंण में इस समारोह में तो मुझे यह पुरस्कार नहीं मिला। लेकिन देर से ही सही नौ साल बाद ट्रस्ट ने मेरे काम को रेखांकित किया। पिछले 19 सालों से प्रिन्ट मीडिया में सक्रिय पत्रकार गंगा असनोड़ा ने कहा कि पत्रकार जगत में महिला पत्रकारों के काम को पहचान देना, सराहा जाना और रेखांकित करना बेहद जरूरी है। वह कई मोर्चो पर काम करती हैं। लड़ती हैं और समाज के कई संवेदनशील मुद्दों पर ध्यान आकर्षित कराती हैं।

पिछले नौ साल से रीजनल रिपोर्टर मासिक का संपादन कर रही गंगा ने कहा कि उमेश डोभाल की धारा क्या थी? उस धारा के साथ बहते रहने वालों के सम्मान और पुरस्कार पर बात का बतंगड बनाने वालों से मैं पूछना चाहती हूँ कि जन सरोकारियों ने जो कुछ भी निजी तौर पर लड़कर, विरोधकर और जनता के बीच लिख-लिखकर बचाया उसके लिए कोई कुछ क्यों नहीं बोलता। समाज का बहुत बड़ा तबका मौन हो जाता है। देश भर में आज मीडिया की जो स्थिति है, वह किसी से छिपी नहीं है। मैं आज जिस स्थिति में हूँ वह मेरे या किसी मां के जीवन का सबसे कठिन दौर होता है। बच्चे पढ़ रहे हैं उस स्थिति में हैं कि उन पर ध्यान देना है। बावजूद उसके मैं जन विरोधी नीतियों के खिलाफ खड़ी थी और खड़ी रहूंगी। मैं उमेश डोभाल की सोच और उस धारा के साथ हूँ और रहूंगी। इस पुरस्कार ने मुझे फिर से संचारित कर दिया है। मुझे फिर से ऊर्जावान बने रहने के लिए प्रेरित किया है।


सोशल मीडिया पुरस्कार से पुरस्कृत शीशपाल गुसाई ने कहा कि समाज का सच और समाज के सामने सच लाना हमारा काम है। सोशल मीडिया में समाज हित में काम किया जाना आसान नहीं है। लेकिन सोशल मीडिया का सही इस्तेमाल जरूरी है। शोधपरक लेखों को आम जन के लिए लिखना उनका ध्येय रहा है और रहेगा भी। वह आगे भी अपने कार्य को करते रहेंगे।
इलैक्ट्रॉनिक मीडिया पुरस्कार से नवाजे टीम बारामासा के राहुल कोटियाल ने कहा कि आज के दौर में इस तरह की पहचान करना और फिर काम का सम्मान करना बड़ी बात है। टीम के काम को पहचान मिली है यह स्वयं में बड़ा सम्मान है।

पहले सत्र की समाप्ति से पूर्व वरिष्ठ पत्रकार एवं बोर्ड आफ ट्रस्टी राजीव लोचन साह ने प्रख्यात गीतकार एवं गायक नरेन्द्र सिंह नेगी को अंगवस्त्र ओढ़ाकर सम्मानित किया। इसी सत्र में उमेश डोभाल स्मृति सम्मान 2022 दिवंगत त्रेपन सिंह चौहान को दिया गया। उनकी पत्नी निर्मला चौहान को ट्रस्ट के सदस्य सत्यनारायण रतूड़ी ने अंगवस्त्र प्रदान किया। श्रीमती चौहान ने अपने संबोधन में ट्रस्ट का आभार जताया। उन्होंने चमियाला में सामाजिक कार्यों को करते रहने का संकल्प भी दोहराया। त्रेपन सिंह चौहान का प्रशस्ति वाचन डॉ॰ कमलेश मिश्रा ने किया। अनिल स्वामी का प्रशस्ति वाचन आशीष मोहन नेगी ने, सतीश धौलाखण्डी का प्रशस्ति वाचन विनय शाह ने, गंगा असनोड़ा थपलियाल का प्रशस्ति वाचन मनोहर चमोली ‘मनु’ ने, टीम बारामासा का प्रशस्ति पत्र वाचन डॉ॰मदन मोहन नौडियाल ने शीशपाल गुसांई का प्रशस्ति पत्र वाचन डॉ॰ अरुण कुकशाल ने किया। इससे पूर्व ट्रस्ट की ओर से राजीवलोचन शाह ने अनिल स्वामी को, बिमल नेगी ने सतीश धौलाखण्डी को, उमा भट्ट ने गंगा असनोड़ा थपलियाल को, राहुल कोठियाल को रवि रावत ने मनमीत रावत को आशीष नेगी ने और शीशपाल गुर्साइं को दिनेश डोभाल ने अंगवस्त्र ओढ़ाकर ट्रस्ट का मान बढ़ाया। पत्रकार ए॰पी॰घायल ने ट्रस्ट के साथी दिवंगत ओंकार बहुगुणा ‘मामू’ के पुत्र अशित बहुगुणा को अंगवस्त्र एवं स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया। मुख्य वक्ता नवीन जुयाल को वरिष्ठ पत्रकार एवं आंदोलनकारी पी॰सी॰तिवारी ने अंगवस्त्र एवं स्मृति चिह्न देकर ट्रस्ट का मान बढ़ाया।


विचार गोष्ठी के बाद खुला विचार सत्र का संचालन डॉ॰योगेश धस्माना ने किया। इससे पूर्व चेतना आंदोलन टीम और सिरौली की महिला स्वयं सहायता समूह को भी मंच पर सम्मानित किया गया। उनके कार्यों की जानकारी उपस्थित सहभागियों को दी गई।


डॉ॰योगेश धस्माना ने उपस्थित सहभागियों को खुले सत्र में भाग लेने का न्यौता दिया। खुले सत्र में इन्द्रेश मैखुरी, प्रभात ध्यानी, अतुल सती, अनुसुया प्रसाद मलासी, पलाश विश्वास, महीपाल नेगी, पी॰सी॰तिवारी, एम॰एम॰पपनै, स्निग्धा,देवेन्द्र बुड़ाकोटी ने देश,दुनिया और प्रदेश के समसामयिक मुद्दों को उठाया।


खुले सत्र में अधिकांश मुद्दे उत्तराखण्ड के सन्दर्भ में रेखांकित किए गए। तत्पश्चात मनोहर चमोली ‘मनु’ ने प्रस्तावित बिन्दु सदन के समक्ष रखे। जिन्हें उपस्थित सहभागियों ने हाथ उठाकर समर्थन एवं अनुमोदन किया। वह बिन्दु जिन पर आम सहमति बनी। उनमें प्रमुख तौर पर लोहारी गाँव के विस्थापन की पारदर्शिता, जोशीमठ नगर के दरकने संबंधी समस्या, चार धाम यात्रा में हो रही अव्यवस्था, उत्तराखण्ड की लचर स्वास्थ्य सेवाओं में प्रमुख रूप से हर जिले में कार्डियोलॉजिस्ट की व्यवस्था, उत्तराखण्ड की नदियों के तट पर हो रहे अवैध कब्जों को हटाने, स्पष्ट भू कानून की सिफारिश, वर्तमान में सूबे में असीमित भूमि को औद्योगिक उद्देश्य से क्रय करने संबंधी नियम में भूमि के असल प्रयोजन की जांच हो के संबंध के मुद्दे रहे। कई वक्ताओं ने अपने संबोधन में प्रेम,भाईचारा, सद्भाव बढ़ाने संबंधी गतिविधियों को बढ़ाने की पुरजोर वकालत की। वक्ताओं ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन के मामलों को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। ट्रस्ट अनुमोदित बिन्दुओं पर पारित प्रस्ताव का समेकन कर शीघ्र ही संबंधित विभागों सहित उत्तराखण्ड सरकार को भेजेगा।


दो दिवसीय आयोजन को सफल बनाने में नवांकुर नाट्य समूह, अज़ीम प्रेमजी फाउण्डेशन, च्वींचा गांव के सक्रिय नागरिक, वरिष्ठ नागरिक मंच, सिरौली गांव की स्वयं सहायता समूह के सदस्यों का योगदान अविस्मरणीय रहा। विकास बड़थ्वाल, पूजा दुमोगा, श्वेता बिष्ट, गणेश बलूनी, मनोज दुर्बी, स्थानीय पत्रकार प्रमोद खंडूड़ी, जगमोहन डांगी, जगमोहन रौतेला, नरेश चन्द्र नौडियाल, कृपाल सिंह, सीताराम बहुगुणा, योगेन्द्र काण्डपाल, अनीता नेगी, प्रवीण कुमार भट्ट, दीपक बेंजवाल, राजेन्द्र काला, हृदयेश शाही, स्निग्धा तिवारी, विनोद बंगियाल, रूपेश सिंह, कमलेश खंतवाल, कविता बुडोला,अंजना, लक्ष्मण सिंह रावत, सुमन काला, उमा भट्ट, कृपाल सिंह रावत, देवानन्द भट्ट, मदन मोहन चमोली, अतुल सती, अंकित, तुषार, पदमेन्द्र सिंह बिष्ट, दिनेश डोभाल, विजय लक्ष्मी, सुरेंद्र रावत, मातंग मलासी, भारती पाण्डे, दयाकृष्ट काण्डपाल, विनोद बडोनी, सुरेश नौटियाल, उमाशंकर कुकरेती, सी.एम.पपनै, दिनेश उपाध्याय, परिधि चौहान, विनीता यशस्वी, सुभाष चन्द्र सहित लगभग तीन सौ सहभागियों ने व्याख्यान सत्र और खुले सत्र में प्रतिभाग किया।


आयोजन के पहले दिन सांयकाल बेला कारवां दिल्ली द्वारा ‘सबसे सस्ता गोश्त नाटक की प्रस्तुति भी सराही गई। दूसरे दिन सांय मानव कौल कृत नाटक ‘बलि और शंभू’ की शानदार प्रस्तुति ने दर्शकों का मन मोह लिया।
इससे पूर्व पहले दिन सांय पत्रकार उमेश डोभाल की याद में आयोजित तीसवें आयोजन के पहले दिवस पर पौड़ी में सांस्कृतिक जुलूस का आयोजन किया गया। नगरपालिका के बारातघर प्रांगण में अपराह्न से ही पौड़ी में कलाकार, पत्रकार, बुद्धिजीवी, शिक्षक, संस्कृतिकर्मी सहित जन सरोकारों को समर्पित मातृशक्ति जुटने लगी थी। धारा रोड़, पौड़ी बस अड्डा, माल रोड़, एजेंसी चौक,अपर बाजार से होते हुए लगभग तीन सौ एक्टीविस्टों का हुजूम लोअर बाजार से गुजरते हुए बारातघर पहुँचा। समूची सांस्कृतिक यात्रा में जनगीतों और जनसरोकारों के मुद्दों पर गूंज रहे नारों ने लगभग ढाई साल से अधिक पसरे शहरी सन्नाटे को तोड़ने में सफलता अर्जित की। दिलचस्प बात यह थी कि इस सांस्कृतिक यात्रा में बच्चे,युवा और बुजुर्ग भी शामिल थे।


उत्तराखण्ड की आवाज़ का पर्याय बन चुके गायक एवं गीतकार नरेन्द्र सिंह नेगी, वरिष्ठ पत्रकार राजीव लोचन शाह, गोविन्द पन्त ‘राजू’ सहित राज्य भर से ही नहीं तमाम राज्यों से लोग जुटे।
जुलूस में उमेश डोभाल ट्रस्ट के कार्यकारी अध्यक्ष बिमल नेगी, पत्रकार अरविन्द मुदगिल, सुरेन्द्र रावत ‘सूरी’, एस.एन.रतूड़ी, रवि रावत, रैमासी, प्रदीप रावत, यमुना राम, विनय शाह, कमलेश खन्तवाल, उमा भट्ट, सतीश धौलाखण्डी, अनिल बिष्ट, कमलेश मिश्रा, गणेश बलूनी, विकास, पूजा, सीमा, मृगांक चमोली, भरत लाल शाह,केशर सिंह असवाल, आशीष नेगी, नरेश चन्द्र नौडियाल, इन्द्रेश मैखुरी, ओम जुगरान, संग्राम सिंह नेगी, पुरानी पेंशन बहाली आंदोलन नेता दीपक पोखरियाल आदि शामिल रहे।
25 मार्च 1988 को शराब माफियाओं ने पत्रकार उमेश डोभाल की हत्य कर दी थी। बाद उसके शहर में ही पत्रकारों की दुनिया में लोग जुटने लगे थे। तभी से उमेश डोभाल के जन सरोकारों को हर साल देश भर के नगरों में स्मृति सम्मान समारोह आयोजित कर याद किया जाता रहा है।
ट्रस्ट के महासचिव आशीष नेगी ने बताया कि इस साल प्रिन्ट मीडिया पुरस्कार गंगा असनोड़ा थपलियाल, सोशल मीडिया का पुरस्कार शीशपाल गुसांई, इलेक्ट्रानिक मीडिया का पुरस्कार टीम बारामासा, उमेश डोभाल स्मृति ट्रस्ट का सम्मान दिवंगत त्रेपन सिंह चौहान को, राजेन्द्र रावत ‘राजू’ जनसरोकार सम्मान अनिल स्वामी को और गिरीश तिवाड़ी ‘गिर्दा’ सम्मान सतीश धोलाखण्डी को दिया गया। आयोजन को सफल बनाने के लिए उमेश डोभाल के गांव सिरोली ग्राम वासियों का, अज़ीम प्रेमजी फाउण्डेशन, नागरिक मंच सहित कई जनसरोकारी संस्थाओं का विशेष सहयोग रहा।

संकलन एवं प्रस्तुति: मनोहर चमोली ‘मनु’
सम्पर्क: chamoli123456789@gmail.com

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By manohar

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