आज इक्कीस अक्तूबर है। पिछले चार दिनों ने उत्तराखण्ड सहित कई सूबों का जीवन अस्त-व्यस्त कर दिया है। जान-माल की क्षति भी हुई है। हम कुछ दिन प्रकृति के इस रवैये पर चिंतित होते हैं और मानवीय हस्तक्षेप पर बौद्धिक जुगाली करते हैं। फिर, वही सब करने लगता है जो हम करते आ रहे हैं। हम न प्रकृति से कुछ सीख रहे हैं, न उसकी चेतावनी से चेतते हैं।

बहरहाल, जीवन की पटरी पर चलना ही हमारी नियति है। थमना, हांफना मना है। आज इक्कीस अक्तबूर है। हर साल यह महीना आता है। इक्कीस तारीख भी हर माह आती है। तारीख महज़ हिसाब और गणना के लिए अंक मात्र ही तो हैं। अलबत्ता जिस दिन कुछ खा़स, अविस्मरणीय घट जाता है तो वह तारीख हमारे लिए अहम् हो जाती है।

मसलन-हमारा जन्मदिवस, नौकरी का पहला दिन, रिटायरमेंट का दिन, हमसे जुड़े अभिन्न परिचितों की जन्म या पुण्य तिथि दिवस। बच्चों की पैदाइश के दिन वगैरह-वगैरह।उम्र बढ़ती जाती है। जीवन से जुड़े ऐसे दिवसों की संख्या भी बढ़ती जाती है। फिर वह समय भी आने लगता है जब हम ऐसे अविस्मरणीय दिनों की तारीख भूलने लगते हैं। फिर हमें इन्हें नोट करना पड़ता है।

हो भी क्यों नहीं। ऐसी तारीखों के कई दिन आपके जीवन में जुड़ने लगते हैं। आप अपना, अपनो का, अपनो से जुड़े परिचितों का, अपने मित्रों का, अपने बच्चों का किस-किस का जन्म दिन याद रखेंगे? जीवन की आपा-धापी बढ़ती चली जाती है। ऐसे में कई बार आप दिन और तिथि तक भूल जाते हैं। त्योहार सिर पर आ जाता है तब आपको याद आती है कि अरे! कुछ तैयारी भी तो करनी है!

फिर? धीरे-धीरे ऐसे दिनों की याद संकुचित होने लगती है। फिर आप अपने जन्मदिन,अपने से जुड़े बेहद क़रीब का जन्मदिन ही याद रख पाते हैं। विरले होते होंगे जो दस-बीस ऐसी तिथियाँ याद रख पाते हैं। उन्हें तो नमन है ही है। बहरहाल ऐसी ही कुछ खास तारीखों में एक शादी की तारीख भी होती है। जो कुँवारे हैं या रह गए हैं वे अपनों की विवाह की सालगिरह याद रखते होंगे। तो मुझे भी इक्कीस अक्तूबर इसलिए याद आता है क्योंकि इस दिन अपन का विवाह अनीता संग हुआ। अपन इसे बंधन नहीं मानते। बंधन तो बांधता है।

विवाह ने तो मुझे और भी मुक्त किया है। विचारों से, सोच से और कुछ मान्यताओं की जकड़न से। इक्कीस अक्तूबर इसलिए भी खूब याद आता है क्योंकि इसी दिन हमारी पहली संतान अनुभव का जन्मदिन भी आता है। इक्कीस तारीख का जुड़ाव और गहरा इसलिए भी हो गया कि हमारी दूसरी संतान का जन्म भी इक्कीस तारीख को हुआ। यह ओर बात है कि मृगाँक का जन्म इक्कीस फरवरी को हुआ। लेकिन ये इक्कीस धन इक्कीस धन इक्कीस तो है ही है। हमारे विवाह को चौदह बरस पूर्ण हो गए हैं। आज से हम पन्द्रहवें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। पीछे मुड़कर देखता हूँ तो पाता हूँ कि अनीता के जीवन में आने से पहले ज़िन्दगी चल ही रही थी। तब तक मैं जा बन चुका था। मेरे बनने में परिवार का, शिक्षकों का और दोस्तों का अपार सहयोग रहा है। उसे कैसे भूला जा सकता है।

मैं ऐसा कैसे कह सकता हूँ कि मेरी जीवनसंगिनी ने मेरे जीवन में आकर काया पलट दी। मुझे इंसान बना दिया। वो न होती तो मैं ‘मैं’ न होता। मेरी पत्नी ही मेरे जीवन का आधार है। वो नहीं तो कुछ नहीं। ऐसा लिखना और सोचना शायद गलत होगा। यह पत्नी से इतर रिश्तों को बौना समझना माना जाएगा। हर रिश्ता अपने स्थान पर खास है। कोई भी रिश्ता दूसरे रिश्ते की जगह पर स्थापित नहीं किया जा सकता। आज एकल परिवार में बच्चे चाचा-चाची, बुआ, मामा के रिश्ते से परिचित नहीं हैं। क्यों? जब हम ही अपने माता-पिता के अकेले बच्चे हैं तो कई रिश्तों की गरमाहट से हम भी तो वाक़िफ नहीं हैं।

बहरहाल, मैं भी विवाहितों की तरह वैवाहिक जीवन के अहसासातों से भरा-पूरा हूँ। पीछे मुड़कर देखता हूँ तो पाता हूँ कि अनीता ने मेरे कई काम सरल कर दिए हैं। मेरे अनगढ़ तरीकों को गढ़ा है। मेरे अव्यवस्थित समय को व्यवस्थित किया है। परिवार में बतौर मेरी भूमिका को दिशा देने में सलाहियतों और सहूलियतों में अहम् भूमिका निभाई है। बतौर भाई, पुत्र, पिता, पति के साथ अन्य रिश्तों में मेरी भूमिका को उदासीन नहीं होने दिया। मुझे सदा सकारात्मक,सक्रिय,गंभीर और रचनाशील बनाने में सूरज की मानिंद रोशनी देने का काम किया।

मैं अनीता को को अपनी परछाई कहकर खुद को बड़ा साबित करने की कोशिश कैसे कर सकता हूँ! ऐसा भी नहीं है कि हर बात पर हमारी सहमति रही हो। और हो भी क्यों? मुझे यह कहने में क़तई संकोच नहीं है कि सहमति-असहमति के बीच कई बार ऐस हुआ कि संवाद कुछ पलों के लिए चुप्पी में बदल गया। लेकिन, फिर से ज़िंदगी की सुबह उजास से शुरू हो जाती। आज यह सब लिखते हुए यह भी लिखना लाज़िमी है कि अभी तो इस रिश्ते की ताप को और चरम पर जाना है। जीवन-संग के महत्व को अभी समझना ही तो शुरू किया है।

दांपत्य जीवन के बिना भी लोग चलते हैं। ज़िंदगी का सफर पूरा करते हैं। लेकिन, वे लोग इस रिश्ते के अनुभव से वंचित तो रहते ही हैं। संभवतयाः कभी-कभी सोचते भी होंगे कि वे भी वैवाहिक जीवन की पारी खेलते। मैं जानता हूँ कि विवाह प्राकृतिक नियम का हिस्सा नहीं है। लेकिन सामाजिक नियम के तौर पर यह बेहद सुदृढ़ और अलहदा अध्याय तो है ही। हम स्वतः ही इसके कुछ नियमों को मानने के लिए प्रतिबद्ध हो जाते हैं। यह रिश्ता फलता-फूलता है और इस रिश्ते की पौध का वृक्ष बनते हुए देखकर स्वयं भी गदगद होना स्वाभाविक है।

यह लिखना भी ज़रूरी लग रहा है कि पन्द्रह बरस के साथ में रचनात्मक उपलब्धियों में अनीता का सहयोग और सामीप्य का कोई मोल नहीं है। जैसे-जैसे प्रतिबद्धताएं बढ़ती गईं, मेरे लिखने-पढ़ने का समय और कामों में खपता गया। तब जब-जब मैं इस छटपटाहट को व्यक्त करता तो अनीता ने ही अहसास कराया कि लिखने-पढ़ने से ही प्रतिबद्धताएं बढ़ी हैं। यह प्रतिबद्धताएं पढ़ने-लिखने के जरिए ही हासिल हो रही हैं। इन्हें नज़रअंदाज करना पढ़ने-लिखने के प्रति अन्याय ही होगा। यह कहना उचित होगा कि अपन भी अपने इस रिश्ते को औरों से इक्कीस बताने में संकोच नहीं करते। आखिर इक्कीस का जो मामला है। आप चाहें तो हमें बधाई दे सकते हैं।–2020 Link-https://www.facebook.com/mcmpauri/posts/1781085968735302?__cft__[0]=AZXhS9Eokm1kTHtwJBFJYGrYWCXDd-De7OGoJIG0FOAFg96uLkGiPs3osJ9H_mXZ3XUZVgBlkcgPb_9K2_O0HJdt5d9yL_QFIKlCKhR_EX3vSvRn8N-e1DzBIzPxMOSIgGniDevlRQUGamykvreawf7SppUHZ0qy1bzysZYri7aG4w&__tn__=%2CO%2CP-R–2016 Link-https://www.facebook.com/photo/?fbid=706779362832640&set=a.706779359499307&__cft__[0]=AZW5IvUvRKcFDcCUoVhstqV4LSWuWbhzbfW_K6pTtV16kAuQvatTxSTiZ21SJo3CsiKZp18YKqjszUmRahbWSuF526683iIL5B5idu7gdxpg_-khVK2Ru73bednVW1PeQRjR73MyfY2W9SjKnxN6cZebyO0aF14PDcCInh0YPgb8FA&__tn__=%2CO%2CP-R–2015 Link-https://www.facebook.com/mcmpauri/posts/536205593223352?__cft__[0]=AZU11qNg8GH0YV5M-ftClcne2wyDWeLIIZ4mKu1ph0Yju-IQchkIC-gFj-22xmpbnOJmzNkrf2rg6-foKlcC_rt5q-qckg2FA84ufoM8Gk1W3isu2tJimQn3PRMX1690jVSE7rfCp6gzGHEfp09XU1XqCYbW0gnBcWqfxBF85UQMIw&__tn__=%2CO%2CP-R

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By manohar

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