-मनोहर चमोली ‘मनु’
वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व सम्पादक दिनेश जुयाल ने कहा कि मीडिया के मरते जाने के कई मामले हैं। मीडिया अति का शिकार हो चुका है। स्थितियाँ जनसरोकारों के विपरीत है। आज आलोचना नहीं, निन्दा नहीं बल्कि स्तुति का समय है। आज के सन्दर्भ में मीडिया के मायने बदल चुके हैं। फिर भी हम निराश नहीं हैं। बकौल उमेश डोभाल जागो वसंत दस्तक दे रहा है। सब कुछ खत्म नहीं हुआ है। एक दिन ऐसा आएगा जब जर्मनी नाजीवाद से नफरत करेगा।
दिनेश जुयाल टिहरी गढ़वाल के चमियाला में आयोजित इकतीसवें उमेश डोभाल स्मृति समारोह के प्रमुख सत्र में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे। स्थानीय मुद्दे और मीडिया पर केन्द्रित व्याख्यान पर केन्द्रित इस सत्र में दिनेश जुयाल ने कहा कि प्रिन्ट मीडिया अब विज्ञापन सेवा केन्द्र के तौर पर उभर चुका है। पत्रकारिता के मिशन, उद्देश्य और उसका प्रभाव भी पूरी तरह से तब्दील हो चुका है। एक समय वह था जब मीडिया सच को बयान करता था। समाचार सच के साथ खड़ा होता था। आज समाचार में सब कुछ है पर उसकी सत्यता संदिग्ध हो गई लगती है। मीडिया वास्तविकता से परे हो गया है। आज बनावटी किस्म का चीखता-चिल्लाता हुआ मीडिया हमारे सामने है। आज जरूरत इस बात की है कि बदलते परिवेश में भी जनहित को सवोपर्रि रखने की जरूरत है।
दिनेश जुयाल ने कहा कि उमेश डोभाल अपनी पत्रकारिता के बावजूद कहता था कि अब मैं मार दिया जाऊँगा। ऐसा ही हुआ। उमेश की हत्या कर दी गई। उस दौर को याद करें तो यह कहा जा सकता है कि तब अंधेरा इतना घना नहीं था। यह उम्मीद के ही तो बीज हैं कि उमेश की हत्या के बाद हमने कई उमेश चिन्हित किए हैं। उमेश अंधेरी सुरंग की बात करता था। आज सुरंगों में विकास आ रहा है। आज के हालात सब जानते हैं। लेकिन उमेश सती जैसों के चेहरों में उमेश दिखाई देता है। आज मीडिया उन्हें चाहिए जिन्हें दौलत चाहिए। उमेश की पत्रकारिता में तड़प थी। उसकी खबरों में जन मुद्दे थे। आज ऐसा नहीं है। फिर भी हमें पीपुल्स पार्टिसिपेट थ्योरी को बढ़ाना होगा। उस पर ध्यान देना होगा। आज कमोबेश मीडिया आत्महत्या कर चुका है। जनता के हक में बात करने वालों को पकड़ना उन्हें जनता की बात करते रहना के लिए बनाए-बचाए रखना बहुत मुश्किल हो रहा है। अच्छा कल जरूर आएगा।
इससे पूर्व शिवजनी और उनके सहयोगी ने ढोल-दमाऊ के साथ आशावादी धुन से सत्र का आगाज़ किया। लोकदेवता भूमियाल और केदार भूमि के नृत्य के समय बजाए जाने वाली धुन ढोल दमाऊ में सुनकर दर्शक मुग्ध हो गए।
सत्र की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार और नैनीताल समाचार के संपादक राजीव लोचन शाह ने कहा कि चमियाला प्रतिरोध,विरोध और जन सरोकारों की भूमि रही है। बाल गंगा पट्टी के कई सामाजिक एक्टीविस्ट, पत्रकार, लेखक और जन सरोकारियों ने समय-समय पर आवाज बुलंद की है। त्रेपन सिंह चौहान की कर्मठता और जिजीविषा से कौन परिचित नहीं है। आज समय आ गया है कि हम अपने-अपने स्तर पर जन हित के मुद्दों को आवाज दें।
पुरस्कार एवं सम्मान समारोह को उमेश डोभाल स्मृति ट्रस्ट के कार्यकारी अध्यक्ष बिमल नेगी ने भी सम्बोधित किया। उन्होंने कहा कि पिछले इकतीस सालों में कई पत्रकार-सामाजिक सरोकारी हमारी मुहिम में जुड़े हैं। आज का दौर वाकई बहुत अच्छा नहीं है। लेकिन नाउम्मीदी से कोई बात नहीं बनने वाली है। हम आज भी उम्मीद करते हैं कि पत्रकार अपने पेशे के प्रति बने रहेंगे। समाज की बेहतरी के लिए निरंतर प्रयास करते रहेंगे। नई पीढ़ी को जोड़ते रहेंगे। प्रतिरोध की धारा बढ़ती रहेगी। सरकार की तानाशाही प्रवृत्ति को हतोत्साहित करना होगा।
बिमल नेगी ने कहा कि उमेश डोभाल की यह धारा यह भी महसूस करती है कि राजस्व बढ़ाने के लिए शराब ही क्यों एक मात्र विकल्प रहे? क्या राजस्व के लिए अन्य स्रोतों को सशक्त नहीं किया जाना चाहिए। जन विरोधी नीतियों पर बात करना जारी रहेगा। ट्रस्ट अपने उद्देश्य में काम करता रहा है। हम आयोजन समिति का धन्यवाद देते हैं। बाल गंगा घाटी जन मुद्दे पर काम कर रही है। यह बड़ी बात हैं। क्षेत्र के विकास के लिए काम करने वाली सोच हर घाटी और हर क्षेत्र में बढ़ती रहे।
सत्र का संचालन कर रहे वरिष्ठ पत्रकार महीपाल नेगी ने कहा कि राजशाही के दौर में प्रजामण्डल का एक प्रस्ताव चौंकाता है। 1947 के समय यह प्रस्ताव आया कि क्षेत्र में पैंतीस शराब की दुकानें बंद की जाए और इतनी ही संख्या के स्कूल खोले जाएंगे। आज स्थिति उलट है।
पत्रकार प्रभात ध्यानी जी ने कहा कि इस दौर में जब सारी दुनिया मोबाइल और टीवी में व्यस्त है तब चमियाला में जन भागीदारी का पाया जाना आशा जगाता है। यह बताता है कि यदि प्रयास किया जाए तो सब संभव है। नई पीढ़ी भी जन सहभागी गतिविधियों में दिखाई देती है। युवा भी ऐसे आयोजन में शिरकत कर सकते हैं। यह आयोजन एक उम्मीद जगाता है। यह आयोजन हमारी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरणास्पद है। प्रभात ध्यानी ने याद दिलाया कि यह बाल गंगा घाटी त्रेपन सिंह चौहान, इंद्रमणि बडोनी, सुन्दर लाल बहुगुणा जैसे लोगों को उनके जन सरोकार के कामों के लिए जानती है।
प्रभात ध्यानी ने कहा कि ऐसे कई और नाम लिए जा सकते हैं जिन्होंने जनसरोकार की विरासत को बढ़ाया है। हम उम्मीद करते हैं कि यह परम्परा आगे बढ़ती रहेगी। हेलंग घाटी का मामला देखें तो घास लेने वाली घसियारिन से घास छीना जाना आम घटना नहीं है। उससे पहले जगदीश अनुसूचित जाति का युवा सामान्य जाति की लड़की से शादी करता है तो उसकी हत्या हो जाती है। अंकिता हत्याकांड को ही लें, अब तक उस मामले में हुआ क्या! नौकरियों का घोटाला अलग सवाल है और नौकरियों को बेचा जाना।
पत्रकार प्रभात ध्यानी ने सवाल उठाया। पूछा कि हम किस ओर जा रहे हैं? उन्होंने कहा कि जोशीमठ का मामला हो या पेपर लीक के मामले। चारों ओर सरकार की निष्क्रियता हैरान करती है। उन्होंने कहा कि जन संघर्ष करते हुए हम लंबे समय से देखते हैं कि सामूहिक रूप से लड़ने की ज़रूरत है। छिटपुट अकेले वाली लड़ाई देर-सवेर कमजोर पड़ जाती है। आज विधायिका पर हमला है। कल नवांकुर नाट्य समूह के साथी घनसाली में नाटक कर रहे थे। पुलिस ने नाटक नहीं करने दिया। कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका की कार्यशैली उठाकर देखिए। मीडिया की स्थिति देख लें। क्या से क्या हो गई है। पत्रकारिता चौथा खंबा है। वह खंबा आत्मसमर्पण कर चुका है। पहले जन भागीदारी थी। पत्रकार स्थानीय मुद्दे उठाते थे।
प्रभात ध्यानी ने आपातकाल की याद दिलाई। उन्होंने कहा कि हमने वह दौर देखा था। बोलने की आजादी को इस तरह घुटते नहीं देखा। आपातकाल में इन्दिरा जी के दौर में पत्रकारों ने खुलेआम लिखा। आज बोलना, लिखना, आंदोलन करना कठिन होता जा रहा है। उन्होंने कहा कि टुकड़े-टुकड़े के आंदोलन से लगता है कि कुछ नहीं होने वाला है। एकजुटता नहीं बढ़ेगीं तो जन सापेक्षता के मुद्दे हाशिए पर जाते रहेंगे। सामूहिकता में ही शक्ति है। हैरानी की बात है कि आम लोग खुश हैं। नफरत बढ़ रही है। सांप्रदायिक ताकतें बढ़ रही हैं। हम जयकारा लगा रहे हैं।
पत्रकार प्रभात ध्यानी ने कहा कि अब फिर से हम चर्चा करें। सम्पर्क करें। सामूहिकता के साथ आगे बढ़ें। हमें समझना होगा कि किसान आंदोलन का क्या हुआ। जब तक किसान राजनैतिक तौर पर एकजुट नहीं हुए तो कुछ नहीं हुआ। जैसे ही आंदोलन ने राजनैतिक रूप लिया। ताकत बढ़ी और सरकार बैकफुट पर आ गई। यह तो तय है कि हमें आशावाद का दामन नहीं छोड़ना है।
सामाजिक एक्टीविस्ट और कलमकार शंकर बोले कि आज मीडिया को मीडिया कहना गलत है। आज वह प्रचार तंत्र का हिस्सा मात्र है। वह नफरत तंत्र में तब्दील हो गया है। फिर भी नाउम्मीद से अधिक हमें उम्मीद पर कायम रहना चाहिए। उन्होंने पोस्ट पोल सर्वे का उदाहरण दिया। आम मुद्दे आज मुद्दे नहीं है। पांच साल होते ही धर्म खतरे में आ जाता है। शंकर ने बताया कि हमने एक सर्वे किया। हिन्दु धर्म खतरे में है। अपने धर्म की रक्षा में एक तिहाई ने ही हां कहा। पर्यावरण को अड़तालीस फीसदी लोगों ने मुद्दा कहा। अस्सी फीसदी लोगों ने कहा कि बेरोजगारी महत्वपूर्ण मुद्दा है। लेकिन मीडिया क्या दिखा रहा है। मीडिया सच्चा हो तो दूसरी बात है। आज जनता मुद्दों को भूल गई है। जब हमने पूछा कि क्या मीडिया निष्पक्ष होता है? एक तिहाई ने ही कहा कि मीडिया निष्पक्ष है। अधिकतर ने कहा कि नहीं टी.वी. सरकार के पक्ष में ही बोलता है।
शंकर ने कहा कि फिर भी निराश होने की जरूरत नहीं है। हमें कुछ ओर दिखाया जाता है। असल में होता कुछ है। आज हमें ज्योतिबा फूले और बाबा आम्बेडकर के कामों को विचारों को जनता के बीच लाना चाहिए। भारतीय लोकतंत्र के नायकों को याद करने की जरूरत है। जन हित के मुद्दों को उठाने वाले नायकों को याद करने का समय है। अन्यथा धर्म,छद्म राष्ट्रवाद जैसे मुद्दे उछालकर लोकतंत्र को खत्म करने के लिए बीच-बीच में उठते रहेंगे। यह समय त्रेपन सिंह चौहान जी को याद करने का समय भी है। वह हमेशा कहते थे कि निराश मत होना। कितनी अजीब बात है कि हमें घाटी में रहकर कुछ नहीं दिखाई देता। लेकिन जब हम पहाड़ पर चढ़कर उंचाई से देखते हैं तो एक दुनिया दिखाई देती है। हमें इस नज़र से देखना होगा।
वरिष्ठ पत्रकार व्योमेश चन्द्र जुगरान ने कहा कि वैसे आज अभिव्यक्ति के माध्यम बढ़े हैं। पीछे मुड़कर देखें तो पाते हैं कि सफदर हाश्मी की हत्या हुई। उसे हम क्या कहेंगे? उमेश डोभाल की हत्या का दौर भी था। तब वह क्या था ? विद्यानिवास मिश्र नभाटा के संपादक थे। जब उमेश की कथित हत्यारे छूटे तब मैंने एक आलेख लिखा ‘एक शहादत का सच। वह दक्षिणपंथी थे। उन्होंने उसे छापा। हमने सालों पत्रकारिता की। लेकिन कभी कोई दबाव मैंने व्यक्तिगत रूप से नहीं महसूस किया। यह भी सच है कि गलत चीज़ें फैलाई जा रही हैं उनका प्रतिकार तो करना ही होगा।
उमेश तिवारी विश्वास ने कहा कि यह बेढब समय है। लेकिन कुछ पड़ताल तो करनी ही पड़ेगी। यह खुशी की बात है कि यह मंच सरोकारों की पड़ताल का मंच है। इकतीसवां आयोजन इस बात की पुष्टि करता है। अब बदलते परिवेश और परिस्थितियां में कुछ नए मुद्दों की पड़ताल करने का समय है। हमें समझना चाहिए कि टिहरी बांध का प्रयोजन क्या था? हमें अंकिता भण्डारी को भूलना नहीं है। नीतियों के साथ-साथ हमें इस मंच पर पयर्टन और रोजगार पर भी बात करनी होगी। युवाओं को ज्वलंत मुद्दों के साथ-साथ क्षमता संवर्धन और रोजगार विषयक मुद्दों पर भी बात करने की जरूरत है।
लेखक एवं समीक्षक अरुण कुकसाल ने कहा कि आज मीडिया की हालत बद से बदतर होती चली गई है। अपनी बात करूँ तो दो साल से टी॰वी॰-अखबार नहीं देखा। इस दौर में चुनौतियां बढ़ गई हैं। अविश्वास बढ़ रहा है। अभिव्यक्ति की प्रवृत्ति बाधित हुई है। आज सत्ता और ज्यादा निरंकुश हुई है। पता नहीं क्यों समाज किस ओर जा रहा लगता है। ऐसा क्या है कि मैं निराश होता जा रहा हूं। बुजुर्ग होता जा रहा हूँ तो निराशा बढ़ती जा रही है। पूरी व्यवस्था पर सवाल तो है ही।
उत्तराखण्ड महिला मंच से जुड़ी माया चिलवाल ने कहा कि हम लोग पिछले उनतीस सालों से जन सरोकार से जुड़े हुए हैं। हम उनतीस सालों से ही सड़कों पर हैं। हम विशेषकर महिलाओं के मुद्दों को लेकर चलते रहे है। हेलंग आंदोलन पर भी हमने काम किया। आज तो लगातार हमारे अधिकारों पर चोट की जा रही है। चारों ओर अराजकता का माहौल है। महिलाओं के साथ अन्याय बढ़ता ही जा रहा है। महिलाओं के मुद्दों पर लगातार बोलने,बात करने और सड़कों पर मुखरता से काम करने की ज़रूरत है। समाज में महिलाओं की सुरक्षा का कोई सवाल नहीं है। सूबे के लोग ही यानि हम ही बाहरी लोगों को अपनी ज़मीनें बेच रहे हैं।
वरिष्ठ पत्रकार शंकर सिंह भाटिया ने कहा कि पीछे मुड़कर देखता हूँ तो बीस-पच्चीस साल पत्रकारिता की। सन् दो हजार की और आज की पत्रकारिता भी देखी। पहले सारी खबरें रिपोर्टर तय करते थे। आज दिल्ली से हमें बताया जा रहा है कि खबर कैसे लिखनी है। आठ साल पहले अखबार की नौकरी छोड़ दी। मुझे लग गया था कि अब हम इस माहौल में काम नहीं कर पाएंगे। मीडिया की हालत बहुत खराब है। आज स्वतंत्रता से लिखना नहीं हो पा रहा है। पिछले आठ साल से सोशल मीडिया को भी देख रहा हूँ। वह भी अच्छा नहीं रहा। यह मंच हमारा है। हम यहाँ अपनी बात ही तो कर सकते हैं। सोशल मीडिया हमें आजादी देता है कि हम कुछ भी लिख सकते हैं। लेकिन हमें निरंकुश नहीं बनना है। सामूहिकता के साथ हमें तीव्रता के साथ काम करने की जरूरत है।
विज्ञान और तकनीक लेखन से जुड़े बृजमोहन शर्मा ने कहा कि 1994 से खोजी आलेख के जरिए लेखन में आया। खूब लिखा। विज्ञान आधारित जानकारीपरक आलेख लिखे। लेकिन पत्रकार हमें पत्रकार नहीं मानते। समाज में वैज्ञानिक विचारधारा के प्रचार-प्रसार के लिए गतिविधियां की लेकिन एक्टीविस्ट हमें एक्टीविस्ट नहीं मानते। सूचना,विज्ञान और तकनीक को सरल और जीवनोपयोगी मानते हुए जनता के बीच में ले जाने का काम किया तो वैज्ञानिक समाज हमें वैज्ञानिक नहीं मानता। एक बात तो है कि जनहित में काम करने वाले पीठ लगा लेते हैं। वह दिल से दिल मिला लें तो बेहतर होगा। बहुत सारे मुद्दों पर अलग-अलग काम करने से अच्छा है कि एक मुद्दे को लेकर काम किया जाए।
बृजमोहन शर्मा ने कहा कि सहमति-असहमति अपनी जगह है लेकिन जनहित के कामों का हम सब लोग समर्थन करें यह ज़्यादा ठीक है। आज समाज में विज्ञान की बात करना जरूरी होगा। डॉ. दिनेश सती ने पच्चीस साल पहले कहा था कि जोशीमठ में हम क्या करें और क्या न करें। लेकिन हमने नहीं सुना। बृजमोहन शर्मा ने कहा कि अंततः विज्ञान और तकनीक से ही हमारा भला होगा। हम स्थानीय उत्पाद की तारीफ करते हैं। उस पर कुछ काम भी करें। कोदा, झंगोरा, मंडुवा यहां है। लेकिन आटा देहरादून से आता है। आलू हमारा है पर चिप्स हम नहीं बनाते। कितना अच्छा हो कि हम साइंस की तकनीक से काम करें। हम एलईडी बल्प खूब इस्तेमाल करते हैं। पर हम उसे रिपेयर करना क्यों नहीं जानते। हम कबाड़ को रोक नहीं सकते हैं तो कम तो कर सकते हैं। यदि हम एलईडी का उत्पादन करें और बेचें तो एक बल्ब पर पच्चीस रुपए की बचत कर सकते हैं। हजारों चीज़ें हैं जो बन सकती हैं।
बृजमोहन शर्मा ने कहा कि एक और उदाहरण देता हूँ। हम बंजर पड़ी भूमि पर नीबूं लगा सकते हैं। कागजी साल में दो बार फसल देता है। बंदरों से इस फसल को ज़्यादा नुकसान नहीं होता। इसी तरह कम कीमत पर हम चप्पल बनाने की मशीन लगा सकते हैं। कील बनाने की एक फैक्ट्री पूरे उत्तराखण्ड में नहीं है। इसी तरह कम लागत में डबल रोटी का काम शुरू कर सकते हैं। हमारी ही भूमि में हमारे ढाबे हों। सैकड़ों चीजें हैं। हम किफायती मिजाज़ हैं। हमें अपने लिए अपने आस-पास सरल आजीविका को खोजना होगा। उन्होंने रीडिंग लैंप का उदाहरण बताया कि कैसे एक बच्चा चाहता है कि रीडिंग लैंप उसकी जरूरत है। लेकिन एक बच्चा अपनी आवश्यकता पूरी हो जाने के बाद अन्य सहपाठियों-दोस्तों की आवश्यकता भी पूरी चाहता है। हमें चाहिए कि हम समस्याओं का वैज्ञानिक हल खोजें। उन पर टिके। ईमानदारी और मेहनत हमारे खून में है। हम उसी के सहारे आगे बढ़ सकते हैं।
रीजनल रिपोर्टर की संपादक गंगा असनोड़ा ने कहा कि समय बहुत बदल गया है। मीडिया और जनमुद्दे अब एक साथ नहीं है। यह अभिव्यक्ति की आजादी का दौर है। सोशल मीडिया में संसद की कार्यवाही में वह आजादी दिखाई दे रही है। अखबारों में जो शीर्षक छप रहे हैं उनमें अभिव्यक्ति की आजादी दिखाई दे रही है। अभी सुना जा रहा है भूमि जेहाद को सहन नहीं करेंगे। यह खबर थी। यह क्या है? अभिव्यक्ति के दौर में हमारी मानसिकता गुलामी की ओर बढ़ती जा रही हैं भू माफिया बढ़ते जा रहे हैं। जन प्रतिनिधियों-ठेकेदारों और व्यवसायियों के तौर पर हम सक्रिय हैं। एक नागरिक के तौर पर हमारी स्थितियां बहुत खराब हैं। सांप्रदायिक ताकतें बढ़ रही हैं। सामाजिक समरसता हाशिए पर जा रही है और धर्म विशेष का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है। धर्म के नाम पर ताकतें बढ़ रही हैं।
आनन्द व्यास ने कहा कि इस समागम का स्वागत किया जा रहा है। होना ही चाहिए। मुझे लगता है कि अल्पायु या दीर्घजीवी ही महान होते हैं। त्रेपन हो या उमेश डोभाल हों। कई हैं। लेकिन आने वाला समय भयावह है। हमारे पहाड़ में वृद्ध समाज है। युवा पीढ़ी को अपने पेट की चिंता है। रोजगार का संकट है। वह कहां जाएं। पलायन अवश्यम्भावी है। समागम में इस तरह के मुद्दे भी आएं।
राजकीय अधिकारी से सेवानिवृत्त हुए एल.एस. चौहान ने कहा कि मैं दो हजार सोलह में कृषि अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हुआ। लगभग चालीस साल भूमि एवं जल संरक्षण विभाग में सेवाएं दीं। यह भूमि मां है। इस भूमि को सेवाभाव से देखें तो यह रोजगार भी देती है और सुकून भी। प्रमुख सत्र का संचालन वरिष्ठ पत्रकार एवं संस्कृतिकर्मी डॉ॰योगेश धस्माना ने किया।
इससे पूर्व की संध्या पर चमियाला बाजार में सांस्कृति जुलूस निकाला गया। जिसमें उमेश डोभाल, गिरीश तिवारी गिर्दा, बी.मोहन नेगी, राजेन्द्र रावत ‘राजू’, एम.मोहन कोठियाल आदि को याद किया है। उमेश डोभाल एक धारा थी, एक धारा है के नारे लगाए गए। सतीश धौलाखण्डी एवं जयदीप सकलानी के सुरों में उपस्थित पत्रकारों-एक्टीविस्टों ने सुर मिलाए। घनसाली में नवांकुर नाट्य समूह, पौड़ी ने नुक्कड़ नाटक किया लेकिन स्थानीय प्रशासन ने उसे पूरा नहीं होने दिया। सांस्कृतिक जुलूस के बाद अमन लॉज स्थित पण्डाल में भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस सत्र का संचालन विनोद बडोनी ने किया।
इस सांस्कृतिक कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार महीपाल नेगी ने टिहरी के साथ-साथ बाल गंगा घाटी सहित उमेश डोभाल के व्यक्तित्व-कृतित्व पर प्रकाश डाला। सांस्कृतिक समारोह में प्रताप सिंह राणा की अध्यक्षता में बाल कलाकारों ने समा बांध दिया। तेज राम उनियाल, नरेन्द्र डंगवाल, विनोद बडोनी, महावीर रावत, लोकेन्द्र दत्त जोशी, कवि मनोज रमोला, चन्दन सिंह पोखरियाल गोविन्द सिंह राणा जी ने भी संबोधित किया।
ट्रस्ट के अध्यक्ष गोविन्द पन्त राजू ने कहा कि आज जब प्रतिरोध करने वालों की मुश्किलें बढ़ रही हैं तो आम नागरिक को अपनी जिम्मेदारियों का अहसास करना और भी जरूरी हो गया है।
सामाजिक जागरुकता और राजनीतिक चेतना के लिए मीडिया को अपने सच्चे धर्म और मिशनरी पत्रकारिता की ओर मुड़ना ही होगा।
सोशल मीडिया पुरस्कार टिहरी के मूल निवासी जयदीप सकलानी, देहरादून को दिया गया। प्रशस्ति पत्र का वाचन नाट्यकर्मी एवं निर्देशक यमुनाराम ने किया। चिह्न सुशील सीतापुरी के कर कमलों से प्रदान किया गया। इस अवसर पर जयदीप सकलानी ने कहा कि यह सम्मान मेरी जिम्मेदारी बढ़ाता है। अब संभल कर सजगता से काम करने की जरूरत मेरा धर्म होगा। मुझे गौरव महसूस हो रहा है कि उमेश डोभाल की धारा से मेरा नाता जुड़ गया है।
इलैक्ट्रानिक मीडिया पुरस्कार चम्पावत के कमलेश भट्ट को प्रदान किया गया। प्रशस्ति पत्र का वाचन विनय साह ने किया। कमलेश भट्ट ने कहा कि स्थानीय स्तर पर और जन हित के मुद्दों को निरन्तर उठाने का काम बदस्तूर करने रहना होगा। यह जिम्मेदारी अब ओर बढ़ गई है। प्रिन्ट मीडिया पुरस्कार टनकपुर के हिमांशु जोशी को दिया गया। उम्मेद सिंह चौहान ने वाचन किया और रवि रावत के कर कमलों से भेंट प्रदान की गई। हिमांशु जोशी ने कहा कि इस दौर में काम करना मुश्किल है लेकिन काम और बढ़ गया है। दबाव के साथ काम करना अपने आप में चुनौतीपूर्ण है ही। आज लिखने के कई क्षेत्र हैं बस जरूरत है इच्छाशक्ति की।
गिरीश तिवारी गिर्दा जनकवि सम्मान 2023 अल्मोड़ा के भास्कर भौर्याल को प्रदान किया गया। प्रशस्ति पत्र का वाचन शंकर भाटिया ने किया। चिह्न दिनेश डोभाल के कर कमलो से प्रदान किया गया। भास्कर भौर्याल ने कहा कि एक सांस्कृतिक यात्रा है जिसे पूरा करना चाहता हूं। मिट्टी के गीत और आशावादी गीतों की सामूहिक आवाज़ बनना चाहता हूँ। राजेन्द्र रावत राजू जनसरोकार सम्मान भवाली के जगदीश नेगी को प्रदान किया गया। प्रशस्ति पत्र का वाचन कृपाल सिंह रावत ने किया। स्मृति चिह्न वरिष्ठ लेखिका उमा घिल्डियाल के कर कमलो से प्रदान किया गया। जगदीश नेगी ने कहा कि शिप्रा नदी को स्वच्छ रखने की मुहिम खेल-खेल में शुरू की लेकिन बाद में वह जिम्मेदारी का काम हो गया। अब लगता है कि यदि मन से किसी काम को करें तो वह बड़ा मिशन हो जाता है। स्वच्छता अभियान धरातल पर हो तो बात बने।
उमेश डोभाल स्मृति सम्मान जोशीमठ के एक्टीविस्ट अतुल सती को प्रदान किया गया। प्रशस्ति पत्र का वाचन मनोहर चमोली ने किया। स्मृति चिह्न सुरेन्द्र रावत ‘सूरी’ के कर कमलो से भेंट किया गया। अतुल सती ने इस अवसर पर कहा कि नियमित सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में कार्य करने से एक दिशा मिली। कई आंदोलनों में भागीदारी ने जन सरोकारों की ओर बढ़ाया। आज स्थिति भयावह है। बात सिर्फ जोशीमठ की नहीं है। जोशीमठ के आंदोलन की ओर सारा समाज देख रहा है। यदि एक साथ मिलकर जन विरोधी नीतियों के खिलाफ हम नहीं खड़े होते तो देश में कई जोशीमठ उभर जाएंगे। दूसरी बात यह भी है कि सारा देश जोशीमठ की ओर देख रहा है। इस तरह हमारी जिम्मेदारी ओर भी बढ़ जाती है।
समारोह में प्रसिद्ध ढोल दमाऊ वादक शिवजनी का भी अभिनंदन किया गया। उनके साथी गिरीराज का भी अभिनंदन किया गया। इस अवसर पर अनिरुद्ध जोशी-भुवनेश्वरी जोशी स्मृति प्रतिभा पुरस्कार छात्र प्रियांशु नेगी और छात्रा मनीषा नेगी को दिया गया। यह विनोद बडोनी और प्रताप सिंह के हाथों से प्रदान किया गया। उमेश डोभाल स्मृति ट्रस्ट की ओर से चेतना आंदोलन समिति, बाल गंगा सेवानिवृत्त एवं वरिष्ठ नागरिक समिति, आयोजन समिति, ड्रीम स्कूल और लर्निंग, अज़ीम प्रेमजी फाउण्डेशन और नवांकुर नाट्य समूह को प्रतीक चिह्न भेंट किए गए। यह स्मृति चिह्न सत्यनारायण रतूड़ी, राजीव लोचन शाह, गोविन्द पन्त राजू, सतीश काला, बिमल नेगी और प्रताप ध्यानी के हाथों प्रदान किए गए।
समापन से पूर्व ट्रस्ट की ओर से विविध बिन्दुओं पर आधारित प्रस्ताव रखा गया। प्रस्ताव को पूरे समर्थन के साथ सहमति प्रदान की गई। प्रस्ताव के कुछ बिन्दुओं में जोशीमठ के भू धंसाव और पुनर्वास-विस्थापन की ठोस योजना बनाए जाने, हिमालयी क्षेत्रों में छोटी बांध परियोजना जन सहभागिता के आधार पर तैयार किए जाने, पत्रकारों और आर्थिकाभाव में जूझ रहे पत्रकारों को नियमित पेंशन दिए जाने, पत्रकार मान्यता समिति को पुनर्जीवित एवं सक्रिय किए जाने, आंचलिक पत्र-पत्रिकाएं, वेब पोर्टलों में कार्यरत पत्रकारों को स्थाई आर्थिक सहायता दिए जाने, अंकिता भण्डारी हत्याकांड की सीबीआई जांच किए जाने, राज्य के भू कानून को जन हित में पुनर्संशोधित किए जाने, महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसा के रोकथाम हेतु ठोस कानून लाने की बात भी प्रस्ताव में दर्ज की गई।
प्रस्ताव के अन्य बिन्दुओं में राज्य की शराब नीति की पुनर्समीक्षा किए जाने, राज्य में बच्चों, किशोरों में बढ़ते विविध नशे की प्रवृत्ति पर लगाम लगाने, पर्यटन के नाम पर सूबे की जमीन की बेमेल खरीद-फरोख्ता रोकने, स्थानीय रोजगार को बढ़ावा देने, राज्य की जल, जंगल और जमीन के हिमालयी सरोकार को ध्यान में रखते हुए नई नीति बनाने, राज्य की नदियों के किनारे अतिक्रमण और अवैधानिक रिसोर्ट संस्कृति पर अंकुश लगाने, विधान सभा सीटों का परिसीमन जनसंख्या के आधार पर न होकर भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर करने संबंधी प्रस्ताव को पारित किया गया। ट्रस्ट की ओर से यह प्रस्ताव उत्तराखण्ड सरकार को भेजा जाएगा।
आगामी उमेश डोभाल स्मृति सम्मान समारोह चंपावत और रुद्रप्रयाग में किए जाने के प्रस्ताव आए। ट्रस्ट जल्दी ही बैठक कर अंतिम स्थल का चयन कर सूचित करेगा। एकजुट होकर लगातार जनता के बीच काम करने के संकल्प को लेकर ट्रस्ट के अध्यक्ष गोविन्द पंत राजू ने सभी का आभार जताया । सत्र के समापन की घोषणा सत्र की अध्यक्षता कर रहे ढोल वादक शिवजनी ने की। आयोजन समिति के कई साथियों और स्थानीय नागरिकों की सहायता से स्थानीय स्तर पर आयोजित दो दिवसीय आयोजन बहुत ही शानदार रहा। इस अवसर पर स्मारिका का विमोचन भी किया गया।
सन्दर्भ: 31वां उमेश डोभाल स्मृति समारोह, चमियाला, टिहरी गढ़वाल। दिनांकित 08 एवं 09 अप्रैल 2023
-मनोहर चमोली ‘मनु’
सम्पर्क: 7579111144
मेल: chamoli123456789@gmail.com
उमेश डोभाल स्मृति ट्रस्ट की ओर से न्यौता, निमंत्रण