-मनोहर चमोली ‘मनु’
जिया अपना तकिया कलाम कैसे भूल सकती है! जतिन और लता यही सोच रहे थे। जिया ने कहा था,‘‘पता नहीं। अब क्या होगा?’’ उसने अपना रिपोर्ट काॅर्ड जतिन को पकड़ा दिया था। जतिन ने रिपोर्ट काॅर्ड गौर से देखा। फिर लंबी सांस लेते हुए कहा,‘‘जिया। तुम्हे यह स्कूल छोड़ना होगा। अब तुम्हें सिक्सथ में एडमिशन नहीं मिलेगा।‘‘ जिया ने दोहराया,‘‘पता नहीं। अब मेरा क्या होगा?’’ दरअसल, जिया को इस बार कुल चालीस फीसदी अंक मिले थे। गणित, हिंदी और अंग्रेजी में तो उसे छत्तीस फीसदी नंबर भी नहीं मिले थे।
‘‘डोंट वरी जिया। तुम्हारी परी है तो। वह सब ठीक कर देगी।‘’ जतिन यह कहना चाहता था। लेकिन, नहीं कहा। तभी लता बोली,‘‘डोंट वरी जिया। ये नहीं तो किसी दूसरे स्कूल में तुम्हारा एडमिशन हो जाएगा। जाओ। मुंह-हाथ धोओ। चेंज करो। मैं तब तक तुम्हारे लिए कुछ अच्छा-सा बनाकर लाती हूँ।’’ यह कहकर लता किचन में चली गई। वहीं जतिन बीते दिनों में खो गए।
‘डोंट वरी। मेरी परी है न। सब कुछ ठीक कर देगी।’ न जाने कब और कैसे छुटपन से जिया की ज़ुबान पर यह वाक्य चढ़ गया था। वह बात-बात में यही कहा करती थी। जतिन ने जब भी कहा था,‘‘जिया, मेरी बच्ची। छोटी-छोटी बातों में परी को परेशान नहीं करते। अपना काम खुद करते हैं।’’ यह सुनते ही लता हमेशा एक ही बात कह देती,‘‘आप भी न। मदद मांगना बुरा नहीं है। उसकी परी मदद कर देती है। यह तो अच्छा ही है!’’ जतिन ने कई बार कहा,‘‘जिया, कभी हमें भी अपनी परी से मिलाओ।’’ जिया जवाब देती,‘‘परियाँ बड़ों से नहीं मिलतीं। वो तो बच्चों की दोस्त होती हैं।’’
घर में जब कभी कोई कहता,‘‘जिया। दूध पिओ। इसे पीने से बुद्धि बढ़ती है। तभी तो स्कूल में अच्छे से सीखोगी!’’ जिया जवाब देती,‘‘डोंट वरी। मेरी परी है न। सब कुछ ठीक कर देगी।’’ कभी कोई जोर से कहता,‘‘जिया। उठो। सुबह हो गई है। वरना, सूरज नाराज हो जाएगा।’’ जिया जवाब देती,‘‘डोंट वरी। मेरी परी है न। वो सूरज को खुश कर देगी।’’ जतिन को याद आया। वह पहला दिन था। जब जिया स्कूल गई। उसे समझाया गया,‘‘ठीक से रहना। कोई गलत बात मत कहना।’’ जिया बोली थी, ‘‘डोंट वरी। मेरी परी है न। वो सब सही कर देगी।’’
समय के साथ-साथ जिया ने पढ़ना सीखा। लिखना सीखा। फिर, एक दिन की बात थी। जिया को समझाया गया,‘‘जब देखो, तुम मोबाइल पर झुकी रहती हो। कम्प्यूटर में भी तुम गेम्स ही खेलती हो। तुम पढ़ती कब हो? ऐसे अगली क्लास में कैसे जाओगी?’’ जिया ने कहा था,‘‘जैसे फस्र्ट से सेकण्ड में आई थी। वैसे ही अब सेकण्ड से थर्ड में चली जाऊंगी। सिंपल। डोंट वरी। मेरी परी है न। सब कुछ ठीक कर देती है।’’ अब तो लता को भी जिया का हर बात पर परी पर भरोसा करना अजीब लगने लगा था। उसने भी कई बार यह कहना चाहा ,‘मेरी बच्ची! परियां किस्सों-कहानियों और काॅर्टून फिल्मों में ही अच्छी लगती हैं। हकीकत की दुनिया में ये नहीं होतीं।’ लेकिन यह सोचकर नहीं कहा कि सही समय पर यह बात जिया को खुद ही समझ आ जाएगी।
एक दिन जिया रिपोर्ट काॅर्ड लेकर घर आई थी। वह चहकते हुए बोली थी,‘‘मम्मी। देखो। अब मैं फोर्थ में चली गई हूँ। मैंने कहा था न। डोंट वरी। मेरी परी सब कुछ ठीक कर देती है।’’ लता बस मुस्करा दी थी। लता रिपोर्ट काॅर्ड देखते हुए सोचने लगीं,‘स्कूल, टीचर्स और खुद तुम्हारी मेहनत। इन कारणों से तुम आगे बढ़ रही हो। कभी न कभी इस बात को तुम जरूर समझोगी।’

समय बीतता रहा। जिया चैथी में पढ़ने लगी। परी सब कुछ ठीक कर देगी। यह बात थी कि जिया से छूटती ही नहीं। पूरा साल बीत गया। छमाही के बाद सालाना इम्तिहान भी हो गए। फिर परिणाम आया। अब जिया पाँचवी में चली गई। इस साल भी कई मौके आए जब जिया ने कहा था,’‘डोंट वरी। मेरी परी है न। सब कुछ ठीक कर देगी।’’ पाँचवी कक्षा का पूरा साल भी बीत गया। परीक्षा भी हो गई। फिर परीक्षा परिणाम भी आ गया। जिया इस बार गुम सुम-सी घर लौटी थी। जिया की परी ने सब कुछ ठीक कहाँ किया! वह स्कूल में बने रहने के लिए कम से कम नंबर भी नहीं ला पाई थी।
तभी लता आ गई और जतिन का ध्यान बीती बातों से हट गया। जतिन ने कहा,‘‘जिया के लिए दूसरा स्कूल देख लिया है। अब जिया ऐसे स्कूल में पढ़ेगी, जहाँ बच्चों को अहमियत दी जाती है। बच्चों की प्रगति उसके अंक से नहीं देखी जाती। वहां बच्चे रोगी नहीं माने जाते कि उनका उपचार किया जाए।’’
सुबह हुई। जिया को जगाना नहीं पड़ा। वह खुद उठ गई। लता चैंकी। जिया तैयार थी। जतिन ने पूछा,‘‘स्कूल बस आने वाली है।’’ जिया दौड़कर जतिन से लिपट गई। बोली,‘‘पापा, कल से चली जाऊँगी। आज आप स्कूल के गेट तक छोड़ दो।’’ लता ने सिर पर हाथ फेरते हुए कहा,‘‘हम चलेंगे न। डोंट वरी।’’ जतिन ने जिया का माथा चूम लिया। जिया स्कूल के लिए खुशी-खुशी तैयार हो गई। दोनों जिया का मन बहलाते रहे। कुछ देर बाद लता ने कहा,‘‘वो देखो! तुम्हारा स्कूल गेट।’’ जिया ने कहा,‘‘ओके। अब मैं चली जाऊँगी। स्कूल बस से घर लौट आऊँगी। बाॅय।’’ जिया हाथ हिलाते हुए अपनी कक्षा की ओर जाने लगी। जतिन और लता उसे देखते ही रह गए।
नया स्कूल। नई कक्षा। नए सहपाठी। सब कुछ नया था। जिया अपनी कक्षा में चली गई। सबसे पीछे की कुछ सीटें खाली थीं। जिया एक सीट में जाकर बैठ गई। उसने गौर किया। लगभग चालीस स्टूडेंट्स अपनी-अपनी सीट पर बैठे थे। तभी क्लास टीचर अंदर आई। गुड माॅर्निंग की आवाज़ सुनकर वे बोलीं,‘‘गुडमाॅर्निंग आॅल। आज पहला दिन है। मैं कविता हूँ। आपकी क्लास टीचर। मैं आपको हिंदी पढ़ाऊँगी। आप सभी के रिपोर्ट काॅर्ड मैंने देखें हैं। फिफ्थ क्लास में नमन के नाइंटी परसेंट माॅक्र्स आए हैं। नमन!’’ अपना नाम सुन नमन खड़ा हो गया। कविता ने कहा,‘‘ओके। सबसे कम नंबर वाला रिपोर्ट काॅर्ड जिया का है। जिया!’’ जिया भी खड़ी हो गई। सहपाठी नमन को तो कभी जिया को देख रहे थे। कविता बोलीं,‘‘ओके। नमन, सूरज कहाँ से उगता है?’’ नमन तपाक से बोला,‘‘मैम, पूरब से।’’ कविता ने जिया की ओर इशारा किया। जिया धीरे से बोली,‘‘मैम, सूरज तो अपनी जगह पर खड़ा है।’’ कविता ने सिर हिलाते हुए कहा,‘‘नमन। हम दिन और महीने तो जानते हैं। वैसे, एक साल में कितने संडे होते हैं?’’ जवाब आया,‘‘अड़तालीस।’’
अब कविता ने जिया की तरफ देखा। जिया बोली,‘‘बावन।’’ कविता ने पूछा,‘‘नमन। रोबोट के बारे में कुछ बताओ।’’ उसने जवाब दिया,‘‘रोबोट मशीन है। इंसान उसे कंट्रोल करता है।’’ अब जिया की बारी थी। वह बोली,‘‘रोबोट सपने नहीं देख सकता। वो उदास भी नहीं हो सकता। वह अपने आप खुद में सुधार भी नहीं कर सकता।’’ कविता ने फिर पूछा,‘‘एक खाली बर्तन में भी कुछ न कुछ होता है। क्या?’’ नमन समझ न पाया। जिया को इशारा मिला तो उसने जवाब दिया,‘‘हवा और थोड़ी-सी रोशनी।’’ कविता ने दोनों को बैठ जाने के लिए कहा। नमन झेंप रहा था। वहीं जिया आत्मविश्वास से भरी हुई थी। कविता ने कहा,‘‘बच्चों। आप सब अब छठी कक्षा में हैं। वैसे, हम हर दिन सीखते हैं। परीक्षा में अच्चे अंक लाना एक कला है। सब इस कला में माहिर नहीं होते। लेकिन, कम अंक लाने वाले कम जानते हैं। ऐसा नहीं है। पूरे साल समझ के साथ ज्यादा से ज़्यादा जानना बड़ी बात है। जानना और बेहतर जानना में भी अन्तर होता है। खूब पढ़ो और खूब सोचो। खूब सवाल करो। खूब बातें करों।’’ यह कहकर कविता हाजिरी लेने लगी।

जिया के बांई ओर बैठी लड़की ने कहा,‘‘मैं शगुन हूँ। तुम तो बहुत इंटेलीजेंट हो। शायद, मैं तुम्हारे साथ बैठकर इंटेलीजेंट हो जाऊँ।’’ जिया का ध्यान हाजिरी पर बोले जा रहे नामों पर था। वह धीरे से बोली,‘‘डोंट वरी। मेरी परी है न। वो सब कुछ ठीक कर देगी।’’ शगुन ने फुसफुसाते हुए पूछा,‘‘क्या? परी?’’ जिया जैसे नींद से जागी हो। बोली,‘‘मतलब। हम सबके भीतर एक परी होती है। वो चाहे तो सब कुछ ठीक कर सकती है।’’ तभी कविता ने पुकारा,‘‘जिया।’’ जिया ने जवाब दिया,‘‘यस मैम।’’
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-मनोहर चमोली ‘मनु’
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