-मनोहर चमोली ‘मनु’
बात उन दिनों की है जब धूप को बुलाना पड़ता था। जो बुलाता, धूप वहीं चली आती। इस भाग-दौड़ में वह थक जाती। मौका मिलता तो वह सो जाती। इस बीच कोई पुकारता तो वह हड़बड़ाकर उठती और दौड़कर पहुंच जाती।
एक दिन की बात। बिल्ली ने धूप को पुकारा। बार-बार पुकारा। धूप भागती हुई आ गई। बिल्ली ने डांटा-‘‘हमें सर्दी बहुत लगती है। देखो, मेरे बच्चे कैसे कांप रहे हैं!’’ कुछ देर बाद फिर धूप को गुबरैले की आवाज सुनाई दी। धूप हांफती हुए पहुंची। गुबरैले ने आंख दिखाई-‘‘देखो। गोबर कच्चा है। इसे कौन सूखाएगा? खाद में ही मेरा भोजन है।’’
धूप गोबर को सूखाने लगी। ‘अब ज़रा सुस्ता लेती हूं।‘ धूप ने सोचा। लेकि यह क्या! तभी मगरमच्छ चिल्लाया। धूप मगरमच्छ के पास जा पहुंची। मगरमच्छ ने अपना जबड़ा खोल लिया। कहा-‘‘इन दिनों पानी बर्फ बन गया है। मेरी पूंछ तक कांप रही है। मेरे पास रहो।’’ मगरमच्छ गुनगुनी धूप में आनंद लेने लगा।
अब गिलहरी की चीख धूप को सुनाई दी। धूप पहुंची तो वह बोली-‘‘डाल से गिर गई हूँ। सीधे नदी में जा गिरी। देखो, पूरा भीग गई हूं। ठंड से जान निकली जा रही है।’’ धूप पेड़ पर जा बैठी। अभी वह दम ही ले रही थी कि कुत्ता भौंकने लगा। धूप दौड़ी। दौड़ते हुए कुत्ते के पास जा पहुंची। कुत्ता गुस्से में बोला-‘‘मैं रखवाली करता हूं। अब मुझे भी तो आराम चाहिए। धूप शरीर पर पड़े तो चैन आए।’’
बेचारी धूप का धीरज जवाब दे गया। रोज-रोज की भाग-दौड़ से वह परेशान हो गई थी। उसने आंखें बंद कर ली। धूप के आंख बंद करने से चारों ओर अंधेरा छा गया। धूप रोने लगी। जोर-जोर से रोने लगी। इतना रोई कि उसके आंसू झरने लगे। आंसू थे कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। आंसू बारिश में बदल गए। झमाझम बारिश होने लगी। सब भीगने लगे। भीगते-भीगते कुत्ते के पास जा पहुंचे। कुत्ते ने कहा-‘‘धूप अभी तो यहीं थी। मेरे पास ही थी।’’ बिल्ली ने लंबी सांस ली। कहा-‘‘मेरे पास से ही तो वह यहां आई थी। एक अकेली धूप।’’
गुबरैला बोला-‘‘बेचारी धूप।’’ मगरमच्छ ने जम्हाई ली-‘‘बेचारी धूप। कहां-कहां तो जाएगी।’’ कुत्ता सोचते हुए बोला-‘‘अब क्या करें? धूप के बिना हमारा काम भी तो नहीं चलता।’’ गिलहरी उदास हो गई-‘‘हमें हमेशा अपना ही ध्यान रहा। हमने कभी धूप के बारे में नहीं सोचा।’’ आज तक किसी ने अंधेरा न देखा था। सब कांप रहे थे।
इतना अंधेरा! ये अंधेरा धूप के जाने की वजह से हुआ है। अब क्या होगा? सब यही सोच रहे थे। सब एक दूसरे के नजदीक आ गए थे। सब डरे हुए थे। अंधेरा छंटने लगा। सब चैंक पड़े। बिल्ली हैरान थी-‘‘ये क्या हुआ?’’ गुबरैला लट्टू की तरह घूमते हुए बोला-‘‘अचानक उजाला हो गया !’’ मगरमच्छ मिट्टी में लोट गया-‘‘वो भी चारों दिशाओं में!’’ कुत्ते ने दुम हिलाई-‘‘अहा! गुनगुनी धूप!’’
धूप चहकी। बोली-‘‘मैं सूरज के पास गई थी। सूरज ने मेरा आना और जाना तय कर दिया है। अब मैं धरती के आधे हिस्से पर एक साथ आऊंगी। वह हिस्सा दिन कहलाएगा। धरती के बाकी हिस्से पर अंधेरा रहेगा। वह हिस्सा रात कहलाएगा।’’
सब इधर-उधर देखने लगे। धूप हर तरफ फैल चुकी थी। सभी को जल्दी ही दिन और रात का फासला समझ में आ गया। कुछ ही दिनों में सब ने धूप के आने और जाने के हिसाब से खुद को ढाल लिया।
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-मनोहर चमोली ‘मनु’
– जनवरी 2019, नंदन, ‘किस्सा गुनगुनी धूप का’ -मनोहर चमोली ‘मनु’
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धूप जैसी ही कुनकुनी ये कहानी। कितनी सुंदर अंदाज़।
ji shukriyaa !
धन्यवाद 🙏🏻 आदरणीय 💐 यह हमारा सौभाग्य हम आपको पढ़ और सुन सकते हैं। बहुत सटीक एवं सुलझे हुए वक्ता हैं। मुझे आपको सुनना और आपकी कहीं हुई बातों पर विचार करना बहुत अच्छा लगता है।बस इसी तरह अपना ज्ञान हमारे साथ बांटते रहिए। शुक्रिया 🙏🏻 आदरणीय 💐
आदरणीया नमस्ते । आपकी टिप्पणी वन्दनीय है।