भारत में लगभग एक हजार चार सौ कारागार हैं। तीन लाख छासठ हजार बन्दियों की धारण क्षमता हैं। सीधा-सा अर्थ लगाया जा सकता है कि एक कारागार में 260 सजायाफ्ता या विचाराधीन कैदी रह सकते हैं। अठारह महिला जेल भी इन्हीं में शामिल हैं। आंकड़े बताते हैं कि जेलों में 136 फीसदी कैदी रह रहे हैं। साढ़े तीन लाख कैदी तो जेलों में वे हैं जिनके अपराधों की सुनवाई चल रही है। यानि विचाराधीन कैदी। साल 2020 में ही सभी जेल के कैदियों में 76 फीसदी कैदी विचाराधीन कैदी हैं। इनमें 68 फीसदी निरक्षर हैं। 41 फीसदी वे कैदी हैं जिन्होंने दसवीं कक्षा से पहले ही पढ़ाई छोड़ दी।

अपराधों का मामला क्या सीधे शिक्षा से नहीं है? आप क्या सोचते हैं? 121 साल पहले बनी जेल आज महज़ जर्जर इमारत के तौर पर तब्दील हो गई है। जिला कारागर जब यहाँ से खाण्ड्यूँसैण गया था तब जोर-शोर से कहा गया था कि पौड़ी कारागार को संग्रहालय बनाएँगे। यह उचित भी था। उत्तराखण्ड में दो ही कमिश्नरी हैं। गढ़वाल और कुमाऊँ। गढ़वाल की कमिश्नरी पौड़ी है।

अंग्रेजों के शासन का 45 साल का सफर तो इस कारागार ने देखा ही होगा। इन 45 सालों में न जाने कितने आजादी के मतवालों को इस कारागार में रखा गया होगा! आजाद भारत के बाद 1947 से 2000 तक यानि 53 साल भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकान के समय भी नामी-गिरामी कुख्यात-विचाराधीन कैदी भी इस इमारत के भीतर रहे होंगे। इतिहास सिर्फ शूरवीरों का ही नहीं होता। जाने-अनजाने में धरे गए निर्दोष और विचाराधीन कैदियों का भी होता है। संभव है कि विचाराधीन या सजा काट रहे कई अभियुक्त और अपराधियों ने भीतर ही दम तोड़ा हो। इस जर्जर हो चुके गेट में मुजरिमों के परिवार के लोग मिलाई के लिए घण्टों खड़े होते रहे होंगे। इस इमारत ने तब हजारों वाकये शुकराने, नजराने और जबराने के देखें होंगे।

कहीं तो कुछ दर्ज होगा? उत्पीड़न, अपराध, दंड के साथ जो मानवता है वह भी कहीं इन दीवारों में दबी होगी।

बहरहाल, जानकार बताते हैं कि इस क्षेत्र में कत्यूरी राजवंश का आधिपत्य रहा। चंद्रपुरगढ़ के चार राजवंशों का आधिपत्य 15वी शताब्दी के अंत तक का माना जाता रहा है। राजा अजयपाल ने 1519 के आस-पास अपनी राजधानी श्रीनगर गढ़वाल में बनाई। राजा अजयपाल के उत्तराधिकारियों ने लगभग 300 साल तक यहाँ राज्य किया। इन तीन सौ सालों में बताते हैं कि कुमाऊँ क्षेत्र से, मुगल, सिख और रोहिल्ला आक्रमण हुए। गोरखों के आक्रमण से गढ़वाल बुरी तरह प्रभावित हुआ। 1804 के आसपास गोरखों ने पूरे गढ़वाल को अपने कब्जे में ले लिया। 1815 में अंग्रेजों का आक्रमण हुआ। इससे पहले लगभग 12 साल गोरखों का आधिपत्य रहा। अंग्रेजों ने पष्चिमी गढ़वाल क्षेत्र अलकनंदा और मंदाकिनी नदी के पश्चिम तक अपना राज स्थापित कर दिया। इसे ही ब्रिटिश गढ़वाल का नाम दिया गया। शेष हिस्सा सुदर्शन शाह को दिया गया। सुदर्शन शाह ने अपनी राजधानी टिहरी बनाई।अंग्रेजों ने कुमाऊँ और गढ़वाल को संभालने के लिए नैनीताल में एक कमिश्नर रखा। 1840 में पौड़ी गढ़वाल को अलग जिला बनाया। यहां सहायक कमिश्नर रखा गया। अब तक गढ़वाल, अल्मोड़ा और नैनीताल को कुमाऊँ कमिश्नर ही देखता था। 1960 में गढ़वाल जिले से ही एक भाग चमोली नया जिला बनाया गया। 1969 में गढ़वाल के लिए मुख्यालय पौड़ी बनाया गया। कालान्तर में यानि 1998 में पौड़ी जिले से लगभग 70 गाँव के हिस्से से नया जिला रुद्रप्रयाग बनाया गया।

Loading

By manohar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *