आज शाम चार बजे ही सन्नाटा छा गया। दस में नौ दुकानें बंद हो गईं। सूर्योदय से एक घण्टा पहले और एक घण्टा बाद तलक रोज़ाना बच्चे, बूढ़े, महिलाएँ और लड़कियों के दल घूमते हुए मिल जाते थे। आज जैसे मातम छाया हुआ हो। कान फोड़ते बाइक में युवा बिना हेलमेट के इधर-ऊधर दौड़ते नज़र आ रहे हैं। चार पहिया वाहन में चीखते-चिल्लाते हुए पाँच-सात लोग रंग में पुते हुए जरूर मिल रहे थे। ऐजेंसी चौक में छह-सात होमगार्ड्स, दो तारा लगे एक पुलिस अधिकारी डण्डा लिए खड़े थे। मेरे देखते ही देखते तीन चार बाइक सवार बिना हेलमेट के उनके सामने से गुजरे लेकिन उन्होंने रोका नहीं। ये ओर बात है कि मुझे पिछले पन्द्रह दिनों में दो बार अपने दुपहिया वाहन के कागज दिखाने पड़े। हेलमेट उतारना पड़ा।


कहते हैं कि शराब पीने के बाद आदमी सच बोलता है। ऐसा भी कहते हैं कि दिल की बात या भड़ास पीने के बाद ही निकलती है। ऐसा भी कहते हैं कि शराबी किसी का बुरा नहीं चाहता। बुरा बोल सकता है लेकिन बुरा नहीं करता। ऐसा भी कहते हैं कि जो काम अटके हों तो शराब उसे पूरा करवा देती है।
आरिफ जलाली की बात को अक्सर आप और हम सुनते आए हैं। एक बार यहाँ भी पढ़ लेते हैं-


ख़ुद अपनी मस्ती है जिस ने मचाई है हलचल
नशा शराब में होता तो नाचती बोतल


हालांकि आंकड़े बताते हैं कि हम भदेस हिंदुस्तानी शराब पीने के मामले में अभी कंजूस हैं। भारत की बात करें तो 100 में 25 ही शराब पीते हैं। महिलाओं का आंकड़ा 100 में 12 का है। मजेदार बात यह है कि भारत में मात्र 6 अरब लीटर ही शराब पी जाती है। इससे ज़्यादा पानी तो भारतवासी मूतने के बाद बदबू हटाने के लिए टायलेट में डाल देते हैं। लगभग 25000 करोड़ की अवैध शराब हर साल ज़ब्त की जाती है। एक स्याह पक्ष यह भी है कि लगभग तीन लाख लोग हर साल शराब पीने से मर भी जाते हैं। शराब से आमदनी कितनी होती होगी? यह कहना मुश्किल है। शराब में लाख बुराईयां बताई जाती हैं लेकिन शायद ही कोई मुल्क ऐसा होगा जहाँ शराब की खपत न होती होगी!

शिकन न डाल जबीं पर शराब देते हुए
ये मुस्कुराती हुई चीज मुस्कुरा के पिला

यह शेर भले ही अब्दुल हमीद अदम साहब का है लेकिन शराबियों की बैठक में सबसे अधिक नियम-क़ायदों का पालन होता है। बांटेदार जबरन किसी का पैग पटियाला नहीं बनाता। संगी-साथियों में जिनके गले देर से तर होते हैं उनके लिए बचा कर रखता है।

साहिर साहब यूँ ही तो नहीं कह गए कि-


बे पिए ही शराब से नफरत
ये जहालत नहीं तो फिर क्या है

जौन एलिया जानते थे कि हिंदुस्तानी कच्ची भी पीता है। दारु भी पीता है। ठर्रा भी और दारु के धोखे में कभी-कभी पेट्रोल तक पी जाता है। तभी तो वह कह गए हैं-


तुम ने बहुत शराब पी उस का सभी को दुख है ‘जौन‘
और जो दुख है वो ये है तुम को शराब पी गई

मुझे शराबियों से कभी शिकायत नहीं रही। अभिन्न मित्र भी शराब पीते रहे हैं। लेकिन कभी कोई बदतमीज़ी या दुर्व्यवहार नहीं करते। यूं कहूं तो वे मुझे अपने साथ मुझे रखना उचित ही समझते हैं। मुझे भी उनका संग-साथ कभी बोर नहीं करता। कई बार हलक से दो बूंद उतरने के बाद मित्रों ने अपनी बात-नाराज़गी दमदार तरीके से मेरे समक्ष रखी।
तब एहसान दानिश का शेर कुछ इस तरह से याद आता है-

दौर था इक गुजर चुका नशा था इक उतर चुका
अब वो मकाम है जहाँ शिकवा-ए-बे-रुख़ी नहीं

एक बात और है। शराब संवेदना के स्तर पर भी शराबी को जज़्बाती कर देती है। कभी आपने किसी की दुखती रग छेड़ दी हो। तो सुरा के गले से उतरने पर शराबी उस मलाल को व्यक्त कर देता है। संभवतः अख़्तर नज़मी साहब बोले पड़े होंगे-


नशा भी होता है हल्का सा जहर में शामिल
वो जब भी मिलता है इक डंक मार जाता है


बहरहाल, इस होली में यदि शराबियों की टोली मिल जाए तो उनसे आंखें मिलाइए। अदब से पेश आइए। उनसे उलझिए मत। फीकी हंसी मत हंसिएगा। वे नशे में कितना हों। कभी गोबर नहीं खाते। समझते सब हैं। उनके खिसे से आप रुपए नहीं गाड़ सकते। और अगर किसी सरूर वाले को कमतर समझेंगे तो यह आपकी भूल होगी। बशीर बद्र साहब ने किसी शराबी के हवाले से ही यह शेर कहा होगा-
यहाँ लिबास की क़ीमत है आदमी की नहीं
मुझे गिलास बड़े दे शराब कम कर दे


और हाँ। यह आपकी भूल है कि शराबियों को कोई काम नहीं है। लदकर और छककर काम करने के बाद ही वे पंगत पर बैठ जाते हैं। किसी का क्या लेते हैं? क्या बिगाड़ते हैं। निदा फाजली तभी तो कह गए-
कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गई
आओ कहीं शराब पिएँ रात हो गई


मैं तो आपको सलाह दूंगा यदि शराब से दूर हैं तो अच्छी बात है ! हमेशा दूर रहें ! लेकिन शराबियों से दूरी न रखें। उनके साथ बैठें। बात करे। उनका सहयोग करे। उनकी महफिलों में बैंठे। उनको कुछ नहीं दे सकते तो सलाद बांटिए। पानी पिलाइए। उन्हें सुनिए। उन्हें बोलने का भरपूर मौका दें। उनका उपहास न उड़ाएं। राहत इंदौरी यूं ही नहीं कह गए कि-
शराब पी के बड़े तजरबे हुए हैं हमें
शरीफ लोगों को हम मशवरा नहीं देंगे

तो इस पोस्ट के माने क्या! यही कि इस दुनिया में अच्छाई की भी हद है। फिर बुराई भी अच्छाई का दामन पकड़ लेती है। इसी तरह बुराई की भी एक सीमा है। अच्छाई उसी के साथ चिपकी रहती है। शराब से बुरी नफ़रत है। जिद है । भ्रष्टाचार है ! धर्म ग्रन्थों पर चलने की लकीरें हैं !

वीरेन डंगवाल जी की कविता में भी मेरी बात शामिल है। कृपया यहां तक पढ़ पाए हैं तो यह कविता भी पढ़ ही लें-
इतने भले नहीं बन जाना साथी
जितने भले हुआ करते हैं सरकस के हाथी
गदहा बनने में लगा दी अपनी सारी कूवत सारी प्रतिभा
किसी से कुछ लिया नहीं न किसी को कुछ दिया
ऐसा भी जिया जीवन तो क्या जियाघ्
इतने दुर्गम मत बन जाना
संभव ही रह जाए न तुम तक कोई राह बनाना
अपने ऊँचे सन्नाटे में सर धुनते रह गए
लेकिन किंचित भी जीवन का मर्म नहीं जाना
इतने चालू मत हो जाना
सुन.सुन कर हरकतें तुम्हारी पड़े हमें शरमाना
बग़ल दबी हो बोतल मुँह में जनता का अफ़साना
ऐसे घाघ नहीं हो जाना
ऐसे कठमुल्ले मत बनना
बात नहीं जो मन की तो बस तन जाना
दुनिया देख चुके हो यारो
एक नज़र थोड़ा.सा अपने जीवन पर भी मारो
पोथी.पतरा.ज्ञान.कपट से बहुत बड़ा है मानव
कठमुल्लापन छोड़ोए उस पर भी तो तनिक विचारो
काफ़ी बुरा समय है साथी
गरज रहे हैं घन घमंड के नभ की फटती है छाती
अंधकार की सत्ता चिल.बिल चिल.बिल मानव.जीवन
जिस पर बिजली रह.रह अपना चाबुक चमकाती
संस्कृति के दर्पण में ये जो शक्लें हैं मुस्काती
इनकी असल समझना साथी
अपनी समझ बदलना साथी

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By manohar

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