हैरानी की बात यह है कि आम तौर पर हम जिन चीज़ों को कूड़ा-करकट और बेकार समझते हैं उन्हीं का शानदार उपयोग नेक चन्द सैनी ने किया था।


दिन भर, भरपूर मनोरंजन और हैरत में डालने वाला हाथ का कौशल देखना है तो एक बार रॉक गार्डन जरूर देखना चाहिए। लगभग पैंसठ बीघा जमीन में यह फैला हुआ है। यह चण्डीगढ़ के सेक्टर 1 में स्थित है। आप यहाँ पूरे सप्ताह किसी भी दिन आ सकते हैं। यह नौ बजे खुलता है और देर शाम 8 बजे तक खुला रहता है। अलबत्ता सर्दियों में एक घण्टा पहले बंद हो जाता है। गर्मियों में यह सुबह 8 बजे खुल जाता है। दस साल तक के बच्चों के लिए 10 रुपए का टिकट है और वयस्कों के लिए 30 का टिकट लगता है। यूँ तो यहाँ साल भर पयर्टक आते हैं। लेकिन फरवरी से अप्रैल में और सितम्बर से नवम्बर तो यहां तांता लगा रहता है।


हैरानी की बात यह है कि आम तौर पर हम जिन चीज़ों को कूड़ा-करकट और बेकार समझते हैं उन्हीं का शानदार उपयोग नेक चन्द सैनी ने किया था। प्लास्टिक की बोतलें, टूटे हुए कांच के टुकडे़, शीशे, टूटे हुई क्रॉकरी, मडगार्ड, हैंडलबार, धातु के तार, चीनी मिट्टी के बर्तन, मिट्टी के बरतन, पुरानी टूटी हुई चूड़ियाँ, टाइल्स के टुकड़ों का दर्शनीय शिल्प देखकर हर कोई हैरत में पड़ जाता है। चण्डीगढ़ स्थित सुखना झील के पास ही रॉक गार्डन है। यह कहना उचित ही होगा कि मूर्तिकला का नायाब, अलहदा और प्रकृति के निष्प्रोज्य समझे जाने वाली चीज़ों में जान फूंकने का उदाहरण रॉक गार्डन है। नेक चंद राजकीय कार्मिक थे। खाली समय में उन्होंने औद्योगिक और घरेलू कबाड़ का उपयोग किया। यह बात सन् 1957 की है। वे अकेले, चुपचाप इसे गढ़ते रहे। बाद में तो उन्हें सहायतार्थ पचास से अधिक मजदूर मिले। लगभग बीस वर्षों बाद यह दर्शकों के लिए सन् 1976 में खोला गया।

चण्डीगढ़ सुव्यवस्थित योजनाबद्ध तरीके से बनाया हुआ शहर है। यदि आप निजी गाड़ी से चण्डीगढ़ आ रहे हैं तो सावधान रहिएगा। यातायात के नियमों में सेकण्ड भर की लापरवाही आपको भारी पड़ सकती है। हर मार्ग में नियन्त्रित गति सीमा से एक किलोमीटर ज़्यादा गति से गाड़ी चलाएंगे तो अत्याधुनिक कैमरे की जद में आपकी गाड़ी आ जाएगी और दस से बीस मिनट के भीतर ही आपके मोबाइल पर चालान का संदेश आ जाएगा। लाल बत्ती को समय पूर्व क्रॉस करना खतरनाक ड्राइविंग मानी जाएगी और आपको चालान भुगतने के लिए चीफ जुडिशियल मजिस्ट्रेट की अदालत में जाना होगा। तो ध्यान रखिएगा कि निजी वाहन से आएं तो यातायात के नियमों का पालन करें। बाईं ओर टर्न करना हो तो चौराहे से पूर्व स्लीप रोड का प्रावधान है। उसी से आपको टर्न करना है।


चण्डीगढ़ विमानपत्तनम से यह मात्र 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। आप अपने निकटतम एयरपोर्ट से सीधे यहाँ पहुँच सकते हैं। एयरपोर्ट से अत्याधुनिक सिटी बस सेवा है। टैक्सी की सुविधा उपलब्ध है। उबेर सेवा भी उपलब्ध है। आप स्वयं ऑटो भी ले सकते हैं। इन दिनों एयरपोर्ट से 50 से 100 रुपए का भुगतान कर आप रॉक गार्डन आ सकते हैं।


यदि चण्डीगढ़ रेल मार्ग से आना है तो भी बहुत आरामदायक सेवाएं हैं। सीधे दिल्ली से भी रेल द्वारा यहाँ आ सकते हैं। दक्षिण और उत्तर भारत के महानगरों से सीधे रेल सेवाएं हैं। रेलवे स्टेशन से यह मात्र 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। रेलवे स्टेशन के बाहर से ही टैक्सी, उबेर, ऑटो सेवा उपलब्ध है। सिटी बसें भी हर दस मिनट पर आपको मिल जाएगी।


चण्डीगढ़ सुव्यवस्थित योजनाबद्ध तरीके से बनाया हुआ शहर है। यदि आप निजी गाड़ी से चण्डीगढ़ आ रहे हैं तो सावधान रहिएगा। यातायात के नियमों में सेकण्ड भर की लापरवाही आपको भारी पड़ सकती है। हर मार्ग में नियन्त्रित गति सीमा से एक किलोमीटर ज़्यादा गति से गाड़ी चलाएंगे तो अत्याधुनिक कैमरे की जद में आपकी गाड़ी आ जाएगी और दस से बीस मिनट के भीतर ही आपके मोबाइल पर चालान का संदेश आ जाएगा। लाल बत्ती को समय पूर्व क्रॉस करना खतरनाक ड्राइविंग मानी जाएगी और आपको चालान भुगतने के लिए चीफ जुडिशियल मजिस्ट्रेट की अदालत में जाना होगा। तो ध्यान रखिएगा कि निजी वाहन से आएं तो यातायात के नियमों का पालन करें। बाईं ओर टर्न करना हो तो चौराहे से पूर्व स्लीप रोड का प्रावधान है। उसी से आपको टर्न करना है। बहरहाल, उत्तराखण्ड, हिमाचल, पंजाब और दिल्ली से सीधे बस सेवाएं प्रत्येक आधा घण्टा में है। चण्डीगढ़ के सेक्टर 17 में अंतरराज्यीय बस अड्डा है। जिसे आम तौर पर आई॰एस॰बी॰टी॰ कहा जाता है। अब तो सेक्टर 43 में एक वृहद बस अड्डा बन चुका है। यहाँ से भी कई बसें आस-पास के राज्यों की ओर आती-जाती हैं।


हस्तनिर्मित मूर्तिकला के साथ अब यहाँ मनुष्यनिर्मित पानी के फव्वारे और झरने भी हैं। बनावटी पेड़ और शाखाएं भी हैं। इन दिनों इसकी मरम्मत भी चल रही है। अब तो रचनात्मक दीवारें भी यहाँ बना दी गई हैं। विशालकाय एक्वेरियम भी है। गुफानुमा दरवाज़े जो गुफा-सी फीलिंग देते हैं। झूले हैं। खाने-पीने के लिए रेस्तरां भी हैं।


-मनोहर चमोली ‘मनु’

प्लास्टिक की बोतलें, टूटे हुए कांच के टुकडे़, शीशे, टूटे हुई क्रॉकरी, मडगार्ड, हैंडलबार, धातु के तार, चीनी मिट्टी के बर्तन, मिट्टी के बरतन, पुरानी टूटी हुई चूड़ियाँ, टाइल्स के टुकड़ों का दर्शनीय शिल्प देखकर हर कोई हैरत में पड़ जाता है।

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By manohar

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