दोस्तों नमस्कार। मेरा नाम मनोहर है। पत्नी का नाम अनीता है।
लेकिन, मैं सोचता हूँ कि प्रकृति ने हमें नर और मादा बनाया है। मेरे भी दो हाथ हैं और अनीता के भी दो हाथ हैं। जब मैं पैदा हुआ हूंगा या अनीता पैदा हुई होगी… तब हमें कैसे पहचाना गया होगा कि मैं नर हूं और अनीता मादा? आप क्या सोचते हैं?
हमारी नर और मादा की पहचान के और मक़सद के बारे में आप क्या सोचते हैं?
फिर परिवार,पड़ोस और यह समाज क्या हमें प्राकृतिक तौर पर जिस अन्तर के तौर पर देखता है, उससे आप कितना सहमत हैं? प्रकृति ने नर और मादा के तौर पर कुछ भेद रखे हैं। लेकिन क्या प्रकृति नर और मादा में कुछ भेदभाव करती है? सोचिएगा और लिखिएगा।
कल अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस है। इसको मनाए जाने के पीछे क्या सोच है? क्यों मनाया जाता है यह दिवस? दिवस को मनाए जाने और समाज के शिक्षित होने के बावजूद क्या महिला-पुरुष समाज बराबर हो गया है? यदि नहीं तो क्यों? क्या साल में एक दिन महिला दिवस मनाने से शिक्षा, समानता, शांति आ जाएगी? क्या गैर बराबरी वाला समाज सुधर जाएगा?