छह साल की छोकरी,
भरकर लाई टोकरी।
टोकरी में आम हैं,
नहीं बताती दाम है।
दिखा-दिखाकर टोकरी,
हमें बुलाती छोकरी।
हम को देती आम है,
नहीं बुलाती नाम है।
नाम नहीं अब पूछना,
हमें आम है चूसना।
***
यह कविता रामकृष्ण शर्मा खद्दर जी की है। यह कविता कक्षा पहली के बच्चे 2006 से लगातार पढ़ रहे हैं। साल 2018 से उत्तराखण्ड के बच्चे भी अब इस कविता को पढ़ेंगे। यह कविता राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् द्वारा तैयार की गई किताब रिमझिम 1 का हिस्सा है। यह कविता पाठ 3 के क्रम में बच्चे पढ़ रहे हैं।
इस कविता की खास बात यह है कि इसकी पँक्तियों से ‘आ’ और ‘क’ को परिचित कराने के लिए इसे यहाँ विशेष तौर पर रखा गया है। बताता चलूँ कि इससे पहले आए दो पाठों से बच्चे ‘न‘,‘म’,‘अ‘,‘ठ‘,‘ए‘,‘झ‘,‘ल‘,‘ड‘,‘छ‘,‘ई‘ से परिचित हो रहे हैं।
अब कविता पर बात करते हैं। इस कविता में जिस छोकरी की बात की जा रही है हो सकता है कि वह स्कूल न जाती हो। घर की परिस्थितियों के चलते वह फलों के मौसम में फल बेचती हो। यह भी हो सकता है कि वह अनाथ हो। उसे खुद ही अपना नाम न पता हो। यह भी सम्भव है कि यह लड़की जिसका नाम पाठक बच्चे नहीं जानते हैं उनके घर के आस-पास आती हो। उनके गाँव-शहर या मुहल्ले में आती हो। यह भी सम्भव है कि ये पाठक बच्चे जिस स्कूल में पढ़ते हैं, यह छोकरी स्कूल समय में, मध्यांतर में या छुट्टी के समय स्कूल के आस-पास आम बेचने मिल जाती होगी।
अब दो बातें और
एक : क्या बच्चे पाठ्यपुस्तक में पाठ के बहाने उन बच्चों के बारे में न सोचें, जो उन्हें आम जीवन में अपने आस-पास दिखाई देते हैं? जो बाजार में, मेलों में, दुकानों में, सड़कों में कुछ न कुछ सामान बेचते नजर आते हैं!
दो : क्या बच्चे उन बच्चों के बारे में चर्चा न करें, जो उनकी उम्र के हैं और स्कूल नहीं आते?
अब आते हैं इस छोकरी शब्द पर। इस शब्द पर कैसी आपत्ति। शब्द क्या हैं? ध्वनि मात्र ही तो हैं। हमें यह समझना होगा कि बहुत सारे नाम,सम्बोधन और संज्ञा कई भाषाओं में एक समान हो सकते हैं तो यही कई भाषाओं में गाली के रूप में प्रयोग लाए जाते होंगे। यह कोई जानवरों के मुँह से निकली हुई ध्वनि नहीं हैं कि भारत की बिल्ली हो या जापान की म्याऊँ ही बोलेगी। कुत्ता कहीं का भी हो वो भौंकेगा।
भाषाओं में शब्द और शब्दों से बने वाक्य सन्दर्भों के साथ विभिन्न अर्थ देने की सामर्थ्य रखते हैं। यह कौन नहीं जानता!
अब यह बताना भी जरूरी होगा कि बुनियादी स्कूलों में खासकर पहली कक्षा में अवलोकन, समझ, अभिनय करते हुए बोलना,समझ कर बोलना,घर से विद्यालय तक आते-जाते दृश्य चित्रों से जुड़ती हुई पठन सामग्री पढ़ना, बच्चों के क्रियाकलापों से खुद को जोड़ना, स्थानीय परिवेश व वातावरण को गहरे से समझना आदि हिन्दी भाषा की पाठ्यचर्या का हिस्सा हैं। इस लिहाज से यह कविता बेहद उपयुक्त, सारगर्भित और बच्चों के जीवन से जुड़ी है। आखिर संवैधानिक मूल्य भी तो यही कहते हैं कि हम केवल अपनी ही न सोंचे। हाशिए के जीवन को भी महसूस करें। संवेदना के स्तर पर चेतना भी बढ़ाएँ।
मैंने यह कविता स्कूल में बच्चों के साथ साझा की। मैंने इसे श्यामपट्ट पर लिखा। पहले मैंने इसे सस्वर पढ़ा। फिर बच्चों से कहा कि इसे एक साथ पढ़ें। बच्चों ने एक साथ इसे पढ़ा। मैंने कहा अब इसे कॉपी पर लिखिए। बच्चों ने कविता कॉपी पर लिखी। फिर सबसे कहा गया कि मौन पठन करिए। बच्चों को कुछ देर कविता से जूझने दिया गया।
अब बगैर भूमिका के और भाव के मैंने बच्चों से कहा कि कविता को पढ़कर समझकर कुछ सवाल बनाने हैं। अपनी-अपनी कॉपी पर। ऐसे सवाल नहीं बनाने हैं कि जवाब एक जैसा आए।
मैंने उदाहरण दिया कि एक जैसा जवाब के दो उदाहरण देता हूँ। एक जैसा जवाब के दो सवाल मैंने श्यामपट्ट पर लिख दिए। वह यह थे-
सवाल : छोकरी कितने साल की है?
सवाल : टोकरी में क्या है?
मैंने बात को विस्तार दिया कि हमें ऐसे सवाल नहीं बनाने हैं जिसका एक जैसा जवाब हो। हमें ऐसे सवाल बनाने हैं जिनके जवाब मन के जवाब हों। जवाब देने वाले को मन से सोचना पड़े। अनुमान और कल्पना के घोड़े दौड़ाकर जवाब खोजना पड़े।
मुझे लग रहा था कि दस पंक्तियों की इस कविता में तीन-चार सवाल ही बन सकेंगे। सवालों में दोहराव अधिक होगा। लेकिन जो सवाल बच्चों ने बनाए वह अद्भुत थे। कुछ खास सवाल (अलग-अलग अनुभव वाले) यहाँ दिए जा रहे हैं-
1. छोकरी का क्या नाम रहा होगा?
2. टोकरी में कितने आम रहे होंगे?
3. वह बच्चों को नाम से क्यों नहीं बुला रही थी।
4. लड़की आम कहाँ से लाई होगी?
5. एक टोकरी में कितने आम आ सकते हैं?
6. छह साल की लड़की कितना वजन उठा सकती है?
7. पेड़ एक साल छोड़कर आम क्यों देता है?
8. लड़की आमों के दाम क्यों नहीं बताती?
9. टोकरी के आम कितने रुपए में बिके होंगे?
10. ऐसी लड़कियाँ क्या-क्या काम कर सकती हैं?
11. इस कविता के और क्या-क्या शीर्षक हो सकते हैं?
12. यदि आम चालीस रुपए किलों हैं तो लड़की के आम कितने के बिके होंगे?
13. टोकरियाँ किस-किस चीज की बनी होती हैं?
14. टोकरियों में क्या-क्या चीजें रखी जा सकती हैं?
15. आम के सीजन के बाद लड़की टोकरी का क्या करती होगी?
16. लड़की आम के मौसम को छोड़कर क्या बेचती होगी?
यह सवाल बनाने वाले विद्यार्थी कक्षा छह से नौ तक के हैं। राधिका, प्रिया, कंचन, प्रेरणा, खुशी के सवालों में विविधता थी। कुछ सवाल एक जैसे बन पड़े।
आधा घण्टा वह भी कविता पर बिना बात किए हुए विद्यार्थियों ने अपने अनुभव से ऐसे सवाल बनाए हैं तो वे जवाब भी दे सकते हैं। मजेदार बात यह है कि ये विद्यार्थी अपने आस-पास के जंगल में हर साल आम को चूसने का लुत्फ उठाते हैं। हमारे स्कूल के ठीक पीछे भी एक विशालकाय घर्या आम का पेड़ है।
कवि रामकृष्ण शर्मा खद्दर जी ने भी सोचा न होगा कि सुदूर उत्तराखण्ड के पौड़ी जनपद के ग्रामीण विद्यालय के बच्चे उनकी कविता पर इतने बेहतरीन सवाल उठा रहे होंगे। अब सोच रहा हूँ कि इस कविता पर छह-सात साल के बच्चे तो मौखिक सवालों की बारिश करेंगे।
***
- Mukesh Bahugunaछोकरी शब्द गलत है।बालमन में सकारात्मक प्रभाव नहीं छोडेगी4
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- मनोहर चमोली मनुजी, पर प्रकाश डालिएगा कि छोकरी शब्द गलत कैसे है तो हमारी जानकारी भी बढ़ेगी !
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- Mukesh Bahugunaयह शब्द गाली के रूप में प्रयोग होता है ।छोकरी शब्द जिसके पिता नहीं हों को अक्सर गांव के लोग प्रयोग करते हैं ।
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- मनोहर चमोली मनुछोकरी शब्द गलत है?कैसे?फिर… तो बस भगिनी चलेगा न? या पुत्री,बेटी, दुहिता, कन्या पर…… और देखें
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- Sharad Pandeyशब्दों का प्रयोग स्थानानुसार बदल जाता है । छोकरी शब्द में कोई बुराई नहीं है ।1
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- मनोहर चमोली मनुयकीनन ..
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- Rajesh Utsahiछोकरा शब्द से मेरी चार कविताऍं हैं।
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- Surender Bisht Sanju6 saal ki jagah 18 saal likh do to kavita adult ho jayegi bas ..#double meaning2
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- Saroj DeviChokri shi nhi lega1
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- मनोहर चमोली मनुक्यों?
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- Saroj DeviChokri m tporipan sa hai jo sunnai m ajeeb hai kuch or likho
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- Ravi Prakash MauryaKavita mien sarthakta naam ki koi cheej nahi hai, bas tukant hai aur jo man mein likh diya gaya hai.Mere hisab se Baal kavita mein sarthakta ke saath-saath jaankari se judi koi baat honi chahiye kyonki maksad bachchho ko sikhana hota hai, na ki betuka manoranjan karna.1
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- मनोहर चमोली मनुसिखाना? क्या-क्या सिखाना होता है? रवि जी विस्तार से हमारी जानकारी बढ़ाइएगा।
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- Khantwal Kamleshछोकरी शब्द की जगह कुछ और हो सकता1
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- मनोहर चमोली मनुछोकरी में क्या कुछ गड़बड़ है?
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- Pramod Dixitयह कविता शायद “रिमझिम” में है। बाकी तो ठीक है पर ‘छोकरी’ उपयुक्त शब्द नहीं।रचनाकार ने भी कभी अपनी बेटी को या पास पडोस की लडकियों या स्कूलों की किसी लडकी को ‘छोकरी’ सम्बोधन नहीं किया होगा। मेरे ख्याल से मनु जी आपने भी अपने स्कूल में किसी लडकी को ऐ छोकरी /ओ छोकरी नहीं कहा होगा न कहेंगे। पर यह एनसीईआरटी की पुस्तक में है तो शान में कसीदे काढे जाते हैं / जायेंगे। भाषा के तमाम प्रशिक्षणों में कविता सत्र में इसे जरूर शामिल करते हैं। एक बार मैंने अपनी बेटी “संस्कृति” को प्रयोग के तौर पर ‘छोकरी’ बोला तो वह नाराज हो गई और बोली पापा आपको क्या हो गया है।3
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- Rajesh Utsahiप्रमोद जी इस कविता पर आपकी यह राय पढ़कर मुझे बेहद दुख हुआ।2
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- Pramod Dixitउत्साही सर, इस कविता को और इसके विश्लेषण को कई आलेखों में पढा, पर ‘छोकरी’ शब्द से कभी सहमत नहीं हो पाया। मैं प्रयोगधर्मी व्यक्ति हूं। ‘छोकरी’ शब्द प्रयोग व्यवहार में मैंने अपने दैनंदिन जीवन में कई बार किया है। और उसलडकी एवं लोगों की प्रतिक्रिया ने मुझे हतोत्साहित किया है। आज भी मैं ‘छोकरी ‘ को स्वीकार नहीं कर पा रहा। मैं जबरदस्ती या किसी दबाव में कभी सहमत नहीं हुआ।हो सकता है मैं गलत होऊं। या ‘छोकरी’ के संदर्भ को न पकड पा रहा होऊं। पर मैं समझना जरूर चाहूंगा1
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- मनोहर चमोली मनुहमें कभी शब्द को ओछा नहीं समझना चाहिए। शब्द गरिमा कब खोते हैं? तब, जब कहन में भाव में बलाघात का इरादा कुछ और व्यक्त करते हों।’जी’ का प्रयोग भी चिढ़ा सकता है। गुस्से से भरा हो सकता है। व्यंग्य में भी कहा जा सकता है।2
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- Pramod Dixitबिल्कुल, मैं भी यही कह रहा हूं।
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- मनोहर चमोली मनुदोस्तों, इस पोस्ट को चित्र के साथ और सभी की टिप्पणियों के साथ दोबारा पढ़िएगा तो शायद कुछ बातें और निकलेंगी। सभी का आभार।1
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- मनोहर चमोली मनुPramod Dixit दोस्तों, इस पोस्ट को चित्र के साथ और सभी की टिप्पणियों के साथ दोबारा पढ़िएगा तो शायद कुछ बातें और निकलेंगी। सभी का आभार।1
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- Pramod Dixitजरूर
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- Anjali DudejaKavi to aap hi lg rhe hai1
- हा हा
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- नवीन डिमरी ‘बादल’छोकरी शब्द ठीक नहीं है। कविता बाल मनोविज्ञान के एकदम अनुकूल भी नहीं है।2
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- Arvind Kumar Sahuयह कविता बालमन को किस तरह प्रभावित करती है । मुझे समझ नही आया ।1
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- मनोहर चमोली मनुदोस्तों, इस पोस्ट को चित्र के साथ और सभी की टिप्पणियों के साथ दोबारा पढ़िएगा तो शायद कुछ बातें और निकलेंगी। सभी का आभार।
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- Pushplata Mamgain Pantछोकरी तो गाली मानते हैं देशी लोगअनाथ को छोकरी कहते हैँ2
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- नवीन डिमरी ‘बादल’कुछ स्तरहीन रचनाएँ बाल मनोविज्ञान के अनुरूप न होते हुए भी पाठ्यक्रमों में स्थान पा लेती हैं। जबकि कयी स्तरीय व बाल मनोविज्ञान के अनुरूप रचनाएँ किसी षडयंत्र के तहत बाहर रखी जाती हैं। यह सब भाई-भतीजा वाद, क्षेत्रवाद, जातिवाद, धर्मवाद या अन्य प्रकार के कयी वादों से ग्रषित सक्षम व शिक्षित लोग करते हैं। ऐसे कयी अनुभव हमारे पास हैं।2
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- Pushplata Mamgain Pantआभार
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- Anware Islamये पाठ्यक्रम बनाने वालों को प्रणाम ।1
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- Yashoda Raturiआम की थैली भर लायी सहेली कर दो भाई जी अगर अच्छl लगे तो1
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- अमिताभ जगदीशहहह1
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- Vishnuprasad Chaturvediअच्छी नहीं लगी।2
- हा हा
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- Rajiv Joshiये कविता एन सी ई आर टी पहली कक्षा की किताब में है। छोकरी शब्द मुझे भी अजीब लगा। हमारे सास्कृतिक परिवेश में लड़की के लिए इस्तेमाल हो तो थोड़ा हल्का जैसा लगता है। किसी सास्कृतिक परिवेश में यह बेटियों के लिए सामान्यतया भी प्रयोग किया जाता है। वे ससम्मान ही बोल पाएंगे।इसके अलावा भी कविता में तुकवन्दी के अलावा क्या है। संदेश क्या है। ये देखना महत्वपूर्ण होगा। टोकरी में आम लेकर कोई आई है, दाम नहीं बताती है, बुला-बुलाकर बांट रही है। अब बच्चों को जब आम मिल गया तो उन्हें न नाम से मतलब न उससे, न उसके घर-बार से, न उसके स्कूल-किताब से। छोकरी से कोई सरोकार ही नहीं?अब इन्हें बस आम चूसना है। कोई कृतज्ञता नहीं। शुक्रिया नहीं। मेरा पेट भरे, चाहे कोई मरे, जैसी मस्ती लगती है। बाल साहित्य सिर्फ मस्ती के लिए ही होता है। इसी समझ पर लिखी गयी लगती है।3
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- Pushplata Mamgain Pantआपका स्वागत
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- मनोहर चमोली मनुRajiv Joshi ji…आप काफी करीब आ गए इस कविता के। आपसे ऐसी उम्मीद थी भी। बाप बहुत कुछ कह गए। क्या आप भी चाहते हैं कि हर कविता संदेष दे?
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- Rajiv Joshiबाल कविताएं संदेश देती हैं। इस क्रम में अच्छे बच्चे मंजन करते, कुल्ला करके मुंह को धोते, मुंह धोकर के रोज नहाते…… जैसी कविताएं तो बचपन के अनुकूल नहीं हो सकती।परंतु मुझे लगता है कि उपदेश तो न ही हों नकारात्मक मूल्यों का विकास भी न करे। उक्त कविता में छोकरी बड़ी निरीह लगती है। या फिर बड़े भली है। आम बाँट रही है। दोनों ही सूरत में उसे कविता में हारना नहीं चाहिए था। अपनी मस्ती के लिए उसके आम चूस लिए। मुझे उसके लुटने का भाव दिखता है और उसको दरकिनार कर आम चूसकर बच्चे मस्ती कर जाते हैं। ये आम चूसने वाली पंक्तियाँ उस बच्ची के आम खोने को ढक देती सी लगती हैं। बाल कविताएं संवेदनाएं उकेरे तो उसे मंजिल तक पहुँचाये भी। वरना बच्चे गायें और खुश रहें।3
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- मनोहर चमोली मनुछोकरी शब्द गलत है?कैसे?फिर… तो बस भगिनी चलेगा न? या पुत्री,बेटी, दुहिता, कन्या पर…छोरी, छोकड़ी, नान्तिन, बेटी, पुत्री, लोढ़ी, लड़की, लौण्डी, डॉटर, जाक्ख्ती, नौनी और भी विस्तार दें तो गलत_सही पर और चर्चा हो सकेगी।
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- मनोहर चमोली मनुअभी इस कविता का सामाजिक सन्दर्भ आना शेष है। मैं प्रतीक्षा में हूँ।
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- Pushplata Mamgain Pantकुछ शब्द तो कविता की तुकबन्दी करने में कठिनाई होती है ।ऊपर काएक भी शब्द भी मेल खातानहींनातिन चक्की ,,,,,,,,मेल नहीँछोरी जरा देख तो ऊपर ,,चले आ रहे हैं बादलअच्छा लगता है क्या ।अम्मा जरा देख तो ऊपर चले आ रहे हैंबादलया दादीआपको पता होगा कि मां ही बच्चे के सबसे करीब होती हैं ।श्री कृष्ण जी ने भी माँ को ही सम्बोधित किया थायह कविता। चन्द्र खिलौन,,,ले ह्नों मैय्या ,,,,जै हों लोट धरणी पर अबही ,तेरी गोद न,,,,,अशुद्ध के लिए माफीयुवावस्था की कविताओं में ,सहेली मेल नहीं होता ।इसलिएसखि वे मुझ से कहकर जातेसजनि में इतनी सरल हूँ ।आपके ऊपर वाले शब्द एक भी कविता के लायक नहीं ।फिर तो सहारनपुर ,को मिलने दीजिए नहा हा हा हा हा हा हा1
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- मनोहर चमोली मनुअरे, ये कविता में जोड़ने को कहां कहा?
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनु1
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- Pushplata Mamgain Pant
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- मनोहर चमोली मनुदोस्तों, इस पोस्ट को चित्र के साथ और सभी की टिप्पणियों के साथ दोबारा पढ़िएगा तो शायद कुछ बातें और निकलेंगी। सभी का आभार।
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- मनोहर चमोली मनुPushplata Mamgain Pant दोस्तों, इस पोस्ट को चित्र के साथ और सभी की टिप्पणियों के साथ दोबारा पढ़िएगा तो शायद कुछ बातें और निकलेंगी। सभी का आभार।
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- Pushplata Mamgain Pantआपका भी आभार
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- · 3व
- Bal Vigyan KhojshalaRajiv Joshi जी, आपकी बात “हमारे सास्कृतिक परिवेश में लड़की के लिए इस्तेमाल हो तो थोड़ा हल्का जैसा लगता है। किसी सास्कृतिक परिवेश में यह बेटियों के लिए सामान्यतया भी प्रयोग किया जाता है।”, पढ़ कर मुझे बचपन में सुना एक झोड़ा याद आ गया:ओ छ्योड़ी ओ छ्योड़ा ला, हाथ दातुली ज्यौड़ा लादस रुपइयां दीग्यो ला, झन खर्चिए कैग्यो लाजाहिर है छोकरा और छोकरी तो हमारे सांस्कृतिक परिवेश में भी रहे हैं और ऐसा भी नहीं कि इस गीत में उन्हें असम्मानजनक सन्दर्भ में इस्तेमाल किया गया हो! इसके अलावा मैंने इन शब्दों को आवाज लगाकर बुलाने के लिए खूब सुना है- “ओ छयौड़ ! यां औ ला”, इस तरह.1
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- · 50 सप्ताह
- मनोहर चमोली मनुBal Vigyan Khojshala ji sahat !
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- · 50 सप्ताह
- Rajiv JoshiBal Vigyan Khojshala जी ठीक कहते हैं आप। बात समझ में आती है।1
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- · 50 सप्ताह
- मनोहर चमोली मनु
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- · 50 सप्ताह
- Shadab Alamयह खेल कविता तो नही लग रही…हाँ ‘चाइल्ड लेबर’ को इस कविता से कहीं न कहीं ज़रूर बढ़ावा मिल रहा है।1
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनुदोस्तों, इस पोस्ट को चित्र के साथ और सभी की टिप्पणियों के साथ दोबारा पढ़िएगा तो शायद कुछ बातें और निकलेंगी। सभी का आभार।1
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- · 3व
- नवीन डिमरी ‘बादल’हर कोई हर कविता की समीक्षा अपने तरीके से करता है। हकीकत यह है कि इस देश में आपका लिखा तब कविता बनता है जब एक पत्रिका का संपादक उसे कविता बताकर छापता है। अगर कोई कह दे कि आपने कविता नहीं कूडा लिखा है तो सहजता से आपको भी अपनी मेहनत कूडा मानने के लिए विवश होना पडेगा। इस देश का यह सबसे बडा दुर्भाग्य है कि चंद लोग हर कहीं ठेकेदार बन जाते हैं। धर्म के ठेकेदार, साहित्य के ठेकेदार आदि। और यही जिसको चाहें उसको ताज पहना दें। इसीलिए हिन्दी साहित्य के स्टालों पर लिखा मिलता है– हिन्दी साहित्य 50₹ /किलो।2
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- · 3व
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- Shadab Alamनवीन जी समीक्षा अपने तरीके से ही की जाती है न कि दूसरों के तरीके से…दूसरी बात, अगर आपको कविता की समझ है और आपने अच्छी कविता लिखी है तो उस कविता को कूड़ा वही कहेगा जिसकी समझ ही कूड़ा होगी।मेरा अपना मानना है कि यदि आपने किसी रचना पर मेहनत की है तो रचना कभी अपमानित नही होगी।5
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- · 3व
- नवीन डिमरी ‘बादल’भाई शादाब जी मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि क्या किसी रचना को सही या गलत कहने का किसी के पास कोई ठोस आधार या पैमाना है? हो सकता है जो चीज आपको अच्छी नहीं लगे वे मुझे अच्छी लगें। किसी को खीर पसंद तो किसी को खिचड़ी। हाँ, मूल्यांकन का कोई सार्वभौमिक पैमाना तय जरुर होना चाहिए। वरना सब अपनी-अपनी ही चलाते रहेंगे।1
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- · 3व
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- नवीन डिमरी ‘बादल’वैसे यह कविता ‘आ’ व ‘क’ वर्ण के साथ-साथ ‘ई’ की मात्रा समझाने के मनोविज्ञान पर केन्द्रित लगती है।1
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- · 3व
- Shadab Alamभाई रचना जिस दिन पैमाने या पैरामीटर्स के आधार पर रची जाने लगेंगी उस दिन ही रचना की मृत्यु हो जाएगी।एक रचना के मूल्यांकन का पैमाना तय करना ठीक नही।हाँ रचना पर चर्चा-परिचर्चा ज़रूर होनी चाहिए।4
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- · 3व
- Nafees Warsiइसमें कविता जैसा क्या है भाई? न रदीफ, न काफिया। न ही तरन्नुम। इसके रचनाकार को कविता न लिख कर और लिखना चाहिए।1
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- · 3व
- Nafees Warsiकुछ और1
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- · 3व
- Sharad Pandeyकविता को अखिल भारतीय स्तर पर सोचें । रचनाकार कभी संकुचित नहीं होता । छोकरी शब्द में दोष नहीं है । दोष छोकरी शब्द सामने आने पर आपके मन में आने वाली छवि में है ।4
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनुवाह! शानदार बात कह दी आपने। शब्द की छवि हमारी धारणा में है।मैं ऐसी ही किसी टिप्पणी की प्रतीक्षा में था। लौड़ी, लौण्डी,जाखती., छोरी.. छोकड़ी, नान्तिन कहीं विस्तारित होंगे और सम्मानित । इसी तरह बुढ़िया शब्द पर भी हम संकुचित हो जाते हैं।1
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- · 3व
- Mohan Chauhanबाहद खराब कविता1
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- · 3व
- Alka Agrawalइस कविता से बालमन को भी कोई मजा नहीं आएगा ।1
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनुजी, बेशक!इस कविता को आयु 2,3,4,5 साल के बच्चों को अलग-अलग बार सुनाया।6,7 ही नहीं 12 से 16 साल तक के बच्चों के साथ सस्वर, आदर्श, मौन और समूह में वाचन करवाया। श्यामपट्ट पे भी लिखवाया। बात की। बच्चों ने कभी नहीं कहा कि इसमे आनन्द नहीं आया। इस पर विस्तार से फिर कभी कि बड़े बच्चों की कविता पर, लड़की पर क्या-क्या राय दीं। आप सभी का आभार।2
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- · 3व
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- मनोहर चमोली मनुदोस्तों, इस पोस्ट को चित्र के साथ और सभी की टिप्पणियों के साथ दोबारा पढ़िएगा तो शायद कुछ बातें और निकलेंगी। सभी का आभार।2
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- · 3व
- Satish Chitravanshiअच्छा किया मनोहर जी आपने इस विषय को ‘जहां है जैसा है’ की तर्ज़ पर समाप्त करने की पहल की । मैंने इस कविता पर लिखी गयी सभी टिप्पणियां पढ़ीं । कुछ तल्ख़ रुझानों को छोड़ दें तो यह प्रकरण एक गोष्ठी जैसी सार्थकता से जान-अंजाने सज गया ब्लकि साहित्य के सरोकारों, कामनाओं और मंतव्य जैसे कुछ तथ्यात्मक बिंदुओं पर ताज़ा सवाल भी खड़े कर गया …आप सब जो इस बहस-मुबाहसे के क़िरदार हैं उन को मेरी इस टिप्पणी से आश्चर्य हो सकता है जब मैं यह कहूं कि मनुष्य ने जब अपनी पहली कविता या गान रचा होगा तब से ले कर आज जब हमारे सामने साहित्य-सृजन जैसा पूरा एक कार्य-व्यापार बन चुका है, साहित्य के कथित मानकों की परिपक्वता भी पर्याप्त है, तब भी एक छोटी-सी रचना पर मतैक्य होना लगभग असंभव-सा लग रहा है तो उस आदि कविता की व्याख्या या उस के नीहितार्थ की पड़ताल करने और प्रकारांतर से एक निश्चय-धर्मी स्थिति तक पहुंचने में कितनी कठिनाइयां उपस्थित हुईं होंगी जब हमारे पास कविता को समझने के भी औजा़र (संवेदनादि…)नहीं थे ?मैं आप सब को विनम्रता के साथ इस संकट की प्रतीति कराना चाहता हूं …आप सब कुछ भी कहें पर मुझे तो इस चर्चा में कुछ नये प्रश्नों से दो-चार होने का मौक़ा मिला और वे ये हैं कि कोई साहित्यिक रचना या कला-कृति पाठक या दर्शक पर जो प्रभाव छोड़ती है उस में संदर्भित रचना के भौतिक गुणों (जिन्हें काव्य-शास्त्र या कला-मानकों के अनुसार परिभाषित किया जाता है) के अतिरिक्त पाठक या दर्शक (अगर वह चाक्षुक कला है तो) के अपने जातीय (जाति के संकुचित अर्थ में नहीं बल्कि समूह के अर्थ में) संस्कार तथा निजी अनुभव-वितान पर आधृत होते हैं और चूंकी इन कारकों में साम्य संभव नहीं है इस लिये रचना के प्रभाव (या प्रतिफलन) में एक-रूपता कैसे संभव है ? और ये विविधता ही सृष्टि का नियम है, ख़ूबसूरती भी है । इस लिये इस की कामना ही व्यर्थ है । इस विविधता में ही सृजन का मनोविज्ञान है, वैभव है और सार्थकता भी है । और चूंकि ये सभी अव्यव्य अपने चरित्र में स्थिर नहीं हैं इस लिये लिये इन की परिणति या प्रतिफलन भी स्थिर नहीं हो सकते । ये पूरा का पूरा प्रकरण कालातीत होते हुये भी काल और समय सापेक्ष है । यही कारण है (अगर साहित्य की बात करें तो ) कि आचार्य राम चंद्र शुक्ल से ले कर राम विलास शर्मा या नामवर सिंह तक के अब तक के आलोचना के मानक स्थिर नहीं हैं, कुछ बिंदुओं को छोड़ कर । हमें अपने पूर्ववर्ती धारणाओं से एक ख़ाक़ा या ढांचा तो मिल सकता है पर उस को मुक्कमल्ल करने के आयाम हमें जोड़ने पड़ते हैं और इस प्रक्रिया में समसामयिक तत्व का आ जाना स्वाभिक या कहें अवश्य संभावी है । यही हमारी समझने और मूल्यांकन करने की दृष्टि को पुष्ट करती है । यही कारण है एक समय (या काल-खंड) की उत्कृष्ट रचना आज हमें अप्रासांगिक लगने लगती है । संदर्भित कविता के संदर्भ में भी यही हो रहा है । इस लिये पक्ष-विपक्ष के सभी तर्क अपने में पूर्ण न होते हुये भी तथ्यात्मक हैं और एक विद्वत चर्चा को जन्म देते हैं । यही इस की उपादेयता भी है…इति…2
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- · 3व
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- Sharad Pandeyएक बडी क्लास में बोर्ड पर 0 बनाया गया । पूरी क्लास ने उसे एक स्वर से जीरों बताया । एक छोटी क्लास में 0 बनाया गया । क्लास ने उसे रोटी, सूरज, चांद, गोला बता नहीं क्या-क्या बताया । ऐसा ही कुछ हम लोगों की फेसबुक क॔मेंट पर होता है । हम typed हो जाते है । हम वास्तविकता के हिसाब से नहीं अपनी छवि के हिसाब से मत अभिव्यक्त करते है । सतूत ऐसा कर हम अंतत संकुचित हो जाते है । जरूरत है । मन के खिड्रकी -दरवाजों को खोलने की । रचनात्मकता को स्वीकार करने की । साहित्यकार समाज का निर्देशन करता है ।3
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनुजी, बेशक!इस कविता को आयु 2,3,4,5 साल के बच्चों को अलग-अलग बार सुनाया।6,7 ही नहीं 12 से 16 साल तक के बच्चों के साथ सस्वर, आदर्श, मौन और समूह में वाचन करवाया। श्यामपट्ट पे भी लिखवाया। बात की। बच्चों ने कभी नहीं कहा कि इसमे आनन्द नहीं आया। इस पर विस्तार से फिर कभी कि बड़े बच्चों की कविता पर, लड़की पर क्या-क्या राय दीं। आप सभी का आभार।
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- · 3व
- Nafees Warsiमनोहर चमोली मनु जी, बच्चों को सही गलत का ज्ञान नहीं होता। उन्हें हम छोकरी टोकरी नौकरी डोगरी कह कर हल्ला मचवाते रहें वो मचाते रहें गे। कविता में न तो rhyme है नहीं rhythm , न ही कोई system . और न ही कोई moral1
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- · 3व
- Nafees Warsiमैंने शायद एक बार आपकी एक बाल कथा पढी थी कहीं। जिसमें एक बच्ची पिंजरे में बंद एक तोते को अपने मुँह का चुइंगम खिला देती है। कथानक इस प्रकार से प्रस्तुत किया गया था, कि मनोरंजन के साथ साथ एक अच्छी शिक्षा भी थी। संभवत कहानी आपकी ही थी।1
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनुजी, वो मेरी ही है।
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनुतो क्या उसमें नैतिकता ठूंसी है?
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- · 3व
- Nafees Warsiमनु जी, कम से कम बाल साहित्य में तो थोङी बहुत नैतिकता होनी ही चाहिए।1
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनुक्यों?
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- · 3व
- Nafees Warsiनैतिकता न हो, तो फिर क्या हो? फूहङता , अश्लीलता, बदतमीजी।
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनुजी नैतिकता के लिए घर है। धर्म ग्रन्थ हैं। स्कूल है। हम बड़े-बुजुर्ग हैं न। साहित्य का पहला मकसद तो आनंद है। रस को हासिल करना है। अपने अनुभवों को समृद्ध करना है। किताबों से यदि राष्ट्रनिर्माण ईमानदारी आ जाती तो सबसे पहले नेताओं को किताब………..1
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनुNafees Ansari ji जी, लेकिन मैं तो सोचता हूं कि सही गलत का ज्ञान तो आजीवन हम सीखते-समझते रहते हैं। सही गलत का ज्ञान कराने की जिम्मेदारी साहित्य की नहीं है। साहित्य के मक़सद को समझना होगा। पाठ्य पुस्तक में शामिल साहित्य के मक़सद को समझना होगा। मेरी दो पोस्ट ज़रूर पढ़िएगा। जो पाठ्यपुस्तकों में शामिल लाठी लेकर भालू आया वाली है और उठो लाल अब आंखें खोलो वाली दोनों पोस्ट में मेरे मत को जरूर पढ़िएगा। रही बात हो हल्ला मचाने की तो आजाद भारत के बाद के बाद से ही मचे हो-हल्ले का इतिहास क्या कहता है। सवाल चेतना का है। संवेदना का है। हां लय,ताल, छंद और गेयता पर बात हो सकती है। नैतिकता के पक्ष में स्वयं न बच्चे रहते हैं और न ही मनोविज्ञानी और न ही शिक्षाशास्त्री।1
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- · 3व
- Nafees Warsiबात यहां बाल साहित्य की हो रही है, प्रौढ साहित्य की नहीं।क्या कविता घर में नहीं पढी जानी चाहिए? वह भी बुलंद आवाज में।मुझे इससे कुछ नहीं लेना कि यह कविता किस महान कवि की है।इधर में कई लोगों को यह कविता सुना चुका हूँ। लोग तैयार नहीं हैं इसे बाल कविता मानने पे। जहां तक विधा की बात है तो इसमें न तो लय है, न छंद और न ही गेयता।1
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- · 3व
- Nafees Warsiहालांकि , मैंने रवि जी की पोस्ट देखी और सुनी है। परंतु उनसे पूछा जाए कि यदि उनकी भतीजी किसी की टोकरी से बिना पूछे आम उठाकर चूसने लगे, तो उन्हें कैसा लगेगा?1
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनुअंसारी जी,बाल साहित्य की नहीं स्कूली पाठ्य पुस्तकों में शामिल कविताओं पर बात हो रही है।1
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- · 3व
- Nafees Warsiबात वही है1
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनुआपने दमदार बात कही है।
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- · 3व
- Anupama Gupta Kesharwaniमैंने अपनी बेटी की पाठ्यपुस्तक में इस कविता को पहली बार पढ़ा।मुझे और बेटी,दोनों को ही आनन्दित किया इसने।कुछ तो है इस कविता में,जो बालमन को बेहद नज़दीक से छूता है।3
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनुजी, धन्यवाद।1
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- · 3व
- Anupama Gupta Kesharwaniछूने के बाद क्या प्रभाव डालता होगा,यह psychoanalysis का विषय है।1
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- · 3व
- Anupama Gupta Kesharwaniजैसे हम मिश्रित समाज में रहते हैं,वैसे ही बच्चों का exposure/परवरिश भी मिश्रित समाज में होती है/होनी चाहिए।न पूर्णतः आदर्श,न ही पूर्णतः उच्छृंखल!1
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- · 3व
- Anupama Gupta Kesharwaniकृपया सुधीजन मार्गदर्शन करें।सादर2
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनुआप अब दोबारा इसे विस्तार से पढ़ें।1
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- · 3व
- Anupama Gupta Kesharwaniअवश्य।1
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- · 3व
- Rajesh Utsahiताजुब्ब हुआ इस कविता पर लोगों की राय पढ़कर। इनमें से बहुत सारे शिक्षक भी हैं। और नवाचारी शिक्षक भी। आपने अब तक कवि का नाम नहीं बताया है। कवि का नाम मैं जानता हूँ। लेकिन आपने नहीं बताया तो मैं भी अभी नहीं बताऊँगा। पर यह तो बता ही सकता हॅूं। कि यह कविता तब लिखी गई थी, जब टिप्पणिकर्त्ताओं में से बहुत से पैदा भी नहीं हुए होंगे। मैं भी पैदा नहीं हुआ था। लगभग 1940 के आसपास। और यह कविता उस समय की मशहूर बाल पत्रिका ‘बालसखा’ में प्रकाशित हुई थी। 50 वर्षों से अधिक समय तक यह पत्रिका प्रकाशित होती रही। इस पत्रिका को रामनरेश त्रिपाठी,लल्लीप्रसाद पाण्डे और राष्ट्रकवि सोहन लाल द्विवेदी जैसे नामचीन साहित्यकारों ने संपादित किया। बालसाहित्य के पितामह कहे जाने वाले निरंकारदेव सेवक, के अलावा डॉ.श्रीप्रसाद और हरिकृष्ण देवसरे जैसे तमाम लेखकों की रचनाएँ इस पत्रिका में प्रकाशित हुईं। तो कविता में ऐसा कुछ तो जरूर ही रहा होगा कि वह बालसखा में जगह पा गई।3
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- · 3व
- · संपादित
- मनोहर चमोली मनुये सब मैं सोच-समझकर कर रहा हूँ। कोशिश रहेगी कि एक-एक कविता पर बाद में विस्तार से बात करूंगा। बात करनी तो है। दोस्तों की टिप्पणी आने देते हैं, अभी!
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- · 3व
- Rajesh Utsahiमनोहर चमोली मनु हो सकता है, आप मुझसे सहमत न हों। पर ऐसी पॉंच-दस कविताओं पर बात करने से भी उद्देश्य पूरा हो सकता है। आपने इसे बहुत लंबा खींच दिया है। अब विराम दें और विमर्श करना आरम्भ करें।
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- · 3व
- Nafees Warsiकहीं कोई रचना जगह पा जाए, तो इसका मतलब यह नहीं कि वो स्तरीय ही है। अमिताभ बच्चन की सभी फिल्में हिट नहीं रही हैं। मीर ओ गालिब के कलाम में भी गलतियां मिली हैं ।
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- · 3व
- Rajesh UtsahiNafees Ansari लेकिन काेई रचना अगर पचास साल बाद भी लोगों का ध्यान अपनी ओर खीचें और इतना खीचें कि उसे पाठ्यपुस्तक में रखा जाए, तो कुछ तो बात होगी ही न।1
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- · 3व
- Nafees Warsiप्रेम चंद की ईदगाह भी बाल कथा की श्रेणी में नहीं आती।
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- · 3व
- Nafees Warsiपाठ्यपुस्तक में रचनाएं लगवाई भी जाती हैं। और राजनीतिक उद्देश्य से हटाई भी जाती हैं। आप ही बताइए इस कविता में क्या बात है।
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- · 3व
- Rajesh UtsahiNafees Ansari वह तो आपको मनोहर जी बताएंगे ही। इंतजार करें।
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनुनहीं, अभी बहुत सी कविताएं और देना चाहूंगा। दोस्त भी तो राय दें। कवि, सन्दर्भ तलाशें।
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- · 3व
- Bandhu Kushawartiराजेशजी,आपके लिये एक ज़रूरी संशोधन।#ध्यान दें आप भी तथा और लोग भी— *पं.रामनरेश त्रिपाठी ने ‘बालसखा’ पत्रिका का सम्पादन कभी नहीं किया।*रामनरेश त्रिपाठीजी ने सन्१९३२ से ‘बानर’ नाम से बच्चों के लिये पत्रिका निकाली थी।यह अपने समय में श्रेष्ठ बालपत्रिका थी,जिसे कुछ वर्ष प्रकाशित करने के बाद त्रिपाठीजी को बन्द करनी पडी़ थी।*कुछ वर्ष बाद पुनः त्रिपाठीजी ने ‘बानर’ को प्रकाशित किया था।परन्तु स्वास्थ्यगत कारणों से उनका लेखन तथा अपनी सक्रियणयताएँ प्रभावित हुईं तो ‘बानर’ को भी अन्ततः उन्हें बन्द कर देना पडा़।1
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- · 3व
- · संपादित
- Anupama Tiwari
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनुयही तो बात है। कहते हैं कि अस्सी फीसद शिक्षक आधुनिक कविताओं को समझते नहीं, समझाने लगते हैं। ऐसा ही इन कविताओं के साथ है। समझना हम चाहते नहीं और समझाने लगते हैं।
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- · 3व
- नवीन डिमरी ‘बादल’कुल मिलाकर मैं इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि हर कोई अपने को अच्छी लगने वाली या अपनी लिखी रचना को ही सर्वश्रेष्ठ मानता है। जो मानक मैंने तय किये वे सही बाकी सब बेकार। यही चल रहा और चलाया जा रहा है चाहे बच्चों को रचना अच्छी लगे या न लगे!1
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनुनतीजे में पहुंचने का आपको अधिकार है। मुझे इसकी जल्दी नहीं रहती। मुझे तो लगता है कि कोई भी रचनाकार अंत समय तक भी श्रेष्ठ लेखन की खोज में लगा रहता है। मैं का शिकार यदि तार्किक बात नहीं करता और उसकी बात में वास्तविक ऊँचाई नहीं होती है, तो कोई भी उसकी बात का समर्थन नहीं करेगा।1
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनुअब आप क्या कहेंगे?1
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- · 3व
- नवीन डिमरी ‘बादल’वैसे यह कविता ‘आ’ व ‘क’ वर्ण के साथ-साथ ‘ई’ की मात्रा समझाने के मनोविज्ञान पर केन्द्रित लगती है।
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- · 3व
- Pushplata Mamgain Pantमाना कि ई पर इंगित है । पर बहुत अच्छी नहीं ।कोई भी बात कवि की पूरी नही हो पा रही है ।फिर एक बार पहले भी छोकरी पर चर्चा हुई थी ।यह भी जरूरी नहीं कि ,बहुत पुरानी है ।सबको पसन्द आ जाये ।आप बुरा न माने कभी कभी ,मुझे राष्ट्रपति पुरस्कार विजेता की भी कविता पसन्द नही आती ।शायद मेरी समझ कुछ कम हो या मेरा साहित्य का ज्ञान कम हो ।कुछ नही कह सकते ।1
- हा हा
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनुPushplata Mamgain Pant जी
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- · 42 सप्ताह
- Pushplata Mamgain Pantमनोहर चमोली मनु आज एक वर्ष बाद कैसे जबाब दे दिया मित्रबर ।इससे अच्छा तो पहले था जब मैं पत्रिका में आपकी कहानी पढ़ती थीआज भी याद है अगर वे स्कूल आ जाते या नहीं आते । हल्की याद है कहानीआशा है आप परिवार सहित कुशल होंगे1
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- · 42 सप्ताह
- मनोहर चमोली मनुPushplata Mamgain Pant जी,
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- · 42 सप्ताह
- मनोहर चमोली मनुPushplata Mamgain Pant जी नमस्ते । मैं ठीक हूं। आपकी कुशलता चाहता हूं।
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- · 42 सप्ताह
- रावेंद्रकुमार रविअगर इस कविता को सुनना है, तो इस कड़ी का अनुसरण कर सकते हैं – https://www.facebook.com/raavendra.ravi/posts/102093785434950112
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनुअभी भी एक बड़ा और खास सन्दर्भ पकड़ से बाहर है।
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- · 3व
- Faheem Ahmadयह कविता छोटे बच्चों (4 से8)आयु वर्ग के लिए बिल्कुल उपयुक्त है।छोकरी शब्द लड़की का पर्यायवाची है।इस शब्द में कोई ख़ामी नही है,हाँ मानसिकता में ख़ामी ज़रूर हो सकती है। बच्चे आपस में खेलते हुए आनन्द पूर्वक गा रहे हैं।हमारी या आपकी कोई बेटी और अन्य बच्चे इस तरह आम की टोकरी लेकर खेलते हुए गाएँ और आनन्दित हों तो क्या बुराई है।साहित्य का प्रथम उद्देश्य मन की खुशी है जो इस कविता में भरपूर है।जो लोग इसमें नैतिकता,उपदेश, शिक्षा आदि ढूंढ रहे हैं वे पुनर्विचार कर सकते हैं।5
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनुआपकी टिप्पणी पढ़ी। इस नज़रिए को सलाम।काश! हम आपकी बात की तह में जा पाते!1
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनुमैंने समग्रता में आज अपनी बात कह दी है। आभार आपका।1
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनुकवि ने भी सोचा न होगा कि सुदूर उत्तराखण्ड के पौड़ी जनपद के ग्रामीण विद्यालय के बच्चे उनकी कविता पर इतने बेहतरीन सवाल उठा रहे होंगे। अब सोच रहा हूँ कि इस कविता पर छह-सात साल के बच्चे तो मौखिक सवालों की बारिश करेंगे।1
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- · 3व
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- नवीन डिमरी ‘बादल’वैसे यह कविता ‘आ’ व ‘क’ वर्ण के साथ-साथ ‘ई’ की मात्रा समझाने के मनोविज्ञान पर केन्द्रित लगती है।1
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनुNavin Dimri Badal रिमझिम देखें।1
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनुपूरी पोस्ट पढ़ें, आपकी आभा भी उसमें (पोस्ट ) में शामिल है।2
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनुदोस्तों अब आप इस कविता के कवि, सन्दर्भ और मेरी टिप्पणी पढ़ सकते हैं।1
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- · 3व
- Rajesh Utsahiमनोहर चमोली मनु जी यह कविता देबाशीष देव जी की नहीं है। इनका तो नाम भी मैं पहली बार सुन रहा हूँ। यह कविता रामकृष्ण खद्दर जी की है। मैंने इनबॉक्स में भी आपको बताया था।2
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनुओह हाँ, अभी संपादित करते हैं।1
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- · 3व
- Bandhu Kushawartiराजेशजी,मैं आपके संशोधन कि चर्चा का विषय बनी हुई यह कविता ‘खद्दरजी’ की है,विषयान्तर कर रहा हूँ–अब इसका क्या करें कि सरकारों द्वारा तैयार करायी गयी स्कूली पाठ्यक्रमों की (इनसे बाहर की भी)कि़ताबों में कितनी ही कविताओं का कवि मूलतःतो अन्य कोई है,और नाम उस पर किसी और का ही चस्पाँ कर दिया गया है।अकेले ‘खद्दरजी’ ही ऐसी विडम्बनापूर्ण ग़लती के शिकार नहीं हुए हैं।सोहनलाल द्विवेदीजी की एक कविता कभी निरालाजी के नाम से तो कभी बच्चनजी के नाम से छपती रही है।सरकारों द्वारा तैय्यार करायी गयी पाठ्य- पुस्तकों में यह तमाशेबाजी सन्१९७७-‘७८ के बाद से जो नौकरियों में आकर इस(पाठ्य-पुस्तक तैयार करने के) दाय या जि़म्मेदारी में लगे हैं,उन्होंने बेहद गैरजि़म्मेदराना ढंग से उपर्युक्त कि़स्म की घपलेबाजियाँ की हैं।यह सब भी हमारी चिन्ता का विषय निश्चित रूप से होना चाहिये!1
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- · 3व
- Bandhu Kushawartiमनोहरजी!आप यहाँ सम्पादित करके नाम दुरुस्त कर लेंगे,पर बाकी़ की प्रतियों में?वहाँ तो ग़लत नाम ही सन्नाम चलेगा!1
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- · 3व
- · संपादित
- Rajesh UtsahiBandhu Kushawarti जहाँ तक मेरी जानकारी है, किताब में नाम सही है। यहॉं मनोहर जी से भूलवश ऐसा हो गया है।1
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनुरामकृष्ण शर्मा जी की ही है बंधु जी, गलत नाम नहीं छपा है। आम की टोकरी पाठ के लेखक का पाठ इस कविता से पहले है। किताब में नाम अंत में दिए हैं। एक क्रम मुझसे बिगड़ गया।
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- · 3व
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- Bandhu KushawartiBandhu Kushawarti राजेशजी,फिर तो भूल-सुधार हो ही।
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनुमनोहर चमोली मनु जी मुझसे हुआ है। माफी चाहता हूँ।
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- · 3व
- Rajesh Utsahiमनोहर चमोली मनु मतलब यह कि रिमझिम में जो पाठ है, उसका नाम ‘आम की टोकरी’ है। और यह कविता उस पाठ का एक हिस्सा है। कविता रामकृष्ण खद्दर जी की है। पर एक और बात….मेरा अब भी मानना है कि शायद यह पूरी कविता रामकृष्ण जी की शायद नहीं है। इसमें बाद में कुछ जोड़ा-घटाई हुई है। दरअसल यह शोध का विषय है।
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनुRajesh Utsahi1
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनुनहीं, इस पाठ से पहले आम की कहानी पाठ चित्र कथा है। जिसके रचनाकार देबाशीष देव हैं।1
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- · 3व
- Archana Tiwariमैंने इसपर तमाम टिप्पणियां पढ़ीं। मनु जी की पोस्ट पर उनकी टिप्पणी के साथ बच्चों के कई प्रश्न देखे जो वाक़ई अद्भुत हैं! मुझे तो बहुत सारे ख्याल आने लगे हैं कि कल विद्यालय में क्या क्या करना है।इन प्रश्नों को देखकर एक बात जो समझ में आ रही है वह यह कि शिक्षक द्वारा कुछ बताने के बजाय बच्चों को ही बताने का अवसर दिया जाना चाहिए। मुझे लगता है कि इससे शिक्षक को भी बहुत कुछ सीखने को मिलेगा जो उसने अभी तक नहीं सीखा।5
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- · 3व
- · संपादित
- Bandhu Kushawartiअध्यापन में बच्चों से सीखने-जानने और समझने का भी भरपूर अवसर रहता है,बशर्ते बच्चों तक से सीखने-जानने की ललक और सदिच्छा हो!अर्चनाजी,जो ख़यालों में आ रहा है,उसको व्यावहारिकता की पटरी पर आप उतार कर ला सकती हैं!ख़याली-पुलाव ही नहीं रह गया,यह तो आप ही बतायेंगी।3
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- · 3व
- · संपादित
- Archana TiwariBandhu Kushawarti जी बिलकुल। कल हमारी कक्षा में कविता के साथ बच्चों द्वारा प्रश्न बनाने की गतिविधि की जाएगी।1
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- · 3व
- Bandhu Kushawartiअर्चना तिवारीजी,शुभस्तु।निरीक्षण अप्रत्याशित!1
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- · 3व
- · संपादित
- Archana Tiwariइस पोस्ट को दोबारा साझा कर दीजिए। जैसे मेमोरी वाली पोस्ट दोबारा साझा करते हैं। बार बार खो जा रही है। इतनी देर से ढूंढ रही थी।1
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- · 3व
- · संपादित
- मनोहर चमोली मनुजी।
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनुदोबारा पोस्ट कर दी है।1
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनुदोस्तों, इस पोस्ट को चित्र के साथ और सभी की टिप्पणियों के साथ दोबारा पढ़िएगा तो शायद कुछ बातें और निकलेंगी। सभी का आभार।1
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- · 3व
- Archana Tiwariइसको ऊपर भी डाल दीजिये।1
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- · 3व
- डॉ. प्रणय● कायाकल्प से गुजरना है मनु जी !
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनुजी, समझा नहीं मैं !
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- · 3व
- Bhaskar Choudhuryमुझे बिल्कुल भी याद नहीं था कि यह कविता कब लिखी गई और किसने लिखी पर मैं इसे कई बार पढ़ गया और मुझे यह बहुत बहुत अच्छी लगी.. मुझे लगता है कि यह कविता बच्चों को भी बहुत पसंद आई है और इसका प्रमाण उनके सवाल हैं. इन सवालों में नैतिकता भी है जिसे किसी ने घोल कर नहीं पिलाया है और मेरी समझ में नैतिकता रटने रटाने की चीज है भी नहीं..इस शानदार पोस्ट के लिए मनोहर जी को हार्दिक बधाई1
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनुshukriya !1
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- · 50 सप्ताह
- Deepak DeopaBahut sundar kavita hai ye meri bitiya ne ise purna rup se enjoy kiya tha1
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- · 3व
- Vinod Miyanअति सुन्दर1
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- Ashwini PatilBahut umda kavita hai yah1
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- · 3व
- जीत यायावरसवाल शानदार है। यह ठीक बात है कि ‘सोचने’ वाले सवाल हमें सीमाओं से आगे ले जाते हैं।2
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनु
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- · 42 सप्ताह
- मनोहर चमोली मनुजीत यायावर जी समाचार में छोरा – छोरी आया है।1
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- · 42 सप्ताह
- मनोहर चमोली मनुदिनेश कर्नाटक जी, Mahesh Bawari Ji, Mahesh Punetha ji
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनु3
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनु3
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनु3
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- · 3व
- मनोहर चमोली मनुछात्रों ने छोकरी की कल्पना कुछ इस तरह अभिव्यक्त की।1
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- · 3व
- Ritika Sriमनोहर चमोली मनु bahut badiya. Iss kavita ke upar aise bachchoin ko likhne k liye aur sochne k liye bola ja sakta hai , Maine to socha bhi nahi theBachchoin ne bahut achche se bataya hai ‘6 saal ki chokri’ ke bare mein !1
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- · 50 सप्ताह
- · संपादित
- मनोहर चमोली मनु,,
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- · 3व
- Ritika SriYe kavita Muskan ki Balwadi mein bhi hoti hai 1
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- · 50 सप्ताह
- Jagmohan ChoptaWah saandaar1
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- · 50 सप्ताह
- Dinesh Patelलेकिन ये कविता तो एकलव्य प्रकाशन ने अपने एक कविता संग्रह में किसी और नाम से प्रकाशित की है?1
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- · 50 सप्ताह
- Deepak Gaurमेरे ख्याल से काटकर1
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- · 50 सप्ताह
- Rajesh Khatriबहुत सुन्दर सरप्रश्न बहुत बढिया है भाषायी विकास के लियेऔर जिज्ञासा जागृत करने के लिये।1
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- · 50 सप्ताह
- Kamla JoshiGIF रोकेंTenor1
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- · 50 सप्ताह
- Santosh NegiYe shabd nhi apshabd hai1
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- · 50 सप्ताह
- मनोहर चमोली मनुSantosh Negi जी, अगर यहाँ आई टिप्पणियाँ भी पढ़ी जाएँ तो शायद बात को विस्तार मिलेगा।
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- · 50 सप्ताह
- Goodwin Masihchamoli ji aap bhi achchi bahas chidva dete hain1
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- · 49 सप्ताह
- Jitendra Sngh NegiNice and cool1
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- · 42 सप्ताह
- मनोहर चमोली मनुJitendra Sngh Negi
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- · 42 सप्ताह
- Jitendra Sngh Negi1
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- · 42 सप्ताह
- Sandhyamit Bahuguna1
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- · 42 सप्ताह
- Jitendra Sngh Negi1
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- · 42 सप्ताह
- मनोहर चमोली मनुji
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- · 7 सप्ताह
- Deepak Gaurवास्तव में शानदार1
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- · 7 सप्ताह
- Aap KA Saklaniआम को चूस कर ही खाना होता है ये इस कविता से भी साबित होता है तो फिर अक्षय कुमार साहेब को क्यों पूछ रहा था कि आम चूस कर खाते हो या काट कर…..1
- हा हा
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- · 7 सप्ताह
- Pooja SinghVery nice1
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- · 7 सप्ताह
- Prabodh Uniyalसुंदर1
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- · 7 सप्ताह
- मनोहर चमोली मनुGIF प्ले करेंGIPHY
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- · 7 सप्ताह
- Kavita Tiwariवाह! बहुत ख़ूब।1
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- · 7 सप्ताह
- मनोहर चमोली मनुKavita Tiwari ji shukriya
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- · 7 सप्ताह
- मनोहर चमोली मनुGIF प्ले करेंGIPHY
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- · 7 सप्ताह
- मनोहर चमोली मनुji
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