भाषाओं की पाठ्य पुस्तक में शामिल साहित्य बच्चों को आनंदित करे। इस बात का ख्याल रखा ही जाना चाहिए। पहली कक्षा में शामिल साहित्य को दूसरी, तीसरी….ही नहीं बारहवीं कक्षा तक की किताबों के साथ सह-सम्बन्ध के तौर पर भी जोड़ा जाता है। यह ईरान-तूरान जैसा मसअला नहीं होता। यह भी कि पाठ्य पुस्तकों में साहित्य शिक्षण के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर भी शामिल किया जाता है। किसी भी कक्षा के किसी भी एक पाठ से आप बहुत सारी समप्राप्ति नहीं चाह सकते। पहले पाठ का दूसरे पाठ से भी रिश्ता होता है। यह रिश्ता आगे के पाठों के साथ बढ़ते-बढ़ते गूढ़ होता चला जाता है। यह रिश्ता इतना प्रगाढ़ होता है कि अगली कक्षा में जाने के बाद भी पिछली कक्षा के साथ का सम्बन्ध भी रह-रहकर याद आता है। विधावार भी और भाषाई कौशलों के विकास के बरक्स सरलता और रोचकता के साथ कठिन और गूढ़ता की यात्रा कराना भी पाठ्य पुस्तक का मक़सद होता है। गद्य हो या पद्य पाठ। पाठ्य पुस्तक का बुनियादी और पहला पाठक कक्षा का विद्यार्थी होता है। आप और हम नहीं। आप और हम यदि किसी कक्षा के पाठ को पढ़ते हैं तो पढ़ें। कौन रोकेगा? अलबत्ता अपने आग्रह, दुराग्रह, सोच,नैतिकता और शुचिता को एक ओर रखकर पढ़ना चाहिए। यदि हम पाठक पाठ्य पुस्तकों के पाठों को उस कक्षा के वयवर्ग को ध्यान में रखकर पढ़ते हैं तो उम्मीद, आशा और सकारात्मकता नज़र आती है। एक बात और, प्रत्येक पाठ को पढ़ने के बाद विद्यार्थियों से कुछ नया जान लेने की उम्मीद भी रखी जाती है। हम बड़े ही किसी पाठ का कुपाठ कर सकते हैं। वह इसलिए भी कि वय वर्ग के हिसाब से हमारे अनुभव में वह सब शामिल हो जाता है जो संभवतः बच्चों के अनुभवों में शामिल होना शेष रहता है। हम शिक्षक और विद्यार्थियों पर भरोसा कब करेंगे? कविताओं के सन्दर्भ में मुझे लगता है कि ‘एक चित्र हज़ार बयान’ और विस्तार पाता है। किसी भी कविता को जितनी बार पढ़ते हैं लगता है पहली बार पढ़ रहे हैं। बशर्ते पाठक हर बार नई सोच,नई दृष्टि और अपने अनुभवों को समृद्ध करने की मंशा से रचना का आस्वाद लेना चाहे। यह बात बाल पाठकों पर भी लागू होती है। बाल पाठकों को यदि स्वतंत्र ढंग से पढ़ने का माहौल दिया जाए तो उनका मन किसी रचना को बार-बार पढ़ने के बाद भी नहीं भरता। यदि उन्हें पढ़ने के लिए और पूछने के लिए या परीक्षा की तैयारी के लिए पढ़ने को न कहा जाए। आम की टोकरी पर आइए कुछ बात करते हैं-

1.बच्चों के स्कूली जीवन को बाहर के जीवन से जोड़ने वाली कविता-**************************************************कविता ‘आम की टोकरी’ पहली कक्षा का तीसरा पाठ है। यहाँ यह दस पँक्तियों में है। बच्चों से बातचीत के लिए संकेत साफ हैं-बच्चों से बात करें कि क्या तुम किसी ऐसे बच्चे को जानते हो जो बाज़ार में कोई सामान बेचता है। पता लगाओ कि वह स्कूल जाता है या नहीं। (पहली कक्षा में आए अभी-अभी स्कूल शुरू करने वाले बच्चों को आरंभिक पाठ इसलिए भी ऐसे होने चाहिए जो उन्हें उनके आस-पास के जीवन से जोड़कर रखें। वे बातचीत में शामिल हो सकें।) कौन नहीं जानता कि पूरे पाँच साल की आयु के बाद यानि छठे साल के बच्चे पहली में आते हैं। पहली ही पँक्ति से बच्चे खुद को जोड़ पाते हैं। पहली ही पँक्ति के पहले दो शब्द हैं-‘छह साल…’ इस कविता को खेल गीत के तौर पर देखा जाता है। बच्चों को फलों को खाने के साथ दवा की गोली खाने के अभिनय की बात संकेत में कही गई है। यह सब भी बच्चों को उसके अपने घर,गाँव,देहात और शहर के जीवन और बाज़ार से जोड़ता है। दवा खाने का अभिनय करने की बात जोड़ दें तो बच्चे बीमारी, साफ-सफाई, डाॅक्टर-अस्पताल आदि से जुड़ाव महसूस करते हैं। हम सब जानते हैं कि बच्चों का शुरुआती जीवन छोटे-छोटे संक्रमण होने पर दवा,टीकारण,सूई,अस्पताल,थर्मामीटर आदि से अच्छे से परिचित होता है। हम सब परिचित हैं कि तीसरा पाठ मात्र दो पेज का है। पहले पेज पर मात्र कविता है और दूसरे पेज पर एक लड़की का चित्र है जो खाली हाथ उठाए हुए है। पूरे पेज पर एक वाक्य लिखा है-‘यह लड़की सिर पर क्या लेकर जा रही होगी? चित्र बनाओ-हम जानते हैं कि इस लड़की को कोई एक नाम क्यों नहीं दिया गया होगा? आप एक बार फिर से विचार करें। ऐसा क्यों?बहरहाल अनुमान और कल्पना के साथ-साथ बच्चे अपने जीवन से जुड़ी चीज़ेंह ी तो उसके हाथ में बना सकेंगे। जैसे-कोई बच्चा उसके हाथों में खाली टब रख देगा। परात या खाली टोकरी भी बना सकता है। टोकरी पर खिलौने रख सकता है। कोई सिर्फ एक डण्डा बना सकता है। घास का गटठ्र भी बना सकता है। रस्सीकूद वाली रस्सी भी बना सकता है। पतंग और मांझा,झुनझुना, दो गुड़िया, तरकारी या एक हाथ में मोबाइल और दूसरे हाथ में कोई गैजेट। यह सब बच्चे अपने आस-पास के बाहरी जीवन के आधार पर कल्पना करते हुए एक मात्र गतिविधि या पाठ का एक मात्र प्रश्न-अभ्यास पूर्ण कर अगले पाठ की ओर बढ़ सकते हैं।

2.सोच-विचार, विस्मय, समूह में बातचीत, बहस और हाथाधारित गतिविधियां कराने वाली कविता-

************************************************कविता की पात्र और पहली कक्षा के बच्चों की उम्र कमोबेश एक है। कविता बच्चों की दुनिया से सीधा सम्बन्ध रखती है। यह पहली कक्षा के बच्चों की भाषा की किताब का पाठ है। नैतिक शिक्षा का पाठ नहीं है। विज्ञान और गणित का भी नहीं है। भाषाई कौशलों के विकास के लिए तथ्यात्मक और एक उत्तर प्रायः अच्छे नहीं माने जाते। यह कोई विज्ञान का प्रकरण नहीं है जो रसायनों की तरह स्थाई हो। रूप, गुण, मात्रा, भार जिसमें तय हों। आम की टोकरी में सहपाठी टोकरी भी बदल सकते हैं और फल भी। वस्तु,सामग्री, सामान,औज़ार आदि भी रखे जा सकते हैं। कोई बच्चा खाली टोकरी भी रख सकता है। पूछने पर कह सकता है-खाली टोकरी कहाँ है? उसमें हवा है। यह सोच-विचार की संभावनाओं से लबरेज कविता है। आप भी सोचिएगा-लड़की टोकरी भरकर क्यों लाई? एक टोकरी में कितने आम थे? चित्र की टोकरी में कितने आम आ सकते हैं? आम से भरी टोकरी का वजन कितना होगा? किलो में नहीं आकार,वस्तु,सामग्रियों से तुलना करवाई जा सकती है-एक बाल्टी पानी के बराबर? एक बिल्ली के बराबर या एक कुत्ते के बराबर या एक गाय के बराबर? आम किस मौसम में आते हैं? कच्चे आम और पके हुए आम में क्या अंतर है? आम कहाँ से आते हैं? छोकरी का नाम क्या हो सकता है? तुम क्या नाम रखना चाहोगे? कई तरह के आम होते हैं। उनके नाम बताओ। आम की चटनी, पापड़, अचार, सब्जी,टाॅफी,जूस पर बात हो सकती है। कुछ बच्चे पढ़ नहीं पाते। स्कूल नहीं आ पाते। क्यों? ऐसे कौन से फल हैं, जो तुम्हें पसंद हैं और क्यों? क्या ऐसे फलों के नाम जानते हो जिन्हें अभी तक नहीं चखा है! मेरा बचपन 2120 मीटर की ऊँचाई वाले कस्बे में बीता। वहाँ आम नहीं होते। मैंने पहली बार आम का पेड़ और गिलहरी तब देखी जब मैं कक्षा 9 का छात्र था। कहने का अर्थ यह है कि हमारे घर में या बाजार में बहुत सी चीजें,सामग्री और सेवाएँ उपयोग में ली जाती हैं जिनका मूल स्रोत हमें पता नहीं होता। गन्ना खाया है लेकिन गन्ने की खड़ी फसल नहीं देखी है। सेब और अखरोट खाए हैं लेकिन इनके पेड़ या इन्हें पेड़ पर लगा हुआ नहीं देखा। उत्तराखण्ड की ही बात करें तो राज्य में इतनी विविधता है कि बुराँश, ब्रह्म कमल, काफल, हिसर, बेडू, भाँग का बीज, जख्या, कोदा, गहथ, तोर, भुट्टा आदि राज्य के दूसरे भूभाग के निवासियों के लिए बिल्कुल नई हो। इन सब बातों का उल्लेख इसलिए भी किया जा रहा है कि बच्चों को तर्क करने, विश्लेषण करने, अनुमान लगाने और अपने अनुभवों को मौखिक तौर पर अभिव्यक्त करने के लिए बातचीत से भरी ऐसी रचना प्रायः कम ही मिलती हैं।

3.भाषा के रोचक खेल कराने वाली कविता-

************************************* पहली कक्षा के बच्चों के लिए अप्रैल-मई के महीने में इस पाठ पर आने का औचित्य तार्किक भी है और सूझ-बूझ से भरा भी है। अभी बच्चे पूरा साल पहली क्लास में रहने वाले हैं। इसलिए इसे खेल के तौर पर भी लिया जाना उपयोगी है। इसका उल्लेख कविता के नीचे किया भी गया है। आज भी बच्चे गोल घेरे में बैठकर घेरे के भीतर की मुंह करते हुए आंख बंद करते हैं। एक खिलाड़ी गोल चक्कर लगाता है और हाथ में रूमाल या कपड़ा या मुड़ा-तुड़ा काग़ज रखता है और किसी बच्चे के पीठ के पीछे छोड़ देता है। यदि बच्चा उठकर खिलाड़ी को छू नहीं पाता और खिलाड़ी उसकी जगह पर एक चक्कर लगाते हुए बैठ जाता है तो उठकर जाने वाला अब ऐसा उपक्रम करेगा। कोकलाती पाती जुमेरात आई रे, जिसने पीछे मुड़कर देखा उसकी शामत आई रे। ऐसे तमाम खेल हैं जो हम इस कविता के बहाने ही सही, कक्षा कक्ष में या बाहर मैदान में खेल सकते हैं। एक खेल और याद आ रहा है-टोकरी वाला या कुछ भी कह दें। बच्चे घूमते रहेंगे। खेल खिलाने वाला खिलाड़ी कहेगा तीन टोकरी। बच्चे झट से तीन तीन का समूह हाथ पकड़ कर बनाएंगे। जो तीन-तीन के समूह से अलग हो जाएगा अ बवह खिलाड़ी बना जाएगा। आनन्द और खुलेपन के लिए। इसी तरह पिट्ठूग्राम वाला खेल याद आता है। एक सहेली धूप में बैठी रो रही थी भी। हरा समन्दर गोपी चन्दर भी। आप भी अपने बचपन के खेल याद कर सकते हैं। अपने आस-पास के बच्चों को कुछ समय देंगे तो मस्ती, उल्लास, हँसी ठिठोली के खेल मिलेंगे। आप भी मुस्कराएँगे। और हाँ उनका शैक्षणिक सन्दर्भ भी पाएँगे।

4.बारीकी से देखने और विस्तार से प्रतिक्रिया देने वाली कविता- **********************************************

रचना को पढ़ते समय और खा़सकर कक्षा में पढ़ाते समय किसी भी रचना का संदर्भ, देशकाल और परिस्थितियों को समझना अनिवार्य शर्त है। यदि ऐसा नहीं होता है तो विद्यार्थियों में शब्द-भंडार की वृद्धि धीमी हो जाएगी। अमूमन बड़ों में कई अध्यापक भी शामिल हैं जो नन्हे-मुन्ने बच्चों को दुनिया अपनी नज़र से दिखाना चाहते हैं। जबकि बच्चे अपनी ज़िंदगी अपने आप जीते हुए भाषा सीखते हुए आनंदित होते रहते हैं। यह कविता मात्र दस पँक्तियों की है। दो पेज हैं। अस्सी फीसदी भाग में चित्र समाहित है। क्यों? स्पष्ट है कि एक चित्र एक हज़ार शब्दों पर भारी पड़ता है। वह चित्र में शामिल चीज़ों को बारीकी से देखते हैं। सोचते हैं। कल्पना करते हैं। तर्क करते हैं। मौखिक ही सही अपनी प्रतिक्रिया देते हैं। चित्र देखना और चित्र बनाना क्यों? रचनात्मकता के लिए, संवेदनशीलता के लिए और सौन्दर्यबोध का विकास चित्र और चित्रों पर बातचीत से आसान हो जाता है। इस कविता को ही लें तो चित्र पर बातचीत करते समय या कविता को गाते-पढ़ाते समय भी बड़ों की मदद से और शिक्षकों की मदद से बच्चों की विविधिताओं (विशेष आवश्यकता वाले बच्चे, अपवंचित, गरीब, अनाथ) की क्षमताओं और दिक्कतों से बच्चों को अवगत कराया जा सकता है। विविध स्थतियों में जीवन यापन करने वाले बच्चों के प्रति सम्मान,समानता और स्नेह की भावना जगाने के लिए यह कारगर कविता है। आपको याद होगा विलियम सी डगलस कृत ‘ए गर्ल विद ए बाॅस्केट’ कहानी। भले ही पचास के दशक की कहानी हैं। विदेशी साहित्यकार की हिंदुस्तानी परिवेश में लिखी यह कहानी बालश्रम को प्रोत्साहित नहीं करती। उलट बालश्रम को अभिशप्त बच्चों के प्रति सहयोग और सराहना उभारती है। साल 2018 में कक्षा 6 से 10 के बच्चों की सामूहिक कक्षा में जब कविता पढ़कर और पढ़ाकर उनसे महज़ सवाल बनाने को कहा गया था तो बेशुमार सवाल सामने आए थे। कुछ सवाल यहां सन्दर्भ के लिए दिए जा रहे हैं। एक-लड़की का क्या नाम रहा होगा? दो-टोकरी में कितने आम रहे होंगे? तीन-वह बच्चों को नाम से क्यों नहीं बुला रही थी? चार-लड़की आम कहाँ से लाई होगी? पाँच-एक टोकरी में कितने आम आ सकते हैं? छःह-छह साल की लड़की कितना वजन उठा सकती है? सात-पेड़ एक साल छोड़कर आम क्यों देता है? आठ-लड़की आमों के दाम क्यों नहीं बताती? नौ-टोकरी के आम कितने रुपए में बिके होंगे? दस-ऐसी लड़कियाँ क्या-क्या काम कर सकती हैं? ग्यारह-इस कविता के और क्या-क्या शीर्षक हो सकते हैं? बारह-यदि आम चालीस रुपए किलों हैं तो लड़की के आम कितने के बिके होंगे? तेरह-टोकरियां किस-किस चीज की बनी होती हैं? चैदह-टोकरियों में क्या-क्या चीजें रखी जा सकती हैं? पन्द्रह-आम के सीजन के बाद लड़की टोकरी का क्या करती होगी? सोलह-लड़की आम के मौसम को छोड़कर क्या बेचती होगी?

5.पुस्तक में क्या-क्या है ‘आम की टोकरी’ से पहले- ************************************पहली कक्षा के शुरुआती पाठों में लिखाने की जल्दीबाज़ी नीरस और ऊब ही पैदा करती है। यही कारण है कि पुस्तक को आकर्षक बनाया गया है। 124 पृष्ठों की पुस्तक में देखा जाए तो कुल जमा अक्षरों की खुशबूएँ मात्र बीस फीसदी हैं। हाँ ये ओर बात है कि अस्सी फीसदी रंग-बिरंगी खुशबूएँ चित्रों की हैं। बाहरी आवरण ही आकर्षक है। यह चित्र ही अपने आप में भरपूर बातचीत के दरवाज़े खोलता है। मजेदार बात यह है कि किताब को उलट कर पूरा खोल दिया जाए तो यह चित्र पूरा खुलता है। यानि पुस्तक का पहला और बाहरी अन्तिम आवरण किसी चादर की मानिंद खोलना होगा। थोड़ी देर ठहरकर जब हम चित्र को देखते हैं (बच्चों की नज़र से) तो देखते ही रह जाते हैं। बारिश, काले बादल, बूँदें, भालू, एक बुजुर्ग महिला, हाथी, बंदर, चूज़े, बत्तख चूहे, गिलहरी और पेड़ तो प्रथम दृष्टया दिखाई ही देते हैं। यदि और गौर करते हैं तो पूरा दिन भी बातचीत के लिए कम पड़ जाए। बहरहाल हम कविता पर आते हैं। चूँकि पहली कक्षा के बच्चे के पास भाषा की एक अदद किताब साल भर रहने वाली है तो इसका एक-एक पेज बड़ी मेहनत से और सूझ-बूझ से बनाया गया है। भीतरी आवरण में हरा समंदर गोपी चंदर, बोल मेरी मछली कितना पानी कविता के यह नौ शब्द बड़े आकार में दिए गए हैं। यह आवरण अस्सी फीसदी चित्रात्मक है। वैसे पूरी कविता चंद्रदत्त इंदु जी की है। कविता यह है- हरा समंदर गोपी चंदर, बोल मेरी मछली कितना पानी? ठहर-ठहर तू चड्ढी लेता, ऊपर से करता शैतानी! न्ीचे उतर अभी बतलाऊँ, कैसी मछली, कितना पानी? मैं ना उतरूँ,चड्ढी लूँगा,ना दोगी कुट्टी कर दूँगा! या मुझको तुम लाकर दे दो, चना कुरकुरा या गुड़धानी! दद्दा लाए गोरी गैया, खूब मिलेगी दूध-मलैया! आओ भैया नीचे आओ,तुम्हें सुनाऊँ एक कहानी! मुझे न दादी यूँ बहकाओ, पहले दूध-मलाई लाओ! अम्माँ सच कहती दीदी को, बातें आतीं बहुत बनानी! गुड़धानी बंदर ने खाई, बिल्ली खा गई दूध-मलाई! अब चल तू भी चड्ढी खा ले, मेरा भैया है सैलानी! पहला पेज किताब का नाम बताता है और एक पँक्ति लिखी है-यह किताब …………….की है। बच्चा इसमें अपना नाम लिख सकता है या लिखवा सकता है। किसे याद नहीं है कि हम वर्ण बनाना नहीं भी जानते तब भी अपना नाम स्कूल आने से पहले लिखना चाहते हैं। अब तो गूगल ट्रांसलेशन है। हम तो अपने सहपाठियों में जिनमें गुरुमुखी, उर्दू जानने वाले बच्चे थे तो उनसे भी अपना नाम उन भाषाओं में लिखवाते थे। याद आया? आम की टोकरी से पूर्व दो पेज चित्रात्मक तौर पर रखे गए हैं-‘स्कूल का पहना दिन।’ सिर्फ और सिर्फ बातचीत करने के लिए। बातचीत कराने के लिए। यह एक शानदार अनौपचारिक पाठ माना जाना चाहिए। इसके बाद चार पेज चित्राधारित और मनोरंजक गतिविधियों से लबरेज है। ये ऐसी गतिविधियाँ हैं जिनमें बार-बार पढ़ते-देखते-लिखते समय ‘न’,‘म’,‘अ’,‘ठ’ और ‘ए’ वर्ण से बच्चे परिचित होते रहेंगे। इसके बाद दो पेज का एक और चित्रात्मक अनौपचारिक पाठ है। यह चित्र स्कूल के मैदान का है। यह दोपहर यानि मध्यांतर के समय का शानदार चित्र है। इस पर भी भरपूर और कहूँ तो इसके बाद रामसिंहासन सहाय मधुर कृत कविता झूला पाठ एक के तौर पर आता है। यह पाठ ‘झ’, ‘ल’ और ‘ड’ की बारम्बार पुनरावृत्ति के लिए है। अभ्यास भी इसी तरह बनाए गए हैं। अब पाठ तीन आम की टोकरी पर आते हैं। इस कविता की खास बात यह है कि इसकी पँक्तियों से ‘आ’ और ‘क’ को परिचित कराने के लिए इसे यहाँ विशेष तौर पर रखा गया है। इससे पहले आए दो पाठों से बच्चे ‘न‘,‘म’,‘अ‘,‘ठ‘,‘ए‘,‘झ‘,‘ल‘,‘ड‘,‘छ‘,‘ई‘ से परिचित हो रहे हैं।

6.क्या-क्या है आम की टोकरी में-अभी-

*****************************अभी स्कूल आना शुरू करने वाले पहली कक्षा के बच्चे अब आम की टोकरी पाठ पर आ गए हैं। मजेदार बात यह है कि यह दो पेज का पाठ है। एक पेज में कविता है और दूसरे पेज में मात्र एक चित्र बनाने की गतिविधि। पहली कक्षा के बच्चों को बस लड़की के हाथों में कुछ बनाना है जिससे यह लगे कि वह दोनों हाथों में कुछ ले जा रही है। बस! इतना सा है ये पाठ? जी नहीं। खेल खिलाने और भरपूर बातचीत के मौके देने वाली ये कविता है। किताब या परिषद ने यह नहीं कहा कि छोकरी पर बात न करें। बाल श्रम पर बात न करें। ऐसे बच्चों पर बात न करें जो स्कूल नहीं जा पाते। यह तो शिक्षक पर निर्भर है कि इस कविता में अंतहीन बातचीत को कैसी दशा दे। शब्दकोश में कोई शब्द अवांछित या वर्जित नहीं होता। क्यों? शब्दकोश सीखने-समझने-जानने की एक खिड़की जो है। फिर कक्षा? कक्षा को हम सीखने-समझने और जानने का द्वार कह सकते हैं। और शिक्षक? शिक्षक अनुभव और जानकारी से पका एक सुगमकर्ता,गाइड। ‘न‘,‘म’,‘अ‘,‘ठ‘,‘ए‘,‘झ‘,‘ल‘,‘ड‘,‘छ‘,‘ई‘ की यात्रा करते-करते इस कविता से विद्यार्थी ‘आ’ और ‘क’ से परिचित हो रहे हैं। अध्यापक साथी जानते हैं कि पूरी वर्णमाला सीखाने की कठिन,नीरस और ऊबाऊ प्रक्रिया से इतर शब्दों-वाक्यों से शनै-शनै पढ़ना-पढ़ाना (पहले दिन से लिखाने का आग्रह नहीं) अधिक कारगर है। आम की टोकरी को बार-बार पढ़ते,गाते,सुनते और सुनाते हुए विद्यार्थी आ और क से बने शब्दों से खूब परिचित होते हैं। मात्र 38 शब्दों की यह सशक्त कविता है। कैसे?आ (अ से इतर) की ध्वनि को बोला कैसे जाता है। यह भी कि लिखा कैसे जाता है। इस पर मौखिक बातचीत और ध्यान दिलाया जाए तो यह निम्नवत् हैं-साल, लाई,आम (4 बार) ,बताती, दाम, दिखा-दिखाकर, बुलाती (2 बार), नाम (2 बार), पूछना, चूसना।क (वर्ण) को फोकस करना। हालांकि क झूला पाठ में भी आया है। की, टोकरी (4 बार), छोकरी (2 बार), भरकर, दिखाकर। मायने-लिखाने का सारा उपक्रम यहाँ तक एक बार भी न कराया जाए। बस पढ़ाया और पढ़ा ही जाए। गतिविधियां कराई जाएं तो विद्यार्थी इस पाठ को पढ़ते-पढ़ते ‘न‘,‘म’,‘अ‘,‘ठ‘,‘ए‘,‘झ‘,‘ल‘,‘ड‘,‘छ‘,‘ई‘ के साथ-साथ इस पाठ में ‘आ’, और ‘क’ को जोड़ ले तो विद्यार्थी इन वर्णांे और मात्राओं के शब्दों को ही नहीं इन शब्दों के शामिल वाक्य अनुमान से पढ़ने लगते हैं। ‘ई’ की मात्रा से विद्यार्थी पहले पाठ-झूला में परिचित हो चुके हैं। विद्यार्थी आम की टोकरी में ‘ई’ (वर्ण भी और मात्रा भी) का पढ़ने का अभ्यास करते हुए-की,छोकरी जैसे शब्दों री ( 6 बार) ,लाई, बताती, बुलाती (2 बार),देती, नहीं शब्दों से अपनी समझ को पुख्ता ही कर रहे होते हैं।

7.भाषाई कौशलों का विकास कराती कविता-********************************सुनना,बोलना और पढ़ना। इन कौशलों के विकास में पहली कक्षा की यह किताब आवरण से ही अपना काम शुरु कर देती है। हम जानते ही हैं कि जो बच्चा अभी स्कूल भी नहीं गया है वह घर में आने वाले सामानों,उत्पादों के लोगो,नाम आदि से भी बहुत सारे वर्णों-शब्दों और चित्रों से वाकिफ होता रहता है। अब तो मोबाइल दूध पीने वाले बच्चों के हाथ में दे दिया जा रहा है। टच स्क्रीन वाले मोबाइल में तो वे बच्चे स्क्रीन पर अंगुलियों से आइकनों को धकेलते हुए गैलरी, प्ले स्टोर, फोन,यू ट्यूब,इन्सटाग्राम पर जा पहुँचते हैं। वे बच्चे जिनके पास मोबाइल नहीं है वे कूड़ा बीनते हुए दुकानों के साइनबोर्डों पर भी वर्णो-शब्दों में झांकते हैं। यह कविता जितनी सरल,सपाट और तुकांत वाली दिखाई देती है यह उतने ही जटिल,मुश्किल और लयबद्ध है। नज़रिया वाली बात सच है। यह पूरी दुनिया के बच्चों की कविता हो सकती है। श्रम के महत्व के साथ-साथ दुनिया के तमाम बच्चों को जिनकी उम्र छह साल है उन्हें स्कूल में होना चाहिए। यह कविता सवाल खड़ा करती है कि क्या वे सब बच्चे स्कूल में हैं? पहली कक्षा के बच्चे कुछ न लिखें। लेकिन वे श्यामपट्ट पर लिखे वाक्यों को सुनकर दोहरा सकते हैं। यही नहीं वे बोलकर नए वाक्य भी सुझा सकते हैं। आइए मात्र-छह साल की छोकरी पँक्ति के साथ कुछ वाक्य बनाते हैं-मैं छह साल का हूँ। छह दिन बाद रविवार आता है। एक साल में बारह महीने होते हैं।यह 2021 का साल है।यह रहीम की किताब है।मैंने मन की बात कह दी है।छोकरी का मतलब लड़की है।छोकरी का नाम परी होना चाहिए।क्या आपको नहीं लगता कि बच्चे इस तरह के कई वाक्य मौखिक तौर पर बना सकते हैं! यदि इस तरह के वाक्य श्यामपट्ट पर लिखे जाएं तो विद्यार्थी उन्हें पढ़ेंगे। पढ़ते हुए बोलेंगे।अव्वल तो पहली कक्षा के प्रारम्भिक दिनों में (यह तीसरा पाठ है) बच्चों से व्याकरण आदि की जटिलताओं पर बात करना उन्हें उलझाना ही माना जाएगा। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि बच्चे रोजमर्रा की बातचीत में व्याकरण को नहीं बरतते। यह कविता इस सरलता के साथ के साथ सहज,सरल व्याकरण के प्रयोग करवाने में सक्षम है। मौखिक बातचीत या श्यामपट्ट के सहयोग से हम भाषा की कई सारी बातचीत कर सकते हैं। जैसे-छह – 6 का अंक, सिक्स, छःगुना, छक्का और क्रम के तौर पर छठवीं आदि पर बात हो सकती है। साल-बारह महीनों का एक साल, साल का पेड़, वर्ष पर तमाम बात हो सकती है। छोकरी-गर्ल,कन्या, कुँवारी लड़की, लड़की,बेटी,लौंडी,अविवाहित लड़की, वह लड़की जो नौकरानी हो।आम-वनराज, लंगड़ा आम, दशहरी, मलीहाबादी,चैंसा, बैंगन पल्ली, केशर, नीलम, सुवर्न रेखा, मल्लिका, रत्ना सहित स्थानीय भाषा में कई आम की किस्मों पर बात हो सकती है।चूसना-चूसने वाली टाॅफियाँ, गन्ना भी चूसा जाता है। चुस्की जैसी आइसक्रीम. (कुछ न करें तो बस बातचीत ही करेंगे तो बच्चे आनंदित होंगे। इन शब्दों को श्यामपट्ट पर लिखेंगे तो बच्चे देखेंगे। दोहराएंगे। वर्णों-शब्दों की स्थाई पहचान की ओर बढ़ेंगे।) इसके साथ-साथ चूसना,चाटना,चबाना,घूँट वाली प्रक्रिया से बातचीत ऐसे जानवरों की ओर भी जा सकती है जो चपड़-चपड़ कर पानी पीते हैं उनके नाम लिखे जा सकते हैं। ऐसे जानवरों के नाम भी श्यामपट्ट पर लिखे जा सकते हैं जो हम इंसानों की तरह घूँट से पानी पीते हैं।स्वाद पर भी गतिविधियाँ की जा सकती हैं-जैसे-आम मीठा है तो:करेला, आँवला, चीकू, केला, संतरा, नींबू के अलावा स्थानीय पकवानों,मिठाईयों और फलों पर खूब चर्चा की जा सकती है।

8.आम की टोकरी और बच्चों की घर की भाषा-

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मौखिक बातचीत की अनंत संभावनाएँ इस कविता में है। एक से दस तक की गिनती का घरेलू भाषा में उच्चारण करवाया जा सकता है। छोकरी पर बात हो सकती है। टोकरी जैसी रसोइ्र में कई वस्तुएँ हैं उनके घरेलू नामों पर बात हो सकती है। घर-गाँव,कस्बा, देहात,शहर में कामगारों के नाम पर बात हो सकती है। जैसे घसियारिन,मजदूर, काम वाली बाई, धोबी,लुहार,लकड़हारा,बढ़ई आदि। इनके काम और महत्व पर बात हो सकती है।

कुछ सन्दर्भित कविताएँ-**********************

बागों में मुस्काते आमसबके मन को भाते आम,मीठी-मीठी महक बिखेरेंपेड़ों पर सुस्ताते आम।प्यारे बच्चो जल्दी आओदे आवाज बुलाते आम,भरे विटामिन-ए से होतेसेहत पुष्ट बनाते आम।बन स्वादिष्ट पना गुणकारीलू को दूर भगाते आम,बस कोई ज्यादा मत खानाफोड़े भी करवाते आम।~ कुमार गौरव अजीतेन्दु***

गर्मी का मौसम आया है,मीठे-मीठे आम संग लाया है,बच्चे-बूढ़े-जवान सबके मन को भाता है,खाने को जिसको मिल जाए वो खुश हो जाता है.पके रसीले आम देखकर मन ललचाया,पेड़ से तोड़कर ढेर सारा आम लाया,घर में सबको दो-दो आम बांटकरबाकी आम अकेले खाया.***

मैंगो का मतलब आम होता है,इसको खाना बच्चों का काम होता है,कच्चे पर खट्टा और पके पर मीठाइसका बड़ा ही अच्छा स्वाद होता है.आई ऍम अ मैंगो बच्चे आम को पत्थर से तोड़ते है,कच्चे आमों को भी नहीं छोड़ते है,आम को पाकर अति खुश हो जाते हैपके आमों को चूस-चूस कर खाते है.आई ऍम अ मैंगो आम बच्चों के मन को भाता है,छोटू खाना छोड़कर आम खाता है,शाम को खेलने जाता है,खेल कर आता है फिर आम खाता है.आई ऍम अ मैंगो आम नहीं मिले तो रोता है,कुछ भी दे दो फिर भी चुप नहीं होता है,मम्मी-पापा पर गुस्सा होता है,आम मिल जाएँ तो खाकर सोता है.आई ऍम अ मैंगो छोटू को यदि मिल जाएँ आम,छोड़ देता है सारा काम,मुँह बना-बनाकर खाता हैउसके बाद बड़ा ही खुश हो जाता है.***

आम फलों का राजा कहलाता है,मीठा आम सबको खूब भाता है,इसे देखकर बच्चों का मन ललचायें,आम मिलने पर इसको जम कर खाये.पीला-पीला बड़ा रसीला होता है आम,बच्चे खाते है इसको सुबह और शाम,फलों का राजा होता है आम.इसको खाने के चक्कर में लोग छोड़ देते है काम.छोटे बच्चो के सपने में आता है आम,सपने में छोटू खाता है आम,सुबह-सुबह मम्मी देती है जगाछोटू रोता है कहकर आम-आम.मम्मी कहती बागों में है मुस्काते आम,तुम्हारे मन को जो भाते है आम,मीठी-मीठी महक बिखरेपेड़ो पर कच्चे-पक्के प्यारे आम.***

बाग़ में जाओ,ढेर सारा आम लाओ,सबके संग बांटकरइसको प्यार से खाओ.***ले लो दो आने के चारलड्डू राज गिरे के यारयह हैं धरती जैसे गोलढुलक पड़ेंगे गोल मटोलइनके मीठे स्वादों में हीबन आता है इनका मोलदामों का मत करो विचारले लो दो आने के चार।लोगे खूब मज़ा लायेंगेना लोगे तो ललचायेंगेमुन्नी, लल्लू, अरुण, अशोकहँसी खुशी से सब खायेंगेइनमें बाबू जी का प्यारले लो दो आने के चार।-माखनलाल चतुर्वेदीकुछ देरी से आया हूँ मैंमाल बना कर लाया हूँ मैंमौसी की नज़रें इन पर हैंफूफा पूछ रहे क्या दर हैजल्द खरीदो लुटा बजारले लो दो आने के चार।

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By manohar

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