गिलहरी उचककर पैरों में खड़ी हो गई। बुदबुदाई,‘‘सांप, नेवला, खरगोश और मेढ़क एक साथ हैं! कोई तो वहां है।’’ गिलहरी दबे पांव चलना जानती थी। वह वहां जा पहुंची, जहां सब थे। वह एक बिल के चारों ओर इकट्ठा थे। सब बिल में झांक रहे थे। बिल का मुंह बड़ा था। बिल गहरा था। अचानक मेढक आगे बढ़ता हुआ बोला,‘‘मैं जाकर देखता हूं।’’ मेढक ने छलांग लगाई और बिल में जा घुसा। लेकिन यह क्या! वह दूसरे ही पल बिल से बाहर आ गया। हांफता हुआ बोला,‘‘कोई तो है! वह बिल में आग जलाए बैठा है!’’
खरगोश ने हंसते हुए कहा,‘‘आग की लपटें घटती-बढ़ती हैं। जहां आग होती है, वहां धुआं भी तो होता है। लेकिन यहां धुआं नहीं है। पीछे हटो। मैं देखता हूं।’’ यह कहकर खरगोश बिल में जा घुसा। पर यह क्या! वह दूसरे ही क्षण लौट आया। उसकी लाल आंखें सिकुड़ गईं। वह घबराते हुए बोला,‘‘कोई तो है! उसने सूरज के बच्चे को पकड़ा हुआ है!‘‘
गिलहरी भला क्यों चुप रहती। वह हंसते हुए बोली,‘‘सूरज का बच्चा! सूरज आग का गोला है। वह अकेला है। उसका कोई बच्चा नहीं है। पीछे हटो। मैं देखती हूं।’’ यह कहकर गिलहरी बिल में जा घुसी। परन्तु वह उलटे पांव लौट आई। उसकी झाड़ू जैसी पूंछ हवा में कांप रही थी। वह बोली,‘‘नागमणि है। नाग भी बिल में ही है।‘‘ सांप हंसने लगा। तभी नेवला बोला,‘‘यह बात गलत है। कोई भी सांप मणि नहीं रखता। पीछे हटो। मैं देखता हूं।‘‘ नेवला बिल में घुस गया। तुरंत ही लौट आया। उसके दांत किटकिटा रहे थे। बोला,‘‘कोई तो है। वह एक आंख वाला है।’’
चूहा आगे आया। बोला,‘‘एक आंख वाला कोई कहां होता है? मैं देखता हूं। पीछे हटो।’’ यह सुनकर सब हंसने लगे। बंदर ने मुंह में हाथ रखते हुए कहा,‘‘तुम तो रहने ही दो।’’ लेकिन चूहा नहीं माना। वह बिल में चला गया। बिल से आवाज आने लगीं,‘सररर। सरसर। खररर। खरखर।‘
सांप ने कहा,‘‘चूहे की तो वाट लग गई।’’ तभी नेवले ने कहा,‘‘देखो। चूहे की पूंछ बिल से बाहर आ रही है!‘‘ गिलहरी ने जवाब दिया,‘‘नहीं! नहीं! कोई चूहे को बाहर धकेल रहा है।’’ खरगोश बोला,‘‘नहीं! नहीं! चूहा किसी को खींच कर बाहर ला रहा है।’’
चूहा बिल से बाहर आ गया। चूहे के दांतों में एक डोर थी। डोर से टॉर्च बंधी हुई थी। टॉर्च जल रही थी। ‘‘ओह! ये तो टॉर्च है!’’ सब ने गहरी सांस लेते हुए एक साथ कहा।
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