समीक्षक : रेनू मंडल
जीवन में बचपन
रेनू मंडल स्थापित रचनाकार हैं ! साहित्य में कहानी विधा की अनवरत् प्रकाशित होने वाली कथाकार हैं ! गृह शोभा, मेरी सहेली, सरिता, वनिता जैसी भारत की बेहतरीन कई पत्रिकाओं में उनकी कहानियाँ बदस्तूर पढ़ने को मिल जाती हैं। लघुकथाओं के साथ वह बाल साहित्य भी लिखती हैं। वह बच्चों के लिए कहानियाँ लम्बे समय से लिख रही हैं। लॉक डाउन से ठीक पहले नंदन पत्रिका बंद हो गई। वह वहाँ खूब छपती रही हैं। वे अपने बच्चों के पास भारत से बाहर भी जाती हैं। तब कई बार मैसेन्जर पर वह ताकीद करती थीं कि नंदन के नवीनतम अंक में उनकी कहानी छपी है या नहीं ? यदि छपी है तो मैं उन्हें इमेज भेज दिया करता था। लिखने-पढ़ने के इस क्रम में हमारा परिचय बढ़ा। सोशल मीडिया के साथ-साथ फिर व्हाट्सएप पर भी सम्पर्क रहा। रेनू मंडल जिज्ञासु पाठक भी हैं। वह उदार मन की हैं लेकिन पढ़ने-लिखने की संस्कृति कैसे बचे? वह इसके प्रति भी संवेदनशील हैं। उन्होंने जीवन में बचपन किताब पढ़ने की इच्छा जताई। यह किताब उन्होंने खरीदी। पढ़ने के लिए समय निकाला। किताब में शामिल कहानियों की समीक्षा भी की। सोशल मीडिया में अपनी फेसबुक भित्ति पर उन्होंने यह समीक्षा एक जून 2024 की सांय पोस्ट की। पोस्ट करने के उपरांत यहाँ ब्लॉग में पोस्ट करने तलक कई फोन मुझे आ गए। फोन पर सभी इस किताब को खरीदना चाहते हैं। यह किताब 2015 में प्रकाशित हुई थी। अब यह उपलब्ध नहीं है। कुछ वितरकों से सम्पर्क कर मंगाई जा सकती है। वितरक, प्रकाशक, लेखक के सम्बन्ध कैसे हैं? इसका असर पाठक पर भी पड़ता है। एक बार फिर से मुझे इन कहानियों के पुनर्प्रकाशन के संबंध में सोचना होगा। बहरहाल, मैं हमेशा इस बात पर यकीन करता हूँ कि कलमकार रचना लिखकर अपना काम कर चुका होता है। बाद उसके उसे पाठकों, समीक्षकों की प्रतिक्रिया का स्वागत करना चाहिए। रेनू जी ने अपने दायित्व का निर्वहन बगैर किसी लाग-लपेट के किसी आशा-आकांक्षा के किया है। यह हर्ष का विषय है। बता दूँ कि वरिष्ठ साहित्यकार दीन दयाल शर्मा जी को इस किताब का आवरण बहुत पसंद आया। उनका भी फोन आया। आवरण मेरे अग्रज भ्राता एवं शिक्षक साथी मोहन चौहान जी ने बनाया है। इस किताब के प्रकाशन में उनका बहुत बड़ा योगदान है। इस किताब के अलावा उन्होंने इससे पूर्व प्रकाशित किताब ‘अन्तरिक्ष से आगे बचपन’ का भी आवरण बनाया है। यहाँ रेनू मंडल जी की अनुमति से उनके द्वारा की गई समीक्षा हू-ब-हू यहाँ पाठकों के लिए प्रस्तुत की जा रही है।
इंसान के जीवन का सबसे मधुर समय उसका बचपन होता है। बचपन से जुड़ी घटनाएं, किस्से कहानियां सदा मन को गुदगुदाते रहते हैं। प्रफुल्लित करते हैं। इन्हीं कहानियों को रचने का काम करते हैं प्रसिद्ध बाल साहित्यकार श्री मनोहर चमोली मनु जी जो बाल साहित्य के एक प्रतिष्ठित एवं सशक्त हस्ताक्षर हैं। पेशे से वह एक शिक्षक हैं। बेजोड़ लेखक होने के साथ-साथ वह एक गंभीर चिंतक एवं बेबाक समीक्षक हैं। बाल साहित्य पर लिखे उनके ब्लॉग्स अत्यंत उत्कृष्ट कोटि के होते हैं। 2006 से बाल कहानियों को लेकर उनकी साहित्यिक यात्रा आज अनेक देशों एवं भाषाओं तक अपना विस्तार प्राप्त कर चुकी है। अब तक उनकी अनेकों पुस्तकें प्रकाशित एवं अनुदित हो चुकी हैं। उत्तराखंड साहित्य संस्थान और पंडित प्रताप नारायण मिश्र सम्मान आदि अनेक पुरस्कारों से सम्मानित मनोहर चमोली जी का कहानी संग्रह” जीवन में बचपन ” पढ़ने को मिला।
मनुष्यों पशु पक्षियों एवं पेड़ पौधों पर लिखी इन कहानियों को पढ़ना बच्चों के साथ साथ बड़ों को भी रुचिकर लगेगा।
संग्रह की पहली कहानी “बीस रुपए के लिए” संदेश देती है कि सच्चाई जाने बिना हमें कुछ भी नहीं बोलना चाहिए। सात वर्षीय रोहित जो मूक-बधिर है, अपने मम्मी पापा के साथ बस में जा रहा है। उसके मम्मी पापा कंडक्टर से ढाई टिकट मांगते हैं किंतु कंडक्टर रोहित की उम्र अधिक बताता है। चुप रहते हुए भी रोहित कंडक्टर को सच्चाई से अवगत कराता है तो कंडक्टर शर्मिंदा होते हुए अपनी गलती की माफी मांगता है।
“आया बदलाव” कहानी में छात्रा अदिति स्कूल में सौंदर्य प्रतियोगिता जीतती है तो उसे स्वयं पर अभिमान हो जाता है। घर स्कूल सभी जगह उसका लोगों के साथ व्यवहार भी बदल जाता है। तब प्रिंसिपल कुछ ऐसा करती हैं कि अदिति अपनी भूल समझ जाती है।
“विज्ञान है महान” कहानी बताती है कि किस तरह लोग विज्ञान के खेल को जादू टोना और मंत्र की शक्ति बताकर लोगों से पैसा ऐंठते हैं। जादू टोना, बुरी शक्ति यह सब मन के वहम होते हैं। विज्ञान ही सब कुछ है।
हर पल टीवी से चिपकी रहने वाली और पढ़ाई को हल्के ढंग से लेने वाली प्रज्ञा के छमाही परीक्षा में नंबर कम आने पर वह सूरज से क्या सीख लेती है ताकि वह अव्वल आ सके, यह तो कहानी “सीखा सूरज से” पढ़कर पता चलेगा।
स्कूल की जनरल मॉनिटर नील जेवियर का मानना है कि अन्य त्योहारों की तरह स्कूल में क्रिसमस भी मनाया जाना चाहिए किंतु प्रिंसिपल नाराज होकर कहती हैं कि पढ़ाई काम आती है, त्यौहार नहीं। यह सुनकर चुलबुली नील उस दिन से ऐसी खामोश हुई कि उसका पढ़ाई से भी मन उचाट हो गया और छमाही परीक्षा में नंबर कम आने पर वह स्कूल छोड़ने का मन बना लेती है किंतु क्रिसमस आने पर नील को कुछ ऐसी आश्चर्यजनक खुशियां मिलती हैं कि नील अपना निर्णय बदल देती है। कौन उसकी उदासी को खुशियों में बदलता है, यह तो कहानी “हर त्यौहार मनाएंगे” पढ़कर पता चलेगा।
“दाना दो गौरैया को” कहानी में दादा जी को चावल के दाने डालते देख अखिल कहता है कि यह चावल की न सिर्फ बर्बादी है बल्कि इससे आंगन भी गंदा होता है।दादाजी उसे समझाते हैं कि गौरैया का जीवन खतरे में पड़ गया है। पक्षियों को घोंसला बनाने के लिए न तो पेड़ मिलते हैं, न घरों के रोशनदान क्योंकि अब तो जंगल भी काटे जा रहे हैं। दिनों दिन गौरैया का जीवन खतरे में पड़ गया है। पर्यावरण को संतुलित रखने में पक्षियों की क्या भूमिका होती है, साथ ही चावल किस तरह गौरैया का जीवन बचा सकते हैं, यह सब जानकर अखिल एक ऐसा निर्णय लेता है कि दादाजी प्रसन्न हो जाते हैं।
“आना अनमोल” एक बेहद मार्मिक कहानी है। मां सुखना के जीवन में दुखों और संघर्ष के अलावा कुछ भी नहीं था। मास्टर जी उसके बेटे अनमोल की प्रतिभा को पहचानते हैं और उनके कहने पर सुखना मेहनत मजदूरी करके बेटे को खूब पढ़ा लिखा कर जीवन में आगे बढ़ाती है। पूरा गांव उसका सहयोग करता है। अनमोल विदेश चला जाता है। मां सुखना और गांव के लोग उसके लौटने की प्रतीक्षा करते हैं। अनमोल वापस लौटा या नहीं, यह तो इस कहानी को पढ़कर ही जाना जा सकता है।
जुगनू एक बल्ब की तरह कैसे चमकते हैं, यह जानकारी मिलती है, कहानी “सबका है मोल” पढ़कर। साथ ही इस प्रकृति में पाए जाने वाले छोटे-छोटे कीट पतंगों का भी महत्व है। बहुत खूबसूरत कहानी है।
“सब हैं अव्वल” कहानी बच्चों को बहुत पसंद आएगी। जंगल के स्कूल में सभी जानवर पढ़ रहे हैं। सभी खुश हैं। सुसंस्कृत हो रहे हैं फिर अचानक शिक्षक भालू तरह-तरह की परीक्षाएं लेने लगते हैं। सभी जानवर परीक्षाओं से डर रहे हैं। सबके चेहरों से हंसी गायब हो गई है। आखिर ऐसी परीक्षाएं लेना क्या आवश्यक था जिन में सहभागिता के बदले गैर बराबरी की भावना विकसित हो? कौन अव्वल आता है इन परीक्षाओं में? क्या परिणाम होता है इन परीक्षाओं का? यह सब जानने को मिलेगा इस बेहद रोचक कहानी में।
“जागो तभी सवेरा” कहानी संदेश देती है कि किसी काम को कल पर नहीं टालना चाहिए। चीनू चूहा मेहनती और दूरदर्शी था। कठिन समय को व्यर्थ न गंवा कर वह न केवल अनाज जमा करता था बल्कि अपना घर भी उसने बना लिया जबकि लापरवाह मीनू चूहा कुछ नहीं करता था और जब आंधी तूफान आता है तब उसे चीनू की शरण में जाना पड़ता है।
“पाया दूध” कहानी में लेखक मनोहर चमोली जी ने जिस सरलता और रोचकता के साथ पर्यावरण को बचाने का संदेश दिया है वह अपने आप में अद्भुत है। नेहा के लिए गिलास में रखा दूध चुपके से चूहा पी लेता है किंतु जब उसे पता चलता है कि वह दूध मां ने नेहा के लिए बहुत मुश्किल से जुटाया था तो उसे पछतावा होता है। वह दूध मांगने ग्वाले के पास गया। ग्वाला उसे गाय के पास, गाय उसे घास के पास, घास नदी के पास, नदी हिमालय के पास हिमालय बदल के पास और बादल बच्चों के पास भेजता है। बच्चे खूब पेड़ लगाते हैं पेड़ों से बादल बनते हैं। तब वर्षा होती है। बर्फ गिरती है जिससे नदियां पानी से भर जाती हैं और हरी हरी घास उगती है। घास खाकर गाय दूध देती है।
“जो जैसा वो भला” कहानी में आम का विशालकाय पेड़ था जिसके रसीले आमों को बच्चे पकने से पहले ही खा लेते थे। वह अपनी स्थिति से बहुत असंतुष्ट था किंतु एक दिन हवा उसे समझाती है कि जंगल के फलदार पेड़ों के फल खाने वाला कोई नहीं। वे अपने फलों के भार से ही परेशान हैं ।आम का पेड़ समझ जाता है कि जो जैसा है, वह वैसा ही अच्छा है। जिस पर संतोष है, वही सुखी है।
“ऐसे सिखाया सबक” कहानी संदेश देती है कि प्रकृति में सभी का अपना महत्व है। सभी जीव एक दूसरे पर निर्भर हैं। इसके अतिरिक्त “बना मिलनसार”, “सच्चाई भूत की”, “मोल अनमोल,” “राजा कौन” , “ढाल चाहिए”, “खेल चूहा बिल्ली का” आदि सभी कहानियां बाल मन को छूने में सक्षम हैं। सरल भाषा में लिखी इन कहानियों को पढ़ने पर बच्चों का ज्ञान विज्ञान के साथ गहरा रिश्ता बनेगा और वे प्रकृति और अपने आसपास के परिवेश से जुड़ेंगे।