भाषाई कौशल बढ़ाता है स्वतंत्र लेखन
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में कहा गया है कि सभी भारतीय और स्थानीय भाषाओं में दिलचस्प और प्रेरणादायक बाल साहित्य और सभी स्तर के विद्यार्थियों के लिए स्कूल और स्थानीय पुस्तकालयों में बड़ी मात्रा में पुस्तकें उपलब्ध करायी जाएँगी। नीति में कहा गया है कि प्राचीन और आधुनिक साहित्य गद्य और पद्य दोनों के विशाल भंडार हैं। भारत की हर प्रमुख भाषा में कुछ पंक्तियाँ और प्रत्येक के समृद्ध और उभरते साहित्य के बारे में विद्यार्थी कुछ कहना सीखेंगे। नीति यह भी कहती है कि साहित्य, नाटक, संगीत, फिल्म आदि के रूप में कला की पूरी सराहना करना बिना भाषा के संभव नहीं है। भाषा के कौशलों का विकास अनुभव आधारित विधियों से किया जाए।
इसी को आधार बनाकर उत्तराखण्ड के राजकीय इण्टर काॅलेज, खरसाड़ा, टिहरी गढ़वाल में तीन दिवसीय रचनात्मक रूपरेखा तैयार की गई। कला शिक्षक मोहन चौहान विद्यालय में जीवंत पुस्तकालय का संचालन कर रहे हैं। वह कक्षा छह से आठ तक के विद्यार्थियों के साथ कुछ समय से कहानी और डायरी लेखन पर काम कर रहे हैं। इसी के आधार पर तय हुआ कि कक्षा छह से आठ के विद्यार्थियों के साथ दैनिक पठन-पाठन से हटकर कुछ किया जाए। सहजता से ‘सुनना‘, ‘देखना‘ और ‘सोचना‘ के साथ हलका-फुलका ‘लेखन‘ कार्य विद्यार्थियों के साथ किया जाए। पहले ही दिन छियालीस फिर दूसरे दिन छियासी सहभागियों ने शानदार उत्साह दिखाया। कहानी और डायरी लेखन पर जोर दिया गया। तीन दिन सुबह आठ बजे से दो बजे का समय तय हुआ। अवकाश रहा तो विद्यार्थी घर से टिफीन लेकर आए थे। बीच में आधा घण्टा मध्यांतर रखा गया। दस-दस मिनट का अल्प विराम भी रखा गया। कुल मिलाकर सोलह घण्टे तैंतालीस बालिकाएँ और तैंतालीस बालकों के साथ बिताए गए। कक्षा छह के चैदह विद्यार्थी, सात के पैंतीस, आठ के बाईस, दस के दस और कक्षा ग्यारह के पाँच विद्यार्थी शामिल हुए।
विद्यालय में आनन्दम कार्यक्रम के तहत कक्षा छह से आठ के बच्चों के साथ रचनात्मक गतिविधियां पूर्व में कराई जाती रही हैं। डायरी लेखन भी किया गया। अब तक विद्यार्थी अपने स्तर पर और अनुभव के आधार पर डायरी लेखन करते रहे हैं। मोहन बताते हैं कि उनके साथ हुई बातचीत और चर्चा के आधार पर कई विद्यार्थी डायरी लिखकर लाते रहे हैं। मौटे तौर पर वह दिनचर्या ही लिखते रहे हैं। सकारात्मक बात यह रही है कि कम से कम विद्यार्थियों को विषयों की उत्तर पुस्तिका में लिखे जा रहे प्रश्न अभ्यास से हटकर कुछ नया करने को मिल रहा था। यही कारण है कि उनकी लिखी डायरी में मीन-मेख निकालना उचित नहीं समझा गया। यह भी कि आरंभिक अभ्यास को चलता रहे। यह उद्देश्य भी रहा। कुछ डायरी अंश यहाँ दिए जा रहे हैं।
प्रियांशी रावत खरसाड़ा में रहती हैं। वह कक्षा – – में पढ़ती हैं। उनकी डायरी का अंश-‘‘मैं सुबह जल्दी उठ जाती हूँ। उजाला होने के बाद पानी भरकर लाती हूँ। फिर स्कूल जाने की तैयारी करती हूँ। चाय भी बनाती हूँ। फिर गांव से होकर सड़क पे आती हूँ। हम मिलकर स्कूल जाते हैं। स्कूल में प्रार्थना करते हैं। फिर अपनी कक्षा में जाती हूँ। पढ़ाई करते हैं। स्कूल अच्छा लगता है।’’
सुजल का गाँव मरोड़ागाड़ है। वह कक्षा आठ में पढ़ते हैं। उनकी डायरी का अंश यह है-‘‘आज सुबह बारिश थी। जल्दी उठ गया। बैग तैयारा की। मांजी रोटी ले आई। फिर मैंने रोटी खाई। स्कूल के लिए तैयार हुआ। दोस्त आवाज देने लगे। मैं दौड़कर गया। फिर हम स्कूल पहुँचे। सबसे पहले प्रार्थना होती है। फिर हम अपनी कक्षा में चले गए। फिर आनन्दम होता है। उसके बाद दूसरी घण्टी बजती है। इंटरवल में हम मीडडेमिल में खाना खाते हैं। फिर पढ़ाई होती है। फिर छुट्टी हो जाती है। फिर हम स्कूल से घर जाते हैं। घर में खेलते हैं। फिर शाम को पढ़ाई भी करते हैं। स्कूल का काम भी करते हैं। फिर अगले दिन की तैयारी करते हैं स्कूल जाने की।’’
पायल जिमाणगाँव की निवासी हैं। कक्षा छह में पढ़ती हैं। उनकी डायरी का अंश पढ़ा जा सकता है-‘‘मुझे स्कूल अच्छी लगती है। मेरी सहेलियाँ भी अच्छी हैं। हम एक साथ स्कूल जाते हैं। एक साथ घर आते हैं। स्कूल में पढ़ाई होती है। हमें ज्ञान मिलता है। जिस दिन छुट्टी होती है उस दिन घर में अच्छा नहीं लगता है। घर में पानी भरती हूँ। माँ के साथ काम भी करती हूँ। पढ़ाई भी करती हूँ। मुझे पढ़ना और डायरी लिखना अच्छा लगता है।’’
प्रियांशु का गाँव कोठी है। वह सातवीं के विद्यार्थी हैं। वह एक डायरी लिखते हैं-‘‘हम पैदल-पैदल स्कूल आते हैं। जल्दी उठना पड़ता है। फिर स्कूल भी दूर है। कभी-कभी दौड़ लगानी पड़ती है। सुबह उठकर अपने काम करता हूँ। चाय पीता हूँ। तैयार होता हूँ। स्कूल का टाइम हो जाने पर स्कूल जाता हूँ। सड़क पर आते हैं तो गाड़ियां मिल जाती हैं। स्कूल में पढ़ाई करने के साथ दोस्तों के साथ खूब बातें हो जाती हैं। घर आते हैं तो अलग-अलग रास्तों पर चल देते हैं। घर में पढ़ाई कम हो पाती है। बिजली आती-जाती रहती है। स्कूल में खेल का मैदान बड़ा होना चाहिए।’’
सोलह से बीस विद्यार्थियों की डायरी के अंश पढ़ने को मिले। इन्हें एक सिरे से नकारा जाना उचित नहीं होगा। भले ही अभी यह सुगठित डायरी नहीं समझी जाएगी। लेकिन विद्यार्थी परंपरागत लिखाई-पढ़ाई से हटकर कुछ तो लिख रहे हैं। यह बड़ी बात है। उनके पास अपनी दुनिया है। दुनिया के रंग हैं। वह खुद को अभिव्यक्त कर रहे हैं। उनके पास अपनी भाषा है। ऐसी भाषा जिससे वह अपने आस-पास की दुनिया को एक अलग तरह से देख रहे हैं। अपने अनुभवों को लिख रहे हैं। उनका लहज़ा कुछ बताता है। बस उस लहज़े को विस्तार देने की ज़रूरत है। वह दिनचर्या और साधारण घटना से इतर अपने समृद्ध जीवन के विभिन्न भावों को भी डायरी में दर्ज करें।
शैक्षणिक अनुभवों के आधार पर कहा जा सकता है कि अभी विद्यालय सृजनात्मकता को पढ़ाई से जोड़कर कम ही देख पाते हैं। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 भले ही साहित्य को स्कूल से जोड़ना शिक्षा का अनिवार्य कर्तव्य मानता है। परिप्रेक्ष्य में दस्तावेज कहता है-‘कला, साहित्य और ज्ञान के अन्य क्षेत्रों में सृजनात्मकता का एक दूसरे से घनिष्ठ संबंध है। बच्चे की रचनात्मक अभिव्यक्ति और सौंदर्यात्मक आस्वादन की क्षमता के विस्तार के लिए साधन और अवसर मुहैया कराना शिक्षा का अनिवार्य कर्तव्य है।’ यही दस्तावेज मानता है कि साहित्य भी बच्चों की रचनाशीलता को बढ़ा सकता है। पाठ्यचर्या के क्षेत्र,स्कूल की अवस्थाएँ और आकलन में दस्तावेज कहता है-‘कोई कहानी, कविता या गीत सुनकर बच्चे भी स्वयं कुछ लिखने की दिशा में प्रवृत्त हो सकते हैं। उनको इसके लिए भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि वे अलग-अलग रचनात्मक अभिव्यक्ति के माध्यमों को आपस में मिलाएँ।’
हम यह मानते हैं कि कमोबेश स्कूलों में सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में साहित्य को वह स्थान अभी तक नहीं मिल पाया है जितना दिया जाना चाहिए। कहानी,कविता पढ़ना छुट्टियों का काम माना जाता है। ज़्यादा हुआ तो राष्ट्रीय पर्वों में देश भक्ति गीत-संगीत-साहित्य को रस्मी तौर पर अब तक लिया जाता रहा है। कक्षा छह के हिन्दी विषय के ‘सीखने के प्रतिफल‘ भी कहीं न कहीं रचनात्मकता के अवसरों की ओर जाने की बात करते हैं। इन लर्निंग आउटकम्स में कहा गया है कि देखी,सुनी रचनाओं/घटनाओं/मुद्दों पर बातचीत को अपने ढंग से आगे बढ़ाते हैं,जैसे-किसी कहानी को आगे बढ़ाना। हिन्दी भाषा में विभिन्न प्रकार की सामग्री (समाचार,पत्र-पत्रिका, कहानी,जानकारी परक सामग्री, इंटरनेट पर प्रकाशित होने वाली सामग्री आदि) को समझकर पढ़ते हैं और उसमें अपनी पसंद-नापसंद, राय,टिप्पणी देते हैं। इसी तरह सातवीं कक्षा के लर्निंग आउटकम्स देखें तो स्पष्ट होता है कि स्कूल में किताबी पढ़ाई के अलावा रचनात्मक लेखन की महती आवश्यकता है। स्पष्ट कहा गया है कि विभिन्न संवेदनशील मुद्दों/विषयों जैसे-जाति,धर्म,रंग,जेंडर,रीति-रिवाजो के बारे में लिखित रूप से भावनाओं को अभिव्यक्त करते हैं। हिन्दी भाषा में विभिन्न प्रकार की सामग्री (समाचार,पत्र-पत्रिका, कहानी, जानकारीपरक सामग्री,इंटरनेट प्रकाशित होने वाली सामग्री आदि) को समझकर पढ़ते हैं और उसमें अपनी पसंद-नापसंद के पक्ष में लिखित भाषा में अपने तर्क रखते हैं। अपने अनुभवों को अपनी भाषा शैली में लिखते हैं।
पहला दिन तो कहानी सत्र को दिया गया। विद्यार्थियों को चित्रात्मक पुस्तकों से कहानी पढ़कर और दिखाकर सुनाई गई। कहानी का असर तो देखते ही बन रहा था। उस पर फिर कभी। फिलहाल डायरी पर केन्द्रित करते हुए दूसरा दिन ‘डायरी’ पर केन्द्रित रहा। हरितपट्ट पर दो काल्पनिक डायरी अंश लिखे गए। विद्यार्थियों से कहा गया कि यदि वह चाहें तो उसे ज्यों का त्यों उतार सकते हैं। एक-एक कर दोनों डायरी के अंशों को वाक्य-दर-वाक्य बुना गया। जैसे ही एक वाक्य बनता,मोहन चैहान उसे चाॅक से उतारते चलते। डायरी के दोनों अंश यहाँ देना ठीक होगा।
एक-पाँच दिनों से मैं स्कूल नहीं गई। माँजी भीमल के पेड़ से गिर गई थी। बस! तभी से बिस्तर पर लेटी है। पिताजी रोज़ अस्पताल जाते हैं और देर रात लौटते हैं। दो दिनों से बिजली गुल है। डिबरी में तेल भी नहीं बचा। भुली नीतू और भुला राजू कब के सो गए हैं। गौरी और धौली पता नहीं क्यों रंभा रही हैं?क्या पता उन्हें तीस लगी होगी। बाघ की डर है। मैं गोट में नहीं जा सकती। नगमा, सरूली,राखी, दिनेश और गुरुजी बचन जी बहुत याद आ रहे हैं।
कमली,
दिनांक 11 जनवरी 2019
समय: रात 11 बजकर 10 मिनट
अयाल गाँव,उत्तरकाशी
दो- मैं यहाँ काम तो कर रहा हूँ, पर पता नहीं टिकूंगा या नहीं। दो बार मेज पर सोने के लिए लेट चुका हूँ। पर मालिक बार-बार आवाज़ लगा देता है। यहाँ चैबीस घंटे लोग-बाग जगे रहते हैं। यह शहर है कि सोता ही नहीं। यह ढाबा छोटा सा है। लेकिन, एक मेज से दूसरी मेज पर खाना परोसते-परोसते मैं देवप्रयाग से लसेर तक पहुँच जाता हूँगा। पिछले वाले मालिक ने तो तीन महीनों से पगार भी नहीं दी थी। उस रात मुझे पीटा भी। बस भाग आया था। पता नहीं, यह भागदौड़ कब तक चलेगी! टांगे थक गई हैं। नींद आ रही है। मालिक का भात अभी तक नहीं पका है।
अमित
नया ढाबा, बस अड्डा,मुरादाबाद
10 दिसंबर 2021 समय रात 11 बजकर 40 मिनट
इरादतन विद्यार्थियों को तसल्ली से इन दोनों अंशों को उतारने का अवसर दिया गया। कुछ सहभागियों को छोड़कर अधिकांश ने अपनी नोट बुक में इन अंशों को लिख लिया। इन दोनों अंशों को बारी-बारी से सहभागियों के लिए पढ़ा गया। अब कुछ सवाल सहभागियों के लिए रखे गए। मसलन-आप जो डायरी लिखते हैं और हरितपट्ट पर जो डायरी के अंश हैं उनमें क्या अन्तर है? डायरी और पत्र लेखन में क्या अन्तर है? वह ज़रूरी चीज़ें क्या हैं जो हमारे लिखे हुए को डायरी का अंश बना देती हैं। डायरी लिखते समय क्या-क्या सावधानी बरतनी चाहिए? क्या दैनिक ब्यौरा लिखना डायरी है? क्या दिनचर्या डायरी है? विद्यार्थी अभी पत्र-लेखन, जीवनी और आत्मकथा के साथ डायरी विधा को अलग नहीं कर पा रहे थे।
हम चाहते हैं कि फिलहाल विद्यार्थी अपने अनुभवों के आधार पर खुद करके सीखे। खुद जाने-समझें कि आखिरकार पत्र-लेखन और डायरी लेखन में क्या अन्तर है? प्रयास यह रहा कि इन तीन दिन विद्यार्थी कक्षा-शिक्षण जैसा न महसूस करें। न ही किसी परिभाषा या सवाल-जवाब की चिन्ता में तनाव लें। फिर भी उनसे कहा गया कि कि वे जो लिख रहे हैं वह बाधित न हो। वह डायरी विधा की ओर ही बढ़ रहे हैं। उन्हें बार-बार प्रेरित किया गया कि वह अपने अनुभवों, सोच और भावनाओं को विस्तार दें। कुछ बातें तो हरितपट्ट पर बोलकर लिखी गईं।
वाक्यवार चर्चा के उपरांत निम्नांकित वाक्य उभरकर आए। जैसे-ज़रूरी नहीं कि डायरी प्रतिदिन लिखी जाए। सुबह से रात तक का विवरण डायरी नहीं। रोज़ एक जैसा लिखना डायरी नहीं होता। डायरी में हम खुद से बात करते हैं। अपने बारे में, अपने साथ हुए अनुभव, घटना के बारे में लिखना डायरी का हिस्सा हो सकता है। कोई प्रिय, अप्रिय घटना या बात भी डायरी में दर्ज की जा सकती है। डायरी एक निजी अनुभव है। प्रायः इसे स्वयं साझा नहीं किया जाता। डायरी अपने से बात करने का माध्यम होती है। कहानी-कविता की तरह अक्सर डायरी के अंश साझा नहीं किए जाते। समय, दिन, तिथि और स्थान का उल्लेख करना बेहतर होता है। कोई प्रेरणादायक, निराशाजनक, दुख या हैरान करने वाली घटना का असर लिखा जाना उचित होता है। दूसरों का नाम लिखकर उसकी आलोचना या निंदा करने से बचना चाहिए। दूसरों का चित्रण करने की बजाय अपनी आदत, व्यवहार, खुशी, गम, चिन्ता, सोच या प्रभाव पर केन्द्रित रहना चाहिए।
चालीस से साठ मिनट के अंतराल पर मनोरंजन, ध्यानकेन्द्रित करने वाली गतिविधियां होती रहीं। कोशिश की गई कि सुनना, सोचना और सोचकर लिखने वाली गतिविधियां कराई गईं। बहुत कम समय दिया जाता रहा। समूह में काम करना ज़्यादा बेहतर हुआ। लेकिन डायरी तो निजी तौर पर लिखने को देनी ही थी। दूसरे दिन के दूसरे सत्र में विद्यार्थियों को डायरी लिखने का समय दिया गया।
मन मंे संशय था कि विद्यार्थी असहज होंगे। परंपरागत डायरी के अंश ही आएंगे। यही कारण था कि उन्हीं के सामने दो काल्पनिक डायरी का सर्जन किया गया। विद्यार्थियों से कहा गया कि वह पिछले या आजकल के दिनों का स्मरण कर काल्पनिक डायरी अंश लिख सकते हैं। तत्काल लिखी डायरियों के कुछ अंश गवाह हैं कि विद्यार्थियों ने डायरी के मूल तत्व को सहजता से पकड़ लिया है। कुछ अंश यहां दिए जा रहे हैं।
एक-आज कार्यशाला का दूसरा दिन है। सुबह आई और बैठ गई। मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। सोच रही थी कि आज भी कल की तरह मजे आएँगे। लेकिन जब कल की रिपोर्ट बच्चे पढ़ रहे थे तो बिल्कुल मजा नहीं आया। लेकिन जब खेल गतिविधियां हुई तो मजे आने लगे। कल की कहानियां जमा हुईं। आज डायरी पर बात हुई। उदाहरण के तौर पर कमली और अमित की डायरी लिखवाई। जिसे सुनने में मजा आया। उस से ज्यादा मजा डायरी लिखते कैसे हैं? यह सीखने में आया। जब हमें डायरी लिखने को कहा गया तो मुझे बहुत खुशी हुई। मुझे डायरी लिखना पता नहीं क्यों लेकिन अच्छी लगती है। जब हमें कहा गया कि घर से भी एक दिन की असली वाली डायरी लिखनी है तो मैं और भी खुश हो गई। मैंने सोचा कि ऐसे ही बच्चों को उनके पसंद का काम मिले तो वह रोज अपना काम करके ले आएं। -प्रियांशी रावत,शाम,8 बजकर सत्तावन मिनट दिनांक 10 सितम्बर 2022 गाँव खरसाड़ा,टिहरी गढ़वाल
दो-मुझे अपने-आप पर बड़ी शर्मिन्दा महसूस हुई। एक दुख टाइप का हुआ। गुस्सा आ रहा था कि मैं कितनी लापरवाह इंसान हूँ। जब यहाँ काम दिया गया था तो अगर मैं उसे उसी समय कर लेती तो शायद मुझे आज दौड़ना,छोड़ना न पड़ता। सामाजिक की ट्यूशन या क्लास न छोड़नी पड़ती। मैंने अपनी एक दिन की दौड़ मिस कर दी। एक दिन की क्लास मिस कर दी। एक दिन की नींद मिस कर दी। मतलब मैंने आधा दिन अपनी लापरवाही की वजह से मिस कर दिया। मुझे इससे अच्छी-खासी सीख मिलती है कि उस काम को उसी समय कर देना चाहिए। कल के भरोसे कुछ नहीं हो पाता है। इसी वजह से मैं आज लेट उठी और सुबह की ट्यूशन भी मिस कर दी। -प्रियांशी, गाँव सौड़, समय 10 बजकर 15 मिनट
तीन-आज स्कूल की छुट्टी के बाद दिन में मैं स्कूल से घर आ रहा था। मेरी बहन भी घर आ रही थी। वह फिसल गई। उसे गहरी चोट आ गई। चोट इतनी गहरी थी कि भीतर की हड्डी दिख रही थी। वह रोने लगी। वह चल भी नहीं पा रही थी। मैं भी डर गया। उसकी चोट देखकर मुझे भी रोना आ रहा था। मैं दौड़कर डाॅक्टर के पास गया। मेरे पास पैसे थे तो मैं दवाई ले आया। तब तक मेरी बहन किसी तरह बैठते-बैठते घर आ गई थी। मैं जब तक घर आया तो मम्मी ने उसके पैर पे पट्टी कर दी थी। फिर उसने दर्द की दवाई खाई फिर सो गई। -अनिरूद्ध, कक्षा आठ, दिनांक 10.9.2022 समय 5 बजे शाम, ग्राम उखेल।
चार-मम्मी बहुत काम करती है। जब देखो काम पर लगी रहती है। यही कारण है कि अचानक बुखार में तपने लगी थी। बुखार लगातार था। मैंने मम्मी से कहा कि डाॅक्टर के पास चलो। वह तैयार हो गई। मैं मम्मी के साथ गई। मम्मी के लिए दवाई लाई। दवाई खाने से वह पूरी तरह तो नहीं पर कुछ ठीक हो गई। फिर एक दिन मम्मी जब नहाई तो उन्हें ठंड लगने लगी। मैं जब स्कूल से घर आई तो मैंने देखा कि मम्मी बिस्तर पर लेटी हुई है। पापा ने बताया कि टाइफाइल है। मुझे रोना आ गया। मैं बहुत ज्यादा रोई। मम्मी को गुलकोज़ चढ़ाया गया है। फिर कुछ दिन के इलाज के बाद वह ठीक हो गई। यह बात ऐसी है कि जैसे कल की ही हो। -दीपिका, दिनांक 10 सितंबर 2022,समय रात आठ बजकर तीन मिनट, कक्षा सात, गाँव लसेर
पाँच-आज जब मैं घर से स्कूल आ रहा था तो गाड़ी से आ रहा था। हम बात करते हुए आ रहे थे। गाड़ी वाले ने गाड़ी रोक दी। ठीक आगे ट्रक खड़ा था। एक ट्रक पंचर हो गया था। हम उतरकर किनारे से बड़ी मुश्किल से आगे चले गए। सड़क खाली थी। मैं दोस्तों के साथ बात करते हुए चल रहा था। तभी सामने से एक गाड़ी बहुत स्पीड से हमारे आगे आई। वैसे उस गाड़ी ने हाॅर्न नहीं दिया। हम बीच में चल रहे थे। पर गाड़ी के ब्रेक बढ़िया थे। गाड़ी चींचचींच करती हमारे आगे रुक गई। ब्रेक तेज थे वरना नहीं तो आज हमारी जान ही चली जाती। -दिव्यांशु रणाकोटी,ग्राम सकन्याणी, कक्षा आठवीं,सुबह 6ः40 बजे। दिनांक 09.09.2022
छह-आज सुबह मैं स्कूल आ रही थी। पता नहीं कि मैं क्या सोच रही थी। पीछे से आवाज आ रही थी। हमारे स्कूल के हमारे बड़े भईया और दीदी आ रही थीं। मैं उनके लिए रुक गई। अब हम साथ-साथ चलने लगे थे। एक लड़की हमसे काफी आगे चल रही थी। वह पता नहीं किसके लिए रुकी हुई थी। बीच सड़क में थी वो। मैंने देखा कि हाई टेंशन की बिजली की तारे चरड़-चरड़ कर ही हैं। उसके ठीक ऊपर। मुझे लगा कि शोर्ट सरकिट न हो जाए कहीं। हम तो अपनी जगह रुक गए। उसे चिल्लाकर आगे भागने को कहा। मेरे पीछे-पीछे मेरी छोटी बहन भी आ रही थी। मैंने दौड़कर उसे पकड़ लिया। हम रुके रहे। जब चरड़-चरड़ की आवाज़ बिलकुल बंद हो गई, तभी हम आगे को चले। हम दोनों बहने कितना भी झगड़े पर प्यार भी उतना ही करते हैं। हमसे आगे के बच्चे स्कूल सुरक्षित पहुँच गए थे। अब मैं खुश थी। हम भी थोड़ी देर बाद समय पे स्कूल पहुँच गए। -संध्या,सातवीं,गाँव लसेर,दिनाँक 10/09/2022 समय सुबह 7: 15 बजे।
सात-कल की ही बात है। मेरे चाचा जी का लड़का जैसे ही स्कूल से घर आया उसने उल्टियाँ ही उल्टियाँ की। चाचा जी उसे जल्दी से अस्पताल ले गए। देवप्रयाग ले गए। फिर देहरादून ले गए। हम बहुत डर गए थे। अचानक ऐसा क्या हुआ कि यहां से बीस किलोमीटर दूर देवप्रयाग ले जाना पड़ा। और फिर सीधे देहरादून। हमने रात को चाचा को फोन किया। हमने पूछा कि क्या हुआ। चाचा ने बताया कि अब थोड़ा ठीक है। चार इंजेक्शन लगे है। गुलकोज़ भी चढ़ा रहे हैं। अब सो गया है। आज सुबह बात की तो पता चला है कि उसे सुबह ही घर लाए हैं। अब वह अपनी मम्मी के साथ यानि चाची के साथ देहरादून में है। सब ठीक हो जाए बस। -मयंक रावत, सातवीं,खरसाड़ा। दिनांक 10 सितम्बर 2022 समय 12 बजकर 02 मिनट,दोपहर
आठ-आज सुबह मैं उठा। चाय-नाश्ता करके मैं स्कूल के लिए तैयार हुआ। रास्ते में हैंडपंप है। मैंने स्कूल के लिए एक बोतल पानी भरा। मैं जैसे ही मुड़ा तो मेरा पैर एक साँप की पूँछ पर पड़ा। मैं बहुत ही डर गया। वो तो शुकर है कि मेरे हाथ से बोतल उसके ऊपर गिर गई। वह गजबजा गया। मैं डर के मारे कांपता ही रह गया। स्कूल पहुँचकर मैंने यह बात दोस्तों को बताई। वह भी डर गए। सब यही कह रहे थे कि बाल-बाल बच गया। वैसे आँख खोलकर पैरों पे ही देखना चाहिए। -सुजल, आठवीं,मरोड़गाड़ दिनांक 10/09/2022 समय: 12 बजकर 33 बजे
नौ-कल मेरे पापा ने दुकान में सबको पार्टी दी है। वह आज शहर जा चुके हैं। मेरे पापा बहुत दूर जा रहे हैं। जब पापा घर आए तब हमने खुशी से अपना डैक बजाया। हम सब नाचे थे। आज जब पापा जा रहे थे तो दादी घर से सड़क तक ऊपर छोड़ने आईं। दादी रोने लगी। मम्मी भी रोई। घर के बड़ों को देखकर मुझे भी रोना आ गया। -कनिका रावत,आठवीं,रात 10 बजकर 22 मिनट,10 सिमम्बर 2022
दस-बहुत पहले की बात है। लेकिन मुझे लगता है कि कल की ही बात है। मैं माँ के साथ घास काटने गई हुई थी। मैं माँ के पास ही दराँती से घास काटने लगी। माँ ने कहा कि दूर जाकर घास काट। मैंने पूछा था,‘‘क्यों?’’ माँ ने कहा था कि यहाँ घास के बीच में काँटे ही काँटे हैं। तेरे हाथों में चुभ जाएँगे।’’ मैं माँ की यह बात सोचते-सोचते तीस-चालीस कदम आगे चलकर घास काटने लगी। अभी मैंने एक मुठ घास ही काटी थी कि एक हरे रंग का साँप उछलकर मेरे बाएँ पैर में जा गिरा। मैं चीख उठी। माँ दौड़कर आई। पूछा तो मैंने बताया,‘‘मुझे साँप ने काट दिया है।’’ घास काटते हुए मेरी दराँती से साँप भी कट गया था। मम्मी ने तुरंत पापा से मोबाइल पर बात की। मुझे उसी वक्त अस्पताल ले गए। तीन महीने तक मेरा इलाज चला। तब से मैं मरा हुआ साँप भी देखती हूँ तो डर जाती हूँ। -राधिका,सातवीं,मथाण गाँव, दिनांक 10/09/2022 सुबह 11 बजकर 59 मिनट
ग्यारह-कल की ही बात है। स्कूल की छुट्टी थी, तो भागमभाग नहीं थी। लेकिन लेखन कार्यशाला में आना था। मैंने कपड़े पहन लिए थे। बैग तैयार कर लिया था। तभी मेरी माँ मेरे लिए खाना ले आई। भूख भी थी। मैंने खाना शुरू कर दिया। माँ बाहर गई तो मैंने मोबाइल पकड़ लिया। मोबाइल चलाते-चलाते टाइम का पता ही नहीं चला। माँ पानी लाकर आई तो गुस्सा हो गई। मोबाइल छीना और मुझे डांटा भी। थाली पर रखा खाना वैसा ही रखा था। मैंने फटाफट खाना खाया। दौड़ लगाकर आया। फिर भी देर से ही यहाँ पहुँचा। -समय 3 बजकर 7 मिनट दिनांक 10.09.2022 खरसाड़ा स्कूल से।
बारह-छुट्टी का दिन था। हम घर पर ही थे। दीदी की सहेली आई। बातें हुईं। हमारे पेड़ पर नीबू लगे हुए थे। उसने माँगे। दीदी ने मुझे नीबू तोड़ने का कहा। मैंने तोड़े और एक थैली में रख दिए। फिर में अपनी सहेली के घर चली गई। लौटी तो देखा कि दीदी की सहेली अपने घर चली गई। लेकिन नीबू ले जाना भूल गई। दीदी ने मुझसे कहा कि नीबू देने उसकी सहेली के घर चली जा। मैं नीबू लेकर दीदी के सहेली के घर चली गई। दीदी की सहेली के घर के रास्ते पर एक बूढ़े आदमी मिले। उन्होंने कहा कि आगे सांप हैं। मैंने सोचा वह ठगा रहे हैं। मैं फिर भी आगे चलती रही। साँप था। मैं डर गई। फिर घूम कर खेतों के रास्ते दीदी की सहेली के घर पहुँच गई। नीबू दिए और साँप वाली बात बताई। उसने मुझे घर के पीछे का दूसरा रास्ता दिखाया और कहा कि आराम से जाना। संभल कर जाना। मैं जाने लगी तो मुझे उस रास्ते में भी साँप मिला। मैं डर गई और फिसल गई। मेरे पैर और घुटने में चोट आई। उठकर मैं जाने लगी तो साँप कहीं ओर निकल गया। घर पहुँची तो मम्मी ने दीदी को डांटा। कहा कि मुझे ऐसे नहीं भेजना चाहिए था। फिर मम्मी ने मेरी चोट पर दवा लगाई। फिर मैं सो गई। शाम को उठी। -दिव्यांशी,छठी,जिमाण गाँव दिनांक 10.9.22 समय 11 बजकर 55 मिनट।
डायरी लेखन सत्र को छियासी विद्यार्थियों के साथ साझा किया गया। सभी ने तत्काल एक-एक स्मृति आधारित काल्पनिक डायरी के अंश लिखे। उनसे अनुरोध किया गया है कि वह जब मन करे डायरी लिखें। डायरी को बीते बारह-पन्द्रह घण्टे के आधार पर केन्द्रित रखें। डायरी स्मृति पर आधारित हो न कि काल्पनिक। यथार्थ से भरी हो। संक्षिप्त हो। विद्यार्थियों ने आश्वस्त किया है कि वह डायरी लेखन में निरन्तरता बनाए रखेंगे। चूँकि मोहन चैहान विद्यालय में ही कार्यरत हैं और पुस्तकालय की जिम्मेदारी भी संभालते हैं। विद्यार्थी उनके पास जाते भी हैं तो विद्यार्थियों की डायरी पर वह परामर्श देते रहेंगे।
डायरी लेखन से सतत् सीखते रहने की कला भी सँवरती हैं। डायरी न सिर्फ घटित घटना का बयां होती है बल्कि विद्यार्थियों में समस्या-समाधान,तार्किक और रचनात्मक रूप से सोचना वह भी लगातार सोचने का अवसर देती है। हालांकि यह कहना गलत ही होगा कि स्कूल की गतिविधियां ऐसा नहीं करती। लेकिन वहां निजी तौर पर निजी अनुभवों को खुले मन से अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता भी है। इसमें संशय है। नई शिक्षा नीति 2020 का कहना है कि शिक्षा का उद्देश्य अच्छे इंसानों का विकास करना है। ऐसे इंसान का विकास जो तर्कसंगत विचार करे। जिसमें करुणा, सहानुभूति, साहस,वैज्ञानिक चिंतन,कल्पनाशक्ति और रचनात्मकता भी हो। डायरी लेखन यदि निरन्तर लिखी जाए तो यह विधा स्वतः ही यह सब करने में बेहद सहायक होती है।
इन दिनों एफ॰एल॰एन॰ पर जोर है। फाउण्डेशनल लिटरेसी एंड न्यूमेरेसी के प्रति नई शिक्षा नीति भी बेहद गंभीर है। बुनियादी स्कूलों में ऐसे बच्चों की संख्या पाँच करोड़ से अधिक है जो सीखने की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं। ऐसे बच्चे सामान्य लेख को पढ़ने,समझने और अंकों के साथ बुनियादी जोड़ और घटाव करने की सामान्य क्षमता भी नहीं रखते। बुनियादी सांक्षरता एवं संख्या-ज्ञान के लिहाज से भी डायरी लेखन विद्यार्थियों के ज़ेहन में चल रही दुविधा,चुनौतियां, घटनाएं और अप्रत्याशित भावों का संचयन हो सकता है। जैसा ऊपर के डायरी अंशों से पता चलता है कि लगभग तेरह गाँव के यह विद्यार्थी किस परिवेश में रहते हैं। इनका स्कूल और घर की दूरी क्या है? ये स्कूल आने से पहले और स्कूल से जाने के बाद करते क्या हैं? इनका दैनिक जीवन किन बातों-समस्याओं और परिवेश से जुड़ा है? यदि विद्यालय में डायरी लेखन को स्थान मिले तो शिक्षकों को डायरी अंश पढ़ने मात्र से काफी मार्गदर्शन मिल सकता है। परंपरागत शिक्षण अभी तक विद्यार्थियों की उस अभिव्यक्ति की जांच ही नहीं करता जो ऊपर एक दिन की डायरी मात्र में आई हैं।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि स्वतंत्र लेखन, अनुभव पर आधारित लेखन भाषाई कौशल बढ़ाता है। यही नहीं इसका परोक्ष संबंध सीखने की गति को बढ़ाने से भी है। सूक्ष्म अवलोकन की आदत भी बढ़ती है। लेखन सधता है तो कहीं न कहीं लिखने की गति भी बढ़ती है। कम समय में अपेक्षित गति से लिखना बढ़ता है। वाक्यों में लय बढ़ती है। कहीं न कहीं वर्तनी दोष भी कम होता है। विद्यार्थियों में यदि अवलोकन करने का और लिखने का चस्का लग जाए तो वह लिखने के साथ-साथ पढ़ने भी लगते हैं। पढ़ने के लिए सामग्री भी जुटाते हैं। धीरे-धीरे वह लिखते समय सटीक शब्दों का चयन करने लगते हैं। फिर उनका ध्यान व्याकरिणक इकाईयों की ओर भी जाता है। कुल मिलाकर वह अपना लेखन साधते हैं। सीधी-सी बात है कि यह अभ्यास अन्य विषयों की समझ बढ़ाने और उनके प्रकरणों की लिखित अभिव्यक्ति में भी कारगर होता है