‘इस दौर में इंसान का चेहरा नहीं मिलता।

कब से मैं नक़ाबों की तहें खोल रहा हूँ।’

जी हाँ। सुनीता उन्हीं में से एक है। जिन्हें इंसान पहचानने आते हैं। तब भी वह अपनी आदमियत नहीं खोती। आज जब नफ़रतों का दौर ऐसा हो गया है जब मुहल्लों-दर-मुहल्लों को बाहर वाले और भीतर वाले खांचों में बांट दिया गया है। सुनीता भी चाहती हैं कि हर कोई अमन पसंद हो। सब खुशहाल हों।

आज सोशल मीडिया चिर-परिचितों में सुनीता मलेठा का जन्मदिन बता रहा है। उनकी जन्मतिथि आज है। उन्हें जन्मदिन मुबारक हो। सुनीता यानी जिन्हें हम सुनीता चौहान या सुनीता मोहन के नाम से भी जानते हैं। बधाई ! उनकी समयरेखा में बधाईयाँ दी जा रही है।

मेरे जैसे अच्छी तरह से जानते हैं कि सुनीता बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं। कुछ लोग मिल्कियत से धनी होते हैं। अपनी रौ में रहते हैं। अपने चारों और निजता के अवरोधक खड़े कर देते हैं। वे सुविधासम्पन्न होने पर भी सामाजिक स्तर पर कंगले ही नज़र आते हैं। नज़र क्या आते हैं वह अपने ही खोल में एकाकी जीवन जीने के आदी हो जाते हैं। लेकिन सुनीता जैसे लोग हर वक़्त अपनों के लिए, परिचितों के लिए और दायित्वबोध के चलते हर किसी के लिए उपलब्ध होते हैं।

बाएं से सुनीता, तूलिका एवं मोहन


बहरहाल, मैं उन्हें लगभग तीस सालों से जानता हूँ। यह मेरे लिए गौरव की बात है। ऐसा कहने से ही हम स्वयं को समृद्ध मान सकते हैं। हैं भी। बता दूं कि वह उस समय छात्र राजनीति में प्रान्तीय स्तर पर छात्र संघर्षशील अगुवाओं में एक थीं। कह सकता हूँ कि छात्र आन्दोलन और महाविद्यालयी स्तर पर जिये, देखे और अनुभव किए गए समय ने उनके व्यक्तित्व को सघन तौर पर गढ़ा। यह बात भी उतनी ही सही है कि हम और आप पारिवारिक परिवेश, भाई-बहिनों, दोस्तों और पड़ोस के अपनत्व से भी पैने होते चले जाते हैं। अन्यथा खुरदरे लोग आपको अपने आस-पास खूब मिल जाएंगे। हमारे जीवन में जो पैनापन है वह किसी को चोट नहीं पहुँचाता बल्कि मुश्किल के समय में एक छतरी की तरह काम करता है। मैं कह सकता हूँ कि सुनीता के पास जो पैनापन है उसकी धार कभी कुंद नहीं होनी चाहिए।


सुनीता देखती हैं। समझती हैं। अवलोकन करती हैं। अपने व्यक्तित्व की वजह से कई जगहों पर मौन रहती हैं लेकिन इस प्यारे से समाज में जो निष्ठुरता बढ़ रही है उससे वह आहत भी होती हैं और परेशान भी हो जाती हैं। यह ऐसे संवेदनशीलों का स्वाभाविक गुण भी है। मदद को तत्पर सुनीता अक्सर पल-दो-पल में मुखौटों की तरह रवैया बदल लेने वालों को बखूबी पहचानती है। परिचितों को सावधान भी करती हैं।
मुझे जौन एलिया का एक शेर याद आता है। वह कुछ इस तरह से है-


कौन सीखा है सिर्फ़ बातों से
सबको एक हादसा ज़रूरी है


सुनीता की स्वयं की प्रकृति और उनके काम की प्रकृति ने उन्हें होनी-अनहोनी का साक्षी बनाया है। यही कारण है कि उनका तजुर्बा चक्रवृद्धि ब्याज की तरह बढ़ रहा है। उनके पास हर क्षेत्र की जानकारी है। यदि वह किसी क्षेत्र में असहज होती हैं तो अपने सम्पर्कों-अध्ययन से आप तक सरका देती हैं। वो एक शायर हैं अल्ताफ़ हुसैन हाली। उन्होंने कहा है कि

‘जानवर, आदमी, फ़रिश्ता, ख़ुदा।

आदमी की हैं सैकड़ों क़िस्में।

सुनीता इन्हीं में उस पांत में खड़ी दिखाई देती हैं जो चाहते हैं कि मनुष्यता बची रहे। बनी रहे। यही वजह है कि वह तेजी से बिगड़ते मानवीय रिश्तों-अहसासातों से कई बार खिन्न दिखाई देती हैं। लेकिन वह भी मानती हैं कि यह दौर भी गुजर जाएगा। आमीन।

बाएं से सुनीता, तूलिका एवं मोहन

थोड़े को ज़्यादा समझना। यदि आप लपक कर उनसे दोस्ती करना चाहें तो कर सकते हैं। हरफ़-दर-हरफ़ सच निकलेगा। लेकिन जान लें कि टूल किट समझकर अपना काम बनता,भाड़ में जाए जनता की सोच है तो दूर ही रहिए। हालांकि वह इस प्रतिफल में अपना दायरा नहीं बढ़ाती कि वह दूसरों के काम आती हैं तो दूसरे उनके काम आएंगे। फिर भी। आपको बरतने के बाद आपके प्रति वह जो नज़रिया बना लेंगी वह अवसरवादी का निकला तो दुःख होगा। मुझे भी।


बहरहाल। इस बहाने मोहन चौहान और तूलिका को भी बधाई कि वह उनकी जन्मतिथि को उत्सव की तरह मनाएं। जानता हूँ कि आज कुछ खास हो रहा होगा। अलहदा शाम गुजरेगी जब मिल बैठेंगे-सुनीता,मोहन और तूलिका।
हम दूर से ही साथ हैं। इतना समझ ही लेंगी आप।

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By manohar

2 thoughts on “इस दौर में इंसान का चेहरा नहीं मिलता”
  1. मनोहर चमोली मनु भैया, किन शब्दों से आभार व्यक्त करूं? आपने कितनी आत्मीयता, कितने प्रेम से लिखा है ये सब, जानती हूं! उतना सब मेरे भीतर न होगा, लेकिन ये तो आपकी सलाहियत भरी नज़रें हैं, जो वो सब मुझमें देखती होंगी। मेरी ही तरह आप भी उस इंद्रधनुषीय दुनिया का सपना देखते हैं, जहां सारे रंग एक दूसरे में घुलते हुए भी अपना रंग बनाए रखें! दुनिया, जहां सब एक दूसरे का सम्मान करें, प्रेम करें। भेदभाव रहित उस खूबसूरत जहान के सपने को देखते हुए हम एक साझापन महसूस करते हैं। लेकिन कहना न होगा कि, इस सपने को पूरा करने की दिशा में आप जिस शिद्दत से काम करते हैं, उसके अंश भर भी नहीं कर पाती मैं।
    आपने इस पोस्ट के ज़रिए मुझे भावुक ही नही कर दिया बल्कि मुझे एक बार फिर से एहसास कराया है कि, अच्छे दोस्त और अच्छे इंसानों की सोहबतों के मुआमले में मुझसा रईस क्या ही होगा कोई और यहां!
    शुक्रिया भैया, हमारे आस पास बने रहने के लिए, आप जैसे साथियों के होने से एक आश्वस्ति महसूस होती है, कि दुनिया बड़ी हसीं है!💐💐💐💐

    1. जी आभार ! बस यूँ ही मन किया। स्कूल से घर आकर चाय पीकर बैठ गया। मन था कि लिखा जाए। सो लिखा गया। मुझे लगता है कि हम सभी को एक-दूसरे के लिए अपनी अभिव्यक्ति देनी ही चाहिए। जैसी भी हो। सादर,

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