‘शॉल का आखि़र क्या हुआ?’ एक बोध कथा है। इसका पुनर्लेखन अरविन्द गुप्ता ने किया है। किताब के चित्र देबस्मिता दासगुप्ता ने बनाए है। बोध कथा का शानदार सरलीकरण पढ़ते हुए बनता है। वहीं किताब के चित्रांकन कथा को पढ़ते हुए अनुमान-कल्पना के साथ प्रयोजन के पास जल्दी से पहुँचाने के लिए बाध्य करते हैं। जैसा कि मैं हमेशा कहता आया हूँ कि कहानी जैसी सुनाई जाती है उसे उसी तरह से लिखा जाना चाहिए। सरल शब्द वह भी आम बोलचाल के शब्द। ये ओर बात है कि यदि कहानी अपने समय को प्रमुखता से बताती है तो कुछ बातों का ध्यान रखना उचित होता है। लेकिन, कहानी ‘शॉल का आखिर क्या हुआ?’ पढ़ते-पढ़ते और चित्रों के आलोक में नए शब्दों को सहजता से आत्मसात् करने की भरपूर, असरदार, जानदार और शानदार ताकत रखती है।

गौतम बुद्ध का देशकाल पाँचवी-छठी शताब्दी का माना जाता है। कहते हैं कि बुद्ध ने विश्वामित्र से वेद और उपनिषद् की भी विद्या ली थी। अब हम कहानियों में बुद्ध का चरित्र और संदर्भ लाते हैं तब क्या ज़रूरी है कि पात्रों के बीच तत्कालीन समाज की भाषा का ही उपयोग किया जाए? अलबत्ता जहाँ बहुत जरूरी हो तभी इस बात का ध्यान रखा जाए। हाँ, बुद्ध के सन्दर्भ में देशकाल का चित्रण तो उसी के अनुरूप दर्शाया जाना चाहिए।


प्रथम बुक्स ने अपने आप पढ़ने वाले पाठकों के लिए इस बोध कथा का पुनर्लेखन अरविन्द गुप्ता से करवाया होगा। अरविन्द गुप्ता उपयोग हो चुकी चीज़ों-वस्तुओं और कबाड़ से मज़ेदार-खेल सामग्री और खिलौने बनाते रहे हैं। वे विज्ञान और वैज्ञानिक नज़रिए के लिए दर्जनों पुस्तकें लिख चुके हैं। यह किताब भी किसी एक वस्तु के लगातार बहु उपयोग की कथा है। कोई भी चीज़ नष्ट नहीं होती। उसका उपयोग और उपभोग बदल जाता है। संभवतः अरविन्द गुप्ता को इस लिहाज से ही यह बोध कथा अच्छी लगी होगी।

निसंदेह यह कथा आज तो और भी व्यावहारिक और ज़रूरी हो जाती है। बात बस इतनी-सी है कि एक भिक्षु बुद्ध से अपने लिए शॉल मांगता है। बुद्ध पूछते है कि उसकी पुरानी शॉल कहाँ गई? भिक्षु के यह बताने पर कि वह बहुत पुराना और जगह-जगह से फट गया था। भिक्षु ने उसका चादर की तरह बिछौना बना लिया।
बुद्ध के यह पूछने पर कि पहले वाली चादर का क्या हुआ? जवाब मिलता है कि चादर फट गई थी तो उसे काटकर तकिये का गिलाफ़ बना लिया।

बुद्ध के यह पूछने पर कि तकिए पर पहले से चढ़े गिलाफ का क्या हुआ? जवाब मिलता है कि सिर हजारों-लाखों बार रगड़े जाने से फट गया। अब उसका पायदान बना लिया है।
बुद्ध ने फिर पूछा कि पुराने पायदान का क्या किया? भिक्षु जवाब देता है कि पायदान के रेशे-रेशे निकल गए थे। से रेशों से बाती बनाई। बाती तेल के दिए में उपयोग हो गई।
बस फिर क्या था। भिक्षु को नया शॉल मिल गया।

बस इतनी-सी है यह कहानी।

कहानी भले ही बहुत ही छोटी है। लगभग पच्चीस वाक्यों की इस कहानी में व्यापकता किसी सागर से कम गहरी नहीं है। मसलन लगभग 250 शब्दों में कह दी गई कहानी उससे ज़्याद विचार करने के लिए पाठक से समय छीन लेती है। यह इस कहानी की ताकत है।

अलबत्ता ‘अंगरखे’,‘‘प्रार्थना’,‘गिलाफ़’,‘विनम्रता’,‘असंतुष्ट’,‘अंतिम’ शब्द आए हैं। लेकिन यह बाधक नहीं बनते। पढ़ते-पढ़ते पाठक समझ के साथ सायास अर्थ के नज़दीक पहुँच सकता है।

कहीं कोई संदेश नहीं है। कोई कोरा उपदेश नहीं है। कोई आदर्श का प्रतिमान नहीं गढ़ा गया है। भिक्षु और बुद्ध के संवाद हैं। भिक्षु अपने लिए एक शॉल मांगता है। बुद्ध विनम्रता से भिक्षु से पिछली शॉल के उपभोग की जानकारी मांगते हैं।

सिलसिलेवार पाठक को पता चलता है कि किसी चीज़ का आकार-प्रकार बदल जाने पर वह कूड़ा नहीं हो जाती। अरविन्द गुप्ता कृत ‘कबाड़ से जुगाड़’ अभियान से यह बोध कथा कहीं न कहीं कुछ न कुछ संबंध रखती है।

दो ही पात्र हैं। भिक्षु और बुद्ध। आरंभ में ही भिक्षु की एक चाह है। वह अपने लिए नई शॉल चाहता है। अंत में उसे शॉल मिल भी जाती है। लेकिन चाह और उसकी प्राप्ति के बीच जो यात्रा है, वह शानदार है। जिस तार्किकता और उपयोगिता के साथ कहानी आगे बढ़ती है वह काबिल-ए-गौर है। पाठक भी एक पल के लिए अपनी आँखें इबारत से हटाना नहीं चाहता। वह भी जानना चाहता है कि बुद्ध कब तक सवाल करते रहेंगे! वह भिक्षु की जरूरत के साथ आरम्भ से ही जुड़ जाता है। वह भिक्षु की मांग से अधिक उसकी सूझ-बूझ और पुरानी चीज़ों के लगातार इस्तेमाल करते रहने का कायल हो जाता है।

यह कहानी कहती तो नहीं है लेकिन पाठक स्वतः ही इस समझ का सृजन करता है कि किसी भी चीज़ का अन्तिम उपयोग उसके पहले उपयोग के साथ ही नहीं होता। संभवतः खराब और अनुपयोगी हो चुकी योग दूसरे प्रयोजन के लिए इस्तेमाल की जा सकती है। बस! ज़रूरत है भिक्षु जैसी दृष्टि की।

इस कथा की कसावट के कई कोण है। ताना-बाना मजबूत है। प्रवाह भी। कथ्य भी। भाव और पृष्ठभूमि भी। मजेदार बात यह है कि कोई भी पाठक यह नहीं कह सकता कि आज के सन्दर्भ में चीजों,वस्तुओं-सामग्रियों का ऐसा उपभोग संभव नहीं। यह वही बात हुई कि यदि गेहूँ है तो आपके पास कई भोज्य सामग्री बनाने की संभावनाएं हैं। पिसा हुआ आटा है तब भी कई विकल्प हैं। यदि आटा गूंद लिया गया है तब विकल्प सीमित हो जाते हैं।

चित्र बेमिसाल हैं। कवर और भीतर के पन्नों के कागज बालस्वभाव को ध्यान में रखते हुए मजबूत हैं।
कहानी तो सात पेज में आ गई है। बाकि के पन्नों में कपड़े की गेंद बनाइए और धागों का कमाल गतिविधियां शामिल की गई हैं।

किताब: शॉल का आखि़र क्या हुआ?
पुनर्लेखन: अरविन्द गुप्ता
चित्रांकन: देबस्मिता दासगुप्ता
मूल्य: 45 रुपए
पेज: 12
प्रकाशन वर्ष: 2016
चौथा संस्करण: 2019
प्रकाशक: प्रथम बुक्स
प्रस्तुति: मनोहर चमोली मनु
सम्पर्क: 7579111144

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By manohar

परिचयः मनोहर चमोली ‘मनु’ जन्मः पलाम,टिहरी गढ़वाल,उत्तराखण्ड जन्म तिथिः 01-08-1973 प्रकाशित कृतियाँ ऐसे बदली नाक की नथः 2005, पृष्ठ संख्या-20, प्रकाशकः राष्ट्रीय पुस्तक न्यास,नई दिल्ली ऐसे बदला खानपुरः 2006, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः राज्य संसाधन केन्द्र (प्रौढ़ शिक्षा) 68/1,सूर्यलोक कॉलोनी,राजपुर रोड,देहरादून। सवाल दस रुपए का (4 कहानियाँ)ः 2007, पृष्ठ संख्या-40, प्रकाशकः भारत ज्ञान विज्ञान समिति,नई दिल्ली। उत्तराखण्ड की लोककथाएं (14 लोक कथाएँ)ः 2007, पृष्ठ संख्या-52, प्रकाशकः भारत ज्ञान विज्ञान समिति,नई दिल्ली। ख्खुशीः मार्च 2008, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः राज्य संसाधन केन्द्र (प्रौढ़ शिक्षा) 68/1,सूर्यलोक कॉलोनी,राजपुर रोड,देहरादून बदल गया मालवाः मार्च 2008, पृष्ठ संख्या-12, प्रकाशकः राज्य संसाधन केन्द्र (प्रौढ़ शिक्षा) 68/1,सूर्यलोक कॉलोनी,राजपुर रोड,देहरादून पूछेरीः 2009,पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः राष्ट्रीय पुस्तक न्यास,नई दिल्ली बिगड़ी बात बनीः मार्च 2008, पृष्ठ संख्या-12, प्रकाशकः राज्य संसाधन केन्द्र (प्रौढ़ शिक्षा) 68/1,सूर्यलोक कॉलोनी,राजपुर रोड,देहरादून अब बजाओ तालीः 2009, पृष्ठ संख्या-12, प्रकाशकः राज्य संसाधन केन्द्र (प्रौढ़ शिक्षा) 68/1,सूर्यलोक कॉलोनी,राजपुर रोड,देहरादून। व्यवहारज्ञानं (मराठी में 4 कहानियाँ अनुदित,प्रो.साईनाथ पाचारणे)ः 2012, पृष्ठ संख्या-40, प्रकाशकः निखिल प्रकाशन,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। अंतरिक्ष से आगे बचपनः (25 बाल कहानियाँ)ः 2013, पृष्ठ संख्या-104, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-81-86844-40-3 प्रकाशकः विनसर पब्लिशिंग कम्पनी,4 डिसपेंसरी रोड,देहरादून। कथाः ज्ञानाची चुणूक (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः उलटया हाताचा सलाम (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः पुस्तके परत आली (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः वाढदिवसाची भेट (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः सत्पात्री दान (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः मंगलावर होईल घर (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः सेवक तेनालीराम (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः असा जिंकला उंदीर (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः पिंपलांच झाड (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः खरं सौंदर्य (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः गुरुसेवा (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः खरी बचत (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः विहिरीत पडलेला मुकुट (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः शाही भोजनाचा आनंद (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः कामाची सवय (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः शेजायाशी संबंध (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः मास्क रोबोट (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः फेसबुकचा वापर (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः कलेचा सन्मान (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः सेवा हाच धर्म (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः खोटा सम्राट (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः ई साईबोर्ग दुनिया (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः पाहुण्यांचा सन्मान (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। जीवन में बचपनः ( 30 बाल कहानियाँ)ः 2015, पृष्ठ संख्या-120, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-81-86844-69-4 प्रकाशकः विनसर पब्लिशिंग कम्पनी,4 डिसपेंसरी रोड,देहरादून। उत्तराखण्ड की प्रतिनिधि लोककथाएं (समेकित 4 लोक कथाएँ)ः 2015, पृष्ठ संख्या-192, प्रकाशकः समय साक्ष्य,फालतू लाइन,देहरादून। रीडिंग कार्डः 2017, ऐसे चाटा दिमाग, किरमोला आसमान पर, सबसे बड़ा अण्डा, ( 3 कहानियाँ ) प्रकाशकः राज्य परियोजना कार्यालय,उत्तराखण्ड चित्र कथाः पढ़ें भारत के अन्तर्गत 13 कहानियाँ, वर्ष 2016, प्रकाशकः प्रथम बुक्स,भारत। चाँद का स्वेटरः 2012,पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-81038-40-6 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। बादल क्यों बरसता है?ः 2013,पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-81038-79-6 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। जूते और मोजेः 2016, पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-84697-97-6 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। अब तुम गए काम सेः 2016,पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-84697-88-4 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। चलता पहाड़ः 2016,पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-84697-91-4 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। बिल में क्या है?ः 2017,पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-86808-20-2 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। छस छस छसः 2019, पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-89202-63-2 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। कहानियाँ बाल मन कीः 2021, पृष्ठ संख्या-194, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-91081-23-2 प्रकाशकः श्वेतवर्णा प्रकाशन,दिल्ली पहली यात्रा: 2023 पृष्ठ संख्या-20 आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-5743-178-1 प्रकाशक: राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत कथा किलकारी: दिसम्बर 2024, पृष्ठ संख्या-60, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-92829-39-0 प्रकाशक: साहित्य विमर्श प्रकाशन कथा पोथी बच्चों की: फरवरी 2025, पृष्ठ संख्या-136, विनसर पब्लिकेशन,देहरादून, उत्तराखण्ड, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-93658-55-5 कहानी ‘फूलों वाले बाबा’ उत्तराखण्ड में कक्षा पाँच की पाठ्य पुस्तक ‘बुराँश’ में शामिल। सहायक पुस्तक माला भाग-5 में नाटक मस्ती की पाठशाला शामिल। मधुकिरण भाग पांच में कहानी शामिल। परिवेश हिंदी पाठमाला एवं अभ्यास पुस्तिका 2023 में संस्मरण खुशबू आज भी याद है प्रकाशित पावनी हिंदी पाठ्यपुस्तक भाग 6 में संस्मरण ‘अगर वे उस दिन स्कूल आते तो’ प्रकाशित। (नई शिक्षा नीति 2020 के आलोक में।) हिमाचल सरकार के प्रेरणा कार्यक्रम सहित पढ़ने की आदत विकसित करने संबंधी कार्यक्रम के तहत छह राज्यों के बुनियादी स्कूलों में 13 कहानियां शामिल। राजस्थान, एस.सी.ई.आर.टी द्वारा 2025 में विकसित हिंदी पाठ्यपुस्तक की कक्षा पहली में कहानी ‘चलता पहाड़’ सम्मिलित। राजस्थान, एस.सी.ई.आर.टी द्वारा 2025 में विकसित हिंदी पाठ्यपुस्तक की कक्षा चौथी में निबंध ‘इसलिए गिरती हैं पत्तियाँ’ सम्मिलित। बीस से अधिक बाल कहानियां असमियां और बंगला में अनुदित। गंग ज्योति पत्रिका के पूर्व सह संपादक। ज्ञान विज्ञान बुलेटिन के पूर्व संपादक। पुस्तकों में हास्य व्यंग्य कथाएं, किलकारी, यमलोक का यात्री प्रकाशित। ईबुक ‘जीवन में बचपन प्रकाशित। पंचायत प्रशिक्षण संदर्शिका, अचल ज्योति, प्रवेशिका भाग 1, अचल ज्योति भाग 2, स्वेटर निर्माण प्रवेशिका लेखकीय सहयोग। उत्तराखण्ड की पाठ्य पुस्तक भाषा किरण, हँसी-खुशी एवं बुराँश में लेखन एवं संपादन। विविध शिक्षक संदर्शिकाओं में सह लेखन एवं संपादन। अमोली पाठ्य पुस्तक 8 में संस्मरण-खुशबू याद है प्रकाशित। उत्तराखण्ड के शिक्षा विभाग में भाषा के शिक्षक हैं। वर्तमान में: रा.इं.कॉ.कालेश्वर,पौड़ी गढ़वाल में नियुक्त हैं। सम्पर्कः गुरु भवन, पोस्ट बॉक्स-23 पौड़ी, पौड़ी गढ़वाल.उत्तराखण्ड 246001.उत्तराखण्ड. मोबाइल एवं व्हाट्सएप-7579111144 #manoharchamolimanu #मनोहर चमोली ‘मनु’

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