स्वयं प्रकाश कृत ‘हाँजी नाजी’ पुस्तक सिर्फ एक बार पढ़ने के लिए नहीं है। इसे बार-बार पढ़ते हैं तो हर बार नए अर्थ, सन्दर्भ और परिस्थितियों से सामना होता है। पुस्तक में तीस कहानियाँ हैं। बाँयी ओर चित्र है तो दाँयी ओर कहानी। दाँयी ओर चित्र है तो बाँयी ओर कहानी है।

सुप्रसिद्ध चित्रकार अतनु राय ने इन गुदगुदाती कहानियों को जैसे प्राण दे दिए हों। साहित्य अकादेमी पुरस्कार प्राप्त स्वयं प्रकाश गद्य के शानदार लेखक हैं। हालांकि उन्हें उपन्यास, निबन्ध,नाटक आदि दूसरी विधाओं में भी महारत हासिल रही। मध्य प्रदेश के इन्दौर में स्वयं प्रकाश का बीस जनवरी सन् उन्नीस सौ सैंतालीस को जन्म हुआ। उन्होंने सात दिसम्बर दो हजार उन्नीस को मुंबई में अंतिम सांस ली। सुप्रसिद्ध कहानीकार स्वयं प्रकाश को विद्यार्थी कक्षा दस में उनकी कहानी ‘नेताजी का चश्मा‘ से बखूबी जानते हैं। स्वयं प्रकाश का परिचय इतना ही नहीं है। उनके समग्र लेखन पर तो कई लेखों का क्रम जारी रखा जा सकता है।

साहित्य में लोक कथाओं और चुटकुलों की अमूमन उपेक्षा हुई है। जबकि दोनों देशकाल, परिस्थितियाँ और तत्कालीन समाज का प्रतिनिधित्व कर रहे होते हैं। हाँजी नाजी हर बार अलग-अलग चरित्र के तौर पर पाठकों के समक्ष आते हैं। पाठक को कई बार पढ़ते हुए लगता है कि ऐसी कथा-सा तो कोई लतीफा तो कहीं सुना-पढ़ा है। लेकिन स्वयं प्रकाश ने लोकतत्व को जिस नज़र और सन्दर्भ से लिया है और उसका प्रस्तुतिकरण गढ़ा है वह पाठक को भीतर तक गुदगुदा देता है। तनाव, बेचैनी, थकान और हताशा में डूबा मन नए सिरे से वसंत की चाह करने लगता है।

इस किताब में कभी नाजी अध्यापक के तौर पर सामने आता है तो कभी वह हाँजी का परम मित्र बनकर हँसाता है। कभी नाजी डॉक्टर का चरित्र लेकर पाठकों के सामने प्रस्तुत होता है तो कभी हाँजी मजदूर, पलम्बर या आम आदमी की प्रतिनिधि आवाज़ बनकर उभरता है। कभी नाजी नज्जू चोर बन जाता है तो कभी हाँजी बेराजगारों की मनस्थिति का नायक बनकर उभरता है।

कुल मिलाकर पुस्तक में एक-एक पेज की छोटी-छोटी कहानियाँ हैं जो कई बार वाकये के तौर पर उभरती है और हँसी का फव्वारा फैला कर पूरे शरीर को हिलहिला देती है। स्वयं प्रकाश ने इन तीस वाकयों, लतीफों-सी कथाओं में हास-परिहास का टॉनिक मिलाया है। लेकिन कहीं भी वह किसी वर्ग, क्षेत्र, पद और चरित्र का मजाक नहीं उड़ाते। कहीं कोई चरित्र समाज में अपमानित महसूस नहीं कर सकता। अलबत्ता चरित्रों में भोलापन, सादगी, तार्किकता, सूझ-बूझ, लापरवाही, मानवीय खूबियाँ या कमजोरियाँ उभरकर सामने आती हैं।

जुगनू प्रकाशन ने इस किताब को प्रकाशित किया है। इस किताब का आकार वर्गाकार है। उन्नीस बाय उन्नीस सेंटीमीटर इसका आकार क्यों रखा गया होगा? जब यह किताब हाथों में खुलती है तो अड़तीस सेंटीमीटर का फैलाव लेती है। हाथों को असहज करती है। रैक या अलमारी में रखी किताबों से अलग रखी जाती है। प्रचलित किताबों के आकार-प्रकार के साथ घुल-मिल नहीं पाती। हालांकि चित्र पूरे पेज पर उभर सकते थे। रंग-संयोजन पता नहीं डिम क्यों है? संभव है जो प्रति मेरे पास है, उसकी छपाई मद्धम रह गई हो। बता दें कि इस पुस्तक के चित्रों को विनिंग इलस्ट्रेटर का बिग लिटिल बुक अवार्ड मिल चुका है। इन तीस कहानियों को बच्चों को सुनाएँ या बड़ों को मित्र-मंडली में इन्हें सुनाकर इनके संदर्भो की चर्चा में आनन्द लिया जा सकता है।

किताब: हाँजी नाजी
लेखक: स्वयं प्रकाश
चित्र: अतनु राय
मूल्य: 170
पेज: 64
वर्ष: 2018
प्रकाशक: इकतारा
सम्पर्क: www.ektaraindia.in
प्रस्तुति: मनोहर चमोली मनु

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By manohar

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