किताब के शीर्षक ने चौंकाया। कहानी की शुरुआत से लगा कि यह सूचनाओं को जबरन ठूंसने वाले इरादे से लिखी गई है। लेकिन, तीसरे ही वाक्य के तौर पर जब संवाद आया तो लगा कि इसे पढ़ा जाए। कुछ तो कहानीपन होगा। चूँकि कहानी अनुवाद से हिन्दी में आई है तो भी मूल ताने-बाने में बदलाव संभव है।
बहरहाल, ड्रोसो नर मक्खी है। वह उड़ने और ऊँचा उड़ने की कोशिश में लगा है। लेकिन वह घर के भीतर ही है। फिला मादा मक्खी है। वह भी उसी के साथ है। तो होता यूँ है कि ऋचा अंतरिक्ष की यात्रा पर जाने वाली है। वह सोचती है कि अंतरिक्ष में जीव उड़ान कैसे भरते होंगे। उसके मन में चिड़िया, कबूतर, कौवा और गौरैया का ख़याल आता है। लेकिन उनके साथ कुछ न कुछ दिक्क़तें सोचकर वह किसी ओर का खयाल करती है। उसे भूख लगती है तब उसका ध्यान सड़े हुए केलों पर बैठी मक्खियों ड्रोसो और फिला पर जाता है।
वह उन्हें अपने साथ अंतरिक्ष की यात्रा में ले जाती है। बस इतनी-सी है यह कहानी। कहानी में भले ही कहानीपन बहुत जानदार नहीं है लेकिन बच्चों को यह पसंद आने वाली कहानी है। अपने परों से पक्षियों के उड़ने की अपनी सीमाएं हैं। लेकिन अंतरिक्ष में पृथ्वी के कई सारे नियम लागू नहीं हो पाते। इस दिशा में बच्चों या पाठकों को यह कहानी विचार करने की दिशा में उपयोगी है।
आशिमा फ्राईडाग कृत ‘अंतरिक्ष में मक्खी’ फल वाली मक्खियों पर आधारित हैं। यह मक्खियाँ फलों पर पैदा होती हैं। फल ही उनका भोजन होता है। यह मक्खियाँ कई मामलों में हम मनुष्यों जैसी होती हैं। मतलब यह याद रख पाती हैं। यह भी बीमार पड़ती हैं। सन् 1947 में इन्ही दो मक्खियों ने अंतरिक्ष की भी यात्रा की थी। ड्रोसोफिला मक्खी फ्रूट फ्लाई के अलावा अल्बर्ट नाम का बन्दर, लाइका नाम का एक कुत्ता, हैम नाम का एक चिंपाज़ी और अराबेला नाम की एक मकड़ी भी अंतरिक्ष की यात्रा कर चुकी है। आशिमा मानव की वैज्ञानिक उपलब्धियों पर आधाररित लेखन करती रही हैं। खगोलशास्त्र पर उनकी कलम खूब चलती है।
हालांकि प्रथम बुक्स का मानना है कि यह किताब उन बच्चों के लिए है जो अपने आप पढ़ लेते हैं। खुद किताब पढ़ लेते हैं। फिर भी कहानी के प्रारम्भ में ही पंखों का 220 बार प्रति सेकंड की गति से फड़फड़ाने का उल्लेख करने की ज़रूरत महसूस नहीं होती।
'जन्म', 'फ्रूट' 'फ्लाई', 'मॉडल',' व्यस्त', 'प्रयोग' जैसे शब्दों के विकल्पों पर सोचा जाना चाहिए था। आलोचक और परम्परावादी भी कह सकते हैं कि साहित्य में थोड़े कठिन शब्द नहीं रखेंगे तो पाठक की शब्दावली बढ़ेगी कैसे? बात ठीक है। लेकिन जब कठिन शब्दों की जगह प्रचलन में आसान, सहज बोलचाल का शब्द हो तो ठूँसा हुआ शब्द अति साहित्यिक हो जाता है और लेखक की ओर से विद्वता का परिचय देने का प्रयास लगता है।
दूसरी बात है कि अत्याधुनिक परिवेश दिखाने के लिए जरूरी नहीं है बेहद साहित्यिक नाम ही कहानी में रखे जाएं। ऋचा अंतरिक्ष यात्री है। उसका नाम कोई आसान सा भी रखा जा सकता था-उमा,रमा, बयार, मधु आदि।
चित्र कहानी को विस्तार देते हैं। सतही, आम और खाना-पूर्ति चित्रों से इतर फ़हद फैज़ल आकर्षक और कहानी को और खोलने वाले चित्रों में तब्दील करने में कामयाब हो पाए हैं।
आवरण किताब को लम्बे समय तक बचाए-बनाए रखने वाला बनाया गया है। यानि कागज मजबूत है। भीतर के पन्ने भी काफी मोटे हैं। बाल मन को ध्यान में रखते हुए कागज का इस्तेमाल हुआ है। आकार भी उचित है।
छपाई भी सुन्दर है। रंगों का संयोजन भी शानदार है। फोंट भी आकर्षक है। फोंट का आकार भी उचित है।
मुझे लगता है कि ग्रहों, नक्षत्रों और अंतरिक्ष संबंधी सटीक जानकारी कहानी में कहानीपन के साथ शामिल हो तो यह बड़ा काम होगा। बच्चों में वैज्ञानिक नज़रिया अति काल्पनिक, जादुई,कपोल कल्पनाओं और तिलिस्मी कहानियों से स्थापित नहीं होगा। विज्ञान के प्रति ललक जगाने वाली कहानियों की भी नितांत आवश्यकता है।
किताब: अंतरिक्ष में मक्खी
लेखक: आशिमा फ्राईडाग
चित्रांकन: फ़हद फैज़ल
अनुवाद: नागराज राव
पेज: 16
मूल्य: 50 रुपए
प्रकाशक: प्रथम बुक्स