यूँ ही कोई पहाड़ नहीं हो जाता : पुस्तक ‘चले साथ पहाड़’ के बहाने़

चले साथ पहाड़ या चलें साथ पहाड़। एक ज़रा-सी बिन्दी मान लें या एक-अदद मात्रा। सारा मंतव्य बदल जाता है। जी हाँ। मैं सुप्रसिद्ध संस्कृतिकर्मी, साहित्यकार, यायावर और सामाजिक एक्टीविस्ट…