हिन्दी साहित्य का भविष्य


-मनोहर चमोली ‘मनु’


यह इक्कीसवीं सदी है। सही है। सूचना तकनीक का युग है। सहमत ! मनोरंजन के कई साधन आ गए हैं। यह भी सही है। गैजेट्सों की भरमार है। सही बात है। पढ़ना-लिखना कम हो गया है। यह बात सही नहीं है। समाज साहित्य से विमुख होता जा रहा है। यह घोषणा भी गलत है। यह बात ज़रूर है कि पढ़ने-लिखने के तौर-तरीके बदल गए हैं। परम्परागत तरीके भले ही कम हुए हैं। लेकिन नए तरीके तेजी से बढ़े हैं।


भारत में हिन्दी साहित्य को लेकर कई भ्रम बदस्तूर जारी हैं। मसलन, हिन्दी साहित्य लचर है। गुणवत्तापरक नहीं है। हिन्दी साहित्य के पाठक कम हैं। हिन्दी साहित्य में किताबें अब बहुत कम छप रही हैं। हिन्दी साहित्य की पत्र-पत्रिकाओं की संख्या लगातार कम होती जा रही हैं। ऐसा प्रचार खू़ब किया जा रहा है। लेकिन यह सब सच नहीं है। दरअसल, हमारे आस-पास सुविधाएं बढ़ती जा रही हैं। हम सुविधाभोगी होते जा रहे हैं। हमारी स्मृति स्थाई की बजाय अस्थाई होती जा रही है। मेल-जोल और पहुँच का दायरा विस्तार पाने की जगह संकुचित होता चला जा रहा है।

नामचीन पत्रिकाएँ बंद होती जा रही हैं। यह बात सही है। लेकिन छपने वाली कई पत्रिकाएँ लगातार बढ़ रही हैं।
आज जब एक फोन या क्लिक करने पर चीज़ें उपलब्ध हो जाती हैं। वहीं अब तीन या चार मोबाइल नंबर तक याद रखना गैर-ज़रूरी मान लिया गया है। कह सकते हैं कि शायद, इसकी ज़रूरत भी नहीं है। क्यों दिमाग को इस तरह के अभ्यास में व्यस्त किया जाए! समय के साथ-साथ मनोरंजन के साधन भी बदलते हैं। मन-मस्तिष्क को सुकून देने वाले माध्यम भी बदलने ही हैं। यही बात हिन्दी साहित्य के साथ भी हुई है। हिंदी साहित्य ने पत्र-पत्रिकाओं से इतर भी अपना दायरा बढ़ाया है। काग़ज़ पर छपना ही प्रकाशन नहीं है। यह कहना तो निराधार ही है कि हिन्दी साहित्य प्रकाशित ही नहीं हो रहा है। यह भी कि प्रमुख पत्रिकाएं बंद हो गई हैं तो वर्तमान में जो प्रकाशित हो रही हैं वह प्रमुख नहीं हैं !


हिन्दी साहित्य प्रचुर मात्रा में आज भी प्रकाशित हो रहा है। इंटरनेट पर प्रकाशित हिन्दी साहित्य ने आनन्द के नए द्वार खोल दिए हैं। ‘हिन्दवी’ की बात करें तो अकार पत्रिका के पचास अंक यहाँ उपलब्ध हैं। 3391 पुस्तकें यहाँ उपलब्ध हैं। कविताओं की पुस्तकें, कहानियों की, उपन्यास के साथ-साथ जीवनी विधा में प्रचुर सामग्री यहाँ उपलब्ध हैं। बाल साहित्य की बात करें तो सत्तासी कविताएँ, दस पद, एक लघुकथा सहित चार अन्य रचनाएँ भी यहाँ उपलब्ध हैं।


‘हिन्दीनेस्ट’ ऐसी ही एक नायाब ई-पत्रिका है। यह भी विविधता से भरी हुई है। कहानी, कविता, कार्टून, निबन्ध, डायरी, व्यंग्य, संस्मरण, साक्षात्कार सहित साहित्य के विविध रूप यहाँ हैं। बच्चों की दुनिया भी यहाँ ख़ूब है। हिन्दीनेस्ट में अ से ज्ञ वर्ण के क्रम में देखे तो लगभग तीन हज़ार कहानियाँ आपको यहाँ पढ़ने को मिल जाएंगी।

‘समालोचन’ इस वक़्त सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली वेब पत्रिका मानी जाती है। यह साहित्य के साथ-साथ कला, वैचारिकी, आलोचना और सम-सामयिक मुद्दों पर अपनी प्रखरता के लिए प्रसिद्ध है। यह चौदह सालों से प्रकाशित हो रही है। साहित्य की सैकड़ों रचनाएं यहाँ प्रकाशित हैं।


‘हिंदी समय’ महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय का अभिक्रम है। उपन्यास, कहानी, व्यंग्य, बाल साहित्य, विविध विधाएं, अनुवाद, नाटक, निबंध, आलोचना और विमर्श इसकी खासियत है। हालांकि लम्बे समय से पत्रिका में नई रचनाएं शामिल नहीं हो रही हैं। लेकिन, जो उपलब्ध है वह बहुत ही पठनीय, मानीखेज और उपयोगी है। सैकड़ों नई-पुरानी रचनाएं इस मंच पर उपलब्ध हैं।

‘गद्य कोश’ भी विपुल साहित्य के लिए जाना जाता है। इसका फलक बहुत बड़ा है। यह इसलिए भी लोकप्रिय है कि इसको समृद्ध करने वाले साहित्यिक मानस स्वयंसेवी भावना से जुड़े हुए हैं। इसे साहित्य का विश्वकोश भी कहा जाता है। इसकी पठनीयता और व्यापकता का अंदाज़ा महज़ इस बात से लगाया जा सकता है कि अकेले गद्य कोश में बीस हजार से अधिक पन्ने उपलब्ध हैं। कुछ पन्ने तो एक लाख से अधिक बार पढ़े जा चुके हैं। प्रेमचंद की कहानियों को पढ़ते हुए उनके विवरण मात्र को छह लाख से अधिक बार पढ़ा जा चुका है। हर रोज़ लाखों पाठक यहाँ विचरण करते हैं।


‘कविता कोश’ में काव्य साहित्य है। यह भी बेजोड़ है। 2006 से आरम्भ की गई कविता कोश की यात्रा अनवरत् जारी है। यहाँ डेढ़ लाख से अधिक पन्ने हैं। लगातार स्वयंसेवी भावना से कई लोग इसे समृद्ध करते हैं। कई भारतीय भाषाओं सहित विदेशी भाषाओं का पद्य साहित्य अनुवाद होकर यहां संकलित किया जा रहा है। कविता कोश में शामिल कवियों की रचनाओं को उनके परिचय के साथ दिया गया है। कबीर का परिचय ही नौ लाख से अधिक पाठकों ने पढ़ लिया है! कमाल है!

‘सदानीरा’ भी इंटरनेट पर शानदार ई-पत्रिका है। यह दसवें साल में है। यह विश्वस्तरीय कविताओं का मंच है। हालांकि यह कलाओं को भी प्रमुखता देती है। लेकिन काव्य का आस्वाद यहाँ अलहदा है। यह दो हजार तेरह से संचालित है। अब यह हिंदी गद्य को भी शामिल करने पर विचार कर रही है। हालांकि सदानीरा के केंद्र में कविताएं ही हैं। इसकी पठनीयता भी बेहद समृद्ध है।


‘अनुनाद’ भी इंटरनेट पर एक बेहतरीन मंच है। आलोचना, समीक्षा, कथेतर गद्य, कविता, कहानी के साथ समाज और संस्कृति के विचारोत्तेजक आलेख यहां पाठकों की खुराक हैं। सन् दो हजार सात से कविता अनुभाग में ही देखें तो नामचीन कवियों की लगभग चार सौ से अधिक कविताएँ यहाँ उपलब्ध हैं। पीडीएफ के तौर पर पांच अंक भी यहां शामिल हैं।

साहित्य और समाज का दस्तावेजीकरण को समर्पित ‘अपनी माटी’ अपने रंग-तेवर के लिए अलग स्थान रखती है। इसका प्रकाशन तिमाही है। कला, साहित्य, रंगकर्म, सिनेमा, समाज, संगीत, पर्यावरण और समाज विज्ञान पर विपुल सामग्री यहाँ उपलब्ध है। साल दो हजार नौ से इस मंच पर एक हजार तीन सौ से अधिक लेख मौजूद हैं। लाखों क्लिक इस पत्रिका के लिए हो चुके हैं।


‘फारवर्ड प्रेस’ लाखों भारतीयों की आकांक्षाओं का प्रतीक है। सम-सामयिकी, समाज और संस्कृति, हमारे नायक के साथ यहाँ नियमित किताबों पर बातें होती हैं। साहित्य यहाँ अलग कोना है। हालांकि रचनाएं कम रचनाओं पर अधिक बातें यहाँ होती हैं। साहित्य और साहित्यकारों पर सारगर्भित लेख, विचार और चिन्तन इसका केन्द्रीय भाव लगता है। कबीर, सूर से लेकर आधुनिक रचनाकारों के रचनाकर्म पर बेजोड़ चिन्तन यहाँ तर्क के साथ दिखाई देता है।

‘हिन्दवी’ तेजी से लोकप्रिय हो रही है। कविता, कवि, गद्य के साथ शब्दकोश इसके प्राण हैं। सैकड़ों कवियों की हजारों कविताएँ यहाँ शामिल हैं। आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल, आधुनिक काल विभाजन यहाँ किया गया है। पाठक अपने पसंदीदा कवियों तक आसानी से पहुँच सकते हैं। नाम के पहले अक्षर से भी पाठक अपने पसंदीदा कवि तक पहुँच सकते हैं।

पाठक यहाँ गद्य खण्ड में उद्धरण, कहानी, निबंध, आलोचनात्मक लेखन, यात्रा-वृत्तांत, कहावत, संस्मरण, आत्मकथ्य, व्यंग्य, रेखाचित्र, पत्र, सिने लेखन, लेख, डायरी, एकांकी, साक्षात्कार, लघुकथा और नाटक पढ़ सकते हैं। रचनानिधि की बात करें तो यहाँ अब तक 3520 कवि दर्ज हैं। 16820 कविताएं अंकित हैं। 1390 पद हैं। 3843 से अधिक दोहे हैं। लगभग 400 लोकगीत शामिल हो गए हैं। इसे रेख़्ता फ़ाउण्डेशन संचालित करता है।


‘रचनाकार’ भी एक अच्छा मंच है। यहाँ पाठक बालकथा, लघुकथा, हास्य-व्यंग्य, कविता, आलेख, ग़ज़लें, व्यंग्य, नाटक, संस्मरण, उपन्यास, लोककथा, समीक्षा, कहानी, चुटकुला, विज्ञान कथा, ई-बुक स्तम्भ में विचरण कर सकते हैं। अकेले कहानी स्तम्भ में पाठकों को 300 से अधिक पन्ने पढ़ने को मिल जाएँगे। 3000 से अधिक पन्ने कविताओं के हैं। 2360 से अधिक कहानियों के पन्ने यहाँ हैं। 80 से अधिक बाल साहित्य के लिए पन्ने हैं।

‘हिन्दीकुंज’ भी एक मंच है। पाठकों को यहाँ विविध सामग्री पढ़ने को मिलती है। 6600 से अधिक पन्ने यहाँ हैं। हिन्दी व्याकरण, साहित्यिक लेख, हिंदी निबंध के तहत यहाँ रचनाओं को पढ़ा जा सकता है। हिंदी निबंध के तहत यहाँ 341 से अधिक पन्ने हैं।


बहुचर्चित पत्रिका ‘सरिता’ अब डिजिटल संस्करण पर भी उपलब्ध है। सरिता पत्रिका पाक्षिक है। 2019 से यह इंटरनेट पर उपलब्ध है। 120 से अधिक अंक यहाँ उपलब्ध हैं। पाठक जानते हैं कि सरिता में साहित्यिक सामग्री भी होती है। यह फिलहाल 399 रुपए की सदस्यता पर उपलब्ध है। यह सदस्यता सालाना है। सदस्यता पाते ही पाठकों को 50 से ज़्यादा ऑडियो कहानियां मिलती हैं। 7000 से अधिक कहानियाँ मिलती हैं। हर माह 50 से अधिक कहानियाँ पढ़ने को उपलब्ध हो जाती है।

‘वेब दुनिया’ कई भाषाओं का दैनिक मंच है। पाठक हिन्दी में क्लिक करते हुए समाचार सम-सामयिक मुद्दों, बॉलीवुड जैसे कॉनर्रों पर जा सकते हैं। लाइफ स्टाइल में एक उप कोना साहित्य का भी है। लाइफ स्टाइल में वीमेन कॉर्नर, सेहत, योग, एनआरआई, रेसिपी, नन्ही दुनिया, साहित्य और रोमांस भी है। लाइफ स्टाइल में साहित्य को क्लिक करने पर काव्य-संसार, कथा-सागर में पहुँचा जा सकता है। हालांकि इसे यह विशुद्ध साहित्यिक मंच नहीं कहा जा सकता। लेकिन सब तरह की जानकारियों-सूचनाओं और ख़बरों का जमावड़ा होने के साथ साहित्य भी यहाँ हैं। वेब दुनिया के पाठक बहुत हैं।


‘जानकीपुल’ के नियमित पाठकों की संख्या 7000 से अधिक है। इसे यू ट्यूब में भी देखा जाता है। कथा-कहानी इसका बहुचर्चित कोना है। पिछले पन्द्रह बरसों से जानकीपुल साहित्यिक पाठकों का खास मंच बना हुआ है। 250 से अधिक कहानियाँ यहाँ हैं। नामचीन के साथ नवोदितों की कहानियाँ भी आपको यहाँ पढ़ने के लिए मिल जाएँगी। हिन्दी में अनुदित कविताओं के लिए भी इस मंच पर सैकड़ों पाठक विचरण करते रहते हैं। जानकीपुल की लोकप्रियता का अंदाज़ा इसी बात पर लगा सकते हैं कि किसी एक पोस्ट पर कमेंट्स की संख्या 7000 हजार से भी अधिक हो जाती हैं।

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‘अभिव्यक्ति’ मंच भी पाठकों के लिए इंटरनेट पर उपलब्ध है। 500 से अधिक कहानियाँ मंच पर उपलबध हैं। पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है। यहाँ भी विपुल सामग्री है। कविताएँ, नाटक, निबंध, संस्मरण, के साथ विविध विधाओं पर सामग्री है। यह 2003 से पाठकों के लिए उपलब्ध है।


‘लघुकथा डाट काम’ भी एक मंच है। यह पूरी तरह लघु कथा पर केन्द्रित है। यह बड़ी बात है कि लघु कथा और लघु कथाकारों के लेखन की मीमांसा भी यहाँ होती रहती है। यह दो हजार पन्द्रह से मासिक प्रकाशित हो रही है। लघुकथाओं पर केन्द्रित ऐसा प्रकाशन प्रायः देखने को कम ही मिलता है। अध्ययन कक्ष, चर्चा में, दस्तावेज़, देश, देशान्तर, पुस्तक, भाषान्तर, मेरी पसन्द, संचयन, वीडियो और ऑडियो के तौर पर स्तम्भ हैं।


भारत खासतौर पर हिन्दी पट्टी का साहित्य धीरे ही सही लेकिन इंटरनेट पर अपना प्रभाव जमाने लगा है। यदि साहित्य में निजी ब्लॉग भी जोड़ लें तो यह हजारों में हैं। छपने वाली पत्रिकाओं के कुछ गुण-अवगुण हैं। इसी तरह इंटरनेट पर उपलब्ध ई-पत्रिकाओं के भी गुण-दोष हैं। संपादन विशिष्टता का गुण माना जाता रहा है। पिछले आठ-नौ दशकों में उनका अपना स्थान था। इंटरनेट ने वह प्रभुत्व तोड़ा है। कह सकते हैं कि संपादन कला को त्वरित गति से बढ़ाया है। इंटरनेट पर प्रकाशन का कार्य छपने वाली पत्रिका से दस गुना अधिक है। पठनीयता, पठनीयता का प्रभाव और पश्चपोषण भी लेखक और पाठक को साथ-साथ तुरंत दिखाई दे जाता है। काग़ज़ पर छपने वाली पत्रिका के मामले में यह ज़्यादा समृद्ध है।


जंगल में मोर नाचा किसने देखा की तुलना साहित्य से तो नहीं की जा सकती है। लेकिन यह भी सच है कि किसी लेखक की रचना कागज़ पर छपने के बाद एक समय में नपे-तुले पाठकों तक ही पहुँचती थी। अब ऐसा नहीं है। सोशल मीडिया ने प्रचार-प्रसार को बढ़ाया है और उसकी पड़ताल पुख्ता की है। साहित्य में रचना का ट्रैण्ड करना साहित्य में नया है। अब साहित्य में लेखक, पाठक, प्रकाशक, संपादक सब किसी भी रचना के पढ़े जाने की संख्या और उसकी लोकप्रियता से वाकिफ हो जाते हैं। यह इंटरनेट की ताकत है। यह बात भी रेखांकित करने योग्य है कि इंटरनेट पर गुणवत्ता और क्लासिकता का कोई सेंसर नहीं है। आप और मैं भी किसी पत्रिका का संपादक हो सकते हैं। आप और मैं एक दिन में कुछ भी, कहीं भी और कितना भी रचना के नाम पर छाप सकते हैं।

जानकार इसे साहित्य के लिए घातक मानते हैं। लेकिन यह बात भी सही है कि अप्रभावी रचना को पाठक स्वयं ही इंटरनेट पर ख़ारिज कर सकते हैं। तत्काल टिप्पणी कर सकते हैं। पढ़ने में लगने वाले समय और किसी रचना की अनदेखी भी गिनी जा सकती है। कह सकते हैं कि प्रभावी रचना इंटरनेट के युग में अपनी पहुँच कई गुना तीव्र गति से बढ़ा सकती है। बतौर पाठक मुझे हिन्दी साहित्य का भविष्य कहीं भी खतरे में नज़र नहीं आता। इंटरनेट लिखने-पढ़ने में बाधक से अधिक सहायक नज़र आता है।
लेख में जिन पत्रिकाओं, ब्लॉग्स, वेब लिंक की चर्चा है वह सांकेतिक है। अंतरजाल पर पाठकों की अपनी पसंद के संदर्भ में दर्जनों अन्य लिंक्स भी मिलते हैं। प्रस्तुत ब्लॉग्स का उल्लेख किसी को सर्वोत्तम या कमतर बताना कदापि नहीं है।
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सन्दर्भ एवं स्रोत:

  1. Hindinest .com: Best Hindi web magzine in hindi on internet
  2.  समालोचन | साहित्य, विचार और कलाओं की प्रतिनिधि वेब पत्रिका (samalochan.com)
  3. Hindisamay.com हिंदी साहित्य सबके लिए
  4. http://gadyakosh.org
  5. kavitakosh.org
  6. विश्व कविता और अन्य कलाओं की पत्रिका | सदानीरा (sadaneera.com)
  7. अनुनाद (anunad.com)
  8. अपनी माटी (apnimaati.com)
  9. Hindi Home – Forward Press
  10. Hindi Kavita, Hindi Poems of famous poets | Hindwi
  11. https://www.rachanakar.org
  12. https://www.hindikunj.com/
  13. https://www.sarita.in/ 
  14. https://hindi.webdunia.com/
  15. Jankipul – A Bridge of World’s Literature
  16. https://www.abhivyakti/
  17. लघुकथा | मार्च 2024 (laghukatha.com)    
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-मनोहर चमोली ‘मनु’ 
सम्प्रति: राजकीय इण्टर कॉलेज,केवर्स,पौड़ी गढ़वाल 246001 उत्तराखण्ड
सम्पर्क: गुरु भवन,निकट डिप्टी धारा, पौड़ी। मोबाइल-7579111144
मेल: chamoli123456789@gmail.com

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By manohar

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