साहित्य में हिन्दी बाल साहित्य को अभी लोक जीवन में झांकने की नितांत आवश्यकता है। अमूमन बच्चों के लिए उपलब्ध साहित्य में कमोबेश नसीहतों,उपदेशों और आदर्श की तीव्र आग्रह दिखाई देता है। इससे इतर पशु-पक्षियों के साथ तुतियाने में खपा हुआ ढेर सारा साहित्य बिखरा पड़ा है। लेकिन बच्चों के लिए यथार्थ और उनके आस-पास का साहित्य आज भी ज़रूरत बना हुआ है। यह भी कि हिन्दी पट्टी में नई पौध का लोक जीवन इतना विविध है कि आंचलिक स्तर पर साहित्यकारों को विपुल मात्रा में स्थानीय परिवेश,बोली-भाषा,खान-पान और बच्चों की वास्तविक दुनिया के विषय रेखांकित करने चाहिए।
यह हैरत की बात है कि इक्कीसवीं सदी के साहित्कार परी-जल परी, तिलस्म,तंत्र-मंत्र और जादू-टोने से ओत-प्रोत रचनाएं आज भी लिख रहे हैं। उस पर तुर्रा यह है कि यह सब हमारे आस-पास मौजूद है, इससे परिचित कराना भी ज़रूरी है। यदि इन सबसे परितचत कराना नितांत आवश्यक है तो उसमें वैज्ञानिक नज़रिया तो हो।
बहरहाल,साहित्य में बच्चों के लिए सब कुछ निरर्थक और अनुपयोगी लिखा जा रहा है, ऐसा कहना एकदम गलत होगा। राम करन जैसे साहित्यकार हैं जो अपनी लेखनी से भारत की अस्मिता,संवैधानिकता और लोक जीवन को बाल साहित्य में शिद्दत से शामिल कर रहे हैं। सबसे बड़ी बात है कि ऐसे कई रचनाकार हैं जो बेहद सादगी से बच्चों के मध्य वैज्ञानिक नज़रिया जगाने का काम हौले-हौले से कर रहे हैं। वह आनंद के साथ मानवीय मूल्यों को भोजन में नमक की तरह शामिल करते हुए पढ़ने की ललक को जगाने का काम बदस्तूर कर रहे हैं।
राम करन का एक बाल उपन्यास साल दो हजार इक्कीस में आया है। ‘मंतुरिया’। सीधे घर-गाँव,देहात नहीं लोक जीवन की खुशबू महकाता हुआ शब्द है। पहली दृष्टि में उपन्यास का यह नाम सार्थक-सा प्रतीत नहीं होता। लेकिन, जिज्ञासा के साथ यह आवरण से लेकर आरम्भ में ही उपन्यास में स्वयं को खोजने के लिए प्रेरित करता है। ़नवजात बालिका का चेहरा दादी को ऐसा लगता है जैसे वह मंत्र-मुग्ध कर रही हो। जैसे उसके चेहरे से मंत्र उतर रहे हों। बस! दादी ने उसे मंतुरिया कहना शुरू कर दिया है।
उपन्यास के आठ खण्ड हैं। लेकिन बालमन के हिसाब से यह ज़्यादा बड़े नहीं हैं। मंतुरिया, दादी, गीत, मेला, पंखा, रधिया, खरगोश और निर्गुण।
साहित्यकार राम करन का बाल उपन्यास ‘मंतुरिया’ भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय के प्रकाशन विभाग ने हाल ही में प्रकाशित किया है। राम करन खूब पढ़े जाते हैं। वह लीक से हटकर लिखी जाने वाली कविताओं के रचनाकार हैं। वह गद्य भी साधिकार लिखते हैं। यह बाल पाठकों के लिए लिखा गया उपन्यास भी उनकी सधी लेखनी का एक प्रमाण है।
भारत सरकार का प्रकाशन विभाग भी अब नए कलेवर में प्रस्तुत हुआ है। प्रकाशन विभाग ने हिन्दी पट्टी के प्रकाशन जगत की व्यावसायिक प्रतिबद्धता को समझ लिया है। अब लुभावना आवरण, रंगीन चित्र, गुणवत्तायुक्त एवं आकर्षक काग़ज़,पठनीय फोंट साइज और किताब की टिकाऊ जिल्दसाजी ने बीते कुछ वर्षो में प्रकाशन विभाग के प्रकाशन पर भरोसा बढ़ाया है। आवरण राजेश कुमार का है। भीतर के चित्र नीरध ने बनाए हैं। संपादन ऋतुश्री ने किया है।
मंतुरिया एक नन्ही बालिका है। कुछ ऐसा घटित होता है कि मंतुरिया खुद में सिमटने लग जाती है। मंतुरिया के मुख से किसी ने एक शब्द भी कभी नहीं सुना। पिता नौकरी करने के लिए बाहर जाते हैं। दादी के जिम्मे मंतुरिया है। मंतुरिया का बाल जीवन और स्कूल में भर्ती के दिन। मास्साब। बिल्ली। मीरा, मंतुरिया के पिता। इसके आस-पास ही समूचा उपन्यास है। लेकिन एक द्वंद्व इस उपन्यास में है कि मंतुरिया का क्या होगा? वह सामान्य हो पाएगी। छुई-मुई हो गई मंतुरिया बोलेगी? अंतिम खण्ड इतना मार्मिक बन पड़ा है कि पाठक राहत की सांस लेता है।
कहने को तो यह बाल उपन्यास है। लेकिन यह हर वय के पाठक को आकर्षित करेगा। सबसे बड़ी बात हिन्दी पट्टी का पाठक लोक जीवन की भीनी खुशबू को महसूसेगा। बहुत-से आंचलिक शब्दों,जीवन, और चीज़ों से परिचित हो सकेगा।
मुझे एक बात इस उपन्यास के बहाने कहनी है। आखिरकार साहित्य और साहित्यकार को क्यों प्रगतिशील मुल्कों में बहुत सम्मान से देखा जाता है? एक बात जो मुझे लगती है कि साहित्यकार साहित्य के बहाने पाठकों को कुपरंपराओं की पैरोकारी के लिए उद्वेलित भी कर सकता है। साहित्यकार चाहे तो अपने पात्रों के माध्यम से बगैर नसीहत दिए नया सामाजिक, संवैधानिक दे सकता है। जैसे राम करन ने किया है। क्या आप प्रस्तुत अंश में लेखक का नज़रिया टटोल पाएँगे..?
(एक)
‘बच्चों ने पूछा,‘‘सर कौन फर्स्ट आया?’’
‘‘कोई फर्स्ट या सेकेंड नहीं है। सबकी अलग-अलग पसंद है। हां, कुछ लोग अपने आस-पास पर ध्यान देकर जब कुछ करते हैं, तो वह अधिक अच्छा लगता है।’’
बच्चों को उत्सुकता थी कि दो कॉपियां जो उनके हाथ में थीं, वे किसकी हैं?’
(दो)
उन्होंने कहा,‘‘देखिए, बच्चे जहाँ बचपन पाएं, वहां हर हाल में पहुंचाना चाहिए। रोटी फिर भी बन जाएगी। बचपन नहीं लौटेगा। नदी के धारा को बहने देने से मधुरता रहती है, रोकने से आपदा आती है।’’
(तीन)
दादी दादी नहीं, एक दुनिया है। दादी की गोद देखने में छोटी है, किंतु उसमें तो सबको समेटने की जगह है। दादी किसी को अपनाने से हिचकती नहीं। मुंह से कुछ कहती भी नहीं।
एक बात ओर। कुछ अलहदा खुशबूएं उपन्यास में हैं। कुछ बानगी यहां प्रस्तुत है-
दादी मिट्टी की बोरसी बना कर रखती।
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उसके कनटोप के ऊपर से ही कान गरम करती।
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इसलिए पीठ पर पछुआ हवा नहीं लगने देती।
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तुरंत एक और कौर का गट्टा बनाती और गप्प से उसमें डाल देती।
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नदी से दादी की लाई कमलगट्टे भी।
०००
वहां से रिक्शे में बैठे। लदे-फदे गांव पहुंची।
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आंखें करुआ रही थीं…..जलती ढिबरी उसे चिढ़ा रही थी।
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सारे बच्चे उनको देखकर हंस पड़े….उनके पीछे मिट्टी लग गया था।
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उसने कहा,ःःलगता है कोई चिकनी चीज खा ली है….गैस बना है।’’
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पापा उससे ‘हुंकारी’ भरने को कहते रहे, पर वह नहीं बोली……
०००
उन्होंने कहा-‘‘मैंने कहा था कि चित्र अपनी मन-मर्जी से बनाना है…..कुछ भी नया। कुछ लोगों ने नया कोशिश किया है, जैसे रेहान ने गिलहरी का चित्र बनाया, रोहन ने टॉमी को बनाने की कोशिश की।
००० विकास ने खपरैल के अंदर घोंसले में बैठी गौरैया बनाया।
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मीरा जैसे ही उसे पहनाने लपकी, वह भग कर पेड़ के पुलई पर चढ़ गई।
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लिट्टी-चोखा और उपले की जिम्मेदारी दादी ने ले ली।
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लम्बा-चौड़ा खुला बलुहट मैदान सामने था….
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दादी और मास्टर जी मड़ैया से निकले।
०००
मास्टर जी ने मकई के लावे उसमें डाले तो मछलियां किनारे आ गईं।०००
गाय दादी के आंचल पकड़कर चुभलाने लगी।
०००
मंतुरिया खटोले के नीचे दीवार से सटकर सो रही थी।
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सामने जाजम और दरी बिछा दी गई। टॉमी एक मिट्टी के ढूह को दिखाना चाह रहा था।
०००
राम करन सरलता के पक्षधर हैं। लेकिन वे चाहते तो निम्नांकित वाक्यों को और भी सरलता से शामिल कर सकते थे। जैसे-सब लोग रेत पर ही अपनी कला प्रदर्शित करेंगे। आवाज थोड़ा मद्धिम था। उसके मुंह का अग्रभाग मिट्टी में खुला था। कई प्रकार के पशु-पक्षी अपनी गतिविधियों से रेतीले प्रदेश को रोचक बना रहे थे।
पुस्तक : मंतुरिया
लेखक : राम करन
विधा : बाल उपन्यास
मूल्य : 95
पृष्ठ : 40
आकार : सात व दस इंच
प्रकाशक : प्रकाशन विभाग,भारत सरकार
आईएसबीएन : 978.93.5409.210.7
प्रकाशन वर्ष : 2021
प्रस्तुति-मनोहर चमोली ‘मनु’
बहुत सुंदर लिख दिए सर। सब सच है। अभिभूत हूँ।
ji jaisa hai vaisa hi likha hai sir.
बहुत ही सुंदर समीक्षा. 🙏👍👍