-मनोहर चमोली ‘मनु’
पायस यानि खीर ! दूध में पकाया हुआ चीनी या मीठा से चावलयुक्त एक बहुपसंदीदा व्यजंन है। ऐसा कौन-सा बच्चा होगा जिसे खीर पसंद न हो। पायस ऑनलाइन बाल पत्रिका जनवरी 2021 में प्रवेशांक के तौर पर पाठकों के लिए 1 जनवरी 2021 को उपलब्ध हो गई है। आवरण सम-सामयिक है। आकर्षक है। पत्रिका के जनक एवं संपादक अनिल कुमार जायसवाल ‘करें नई शुरुआत’ में बच्चों से बातचीत करते हैं।ं वे विस्तार से लिखते हुए कहते हैं-‘‘साल 2020 ने बहुत से परिवार के साथ बुरा किया, पर बहुत-सी नई बातें भी सिखा गया। लॉकडाउन एकल परिवार को संयुक्त परिवार के फायदे याद दिला गया। लोगों को सही मायनों में परिवार की तरह रहना और एक-दूसरे का केयर करना सिखाया। घर-परिवार और गांव छोड़ चुके लोगों को संकट के समय परिवार और गांव की याद आई।……’’ वे संपादकीय में यह भी लिखते हैं-‘‘तुम्हारी तरह मैंने भी लॉकडाउन में इंटरनेट पर खूब पढ़ाई की। लोगों और बच्चों से बातें कीं। इस दौरान विचार आया कि क्यों न छपी हुई पत्रिका की तरह ही एक आनलाइन बाल पत्रिका निकाली जाए, जो किसी भी मायने में प्रिंटेड पत्रिका से कम न हो। तुम सबका समर्थन मिला और आज यह पत्रिका तुम्हारे सामने है।’’ पूरा संपादकीय पढ़कर मन में आया कि बारह साल की उम्र के आस-पास के बच्चों के लिए संपादकीय का फोंट ज़रा-सा ओर बड़ा होता तो आनंद आ जाता। यह भी कि संपादकीय और सरल तथा बच्चों की दुनिया का हो। वैसे संपादकीय बच्चों से ही मुखातिब तो है ही है।
जाने-माने साहित्यकार समीर गांगुली की कहानी ‘नया साल नई सुबह’ पायस में प्रकाशित हुई है। यह कहानी नए साल का सूरज उगाती है। मेढक,मुर्गा,बिल्ली,भेडि़या पात्रों की यह कहानी रोचक है। कहानी की एक बानगी आप भी पढि़एगा-‘चितकबरे चीते ने भी एक ही पल में नया निर्णय ले लिया। घबराए भेडि़ए के पास जाकर वह बोला,‘कल तक जो कुछ था, उसे भूल जाओ। आज से तुम हमारे दोस्त हो। नया साल मुबारक हो।’’ अंत में कहानी का मुर्गा इंसानों की तरह भगवान का शुक्रिया अदा करता है। यह बात कुछ अटपटी लगी।
पायस के लिए कवर स्टोरी अनिल जायसवाल ने जुटाई है। गणतंत्र दिवस को केन्द्र में रखकर शानदार जानकारी बाल पाठकों के लिए जुटाई गई है। इतिहास के आइने में झांकने का अवसर यह लेख देता है। दो पेज में समाया यह लेख बाल अनुकूल है। चूँकि शानदार और विचारणीय सात चित्र भी इन्ही दो पेज में हैं।
वरिष्ठ कथाकार और कवि देवेंद्र कुमार की कहानी ‘खुल गए ताले’ पायस के प्रवेशांक में शामिल है। एक अनाथालय में पुस्तकालय तो है लेकिन पुस्तकें आलमारियों में बंद हैं। लेखक ने अलग तरीके से इस कहानी को बुना है। समस्या और उसका समाधान भी लीक से हटकर है। प्रासंगिक भी है। बनावटी नहीं लगता। कहानी अच्छी है। सभी वय वर्ग के पाठकों को पसंद आएगी। ऐसा विश्वास है।
विज्ञान कथाकार और किस्सागो देवेन्द्र मेवाड़ी ने अपनी चिर-परिचित शैली में फसलों की कहानी में शानदार जानकारी दी है। तीन पेज में सामग्री ज़रूर चली गई है लेकिन बातचीत की शैली में सरल और सहज वाक्य इसे लंबा नहीं बनाते। चित्रांकन भी शानदार है और आंखों को भाता है। अधिकतर सामग्री पेज में दो कॉलम में है। यही कारण है कि कोई भी पेज पढ़ने में आंखों को बोझ जैसा कुछ महसूस नहीं होता। जानकारीपरक लेख की शुरुआत को आप भी पढि़एगा,‘‘अच्छा दोस्तों, एक बात बताओ। क्या खाना खाते समय तुमने कभी सोचा कि भोजन का जो कौर तुम मुंह में ले रहे हो, वह कहां से आता है? रोटी हो या दाल-भात या तुम्हारा बर्गर-पिज्जा, ये आखिर आया कहां से?’’
खेल शतरंज की रोचक जानकारी भी पायस में शामिल है। मशहूर लेखक और स्तम्भकार क्षमा शर्मा की कहानी ‘करौदे ले गया कौन’ पायस के प्रवेशांक में शामिल है। गाँववासी तो करौंदा जानते हैं। उसका फल और कांटेदार झाड़ी से परिचित हैं। लेकिन शहरी पाठक शायद ही करौंदे को जानते होंगे। निर्मला शादी के बाद शहर आ गई। करौंदों से उसका रिश्ता पुराना था। वह साथ में एक पौधा करौंदा का शहर ले आई। जब करौंदे लगते तब कई सारी घटनाएं घटतीं। बस इसी के आस-पास है ये कहानी।
शॉन द शीप, श्रेक, फैंटम,पोपाय द सेलर मैन, थॉमस द टैंक इंजन, स्कूनी डू, फ्ंिलस्टोन,डॉनल्ड डक, ऑसवल्ड, पॉवरपफ गर्ल्स,नॉडी जैसे कॉमिक पात्रों को सर्च करने का मौका बाल पाठकों के लिए पायस ने उपलब्ध कराया है।
आवारा कुत्तों की जि़ंदगी और फ्लैटीय संस्कृति के आस-पास बुनी कहानी कजली की बखरी जाने माने स्तम्भकार,लेखक और एक्टीविस्ट पंकज चतुर्वेदी की है। तीन पेज में शामिल कहानी इस रोचकता के साथ बुनी है कि कौतूहल बना रहता है कि कजली के साथ आगे क्या होने वाला है? कालू गिरोह के साथ-साथ लॉकडाउन का परिवेश भी इस कथा में है।
दिविक रमेश साहित्य में चिर-परिचित नाम है। उनकी कविता ‘मेरी सर्दी मेरा गीत’ इस अंक में है। कविता का अंत बड़ा ही मार्मिक और यथार्थवादी है। अलबत्ता चित्र सकारात्मक हो सकता था। सर्दी में अभावग्रस्त बच्चों की जुराब का चित्रण आप भी पढि़एगा-
झाड़ू-पोचा, बर्तन करके
जब घर पर आऊँगी बेटी
सबसे पहले इस जुराब को
सी दूंगी मैं सच्ची बेटी।
पता नहीं क्यों? मुझे हास-परिहास और मनोरंजन पूर्ण सामग्री में किसी की हँसी उड़ाती बात पसंद नहीं आती। जैसे किसी खर्राटे लेने वाले पात्र का ऐसा चित्रण खिल्ली उड़ाने जैसा लगने लगता है तो अजीब सा लगता है। इसी तरह शराबी का अधिक चित्रण और शराब की बुराई कम वाली बात भी पसंद नहीं आती। संतोष कुमार सिंह की मजेदार कविता भी मुझे चौबेलाल की हँसी उड़ाती हुई अधिक प्रतीत होती है। किसी का मोटा होना या किसी का पेटू होना मजाक का पात्र नहीं बनाया जाना चाहिए।
अंक में संवेदनशील कवयित्री डॉ॰ अनुपमा गुप्ता की कविता भी है। कविता पायस यानि खीर पर आधारित है। बच्चों को पसंद आएगी।
अंक में बाल साहित्य के अध्येता और साहित्यकार डॉ॰ नागेश पाण्डेय ‘संजय’ की सरस और चुटीली कविता ‘भैया जी’ शामिल है। छोटे बच्चों को बड़े बच्चे अक्सर परेशान करते हैं। छेड़ते भी हैं। उसी का शानदार चित्रण इस कविता में हैं। आप भी एक अंश पढि़एगा-
क्यों इतना हो हमे सताते?
बोलो भैया जी।
गुलगुल गुलगुल चुन्नू के
गुलगुली मचाते क्यों?
मुझे पकड़कर कहो कान में
गाना गाते क्यों?
क्यों कसकर हो धौल जमाते,
बोलो भैया जी।
युवा साहित्यकार शादाब आलम की भी कविता इस अंक में है। गले की खराश को कविता में शानदार तरीके से शामिल किया गया है-
सोच रहा हूँ माँ का कहना
माना होता मैंने काश!
उफ ! मुझको हो गयी खराश।
राम करन नए भाव-बोध-बिम्ब के बेमिसाल कवि हैं। पुराने विषयों-प्रतीकों को लेते हैं लेकिन कथ्य नया लाते हैं। बिल्ली बाई उनकी कविता यहां शामिल हुई है-
बिल्ली बाई बड़ी घुमक्कड़
इस घर पर कभी उस घर पर
खाती-पीती दिनभर रहती
और पचाती घूम घूमकर……
युवा साहित्यकार शिव मोहन यादव की कविता एकता भी शामिल है-
लिये कैमरा चला भेडि़या
था जंगल का सीन।
कुत्ता, बिल्ली,चूहा बोले
फोटो खींचों तीन।…… ड
सुभाष चंद्र बोस का जन्मदिवस 23 जनवरी है। उन्हें नमन करते हुए जानकारीपरक लेख भी पत्रिका में है।
‘बादल रोने लगा’ वरिष्ठ साहित्यकार संजीव जायसवाल ‘संजय’ की है। उनकी कहानी में नटखट बादल है। वह दूसरों को परेशान करना चाहता है लेकिन उसके सारे प्रयास हानि की जगह लाभ ही देते हैं। आगे कहानी में उसे हवा का साथ मिलता है और एक नयी राह बनती है। कहानी की बानगी-
‘‘मुझसे कोई डर ही नहीं रहा। लगता है, मेरी ताकत खत्म हो गई है।’’ बादल फफक पड़ा।
यह सुन हवा हंस पड़ी,‘‘दोस्त,बादलों का जन्म लोगों को डराने के लिए नहीं, मदद करने के लिए होता है। तुम सब तो बहुत प्यारे होते हो,इसीलिए सभी तुम्हारा इंतजार किया करते हैं।’’……….
दिल्ली स्थित गोल मार्केट के पास स्थित गांधी स्मृति स्थल की जानकारी भी पत्रिका में है। चित्र बहुतायत में है। शानदार सामग्री।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ॰विमला भंडारी की कहानी ‘भूखे भेडि़ए’ भी पायस के प्रवेशांक में है। भूखे भेडि़यों का दल किसान की झोपड़ी के पास बंधे मवेशियों में एक बैल को शिकार बनाना चाहते हैं। कहानी इतनी रोचकता और जिज्ञासा के साथ आगे बढ़ती है कि अंत तक कौतूहल जगाए रखती है। अंत भी बड़ा शानदार है। कहानी में किसान और भेडि़यों के साथ यथार्थपरक न्याय करना ही इस कहानी की खूबी है। कहानी का संवाद आप भी पढि़एगा-
‘‘सरदार, क्या कह रहे हो? किसान का बैल? वह भी जागते हुए किसान का बैल? बैल की तो छोड़ो,उसके जगे में तो हम वहां से मुर्गी तक नहीं ला सकते।’’ एक भेडि़या पस्त होकर बोला।
‘‘एक बार हिम्मत तो करो। एक बैल बहुत है, हम सब के लिए। भूख से निजात मिल जाएगी, कई दिनों के लिए।’’………
जो बाइडेन अमेरिका के नए राष्ट्रपति नाम से जानकारी भी है। पत्रिका में अमेरिका की पहली अश्वेत उपराष्ट्रपति कमला हैरिस
पर भी सरल जानकारी दी गई है।
विराट कोहली के बचपन से लेकर बुलंदी तक की कहानी को प्रेरकता के साथ प्रस्तुत किया गया है। हालांकि इ सपेज में गहरा काला रंग और उस पर हरा रंग का फोंट का तालमेल सही नहीं बैठ पाया है। यह पेज आँखों को तकलीफ दे रहा है। रंग संयोजन ठीक नहीं हो पाया है। तीन पेज पर फैली सामग्री लक्ष्यांकित बच्चों के हिसाब से अधिक है। जीव-जंतुओं का अद्भुत संसार के तहत ब्राउटो, फ्लाइंग फॉक्स,थ्रैशर शॉर्क,एलिफेंट सील और पफिन की जानकारी आइवर यूशिएल ने जुटाई है।
लोकप्रिय कवि एवं कथाकार रावेंद्रकुमार रवि की कहानी ‘मजे टिम्मू के’ भी पायस के प्रवेशांक में शामिल है। टिम्मू और चौकीदार के संबंधों पर बुनी कहानी अच्छी है। संवाद की बानगी-
‘सौम्या ने चौकीदार को समझाया,‘‘यह नन्हा-सा पिल्ला है। इसकी मां से छीनकर इसे यहां इतनी दूर लाया गया है। इसको हमेशा बांधकर रखा जाता है। यह अभी इतना समझदार नहीं हुआ है कि आपकी सारी बातें मान लें। इसलिए आप इसे मारा मत कीजिए।’’
ठहाका लगाओं के तहत मज़ेदार चुटकुले भी पत्रिका में हैं। पंकज रॉय का मस्त कार्टून भी पत्रिका में है। नया साल पर यह प्रासंगिक भी है।
वरिष्ठ कथाकार कल्पना कुलश्रेष्ठ की कहानी ऑपरेशन वाइरस भी रोचक कहानी है। यह कहानी हमें 200 साल आगे की दुनिया की सौर कराती है। बच्चों को यह कहानी बेहद पसंद आएगी। कहानी का एक अंश-
‘‘आप सबको इतनी जल्दी दोबारा यहां बुलाने का कारण कुछ खास है। एक भयानक घटना होने वाली है, जिसे हम नहीं रोक पाए, तो दुनिया ठहर जाएगी। वैसे ही जैसे दो सदी पहले ठहर गई थी।’’ चीफ की भारी आवाज में चिंता थी।
जरा सोचो स्तम्भ के तहत दो पेज स्कूली गतिविधियों-सी हैं। यह स्कूली बच्चों को ध्यान में रखकर रची गई हैं। सात पेज बाल कोना के लिए रखे गए हैं। 16 भविष्य के सितारे यानि बाल रचनाकारों को भव्यता के साथ स्थान मिला है। रचना की स्तरीयता भी देखते ही बनती है।
पत्रिका में रसोई का भी ध्यान रखा गया है। खाना और पकाना के तहत चूल्हा से माइक्रोवेव की जानकारी दी गई है। 6 बाल साहित्य की पुस्तकों के लिए तीन पेज निर्धारित किए गए हैं। मुझे लगता है कि पुस्तकों का परिचय और संक्षिप्त किया जाना चाहिए। और अंत में पत्रिका ने उन सभी शुभचिन्तकों का धन्यवाद ज्ञापित किया है जिन्होंने पत्रिका को आर्थिक संबल प्रदान किया है। उम्मीद की जाती है कि पत्रिका को और भी साहित्यकार, जानकार और अध्येता मदद करेंगे। फौरी तौर पर मदद करने वालों का नाम दिया जाना समीचीन जान पड़ता है। पंकज चतुर्वेदी, राम करन, मनोहर, अनुपमा गुप्ता, रेनू मंडल, अरशद खान, मोनिका अग्रवाल, मेराज रजा, पवन चौहान, भगवत प्रसाद पाण्डेय, रावेन्द्रकुमार रवि, देवेन्द्र कुमार, हरिओम जायसवाल, शील कौशिक, भास्वर लोचन, उषा सोमानी, समीर गांगुली, दीप्ति मित्तल, संगीता सेठी,प्रभा खन्ना और अनिल जायसवाल प्रमुख हैं।
फोंट शानदार है। रंग संयोजन बाल मन के अनुकूल है। सामग्री-चित्र और स्थान का समन्वय देखते ही बनता है। कहीं भी सामग्री ठूंसी हुई प्रतीत नहीं होती। हाँ भरसक प्रयास यह किया जाना चाहिए कि कोई भी सामग्री दो पेज से अधिक न हो। चूँकि पत्रिका ऑनलाइन है तो अनुभव बताता है कि पाठक कमोबेश छोटी-छोटी रचनाएं ही प्राथमिकता के तौर पर पढ़ते हैं। तथ्यात्मक और आँकड़ों से सराबोर सामग्री देने से बचा जाना चाहिए। गूगल के युग में यदि कोई पत्रिका भी सूचना,जानकारी और ज्ञान को अत्यधिक प्राथमिकता देंगे तो पठनीयता के कम होने की आशंका बढ़ जाती है। हालांकि प्रवेशांक में कमोबेश यह प्रयास किया गया है कि पठनीयता बनी रहे और रोचकता का अंश अधिकाधिक रहे। सेलिब्रिटी टॉइप सामग्री और मात्र शहरी परिवेश से यह पत्रिका बची रहेगी। बच्चों की पत्रिका भी बच्चों की दुनिया में जो विविधता है, उसे छूएगी। ऐसा विश्वास है।
पायस: ऑनलाइन बाल पत्रिका

और अंत में – पायस की अनवरत्,समयबद्ध तीन अंक पाठकों के समक्ष आ गए हैं। पायस की प्रतिबद्धता देखते ही बनती है। सीमित संसाधनों के बावजूद संपादक जी एवं उनसे जुड़े रचनाकारों को पूरी बधाई देना बनती है। कलमकारों और पाठकों से निवेदन है कि वे इस पत्रिका को सशक्त बनाने में महती भूमिका निभाएं।
पेज: 62
मूल्य: निःशुल्क
संपादक: अनिल जायसवाल
व्हाटसएप: 7982014609
पेटीम के लिए नंबर: 7982014609

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॰॰॰
-मनोहर चमोली ‘मनु’
सम्पर्क: 7579111144

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One thought on “बाल पत्रिका: साल 2021 में नई आहट पायस की”

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