वरिष्ठ साहित्यकार देवेन्द्र कुमार बाल साहित्य में चिर-परिचित नहीं बड़ा नाम है। वह उन चुनिंदा साहित्यकारों में हैं जिनकी कहानियों में विविधता है। वह पात्रों के माध्यम से बहुत ही कोमल और मासूमियत बालमन को रेखांकित करते हैं। वे कहानियों में जल्दीबाजी नहीं करते। 83 वर्षीय देवेंद्र कुमार लम्बे समय तक नंदन बाल पत्रिका से जुड़े रहे। प्रकाशन विभाग, एन.बी.टी. सहित कई नामचीन प्रकाशनों से उनकी पुस्तकें आ चुकी हैं। वह गीत-कविता में भी उतना ही सधा हुआ लेखन करते हैं जितने वे कहानी लेखन में सिद्धहस्त हैं। उपन्यास विधा में भी वह शानदार लेखन करते रहे हैं सात से अधिक बाल उपन्यास उनके प्रकाशित हो चुके हैं। अखिल भारतीय स्तर पर कार्य कर रही शैक्षणिक संस्था एन.सी.ई.आर.टी. से भी उनकी पुस्तकें आ चुकी हैं। कई पुरस्कारों से सम्मानित देवेंद्र कुमार आज भी सक्रियता के साथ लेखन में रत हैं।
बाल साहित्य जगत में वह ऐसे साधक हैं जो बालोपयोगी अनुवाद भी करते रहते हैं। उन्होंने कई मुल्कों की सुप्रसिद्ध लोककथाओं का हिन्दी में अनुवाद कर हिन्दी साहित्य को समृद्ध ही किया है।

देवेन्द्र कुमार जी की सैकड़ों कहानियाँ बाल साहित्य की निधि हैं। ‘घर में घर खाली’ कहानी का उल्लेख किया जाना समीचीन होगा। शुभम और गौरी घर में घुस आए एक जोड़ा पक्षी से बहुत परेशान हैं। वह किसी भी कीमत पर उन्हें घर में रहने नहीं देना चाहते। मम्मी-पापा ऐसा कुछ करते हैं कि एक दिन मादा पक्षी वहीं रह जाती है। फिर एक बिल्ली के झपटने से शुभम उसे बचा लेता है। उसके बाद ऐसा कुछ कहानी में आता है कि पाठक भी पक्षियों के साथ हो जाता है। कहानी में ऐसा कुछ घटता है कि आगे चलकर शुभम और गौरी घोंसले के साथ अंडे और फिर बच्चों की देखभाल करते हैं। अंत बहुत ही शानदार है। एक दिन वह भी आता है जब बच्चे माँ सहित उड़ जाते हैं। शुभम एक कागज में कुछ लिखकर स्टूल पर चढ़कर घोंसले के ऊपर लगी जाली पर चिपका देता है। कागज पर लिखा होता है-किराये को खाली।
यह कहानी ‘देवेन्द्र कुमार की चुनिंदा बाल कहानियाँ’ में संग्रहीत है। इस संग्रह में 10 कहानियाँ हैं। अध्यापक, देवता लौट आए, जुगनी का बीरन, सुनरही सारस, मरना नहीं, जरा ठहरो, चिड़ियों की टोली, जादूगर और आम का स्वाद। यह पुस्तक 2018 में प्रकाशित हुई है। इस पुस्तक की दूसरी आवृत्ति 2020 में आ गई थी। संभवतः अब तक दो-तीन आवृत्ति और आ गई होंगी।
संभवतः ऐसा हो नहीं सकता कि आपने देवेन्द्र कुमार की कहानियां, कविताएं, गीत और उपन्यास न पढ़े हों। अवश्य पढ़े होंगे। आप भी सहमत होंगे कि इस वरिष्ठ कथाकार के पास बाल संसार के हजारों रंग हैं। उन रंगों में मासूमियत भी है, बाल हठ भी है, चंचलता भी है और समझदारी भी है। वह काल्पनिक उड़ान में पशु-पक्षियों और पेड़ों का मानवीकरण भी करते हैं और कहीं न कहीं नई पीढ़ी को संवेदनशील बनाने के लिए उनमें मनुष्य की बोली भी भर देते हैं।
एक बात और ! वे अपने समकालीनों की तरह आदर्श की अतिरंजनाएं कहानी में नहीं भरते। वे चाहिए से कहानियों का अंत नहीं करते। उनकी कई कहानियां संदेश-उपदेश देकर खत्म नहीं होती। यह भी कि खत्म नहीं होती, उलट पाठक को कहानी से आगे सोचने- ले जाने के लिए बाध्य करती हैं।
ऐसे वरिष्ठ कथाकार को सैकड़ों सलाम पहुँचे।
किताब: देवेन्द्र कुमार की चुनिंदा बाल कहानियाँ
लेखक: देवेन्द्र कुमार
विधा: कहानी
पेज: 86
मूल्य: 125 रुपए
प्रकाशक: राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
