गिरीश चन्द्र जोशी कृत ‘विज्ञान और ब्रह्माण्ड’ इतिहास तथा आधुनिक अवधारणा पर प्रकाश डालती है। यह किताब केवल विद्यार्थियों और शिक्षकों के लिए ही नहीं है। शोधार्थियों के लिए भी है। यह किताब प्रत्येक अभिभावक के लिए है जिनके घर में बच्चों ने अभी-अभी स्कूल जाना शुरू किया है। आज जब चारों और सभी धर्म खतरे में हैं। आज जब बच्चों के हाथ में मोबाइल है। घर में एण्ड्रॉयड टी॰वी॰ है तब इस तरह की किताबों की नितांत आवश्यकता है। आज महानगरों,कस्बों सहित गाँवों में भी अबोध बालिकाओं के सिर पर कलश है। वे आयोजन स्थल से दो-तीन किलोमीटर पैदल चलकर तथाकथित व्यास और उनके सात-नौ कथावाचकों का स्वागत करती भीड़ का अनिवार्य हिस्सा बना दी गई हैं। चर्च, मस्जिद और गुरुद्वारों में भी तीसरी-चौथी जमात में पढ़ रहे बच्चों को व्यस्त किया जा रहा है। अपने ही धर्म पर गर्व करना इतना बुरा नहीं है जितना दूसरों के धर्म से नफ़रत करना है। यह लगातार बढ़ रहा है।


आज धर्म के प्रकाण्डों का चहुँ ओर बोलबाला है। वर्चस्व है। भाग्यवादी सोच बढ़ रही है। जन सरोकार, सब धर्म समभाव सामाजिक गतिविधियों से बच्चों और किशोरों से पीठ कर लेने का पाठ पढ़ाया जा रहा है। ‘करा दो बेड़ापार’ वाली सोच हावी हो गई है। दिन भर चारों ओर कुंडली भाग्य, किस्मत, लॉटरी,ज्योतिष, टोना-टोटका सहित अलौकिक शक्तियों से जुड़े सीरियल-समाचारों का शोर बढ़ता जा रहा है। भारत की पीढ़ियाँ चीन,जापान,ताइवान जैसे मुल्कों की ईज़ाद की गई चीजों का उपभोग करने से इतरा रही हैं। धार्मिक अनुष्ठानों में भारत का भविष्य दिखाने वालों की वजह से भारत तर्क,कसौटी और तथ्यों से परे होता जा रहा है।
ऐसे में हिन्दी में विज्ञान और साहित्य में विज्ञान लेखन करने वालों में गुणाकर मुले, प्रो॰यशपाल, देवेन्द्र मेवाड़ी, आशुतोष उपाध्याय, शिव गोपाल मिश्र, रमेश दत्त, आइवर यूशियल, इरफान, अवधेश कुमार, श्रवण कुमार आदि अंगुलियों में गिनने लायक क्यों हैं?


विष्णुपुराण के पहले स्कन्ध के उन्नीसवें अध्याय में यह श्लोक उल्लिखित है-‘तत्कर्म यन्न बन्धाय सा विद्या या विमुक्तये। आयासायापरं कर्म विद्यऽन्या शिल्पनैपुणम्’ …..! भाव यही है कि जिस कार्य में बन्धन का कारण न हो, वही कर्म है। विद्या भी वही है जो मुक्ति का साधन बने। मुझे लगता है कि सार्थक पढ़ाई ही हमें सूझ-बूझ और तर्क के रास्ते पर ले जाती है। इस रास्ते पर चलना शुरू तो हर कोई करता है पर लगातार चलते रहना हर किसी के वश की बात नहीं। लगातार चलते रहने वाले विज्ञान का दामन थाम लेते हैं। विज्ञान का दामन थामने वाले एक कदम आगे बढ़ जाते हैं। विज्ञान के साथ आगे बढ़ने वाले वैज्ञानिक नज़रिए के साथ और आगे बढ़ जाते हैं। यही वह लोग हैं जो प्रभावित करते हैं प्रभाव में नहीं आते। प्रभाव में आने वाले पीछे छूट चुके लोग होते हैं। जिन्हें और पीछे छूट चुके तथाकथित धर्मावलम्बी अपने प्रभाव में ले लेते हैं। ये सब मिलकर आगे चल रहे विज्ञानवेत्ताओं को भी अपने घेरे में लेने की कोशिश में जुटे रहते हैं। यही कारण है कि किताबों के अम्बार में सार्थक किताबों की आभा मद्धम पड़ जाती है। समाज को चाहिए कि मनुष्यता को बचाए-बनाए रखने के लिए विज्ञान सम्मत किताबों और उनके सर्जनहारों का प्रचार-प्रसार करें। इसी कड़ी में आचार्य गिरीश चन्द्र जोशी की विज्ञान सम्मत चार शृंखला का स्वागत किया जाना चाहिए।

पुस्तक ‘विज्ञान और ब्रह्माण्ड’ (इतिहास तथा आधुनिक अवधारणा) विज्ञान के सफर को आद्योपान्त वर्णन है। शानदार ! पुस्तक में प्रथम खंडः खगोल विज्ञान का विकास ऐतिहासिक काल से पुनर्जागरण काल तक को शामिल किया गया है। मानवजनित सोच के क्रमिक विकास को सिलसिलेवार प्रस्तुत किया गया है। जैसे-प्राचीन मान्यताएँ और ब्रह्माण्ड के वैज्ञानिक अनुवेक्षण का प्रारम्भ। इसे भी कई छोटे-छोटे अध्यायों में विभाजित किया गया है। जिनमें जागृति काल, ब्रह्माण्ड के यांत्रिक स्वरूप का प्रादुर्भाव, पाइथागोरस तथा पाइथागोरियन समुदाय, पृथ्वी गोल है, केन्द्रीय अग्नि नहीं, अपितु पृथ्वी ही केंद्र है, हेराक्लेडिस का भूकेंद्रित मॉडल, अरिस्टार्कस का सूर्य केन्द्रित ब्रह्माण्ड का माडल प्रमुख है। पुस्तक में ही ‘तिमिर युग का प्रारम्भ’ अलग अध्याय है। इसके अन्तर्गत सुकरात, प्लेटो तथा अरस्तू , वास्तविकता से सम्बन्ध विच्छेद (पपप) टोलेमी, अधोचक्र तथा आकाश का मानचित्र का वर्णन अलग-अलग अध्याय के तौर पर किया गया है।


‘भारतीय खगोल शास्त्र का विकास’ की अलग से व्याख्या की गई है। जिसमें वेदांग ज्योतिष, आर्यभट्ट, वराहमिहिर, भास्कर प्रथम, ब्रह्मगुप्त, भाष्कर द्वितीय (भाष्कराचार्य) को शामिल किया गया है। इसी पुस्तक में अरब खगोलशास्त्री के तहत अरब खगोलशास्त्र का विकास और ग्रीक ज्योतिर्विद्या तथा दर्शन पर प्रश्नचिन्ह अध्याय हैं। इसी पुस्तक का दूसरा खंड पुनर्जागरण तथा आधुनिक वैज्ञानिक युग का प्रारम्भ है। टोलेमी के आकाशीय मानचित्रों पर संदेह का वर्णन भी है। निकोलस कोपरनिकस तथा सूर्य केन्द्रित ब्रह्माण्ड का सिद्धान्त का शानदार वर्णन है। इसके तीन अध्यायों में समकालीन खगोल शास्त्र की त्रुटियों का विश्लेषण, कोपरनिकस के सात सूत्र और प्रतिक्रिया शामिल हैं। दूसरे खण्ड के दूसरे अध्याय में जोहानस केप्लर तथा ग्रहों की गति के नियम को छह अलग अध्यायों में बांटा गया है। जोहानस केप्लर, केप्लर का टाइकोब्राहे से मिलन, मंगल की परिधि का आकलन, द्वितीय नियम की खोज, प्रथम नियम की खोज, केप्लर का तृतीय नियम को शामिल किया गया है।


विज्ञान में गेलीलियों को समग्रता से एक जगह पर पढ़ने-समझने का काम भी इस पुस्तक में किया गया लगता है। गेलीलियो, पृथ्वी के पिंडों की गति तथा जड़त्व का नियम के तहत शानदार जानकारी एकत्र है। जिनमें गेलीलियो, पृथ्वी पर सामान्य पिंडों की गति के नियम, आपेक्षिकता का सिद्धांत, गेलीलियो और दूरबीन और गेलीलियो पर मुकदमा को शामिल किया गया है। दूसरे खण्ड के अन्तिम अध्याय में आइजेक न्यूटन तथा गुरुत्त्वाकर्षण का नियम को स्थान दिया गया है। इस अध्याय के पांच उप अध्याय हैं। जिनमें आइजेक न्यूटन, वृत्तीय मार्ग में गति, भार क्या है, चुम्बकीय भ्रान्ति और गुरुत्त्वाकर्षण नियम की खोज हैं। किताब में तीसरा खण्ड पिछले सौ-डेढ़ सौ साल की यात्रा तक हमें ले आता है। ब्रह्माण्ड के आधुनिक स्वरूप की अवधारणा किताब का खास अंश है। आपेक्षिकतावाद तथा आइन्सटाइन का ब्रह्माण्ड के ग्यारह उपखण्ड हैं। विज्ञान की महत्त्वपूर्ण खोजें तथा उनका योगदान, अल्बर्ट आइन्सटाइन, 1905: आइन्सटाइन का चमत्कारिक वर्ष, आइन्सटाइन का आपेक्षिकता का सिद्धान्त, आइन्सटाइन का सामान्य आपेक्षिकता का सिद्धान्त, आइन्सटाइन के सिद्धान्त का प्रायोगिक सत्यापन, गुरुत्वीय लेंस, गुरुत्व तथा समय,आपेक्षिकता का सामान्य जीवन में अनुभव, आइन्सटाइन का सिद्धान्त और ब्रह्माण्ड का प्रसार, आइन्सटाइन का सिद्धान्त तथा कृष्ण विवर रखे गए हैं।


तीसरे खण्ड के दूसरे अध्याय में आठ उपखण्ड हैं। प्रमुख अध्याय स्टीफेन हाकिंग तथा ब्रह्माण्ड के उत्पत्ति की आधुनिक धारणा है। उप अध्याय स्थिर अवस्था ब्रह्माण्ड की अवधारणा तथा सी एम बी विकिरण, स्टीफेन डब्ल्यू हाकिंग, प्रारंभिक जीवन,बीमारी, मृत्यु, हाकिंग तथा आधुनिक ब्रह्माण्ड की अवधारणा, क्या कृष्ण विवर पूर्णतया कृष्ण हैं, समय का तीर हैं। तीसरे खण्ड के तीसरे अध्याय को मानव और ब्रह्माण्ड नाम दिया गया है। तीन उप अध्याय मानव मस्तिष्क, क्या ब्रह्माण्ड चेतन है और सर्वचित्तवाद तथा पदार्थ हैं। अट्ठाइस पेज परिशिष्ट के लिए सुरक्षित रखे गए हैं। हालांकि वह भी किसी खास अध्याय से कम नहीं हैं। संदर्भ फ्रेम आइन्सटाइन का विशेष सिद्धान्त तथा दिककाल, भौतिक राशियां तथा स्थिरांक, सारिणी-1 भारतीय ज्योतिष में राशियों और नक्षत्रों के नाम, सारणी-2 टोलेगी द्वारा आकाश में चिन्हित 48 नक्षत्रों के नाम के अलावा शब्दार्थ, हिन्दी अंग्रेजी शब्दार्थ, हिन्दी अंग्रेजी नाम, हाकिंग द्वारा लिखित पुस्तकें और संदर्भ निर्देश भी सूचीबद्ध है।

विज्ञान और ब्रह्माण्ड, दूरबीन के विकास का इतिहास तथा खगोलविज्ञान में योगदान आचार्य गिरीश चन्द्र जोशी की विज्ञान सम्मत चार शृंखला की दूसरी किताब है। इस किताब की प्रस्तावना में गेलीलियो द्वारा दूरबीन से आकाशदर्शन और बड़ी दूरबीनों का विकास शामिल हैं। बड़ी दूरबीनों का विकास के छह अध्याय हैं। अपवर्ती तथा परावर्ती दूरबीनें, हरशेल तथा पारसन द्वारा निर्मित दूरबीनें, दूरबीन निर्माण में हेले का योगदान, अन्य बड़ी दूरबीनें, फोटोग्राफी तथा डिजिटल इमेजिंग और द्रव दर्पण दूरबीनें एक विकास यात्रा के जरूरी पड़ाव लगते हैं।
इस पुस्तक में तीसरा अध्याय बहुत ही रोचकपूर्ण है। ब्रह्माण्ड जो मानव नेत्र नहीं देख सकते के उप अध्यायों में विद्युतचुम्बकीय तरंगों का सम्पूर्ण क्षेत्र, रेडियो दूरबीन, कैसा दिखता है रेडियो ब्रह्माण्ड, अन्य दूरबीनें हैं। इसी तरह चौथे अध्याय में अन्तरिक्ष में स्थापित दूरबीनें के तहत हबल दूरबीन, क्ष-किरण तथा गामा किरण संसूचक शामिल है। अन्य अध्यायों में निर्माणाधीन दूरबीनें तथा भविष्य की योजनाएँ, गुरुत्वाकर्षण तरंग डिटेक्टर, भारत में स्थित संस्थान तथा दूरबीनें भी रोचक पाठ हैं। इस पुस्तक में परिशिष्ट भी सिर्फ देखने योग्य नहीं पढ़ने योग्य है। भौतिक राशियां तथा स्थिरांक, सारिणी-1 विश्व भर में स्थापित ऐतिहासिक तथा बड़ी दूरबीनें, सारणी-2 रेडियो, क्ष-किरण तथा अवरक्त तरंग तथा दूरबीनें हैं। शब्दार्थ के अलावा हिन्दी अंग्रेजी शब्दार्थ, हिन्दी अंग्रेजी नाम और संदर्भ निर्देश भी पुस्तक में है।


सीरीज की तीसरी किताब पृथ्वी तथा सौर मण्डल के सदस्य एक खास किताब है। हालांकि सौर मण्डल की जानकारी सूचनात्मक तौर पर पहले से ही ख़ूब हैं। लेकिन यह किताब पुरानी जानकारियों के साथ कुछ ऐसे बिन्दुओं पर प्रकाश डालती है जिन्हें अमूमन नज़रअंदाज़ किया जाता रहा है। इस किताब में चार अध्याय हैं। कुल उनतालीस उप अध्याय हैं। पृथ्वी तथा चंद्रमा के उप अध्याय देखें तो हमारी पृथ्वी, पृथ्वी की आंतरिक संरचना, सतह के गुण तथा सतह विवर्तनिकी, पृथ्वी का वायुमंडल, वायुमंडल की ऊर्ध्वाधर संरचना, पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र तथा मैग्नेटोस्फीयर, चन्द्रमा, चन्द्रमा की आंतरिक संरचना, कैसे हुई चन्द्रमा की उत्पत्ति, चन्द्रमा और ज्वार भाटा, सूर्य तथा चंद्रग्रहण की जानकारी पाठकों को मिलेगी। दूसरा अध्याय सौर मंडल के ग्रह हैं।

इस अध्याय में बुध,शुक्र,मंगल,बृहस्पति,शनि,यूरेनस, नेपच्यून, प्लूटो की जानकारी उपलब्ध है। तीसरा अध्याय सौर मंडल के अन्य सदस्य: क्षुद्रग्रह, उल्का, उल्कापिंड और धूमकेतु है। इसके उप अध्यायों में क्षुद्रग्रह, क्षुद्रग्रहों की संरचना, कैसे हुई क्षुद्रग्रहों की उत्पत्ति, उल्काएँ तथा उल्कापिंड,उल्काएँ,उल्कापिंड,धूमकेतु,धूमकेतुओं की संरचना उप अध्याय भी पठनीय हैं। चौथा अध्याय सूर्य, हमारा अपना तारा है। इसके उप अध्यायों में कैसे प्राप्त होती है सूर्य से ऊर्जा, सूर्य की सतह तथा वातावरण, प्रकाशमंडल,सौर धब्बे, स्पेक्ट्रम और कोरोना, स्पीक्यूल, फिलामेंट, तथा प्रॉमिनेंस, सौर ज्वालाएँ, सौर न्यूट्रिनो, सौर भूकंप क्रिया, सौर पवन, सौर चक्र, सौर चक्र का पृथ्वी पर पड़ने वाला प्रभाव बहुत सी रोचक जानकारियों से लबरेज हैं।

किताब का परिशिष्ट भी मात्र सूचनात्मक नहीं है। भौतिक राशियां तथा स्थिरांक, सारिणी-1 सौरमंडल सदस्यों के आँकड़े, सारणी-2 ग्रहों की कक्षा से संबन्धित आँकड़े तथा निरपेक्ष कांतिमान, सारणी – 3 ग्रहों के मुख्य उपग्रह, सारणी-4 विशिष्ट क्षुद्रग्रह, सारणी-5 प्रमुख धूमकेतु के साथ शब्दार्थ, हिन्दी अंग्रेजी नाम तथा शब्दार्थ और संदर्भ निर्देश भी पुस्तक में है।


इस सीरीज की चौथी पुस्तक बेहतरीन है। किताब तारे, नीहारिकायें तथा मंदाकिनियाँ पर केन्द्रित है। पहला अध्याय आकाश दर्शन है। इसके तीन खण्ड हैं। कैसे होती है तारों की पहचान, बारह राशियाँ और आकाशगंगा व मंदाकिनियाँ हैं। यह हमें दूसरे लोक का परिचय कराते हैं। दूसरा अध्याय तारों का मौलिक अध्ययन है। इसके चौदह उप खण्ड हैं। यह हैं-तारों का दृश्य कान्तिमान, तारों का निरपेक्ष कान्तिमान, तारों की दूरी का मापन, तारों की कान्ति, तारों का रंग तथा तापक्रम,तारों का वर्गीकरण, तारों का वर्णक्रम विश्लेषण, तारों का वर्णक्रम आधारित वर्गीकरण, कान्ति वर्ग, एच.आर आरेख, तारों का द्रव्यमान तथा घनत्व, तारों की गतियाँ, युग्म तथा बहुल तारे, चरकान्ति तारे। पुस्तक का तीसरा अध्याय है-नीहारिकायें, तारों एवं ग्रहों की जन्मस्थली। इसके आठ उप अध्याय हैं। अंतरनक्षत्रीय धूल, कैसे होता है तारों का जन्म, तारों की जन्म स्थली, ग्रहों तथा ग्रह समुदायों का जन्म, आधुनिक सिद्धांत, प्रोटो प्लेनेट तथा ग्रहों का निर्माण, सौर मंडल के अलावा अन्य तारों के ग्रह हैं।


चौथा अध्याय तारों का जीवन चक्र है। इसके तेरह उप अध्याय हैं। यह हैं-कैसे उत्पन्न होती है तारों से ऊर्जा, जब ईंधन की मात्रा कम होने लगती है, मध्यम आकार तारे, अधिक द्रव्यमान युक्त तारा, तारे का अंत, सुपरनोवा विस्फोट, सुपरनोवा के अवशेष, न्यूट्रॉन तारे तथा पल्सर, कैसे होता है न्यूट्रॉन तारों द्वारा रेडियो तरंगों का उत्सर्जन, कृष्णविवर या ब्लैक होल, कृष्ण विवर का आधुनिक सिद्धान्त यगपप कृष्ण विवर का संसूचन, गुरुत्वीय तरंगें।
पाँचवां अध्याय आकाशगंगा तथा अन्य मंदाकिनियाँ हैं। इसमें तेरह उप अध्याय हैं। सब एक से बढ़कर एक और ज़रूरी। ये हैं-आकाशगंगा, आकाशगंगा की घूर्णन गति, आकाशगंगा का द्रव्यमान, आकाशगंगा का कुंडलीनुमा, (स्पाइरल) आकार, आकाशगंगा का नाभि क्षेत्र, मंदाकिनियाँ, मंदाकिनियों का वर्गीकरण, मंदाकिनियों की संरचना तथा द्रव्यमान, सक्रिय मंदाकिनियाँ तथा क्वेसार, रेडियो मंदाकिनियाँ, क्वेसार, बी एल लेसरटे पिंड तथा ब्लेजर्स, सीफर्ट मंदाकिनियाँ।


किताब का दूसरा खण्ड ब्रह्माण्डिकी है। इसका पहला अध्याय ही ब्रह्माण्ड का प्रसार है। जिसके आठ उप अध्याय है। हबल का नियम तथा लाल विस्थापन, ब्रह्माण्ड का प्रसारवादी स्वरूप,बिग बैंग अर्थात महाविस्फोट, हबल स्थिरांक और ब्रह्मांड की आयु, कॉस्मिक माइक्रोवेव लेटरल रेडिएशन, बिग बैंग का प्रामाणिक मॉडल, मंदाकिनियों के निर्माण का समय, ब्रह्माण्ड का भविष्य। किताब के दूसरे खण्ड का दूसरा अध्याय तिमिर पदार्थ और तिमिर ऊर्जा है। तिमिर पदार्थ और तिमिर ऊर्जा इसके उप अध्याय है। तीसरा अध्याय बेहद खास है। यह इन दिनों भी खूब चर्चा में है। तीसरा अध्याय अन्यत्र ग्रहों में जीवन है। इसके पांच उप अध्याय है। सभी बेहद पठनीय है। पृथ्वी से बाहर जीवन की संभावना, सौरमंडल से बाहर जीवन की तलाश, क्या अन्य ग्रहों में बुद्धिमान प्राणी हो सकते हैं, पृथ्वी से बाहर बुद्धिमान प्राणियों की खोज, क्या पृथ्वी पर जीवन संयोगवश है प्रमुख हैं। किताब के परिशिष्ट भी पठनीय बन पड़े हैं। अंक नामावली, भौतिक राशियाँ तथा स्थिरांक, भौतिक नियतांक, सारणी.1 उत्तरी तथा दक्षिणी गोलार्ध के कुल नक्षत्रों के नाम सारणी. 2 सबसे चमकदार बीस तारे हैं। किताब के अंत में शब्दार्थ भी दिए गए हैं। हिन्दी अंग्रेजी शब्दार्थ, हिन्दी अंग्रेजी नाम और अंत में संदर्भ निर्देश भी शामिल हैं।


नवारुण प्रकाशन किताबों का चयन बेहद सतर्कता के साथ कर रहा है। वह संख्यात्मकता से अधिक गुणात्मकता पर ध्यान दे रहा है। नवारुण विज्ञान शृंखला-1 सहित चारों किताबें शानदार काग़ज़ पर तैयार हुई हैं। कवर पेज भी गुणवत्ता से परिपूर्ण है। आवरण डिजाइन भी आकर्षक है। इन चारों किताब में फोंट डिजाइन भी शानदार है। अलबत्ता फोंट आकार विषय के सन्दर्भ में तनिक छोटा पड़ गया है। यदि आकार थोड़ा बड़ा होता तो भले ही कुछ पेज बढ़ जाते लेकिन पाठक को सहूलियत हो जाती। एक बात गौर करने वाली यह भी है कि इन चारों किताबों को सन्दर्भ के लिए बार-बार पलटना पड़ेगा। फोंट बड़ा होता है तो पाठक आसानी से किसी भी प्रकरण को आसानी से खोज लेता है। अध्यायों के अंत में और दूसरे नए अध्याय में दांए पेज कोरे छोड़ दिए गए हैं। उनका इस्तेमाल चित्रादि में किया जा सकता था।

शृंखला-1 की ही बात करें तो इस पुस्तक में अधिकतर सामग्री मानव की प्रारम्भिक विज्ञान यात्रा पर केन्द्रित है। यही कारण है कि चित्र भी श्याम-श्वेत होने थे। लेकिन चित्रों का ले-आउट और निखारा जा सकता था। कैप्शन के फोंट का आकार और भी छोटा रख दिया गया है। पाठक उसे भी पढ़ते हैं। एक बात जो विशेष है वह यह है कि इन चारों किताबों को बार-बार पढ़ा जाना है। यह साहित्य की किताब नहीं है जो आनन्द के साथ एक-दो बार पढ़ी और रख दी या किसी को पढ़ने के लिए दे दी। इन चारों किताबों को सजग पाठक अपने निजी संग्रह में हमेशा रखना चाहेगा। हरसंभव प्रयास किया गया है कि प्रूफ की गलती कम से कम रहे। छपाई एकदम साफ-सुथरी है।


शृंखला-2 दूरबीन के विकास का इतिहास बताती है। खगोलविज्ञान में उसके योगदान पर बात करती है। किताब में शामिल चित्रों को यथासंभव रंगीन दिया जा सकता था। कुछ चित्र एक साथ दे दिए गए हैं। तथ्य के साथ और कथ्य के साथ जोड़ बनता हुआ नहीं दिखाई देता। यहां भी कैप्शन फोंट बेहद छोटा हो गया लगता है। बावजूद इसके यह कहना गलत न होगा कि शृंखला की चारों किताबें पढ़नी चाहिए और पढ़ने का मशविरा भी दिया जाना चाहिए।

शृंखला-3 में पृथ्वी तथा सौरमंडल के सदस्य पर केन्द्रित है। यह बहुत ही महत्वपूर्ण किताब है। इसे शृंखला-3 से मुक्त करते हुए अलग से भी प्रकाशित किय जाना चाहिए।

उच्च प्राथमिक विद्यालय के छात्रों के लिए इस पुनर्कथित किया जाना चाहिए। यदि शृंखला की चार किताबों को एक साथ खरीदने की बाध्यता न हो तो यह किताब अधिक से अधिक पाठक खरीदना चाहेंगे। सीधे तौर पर यह कहा जा सकता है कि इस किताब को बहुत-बहुत ज्यादा पढ़ा जाएगा। किताब में बहुत सारे चित्र रंगीन हैं। यह सुखद है। क्या सभी चित्र रंगीन नहीं रखे जा सकते थे? कुछ चित्र अपेक्षाकृत छोटे हो गए हैं।


शृंखला-4 तारे, नीहारिकायें, आकाशगंगा, मंदाकिनियाँ तथा ब्रह्माण्डिकी पर केन्द्रित है। इस किताब के अधिकाधिक चित्र रंगीन रखे जा सकते थे। इस किताब में भी कोरे पन्ने छोड़ दिए गए हैं। इनका औचित्य समझ में नहीं आता। छात्रों के स्तर पर सुविधा का स्तर देखें तो इसमें और ध्यान दिया जा सकता था। विज्ञान और ब्रह्मांड की शृंखला में आई यह चारों किताबें महत्वपूर्ण हैं। लेखक और डिजाइनर का परिचय और फोटो में रचनात्मकता बढ़ाई जा सकती थी। भले ही परिचय सूक्ष्म होता लेकिन चारों किताब में इसे अलग-अलग रखा जा सकता था। चूँकि शृंखला में ही चार किताबें हैं तो इरादा इन्हें एक सेट के तौर पर पाठकों को उपलब्ध कराये जाने का है। पाठक को चारों किताब के लगभग तीस पेजों में एक जैसी सामग्री पढ़ने की बाध्यता रहेगी। यह नीरसता और खीज पैदा करता है। परिचय, भूमिका, आभार, प्रकाशकीय में विविधता रखी जा सकती है। प्रस्तावना जरूर चारों किताबों में अलग है। यह अच्छी बात है।

यह तो हम जानते ही हैं कि विज्ञान विषय और विज्ञान के बारे में लिखना बढ़ता जा रहा है। लेकिन सरल लिखना कम होता जा रहा है। लेखक समर्थ हैं वह इसे और भी सरल कर सकते थे।

शृंखला की पहली पुस्तक को देखें तो पहला ही अध्याय प्राचीन मान्यताएँ है। पहला ही वाक्य देखिएगा। ‘मानव स्वभाव आदि काल से ही जिज्ञासु रहा है। यही वह कारण है जिसने मनुष्य को अन्य प्राणियों से भिन्न स्वरूप प्रदान किया है-इसी जिज्ञासा के फलस्वरूप चौपाई से दोपाया बना और अपने दो स्वतंत्र हाथों की सहायता से अन्य कार्य जैसे फल तोड़ना, आग जलाना, पत्थर के हथियार बनाना, जानवरों को मारना, उनकी खाल के वस्त्र बनाना इत्यादि कार्य करने में सक्षम हुआ।’

यहाँ वाक्य का गठन बहुत ही लम्बा है। पढ़ते-पढ़ते पाठक को पीछे से तारतम्यता जोड़ने में असहजता हो सकती है। वाक्य सौष्ठव और भी प्रबल किया जा सकता था।

शृंखला की दूसरी किताब का पहला अध्याय गेलीलियो द्वारा दूरबीन से आकाशदर्शन का प्रारम्भ अच्छा है। लेकिन पहले ही पैराग्राफ में बहुत बड़े-बड़े वाक्य भी है।

एक उदाहरण-‘दूरबीन की खोज का सबसे महत्वपूर्ण योगदान यह रहा कि गेलीलियो ने जो कुछ देखा उसकी सहायता से सूर्य के सापेक्ष पृथ्वी की गति को समझने में महत्वपूर्ण सफलता अर्जित हुई।’ इतना बड़ा वाक्य इसको भी सरल करने की जरूरत दिखाई देती है।

इसी तरह अगर हम शृंखला की तीसरी किताब देखते हैं तो उसका पहला अध्याय पृथ्वी तथा चंद्रमा है। चौथी लाइन पढ़िएगा-‘पृथ्वी की विशेषता इसकी सतह पर जल की प्रचुर मात्रा तथा इसके वायुमंडल में ऑक्सीजन की उपस्थिति है जिसके कारण यह जल, थल तथा नभ में अनंत प्रकार के जीवो का घर बना है।’ लेखक सिद्धहस्त हैं। वह इसे आसानी से सरल कर सकते हैं। अगर हम किताब के चौथे सेट की बात करें तो पहला अध्याय है-आकाशदर्शन।

छठी पँक्ति-‘अंतरिक्ष में स्थापित हबल वाली दूरबीन की सहायता से उन तारों तथा पिंडों को भी देखा जा सकता है जिनसे आने वाले प्रकाश को पृथ्वी का वायुमंडल अवशोषित कर लेता है और इनसे उत्सर्जित विकिरण पृथ्वी की सतह तक नहीं पहुंच पाते। पुस्तक नवारुण विज्ञान शृंखला-1 की बानगी आप भी पढ़ सकते हैं। गेलीलियो हमेशा पढ़ने-जानने और समझने वाले व्यक्तित्व हैं। पुस्तक से एक अंश-
‘चर्च के साथ गेलीलियो के विवाद का मुख्य कारण ब्रह्माण्ड के बारे में भिन्न धारणा रखना नहीं था। 1612 में सूर्यकेंद्रित ब्रह्माण्ड का विरोध प्रारंभ हुआ तो उसने केप्लर से पूर्णरूप से सम्बन्ध विच्छेद कर लिया। गेलीलियो आतंरिक तौर पर केप्लर के सिद्धान्त से सहानुभूति रखता था परन्तु वह कोपरनिकस के सूर्यकेन्द्रित सिद्धान्त का अधिक समर्थन करता था। 1614 में सांतामारिया नोवेला के धर्मोपदेशक फादर टोमासो केसिनी ने गेलीलियो के पृथ्वी को गतिशील मानने की अवधारणा की भर्त्सना की ओर उसे ऐसा दुष्प्रचार न करने के लिए सचेत किया। इस पर गेलीलियो रोम गया जहाँ उसने अपने विरुद्ध लगाए गए आरोपों का खंडन करने का प्रयास किया परन्तु वहाँ भी 1616 में कार्डिनल रोबेर्टो बेलरमाइन ने उसे चेतावनी पत्र दिया। चर्च के धर्म न्यायाधिकरण ने उसके द्वारा कोपरनिकस के सिद्धान्त को समर्थन देने की भर्त्सना की। 1621 और 1622 के मध्य उसने अपनी प्रथम पुस्तक ’द ऐसेयर’ (इतालवी में II Saggiatore ) लिखी जिसके प्रकाशन की स्वीकृति 1623 में प्राप्त हुई। 1632 में उसने अपनी दूसरी पुस्तक The dialogue concerning the Two Chief World systems प्रकाशित की। उसी वर्ष उसे रोम के होली ऑफिस में पेश होने का आदेश प्राप्त हुआ। उस पर धर्म विरुद्ध प्रचार करने का अभियोग लगा और उसके कृत्य की भर्त्सना करते हुए 1634 में घर में नजरबन्द करने की सजा दी गयी। नजरबंदी के दौरान उसका स्वास्थ्य बिगड़ता गया। उसे 1638 में उपचार के लिए फ्लोरेंस जाने की स्वीकृति मिली जहाँ 1642 में लम्बी बीमारी के उपरांत उसकी मृत्यु हो गयी। परन्तु यह मानना कि चर्च गेलीलियो का पूर्णरूप से विरोध करता था सत्य नहीं है। 1610 में जब उसने दूरबीन द्वारा आकाश का सर्वेक्षण प्रारम्भ किया था बिशप तथा कार्डिनल ने उसके कार्यों की भूरि-भूरि प्रशंसा की। रोम तथा फ्लोरेंस दोनों स्थानों पर गेलीलियो को बहुत सम्मान प्राप्त था। परन्तु 1616 में उसने कोपरनिकस के सूर्य केन्द्रित ब्रह्माण्ड को एकमात्र सत्य के रूप में प्रचारित करना प्रारम्भ किया तो उसकी मुसीबतें बढ़ गयीं क्योंकि यह मत ईसाई धर्म के विरुद्ध था।’


पहली पुस्तक से एक और अंश-


‘हॉकिंग का जन्म 8 जनवरी 1942 को इंग्लैंड के ऑक्सफोर्ड शहर में हुआ था। संयोगवश इसी तारीख को महान गेलीलियो का 300 वर्ष पहले प्रयाण हुआ था जिसका जिक्र हॉकिंग सदैव गर्व से करता था। उसके पिता का नाम फ्रेंक तथा माता का नाम इसाबेल था। वह अपने चार भाई बहनों में सबसे बड़ा था। दोनों माता-पिता उच्च शिक्षा प्राप्त पिता जाने-माने चिकित्सा शोध विज्ञानी तथा माता ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से ग्रेजुएट थीं तथा उसी संस्थान में कार्यरत भी रहीं। हॉकिंग के जन्म के समय विश्वयुद्ध जारी था और परिवार आर्थिक विपन्नता से जूझ रहा था। हॉकिंग का सारा परिवार अंतर्मुखी स्वभाव का था। 1950 में हॉकिंग के पिता राष्ट्रीय चिकित्सा शोध संस्थान में पेरासाइटोलोजी संभाग में गए जिसमें उन्हें शीत काल में अफ्रीका में शोध कार्य के लिए जाना होता था । पिता चाहते थे कि हॉकिंग भी उन्हीं की भाँति चिकित्सा विज्ञान की पढ़ाई करे परंतु उसका मन विज्ञान तथा आकाश के अध्ययन में अधिक लगता था। हॉकिंग की प्रारम्भिक शिक्षा सेंट अलबेन्स स्कूल में हुई। वह औसत श्रेणी का विद्यार्थी था और विद्यार्थी जीवन में उसका कोई विशेष योगदान हो, इसका उल्लेख नहीं मिलता। परंतु स्कूल की गतिविधियों के अलावा उसने अपने मित्रों के साथ मिलकर कबाड़ से मिले उपकरणों की सहायता से कम्प्यूटर बनाया था जिससे वह गणितीय समीकरण हल करता था। 17 वर्ष की आयु में उसने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। वह गणित पढ़ना चाहता था परंतु विश्वविद्यालय में विषय उपलब्ध नहीं था इसलिए 1962 भौतिकी समेत विज्ञान में आनर्स ग्रेजुएट कोर्स पूरा किया। उसने उसी वर्ष उसने केम्ब्रिज विश्वविद्यालय में ब्रहमाण्डिकी विषय में पीएचडी कोर्स में दाखिला लिया। आधुनिक ब्रह्माण्डिकी के संस्थापकों में से एक प्रोफेसर डेनिस विलियम शियामा उसके शोध निदेशक थे। उसे पहले वर्ष में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा क्योंकि उसके निदेशक के अनुसार सामान्य आपेक्षिकता तथा ब्रह्माण्डिकी विषय पर शोध को आगे बढ़ाने के लिए उसका गणितीय ज्ञान अभीष्ट स्तर का नहीं था। साथ ही वह बीमारी के कारण भी परेशान रहने लगा था।’

पुस्तक नवारुण विज्ञान शृंखला-2 पृष्ठों की संख्या के हिसाब से सबसे छोटी पुस्तक है। लेकिन यह विज्ञान के क्षेत्र में कॅरियर बनाने वाले खासकर दूरबीनों के क्षेत्र में आने वाले युवाओं के ज़रूरी किताब है। पुस्तक नवारुण विज्ञान शृंखला-2 से भी एक अंश आप भी पढ़िएगा-


‘आदि काल से मानव ने आकाश को केवल नंगी आँखों से देखा था। केवल पाँच सौ वर्ष पहले अभूतपूर्व घटना घटित हुई जब गेलीलियो ने स्वनिर्मित दूरबीन से आकाश की ओर निहारा। वह पहला मनुष्य था जिसने चन्द्रमा के पर्वतों, शुक्र की विभिन्न कलाओं, बृहस्पति के उपग्रहों तथा सूर्य के धब्बों के दर्शन किये। पृथ्वी के समान चन्द्रमा भी पदार्थ द्वारा निर्मित है, इसका ज्ञान मनुष्य को दूरबीन की मदद से ही हुआ। गेलीलियो ने यह भी बताया कि बृहस्पति का भी स्वयं का उपग्रह निकाय हैं और अनेक पिंड उसकी परिक्रमा उसी भाँति करते हैं जैसे सूर्य के चारों ओर ग्रह । दूरबीन की खोज का सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान यह रहा कि गेलीलियो ने जो कुछ देखा उसकी सहायता से सूर्य के सापेक्ष पृथ्वी की गति को समझने में महत्त्वपूर्ण सफलता अर्जित हुई। गेलीलियो के पदचिन्हों पर चलते हुए बाद के अनेक खगोलशास्त्रियों ने आकाश के अध्ययन के लिए दूरबीन का प्रयोग किया।
समय के साथ दूरबीनों की कार्य क्षमता में सुधार होता गया। वर्तमान में विश्व भर में आठ मीटर से अधिक व्यास की अनेक दूरबीनें विद्यमान है। विज्ञान तथा तकनीक में हुई अभूतपूर्व प्रगति के कारण वर्तमान में रेडियो दूरबीन, क्ष-किरण संसूचक, उच्च ऊर्जा कण संसूचक, फोटान संसूचक तथा गुरुत्वीय तरंग संसूचक उपलब्ध हैं जो अन्तरिक्ष से आने वाले ऐसे विकिरणों को संसूचित करने की क्षमता युक्त हैं जिन्हें मानव द्वारा देखना संभव नहीं है। पृथ्वी के वायुमंडल के कारण उत्पन्न अवरोध के निराकरण के लिए अन्तरिक्ष में दूरबीनें स्थापित की गयी हैं जिनसे प्राप्त सूचनाओं द्वारा ब्रह्माण्ड की संरचना के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त हुईं और भविष्य में भी होती रहेंगी। अंतरिक्षयान प्रक्षेपण की क्षमता विकसित हुई तो मानव ने चंद्रमा की धरती का स्पर्श किया तथा सौरमण्डल के ग्रहों को निकट से देखने का अवसर प्राप्त हुआ। सौरमंडल के समान अन्यत्र तारों के ग्रहों की खोज जारी है और इनमें जीवन की संभावना तलाशने के प्रयास किए जा रहे हैं।’
पुस्तक नवारुण विज्ञान शृंखला-3 की सामग्री का एक अंश आप भी पढ़ सकते हैं-


सूर्य से 1.52 एस्ट्रोनॉमिकल एकांक की औसत दूरी पर स्थित मंगल ग्रह का परिक्रमा काल 687 दिनों का है। यह अपने अक्ष पर चौबीस घंटे सत्रह मिनट में एक चक्कर लगाता है जो पृथ्वी के घूर्णन काल के लगभग बराबर है। पृथ्वी के समान ही इसकी धुरी 23°59’ का झुकाव लिए है जिसके कारण इस ग्रह पर भी पृथ्वी की भाँति ही मौसम परिवर्तन होता है। पार्थिव ग्रहों में यह बुध के बाद दूसरा छोटे आकार का ग्रह है तथा इसका व्यास पृथ्वी का आधा तथा द्रव्यमान दस गुना कम है। ग्रह का घनत्व 3.95 पृथ्वी से कम है जो इंगित करता है कि इसका क्रोड़ बहुत छोटा है और संभवतः आयरन सल्फाइड द्वारा निर्मित है। फलस्वरूप मंगल पर कोई चुम्बकीय क्षेत्र नहीं है। दूरबीन से देखने पर मंगल की लालिमायुक्त सतह पर अनेक गहरे धब्बे दिखाई पड़ते हैं। इसके अतिरिक्त दोनों ध्रुवों पर बर्फ दिखाई देती है जो ऋतुनुसार फैलती अथवा सिकुड़ती है।’


पुस्तक नवारुण विज्ञान शृंखला-3 बेहतरीन पुस्तक बन पड़ी है। एक और अंश इस पुस्तक से आप भी पढ़िएगा-


‘सूर्य सामान्य तारा श्रेणी का मध्यम आकार का तारा है जो अपनी आधी आयु पूर्ण कर चुका है। सूर्य हमारे लिए विशेष महत्त्व रखता है क्योंकि यही हमारे जीवन का आधार है। यह तारा हमसे सबसे कम दूरी पर है इसलिए इसकी विशेषताओं तथा गुणों का अध्ययन विस्तार से किया गया है। पृथ्वी से इसकी दूरी 149,600,000 किलोमीटर है जो ग्रहों और तारों की दूरी मापने की मानक इकाई एस्ट्रोनॉमिकल एकांक (1।.न्.) के बराबर है। सूर्य की त्रिज्या 696,000 किलोमीटर अर्थात पृथ्वी की त्रिज्या के मुक़ाबले 109 गुना अधिक है। पृथ्वी की तुलना में सूर्य इतना विशाल है कि इसमें 13 लाख पृथ्वी समा सकती हैं। इसका घनत्व पृथ्वी के घनत्व का लगभग एक चौथाई 1,400 किलोग्राम/मी है तथा यह पृथ्वी से 330,000 गुना भारी है। इसके कम घनत्व का कारण इसमें हल्के रासायनिक तत्त्वों की उपस्थिति है जिसमें हाइड्रोजन 73.5 प्रतिशत तथा हीलियम 25 प्रतिशत है। शेष 1.5 प्रतिशत कार्बन, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, नियोन तथा लौह हैं।’


पुस्तक नवारुण विज्ञान शृंखला-4 किसी भी तरह से कमतर नहीं है। एक अंश इस भाग से आपकी नज़र-


क्या अन्य ग्रहों पर बुद्धिमान प्राणी हो सकते हैं?


पृथ्वी के अतिरिक्त अन्यत्र ग्रहों में जीवन मौजूद है तो अगला प्रश्न यह उठता है कि क्या इन पर भी पृथ्वी की भाँति बुद्धिमत्ता युक्त प्राणी हो सकते हैं। क्या ब्रह्माण्ड में अन्य किसी स्थान पर विकसित सभ्यता हो सकती है या केवल मानव हो एकमात्र ऐसा प्राणी है। वैज्ञानिक इन प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए विभिन्न मॉडल विकसित करने की चेष्टा करते हैं। 1961 में रेडियो खगोलविज्ञानी फ्रैंक ड्रेक ने एक समीकरण की सहायता से इसे समझने का प्रयास किया जिसमें उन समस्त कारकों को समाविष्ट किया जो यह इंगित करने में सक्षम होते कि क्या कभी अन्यत्र मौजूद सभ्यताएँ पृथ्वी वासियों से रेडियो अथवा अन्य माध्यमों द्वारा संपर्क साधने का प्रयास कर सकती हैं। ये कारक निम्न हैंः
आकाशगंगा में तारा निर्माण की माध्य दर इनमें से ग्रह युक्त तारों का अंश। जीवन की संभावना युक्त ग्रहों का अंश। इनमें से ऐसे ग्रहों का अंश जिनकी आयु इतनी हो कि उनमें जीवन मौजूद हो सकता है।
ऐसे ग्रहों का अंश जहाँ विकसित सभ्यता पनप सकती है, जो पृथ्वीवासियों से संपर्क करने में सक्षम हो।
संपर्क योग्य सभ्यताओं का औसत जीवन काल ।
इन सभी अंशों के गुणनफल को आकाशगंगा के समस्त तारों की संख्या से गुणा करने पर संपर्क साधने योग्य ग्रहों की अनुमानित संख्या का संकेत मिलता है जो लगभग पच्चीस लाख है। इस संख्या की प्रामाणिकता कितनी है, यह तर्क का विषय हो सकता है परंतु यह तो कहा ही जा सकता है कि ब्रह्माण्ड में मानव ही एकमात्र विकसित प्राणी है इसकी संभावना बहुत कम है।’

पुस्तक: नवारुण विज्ञान शृंखला-1
शीर्षक: विज्ञान और ब्रह्माण्ड,इतिहास तथा आधुनिक अवधारणा
लेखक: गिरीश चन्द्र जोशी
मूल्य: 290
पेज संख्या: 192
संस्करण वर्ष: जनवरी 2023
प्रकाशक: नवारुण
सम्पर्क: 9811577426
पुस्तक: नवारुण विज्ञान शृंखला-2
शीर्षक: विज्ञान और ब्रह्माण्ड,दूरबीन के विकास का इतिहास तथा खगोलविज्ञान में योगदान
लेखक: गिरीश चन्द्र जोशी
मूल्य: 120
पेज संख्या: 88
पुस्तक: नवारुण विज्ञान शृंखला-3
शीर्षक: विज्ञान और ब्रह्माण्ड,पृथ्वी तथा सौरमंडल के सदस्य
लेखक: गिरीश चन्द्र जोशी
मूल्य: 200
पेज संख्या: 104
पुस्तक: नवारुण विज्ञान शृंखला-4
शीर्षक: विज्ञान और ब्रह्माण्ड,तारे,नीहारिकायें, आकाशगंगा, मंदाकिनियाँ तथा ब्रह्माण्डिकी
लेखक: गिरीश चन्द्र जोशी
मूल्य: 205
पेज संख्या: 144

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प्रस्तुति: मनोहर चमोली ‘मनु’
सम्पर्क: 7579111144

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By manohar

2 thoughts on “नभ धरा की किताब : विज्ञान और ब्रह्मांड”

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