रंजीत लाल कृत ‘गोली-टॉफ़ी वाला राक्षस’ यथार्थ और कल्पना का मिला-जुला समिश्रण है। जो है और जो नहीं है को मिलाकर रंजीत लाल ने यह साबित किया है कि खट्टी-मिट्ठी टॉफी का मिला-जुला स्वाद भी भाता है। यह इतना आसान नहीं है। कहानी का देशकाल बहुत मायने रखता है। कहानी के पात्रों और स्थितियों से पता चल जाता है कि यह प्राचीन, आधुनिक, काल्पनिंक या फंतासी कहानी है। लेकिन यह कहानी लीक से हटकर है। इस कहानी को और भी दिलचस्प लावण्या नायडू के चित्र हैं।
समर और निव्या जुड़वाँ भाई-बहन हैं। सड़की की दूसरी ओर एक राक्षस की दुकान है। वे स्कूल बस का इंतजार करते हैं। लेकिन गोली-टॉपी वाले राक्षस की ओर देखते तक नहीं। हालांकि वे उस भारी-भरकम राक्षस को अच्छी तरह जानते हैं।
कहानी स्पष्ट करती है कि राक्षस की दुकान में तरह-तरह के खिलौने और चॉकलेट-टॉफी मिलती है। राक्षस इतना डरावना है कि भाई-बहन ने कभी कोई खिलौना या टॉफी तक नहीं खरीदी। एक बार उन्हें राक्षस की दुकान में नई किस्म की चॉकलेटों का ढेर दिखाई दिया। वे हिम्मत जुटाकर दुकान तक पहुँच ही गए। राक्षस ने उन्हें डाँटा। कहा,‘‘ये वाला चॉकलेट खाकर तुम्हारे दांत टूट जाएंगे।’’ फिर उसने दराज़ से भयानक सा नकली दांतों का सैट निकाला। फिर कहा,‘‘क्या तुम्हें यह लगवाना है?’’ दोनों दौड़कर वहाँ से भागे और फिर कभी उनकी हिम्मत राक्षस की दुकान में जाने की नहीं हुई।
यहाँ से कहानी पाठक के मन में कई सारी जिज्ञासाएं जगाने को बाध्य करती हैं। राक्षस जो बच्चों को डरावना लगता है। दुकानदार है। फिर उसने उन्हें चॉकलेट क्यों नहीं बेचा। जबकि वह टॉफी-चॉकलेट और खिलौने ही तो बेचा करता है।
बहरहाल, कहानी आगे बढ़ती है। फिर एक दिन समर और निव्या कुछ अजीब-सा देखते हैं। गोली-टॉी वाला राक्षस एक पिल्ले को गोद में उठा लेता है और अपनी दुकान में ले जाता हुआ गायब हो जाता है।
निव्या चीखते हुए समर से कहती है कि राक्षस पिल्ले को पका कर खा जाएगा। निव्या को लगता है कि उनकी लोलो और उसके छह पिल्ले खतरे में हैं। वह उन पिल्लों को पुचकारते हैं और कहते हैं कि किसी भी हालत में उन्हें राक्षस से बचाकर रखना होगा।
कहानी में एक नया मोड़ तब आता है जब निव्या की माँ बाज़ार जाते हुए घर का फाटक खुला छोड़ देती है और छह के छह पिल्ले भागकर सीधे लवली स्वीटी एंड टॉय शॉप में घुस जाते हैं।
समर रोने लगता है उसे लगता है कि राक्षस उन्हें भी खा जाएगा। वह दोनों पिल्लो को बचाने के लिए एक-दूसरे का हाथ थामें राक्षस की दुकान में घुस जाते हैं। वह डरते हुए अंधेरी दुकान में पीछे की ओर तक चले जाते हैं। वह दरवाजा खोलते हैं।
गोली-टॉफी वाला राक्षस उन दोनों को देखकर मुस्कराता है। उनसे कहता है कि देखो ये पिल्ले तो मुझसे नहीं डर रहे हैं। राक्षस उन्हें संभवतः दूध पिला रहा है और पिल्ले उसकी गोदी-बाँह में खेल रहे हैं।
बस! इत्ती-सी है यह कहानी…!
रंजीत लाल ने बच्चों के लिए भी खूब सारी किताबें लिखी हैं। उन्हें क्रॉसवर्ड अवार्ड भी मिला है। उनकी चर्चित किताब हैं-फेस इन द वाटर और अवर नाना वॉज़ अ नटकेस.
वहीं प्रख्यात चित्रकार लावण्या नायडू एनिमेटर भी हैं। उन्होंने गूगल, कार्टून नेटवर्क, ऐमेंजॉन आदि के लिए भी काम किया है।
एक बात जो महत्वपूर्ण है कि कहानी पढ़ते-पढ़ते या पढ़ने के बाद पाठक के मन में यह बात संभवतः नहीं आती कि राक्षस होते हैं या नहीं ! यह भी कि आज के सन्दर्भ में राक्षस का बच्चों से क्या लेना-देना!
अलबत्ता, यह बात मन में विचार जरूर करती है कि राक्षस के पास भी कोमलता, दयालुता, स्नेह और दुलार का भाव हो सकता है। संभवतः हम इसे प्रतीकात्मक ढंग से भी देंखे तो हमारे आस-पास राक्षस जैसे दुकानदार या इंसान हो सकते हैं जिनसे हमें डर लगता है लेकिन डर का लगना और वास्तव में डर का होना में जो अन्तर है उसे इस कहानी से समझा जा सकता है। बाल साहित्य के सन्दर्भ में यह कहानी उन बच्चों के लिए विशेष है जो अभी अक्षर-अक्षर मिलाकर हौले-हौले पढ़ना सीख रहे हैं। वय वर्ग के हिसाब से यह कहानी 5 से 7 साल के बच्चों के लिए उचित प्रतीत होती है। इस वय वर्ग के बच्चे यथार्थ और कल्पना की ऊँची उड़ान उड़ते हैं। उनके लिए यह गोली-टॉफी वाला राक्षस उनके अपने अनुभवों को समृद्ध करेगा।
किताब: गोली-टॉफी वाला राक्षस
लेखक: रंजीत लाल
मूल्य: 45
पेज: 14
पाठक स्तर: 2
चित्रांकन: लावण्या नायडू
प्रकाशक: प्रथम बुक्स
प्रस्तुति: मनोहर चमोली ‘मनु’