सोनिया अगरिया की कहानी तालाब के किनारे संवेदनाओं से लबरेज है। यह हमें मनुष्यता का आभास कराती है। यह इतनी सरल है कि सहजता से पाठक के मन में पैठ बनाती है। कोई सीख नहीं है। कोई संदेश नहीं है। कहानी कोई उपदेश नहीं देती। कहानी किसी तरह की नसीहत नहीं देती। अलबत्ता पाठक को सतर्क करती है। पाठक के मन में हौले से हलचल पैदा करती है।


कहानी का सार कुछ इस तरह है। एक जगल है। जंगल में एक तालाब है। तालाब में हर रोज कई पशु-पक्षी अपनी प्यास बुझाने आते हैं। एक दिन तालाब पर कोई नहीं आया। तालाब अकेलापन महसूस करने लगा। उसे बड़ी चिन्ता होती है कि मेरे सारे दोस्त कहाँ गए। दूसरे दिन भी जब कोई पानी पीने नहीं आता तो तालाब को चिन्ता होती है। तालाब पेड़ों से पूछता है। तालाब को लगता है कि कहीं उससे कोई भूल तो नहीं हो गई। जानवर कहीं उससे नाराज़ तो नहीं है।

पेड़ भी बताते हैं कि पता नहीं क्या बात हो गई। पेड़ों के पास भी कोई खाने के लिए नहीं आया। तालाब रात को सोते हुए और चिंता में रहा। अगली सुबह कई जानवर तालाब किनारे बैठे हुए थे। तालाब ने पूछा तो पता चला कि हिरनी की छोटी बच्ची नहीं रही। तालाब उनसे कहता है आओ अपने हाथ-मुंह धो लो और कुछ खा लो। सभी जानवर भूख नहीं है कहकर मना कर देते हैं। तालाब समझाता है कि अगर बड़े खाना-पीना छोड़ देंगे तो बच्चे क्या करेंगे। सभी जानवर सोच में पड़ जाते हैं। धीरे-धीरे वह तालाब के नजदीक जाते हैं। तालाब अपने ठण्डे पानी से उनके दुखों को धो देता है। जानवरों के छोटे बच्चे भी तालाब में कूद पड़ते हैं। पेड़ झुकते हैं तो जानवर पत्तियों से अपनी भूख मिटाते हैं। पेड़ों के नीचे जानवर आराम करते हैं। समूचा जंगल खामोश था लेकिन सब दोस्त एक-दूसरे के साथ थे।


बस! यह कहानी इतनी-सी है। लेकिन जंगल में जो मेल-जोल है। अपनत्व है। उदासी है। चिन्ता है। किसी के मरने से फैला दुख है। वह साझा है। दो दिन कोई तालाब पर पानी पीने नहीं आता। इस बात से तालाब परेशान हो जाता है। ये जो परेशान हो जाने का भाव है इसका फलक बहुत बड़ा है। फिर जिस तरह पेड़ झुककर खाने के लिए अपनी पत्तियाँ उपलब्ध कराते हैं यह अपने आप में पाठक के भीतर भी एक विशालता का भाव भर देता है। इस नन्ही-सी कहानी को नन्ही-सी किताब में मुस्कान ने उपलब्ध कराया है।

आवरण सहित कुछ जमा आठ पेज में चित्र बहुत ही शानदार हैं। काश! यह किताब रंगीन होती। कला कौशल सौम्या ओबेरॉय का है। यह उन बच्चों के लिए शानदार है जिन्होंने अभी-अभी पढ़ना शुरू किया है। इस कहानी को उन बच्चों के साथ स्टोरी टेलिंग के जरिए सुनाया जा सकता है जो अभी पढ़ना नहीं जानते। हम और आप बड़े जो मोटी-मोटी किताबें पढ़ते हैं इसलिए पढ़ें ताकि हमारे भीतर मनुष्यता बची रहे। हम भी दुख यदि भूल गए हों तो महसूस करें कि आखिर दुख किस चिड़िया का नाम है!

किताब: तालाब के किनारे
लेखक: सोनिया अगरिया
पेज: 08
मूल्य: 12
वर्ष: 2018
प्रकाशक: मुस्कान
टाटा ट्रस्ट के वित्तिय सहयोग से

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By manohar

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