सोलह कथाएँ 214 पन्नों में विस्तार लिए हुए हैं। मज़ेदार बात यह है कि रंगीन चित्र पूरे पेज पर समाहित हैं। काग़ज़ बेहद उम्दा है। सफेद है। फोंट भी आकर्षक है। फोंट 14 आकार में है। बच्चों को ध्यान में रखते हुए इसे 16 होना चाहिए था। लेकिन लोक कथाओं का पाठक तो कोई भी हो सकता है। नई दिल्ली के पीपुल्स पब्लिशिंग हाउस ने इसे प्रकाशित किया है।
मूल्य 350 रुपए है।
इन लोक कथाओं में रहस्य है। रोमांच है। फंतासी है। जादू-टोना है। कल्पनाओं की ऊँची उड़ानें हैं। सूक्ष्म से सूक्ष्म और वृहद से वृहद जीव-जन्तुओं की अलौकिक माया भी है। इन लोक कथाओं का अन्त अमूमन सुखद है। जो निराशा से आशा और चुनौतियों से सफलता की ओर है। हर लोक कथा में बुराई ओढ़े पात्र भी हैं जिन्हें बाद में मुँह की खानी पड़ती है।
इस किताब पर पाठक मृगांक से हुई बातचीत का लिंक भी यहाँ है। यदि आप किताब को बच्चों के नज़रिए से समझना चाहते हैं तो लिंक खोलिएगा-