अभिजीत सेनगुप्ता कृत रिंटू और उसका कंपास पारंपरिक बाल कहानी का घेरा तोड़ती है। रिंटू छुट्टियों में अपने माता – पिता के साथ किसी समुद्र किनारे है ! उसके पिता ने उसे कंपास जन्म दिन पर उपहार दिया था ! रिंटू कोलम्बस की तरह नई जगह की तलाश के बारे में सोचता है। समुद्र किनारे उसे भीम हाथी मिलता है।
कहानी में दो पात्र हैं ! कहानी रिंटू के बाल स्वभाव पर केन्द्रित है। एक अलग तरह के भाव बिन्दु पर जाकर कहानी खत्म हो जाती है।
कहानी के दो अलग – अलग हिस्से यहां दिए जा रहे हैं –
रिंटू पीछे मुड़ा और भागना शुरू कर दिया। उसे लगा कि कहीं आदमी उसे पकड़कर कंपास वापस न लौटा दे। किसी मजेदार दृश्य की आशा में उसने बार-बार पीछे देखा । वह अजीब आदमी कंधे पर बाँस की छड़ी रखे कंपास को टकटकी लगाए देख रहा था।
रिंटू ने अभी-अभी अपने जीवन की सबसे कीमती चीज एक अनजान आदमी को दी थी, लेकिन इस बात का उसे कोई दुख न था । उसे तो गर्व महसूस हुआ। किसी को भी पता नहीं था कि उसने अभी-अभी एक नई दुनिया खोजी है जो कोलंबस द्वारा खोजी गई दुनिया से कम अद्भुत नहीं थी।
समुद्र दूर से ही गरज रहा था । अपने पिता की चौकन्नी नजर से बचते हुए वह काठ की अस्थायी नीली झोपड़ी से खिसक गया। उसने झाऊ के पेड़ों के नीचे दौड़ना शुरू कर दिया। वह उस अद्भुत समुद्र को एक बार देख लेना चाहता था जहाँ से उसे एक दिन अनजान देशों की खोज करने समुद्री यात्राओं पर निकलना था ।
कुछ देर तक दौड़ने के बाद वह एक लहराती हुई खाड़ी के पास पहुँचा । जहाँ उसने उस घुमक्कड़ आदमी को देखा। दोनों एक-दूसरे के आमने-सामने थे कि तभी उस ने भारी आवाज में आदेश दिया, “वहीं खड़े रहो, एक भी कदम आगे मत बढ़ाना।” रिंटू को बहुत बुरा लगा। वह होता कौन है मुझे इस तरह से हुक्म देने वाला ? मुझे यकीन है कि वह बुरा आदमी है। अगर वह ऐसा न होता तो रेत में घात लगाए हुए बिल्ली की तरह क्यों बैठा होता? अब मैं क्या करूँ? क्या मुझे यहाँ से चले जाना चाहिए ? नहीं, यह समझदारी की तो बात नहीं होगी। रिंटू ने सोचा कि चलो किसी साहसिक व्यक्ति की तरह कुछ रोमांचक काम करते हैं यह सही बात होगी ।
इसलिए वह तनकर खड़ा हो गया और ध्यान से आदमी को देखा। उसने उससे धीमी आवाज में पूछा, “तुम्हारा नाम क्या है?”
“मेरा नाम भीम हाथी’ है, ” आदमी ने साफ शब्दों में उत्तर दिया। रिंटू धीरे से मुस्करा दिया। वह ” आदमी इतना कमजोर और सुखंडी था कि वह किसी बिजूके (पुतला) की तरह दिखता था । और उसका नाम भला ‘भीम हाथी’ कैसे हो सकता है जिसका मतलब ही होता है ‘विशालकाय हाथी’ ?
चित्रांकन युद्धजीत सेनगुप्ता ने शानदार ढंग से किया है। अनुवाद रमाशंकर सिंह ने किया है। कवर पेज सहित कुल पेज बीस हैं ! मूल्य पैंतालीस रुपए है | पुस्तक राष्ट्रीय पुस्तक न्यास , भारत ने प्रकाशित की है।