भलमनसाहत की चाँदनी फैलाते हैं राकेश जुगरान
अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैंरुख़ हवाओं का जिधर का है, उधर के हम हैं जी नहीं। निदा फ़ाज़ली ने भले ही यह शेर कमोबेश पलटूओं के…
अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैंरुख़ हवाओं का जिधर का है, उधर के हम हैं जी नहीं। निदा फ़ाज़ली ने भले ही यह शेर कमोबेश पलटूओं के…