पुरानी बात है। तब आदमी जंगल में रहता था। वह शरीर को पेड़ों की छाल और सूखे पत्तों से ढकता। पेड़ का तना, चट्टान और गुफाएं ही उसका सहारा थे। जंगली फल और कच्चा मांस उसका भोजन था।
एक दिन की बात है। बर्फ गिरने लगी। आदमी ठिठुरने लगा। वह एक पेड़ के नीचे जाकर बैठ गया। चींटियाँ कहीं जा रही थीं। आदमी ने पूछा,‘‘कहाँ घूम रही हो?’’ उसे जवाब मिला,‘‘घूम नहीं रहीं हैं। घर जा रही हैं।’’ आदमी ने पूछा,‘‘घर ! ये क्या होता है?’’ एक चींटी ने जवाब दिया,‘‘बताने लगूँगी तो अपनों से बिछड़ जाऊँगी। मेरा दल आगे निकल जाएगा।’’ आदमी सोचता ही रह गया। उसे समझ ही नहीं आया कि घर क्या होता है। दल क्या होता है। सैकड़ों चींटियाँ कतार में उसके सामने से गुजर गईं। रात होने पर आदमी किसी गुफा या चट्टान के नीचे चला जाता। इस तरह जाड़ा बीत गया।
गरमी आई। आदमी पेड़ की छाँव में बैठा था। चींटियाँ जा रही थीं। आदमी ने पूछा,‘‘कहाँ चलीं? घूमने?’’ जवाब आया,‘‘घूम नहीं रहीं हैं। भोजन जमा कर रही हैं। बरसात आने वाली है। अपने और अपनों के लिए करना पड़ता है।’’ आदमी हैरान था। कहने लगा,‘‘अपनों के लिए ! भोजन! जमा! मतलब?’’ जवाब मिला,‘‘इतना समय नहीं है। घर,परिवार,बच्चे भी देखने हैं।’’ आदमी सोच में पड़ गया। वह चींटियों को देखता रहा। इस तरह गरमी भी बीत गई।
बरसात आई। आदमी ओढ़ना, ढकना और सहेजना कहाँ जानता था! भोजन जुटाने के लिए उसे खूब मेहनत करनी पड़ी। उसे चींटियाँ कहीं नहीं दिखाई दी। बरसात में आदमी बहुत परेशान रहा। जैसे-तैसे बरसात बीती। फिर, एक दिन उसे चींटियाँ मिलीं। वह बोला,‘‘वो घर, वो भोजन जमा करना, वो अपनापन और वो बच्चे…! बताओ न!’’
एक चींटी ने बताया,‘‘इस धरती पर हमारे पुरखे करोड़ों साल से रह रहे हैं। पुरानी पीढ़ी अपने अनुभव नई पीढ़ी को देकर जाती है। तुम तो अभी आए हो।’’ आदमी हैरान था। पुरखे, करोड़ों साल, पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी। वह यह सब भी कहाँ जानता था! अब तक वह आवारा घूमता था। भोजन करता और सुस्ताने लगता। फिर सो जाता। यही उसका जीवन था। चींटिया अपनी राह चल पड़ीं।
अब आदमी ने सोचना शुरू कर दिया। वह विचार करने लगा। गौर से जल, जंगल, पहाड़, नदी को देखने लगा। धीरे-धीरे वह जानने लगा कि मौसम बदलता है।
अब वह जीवों के जीवन को नजदीक से देखने लगा। उसने चींटियों के साथ रहना शुरू कर दिया। चींटियों से उसने बहुत कुछ सीखा। मिल-जुल कर रहना, घर बनाना, परिवार में रहना, भोजन जमा करना और अपनापन सीखा। अब उसने आग जलाना और खेती करना सीखा। तभी से आदमी का सीखना और समझना जारी है। वह आज भी नई-नई चीज़ें सीख रहा है। आदमी आज भी चींटियों के आस-पास ही रहता है। ॰॰॰
-मनोहर चमोली ‘मनु’
-मनोहर चमोली ‘मनु’,गुरु भवन, निकट डिप्टी धारा,च्विंचा मार्ग, पौड़ी, 246001 पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड.