वे प्रमुख ब्लागरों में एक हैं। इन दिनों यू-ट्यूबरों में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। अपना विकास तो कोई भी कर लेता है। आत्ममुग्धता का शिकार मैं भी हो सकता हूँ। लेकिन जाकिर जी की समग्र और विहंगम दृष्टि लोकोन्मुखी है। संवैधानिक मूल्यों के पक्षधर हैं। सबसे बड़ी बात। वे वैज्ञानिक नजरिए के विकास में महती भूमिका निभाते रहे हैं। मेरे लिए यह प्रसन्नता का विषय है कि वे मुझमें संभावनाएं देखते हैं। इसी आलोक में समय-समय पर मेरा मार्गदर्शन निसंकोच करते हैं। वे सीधी बात करते हैं। सामने वाला बुरा माने या भला। यही कारण है कि मेरी उलझनों को वे मुझसे पहले ताड़ लेते हैं और फिर कई उदाहरणों के साथ मेरा मार्गदर्शन करते हैं। उन्होंने भी कहानियां बाल मन की किताब खरीदी है। उन्होंने स्वयं की इस टिप्पणी को फौरी टिप्पणी माना है। लेकिन मेरे जैसे के लिए यह तो हजार बार पढ़ने के बाद भी विस्तारित आलेख के समान है। वे लिखते हैं-”कहानियां बाल मन की” के लेखक हैं युवा रचनाकार मनोहर चमोली मनु। मनु जी एक बेहद जागरूक, वैज्ञानिक दृष्किोण से सम्पन्न और लेखकीय दायित्वों का पूरी ईमानदारी से निवर्हन करने वाले रचनाकार है। मैं पूरी गम्भीरता के साथ कहना चाहूंगा कि ऐसे गम्भीर लेखक हिन्दी बालसाहित्य में गिनती के ही हैं। उनकी सोच, उनकी समझ और उनका साहस, सभी कुछ काबिल-ए-दाद है। इसके लिए उनकी जितनी तारीफ की जाए कम है। जहां तक ‘कहानियां बाल मन की’ की बात है, एक तरह से यह बेहद सौभाग्यशाली पुस्तक है, जिसे न सिर्फ लोगों ने बड़ी मात्रा में खरीदा है और खुलकर प्रतिक्रिया भी दी है। इसलिए #श्वेतवर्णा_प्रकाशन, नई दिल्ली (Mobile no. 8447540078) से प्रकाशित इस पुस्तक पर कुछ कहने से मैं जान बूझकर बच रहा हूं। शायद इसके पीछे मेरी यह सोच भी जिम्मेदार है कि जिस काम को बहुतेरे लोग एक साथ करने लगते हैं, पता नहीं क्यों मुझे उससे अरुचि सी हो जाती है। हालांकि यह 191 पेज की पुस्तक है और इसमें 40 कहानियां संग्रहीत हैं, इसलिए इसपर मन से लिखने के लिए कुछ समय भी चाहिए….। बहरहाल, इस शानदार पुस्तक के लिए मनु भाई को ढेर सारी बधाई।
डाॅ॰जाकिर अली ‘रजनीश’ साहित्य, सूचना,तकनीक और विज्ञान लेखन में सुपरिचित नाम हैं।