एक भाषा में अ लिखना चाहता हूँ
अ से अनार अ से अमरूद
लेकिन लिखने लगता हूँ अ से अनर्थ अ से अत्याचार
कोशिश करता हूँ कि क से क़लम या करुणा लिखूँ
लेकिन मैं लिखने लगता हूँ क से क्रूरता क से कुटिलता
अभी तक ख से खरगोश लिखता आया हूँ
लेकिन ख से अब किसी ख़तरे की आहट आने लगी है
मैं सोचता था फ से फूल ही लिखा जाता होगा
बहुत सारे फूल
घरो के बाहर घरों के भीतर मनुष्यों के भीतर
लेकिन मैंने देखा तमाम फूल जा रहे थे
ज़ालिमों के गले में माला बन कर डाले जाने के लिए

कोई मेरा हाथ जकड़ता है और कहता है
भ से लिखो भय जो अब हर जगह मौजूद है
द दमन का और प पतन का सँकेत है
आततायी छीन लेते हैं हमारी पूरी वर्णमाला
वे भाषा की हिंसा को बना देते हैं
समाज की हिंसा
ह को हत्या के लिए सुरक्षित कर दिया गया है
हम कितना ही हल और हिरन लिखते रहें
वे ह से हत्या लिखते रहते हैं हर समय ।



आइए इस कविता से और इस कविता के स्पष्टीकरण से आगे बढ़ते हैं-
वर्णमाला-‘‘एक भाषा में लिखना चाहता हूँ ’’ मंगलेश डबराल की शानदार कविता है। इस कविता के कई आयाम हैं। कालजयी कविताएं ऐसी ही होती हैं। इस कविता को इस धरती में कहीं के पाठक भी पढ़ें ! वे इस कविता में अपने आस-पास के माहौल की गंध पाएँगे। मौजूदा समय में इस कविता को पढ़ते हैं तो लगता है कि यह आज की ही कविता है। मानो आज ही लिखी हो। इस कविता के कवि के जन्म से पहले भी इसे पढ़ा जाता तो भी यह तत्कालीन समाज की कविता मानी जाती। उस समय की कविता मानी जाती। कारण? स्पष्ट है कि अनर्थ, अत्याचार, क्रूरता, कुटिलता,ख़तरा, दमन,पतन,हत्या आदि हर काल में प्रासंगिक ही तो रहते आए हैं। काश! ऐसी कविता फिर कभी न लिखी जाए। काश! किसी भी भाषा में अनर्थ, अत्याचार, क्रूरता, कुटिलता,ख़तरा, दमन,पतन,हत्या आदि का उच्चारण कुछ भी हो! कैसा भी हो। लेकिन उस भाषा के शब्दकोश में ये शब्द उस वर्णाक्रम में कभी खोजकर भी न मिले। साहित्य अकादेमी पुरस्कार प्राप्त मंगलेश डबराल समकालीन हिंदी कवियों में बेहद चर्चित नाम है। 14 मई 1948 को टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड के काफलपानी में जन्मे कवि का देहांत 10 दिसम्बर 2020 को गाज़ियाबाद के निजी अस्पताल में हुआ। वे कोरोना से भी संक्रमित हो गए थे।

कविता मात्र प्रेम,प्रकृति और राष्ट्रप्रेम का नाम नहीं है। कविता भाव और बोध के साथ तहज़ीब और तमीज़ को अंगीकृत करने का अवसर प्रदान करती है। कुछ ही सही लेकिन कविताओं में प्रतिकार, असहमति, सामन्ती व्यवस्था का विरोध भी प्रकट किया जाता रहा है। टूटते-बिखरते समाज का चित्रण ही नहीं समाजवादी व पूंजीवादी व्यवस्था को पाठकों के समक्ष सरलता से रखना भी कविता का काम रहा है। व्यवस्था के षडयन्त्रों के साथ समाज से लगातार सिमटती जा रही मनुष्यता और संवेदनशीलता को बचाए और बनाए रखने का काम भी कविता करती है।
कितनी अजीब बात है कि एक ओर अनार, अमरूद, क़लम,करुणा,खरगोश, फूल,हल, हिरन हैं। वहीं दूसरी ओर अनर्थ, अत्याचार, क्रूरता, कुटिलता,ख़तरा, दमन,पतन,हिंसा, आततायी, ज़ालिम, हत्या आदि हैं। देखा जाए तो शब्द वर्णों के संयोजन से बने हैं। लेकिन इन शब्दों का क्या दोष? इनका उपयोग करने वाले तो हम हैं न। यह ठीक है कि सच के साथ झूठ है। रात के साथ दिन है। अपराध के साथ शांति भी है। ये भले ही एक-दूसरे के पर्याय मान लिए जाते हैं लेकिन कहीं न कहीं उनके होने से ही दूसरा है।
मंगलेश डबराल भाषा के बहाने समाज में असामाजिक होते मनुष्य की दैनिक भाषा की बात कर रहे हैं। यह कहना ठीक न होगा कि फलां भाषा शालीन है। फलां बिगड़ैल है। शालीन-बिगड़ैल तो संभवतः हम हैं। हम हो जाते हैं।
यह बात भी सही है कि पिछले दो दशकों में पूरी दुनिया में कुछ हलकों में किसी खास भाषा को बोलने वालों में भाषा की शालीनता न बरतने के आरोप भी लगे हैं।
हम भारत के लोग चुनाव के दिनों में भी भाषा में सयंम,शालीनता,धैर्य,मर्यादा और आचरण की भाषा खो देते हैं। दल,प्रत्याशी,समर्थक गाली और हिंसक भाषा पर उतर आते हैं। शायद, बतौर पाठक इस कविता में हमें इन परिस्थितियों को तलाशना चाहिए।
मंगलेश डबराल भी ऐसी कविताओं को आकार देते रहे हैं। उन्होंने नेपथ्य और हाशिए के समाज का साथ कभी नहीं छोड़ा। उनकी कविताओं में भी जनसरोकारों की ध्वनि मिलती है। वे असल जीवन में भी संवेदनाओं से भरे हुए थे। उनकी कविताओं में भी वो महक महसूस की जा सकती है। वे मानवीय संबंधों को तरजीह देते रहे। यही कारण है कि उनकी कविताओं में निराशा समाज के पतन का प्रतीक के रूप में सामने आती थी। यही कारण है कि वह समाज के यथार्थ को शानदार-असरदार और जानदार ढंग से कविता के तौर पर प्रस्तुत करने में सफल रहे हैं।
यह कविता भी सरसरी तौर पर पढ़ने पर नाउम्मीदी, निराशा और हताशा की ओर बढ़ती हुई प्रतीत हो सकती है। लेकिन इसे देशकाल, परिस्थिति और समाज में बढ़ रहे विघटन के समानान्तर रखकर पढ़ते हैं तो पाते हैं कि ये कविता तो पूरी मनुष्यता के विरोध में किए जा रहे षडयन्त्रों को नग्न करती है। यह कविता तो अत्याचारों और अन्यायों की अति हो जाने की ओर संकेत करती है और पाठक के मन में उम्मीद और आशा का संचार भी करती है। यह कविता स्याह रात के बाद सुनहरी भोर की उम्मीद पाठक के मन में दे जाती है। संभवतः कवि यह भी चाहता है कि भाषा नदी के प्रवाह जैसी बने। उदार और सब को स्वयं में शामिल करती रहे। कोई भी किसी भी भाषा को अहं का, धर्म का, संस्कृति का संबल न बनाए। कोई भी भाषा किसी खास जाति,धर्म,तबका और क्षेत्र की कैसे हो सकती है? कोई भाषा पवित्र-अपवित्र, देशी-विदेशी कैसे हो सकती है। जो जिस भाषा को पढ़ेगा, समझेगा,सीखेगा या कि बोलेगा, वो भाषा तो उसकी हो जाएगी। नहीं क्या?
बतौर पाठक यह कविता पढ़ते-पढ़ते यह अहसास भी कराती है कि आप किस ओर खड़े हो सकते हैं? या तो आशावाद का दामन थामिए या निराशा में घुटते रहिए। प्रेम,उम्मीद,आशा के बीज बोइए या फिर नफ़रत,क्रोध,अपराध की खेती कीजिए।
यह कविता भाषा को बरतने और उसे व्यवहार में लाने की वकालत भी करती हुई दिखाई देती है। आप भी बताइएगा कि इस कविता को पढ़कर आप कैसा महसूस करते हैं।
और अंत में यह कहना भी ठीक होगा कि कवि का धर्म तो कविता बनते ही खत्म हो गया। बतौर पाठकीय धर्म तो कविता पढ़ना,समझना और उसे व्यवहार में लाना है। कविता पढ़ने से पहले हम जहां होते हैं, पढ़ लेने के बाद हमें वहां से आगे हो जाना चाहिए। पर क्या हम होते हैं? क्या हम अपनी संकीर्णता छोड़ते हैं। क्या बंद मन,मस्तिष्क, विचार बदलते हैं। कविता जड़ता से बाहर निकालने का औज़ार है। औज़ार होने पर भी उसका इस्तेमाल हम न करें तो कोई कवि क्या करे? कोई कविता फिर और कर भी क्या सकती है?
-मनोहर चमोली ‘मनु’

Loading

By manohar

परिचयः मनोहर चमोली ‘मनु’ जन्मः पलाम,टिहरी गढ़वाल,उत्तराखण्ड जन्म तिथिः 01-08-1973 प्रकाशित कृतियाँ ऐसे बदली नाक की नथः 2005, पृष्ठ संख्या-20, प्रकाशकः राष्ट्रीय पुस्तक न्यास,नई दिल्ली ऐसे बदला खानपुरः 2006, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः राज्य संसाधन केन्द्र (प्रौढ़ शिक्षा) 68/1,सूर्यलोक कॉलोनी,राजपुर रोड,देहरादून। सवाल दस रुपए का (4 कहानियाँ)ः 2007, पृष्ठ संख्या-40, प्रकाशकः भारत ज्ञान विज्ञान समिति,नई दिल्ली। उत्तराखण्ड की लोककथाएं (14 लोक कथाएँ)ः 2007, पृष्ठ संख्या-52, प्रकाशकः भारत ज्ञान विज्ञान समिति,नई दिल्ली। ख्खुशीः मार्च 2008, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः राज्य संसाधन केन्द्र (प्रौढ़ शिक्षा) 68/1,सूर्यलोक कॉलोनी,राजपुर रोड,देहरादून बदल गया मालवाः मार्च 2008, पृष्ठ संख्या-12, प्रकाशकः राज्य संसाधन केन्द्र (प्रौढ़ शिक्षा) 68/1,सूर्यलोक कॉलोनी,राजपुर रोड,देहरादून पूछेरीः 2009,पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः राष्ट्रीय पुस्तक न्यास,नई दिल्ली बिगड़ी बात बनीः मार्च 2008, पृष्ठ संख्या-12, प्रकाशकः राज्य संसाधन केन्द्र (प्रौढ़ शिक्षा) 68/1,सूर्यलोक कॉलोनी,राजपुर रोड,देहरादून अब बजाओ तालीः 2009, पृष्ठ संख्या-12, प्रकाशकः राज्य संसाधन केन्द्र (प्रौढ़ शिक्षा) 68/1,सूर्यलोक कॉलोनी,राजपुर रोड,देहरादून। व्यवहारज्ञानं (मराठी में 4 कहानियाँ अनुदित,प्रो.साईनाथ पाचारणे)ः 2012, पृष्ठ संख्या-40, प्रकाशकः निखिल प्रकाशन,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। अंतरिक्ष से आगे बचपनः (25 बाल कहानियाँ)ः 2013, पृष्ठ संख्या-104, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-81-86844-40-3 प्रकाशकः विनसर पब्लिशिंग कम्पनी,4 डिसपेंसरी रोड,देहरादून। कथाः ज्ञानाची चुणूक (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः उलटया हाताचा सलाम (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः पुस्तके परत आली (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः वाढदिवसाची भेट (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः सत्पात्री दान (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः मंगलावर होईल घर (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः सेवक तेनालीराम (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः असा जिंकला उंदीर (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः पिंपलांच झाड (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः खरं सौंदर्य (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः गुरुसेवा (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः खरी बचत (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः विहिरीत पडलेला मुकुट (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः शाही भोजनाचा आनंद (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः कामाची सवय (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः शेजायाशी संबंध (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः मास्क रोबोट (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः फेसबुकचा वापर (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः कलेचा सन्मान (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः सेवा हाच धर्म (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः खोटा सम्राट (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः ई साईबोर्ग दुनिया (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः पाहुण्यांचा सन्मान (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। जीवन में बचपनः ( 30 बाल कहानियाँ)ः 2015, पृष्ठ संख्या-120, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-81-86844-69-4 प्रकाशकः विनसर पब्लिशिंग कम्पनी,4 डिसपेंसरी रोड,देहरादून। उत्तराखण्ड की प्रतिनिधि लोककथाएं (समेकित 4 लोक कथाएँ)ः 2015, पृष्ठ संख्या-192, प्रकाशकः समय साक्ष्य,फालतू लाइन,देहरादून। रीडिंग कार्डः 2017, ऐसे चाटा दिमाग, किरमोला आसमान पर, सबसे बड़ा अण्डा, ( 3 कहानियाँ ) प्रकाशकः राज्य परियोजना कार्यालय,उत्तराखण्ड चित्र कथाः पढ़ें भारत के अन्तर्गत 13 कहानियाँ, वर्ष 2016, प्रकाशकः प्रथम बुक्स,भारत। चाँद का स्वेटरः 2012,पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-81038-40-6 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। बादल क्यों बरसता है?ः 2013,पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-81038-79-6 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। जूते और मोजेः 2016, पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-84697-97-6 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। अब तुम गए काम सेः 2016,पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-84697-88-4 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। चलता पहाड़ः 2016,पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-84697-91-4 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। बिल में क्या है?ः 2017,पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-86808-20-2 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। छस छस छसः 2019, पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-89202-63-2 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। कहानियाँ बाल मन कीः 2021, पृष्ठ संख्या-194, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-91081-23-2 प्रकाशकः श्वेतवर्णा प्रकाशन,दिल्ली पहली यात्रा: 2023 पृष्ठ संख्या-20 आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-5743-178-1 प्रकाशक: राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत कथा किलकारी: दिसम्बर 2024, पृष्ठ संख्या-60, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-92829-39-0 प्रकाशक: साहित्य विमर्श प्रकाशन कथा पोथी बच्चों की: फरवरी 2025, पृष्ठ संख्या-136, विनसर पब्लिकेशन,देहरादून, उत्तराखण्ड, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-93658-55-5 कहानी ‘फूलों वाले बाबा’ उत्तराखण्ड में कक्षा पाँच की पाठ्य पुस्तक ‘बुराँश’ में शामिल। सहायक पुस्तक माला भाग-5 में नाटक मस्ती की पाठशाला शामिल। मधुकिरण भाग पांच में कहानी शामिल। परिवेश हिंदी पाठमाला एवं अभ्यास पुस्तिका 2023 में संस्मरण खुशबू आज भी याद है प्रकाशित पावनी हिंदी पाठ्यपुस्तक भाग 6 में संस्मरण ‘अगर वे उस दिन स्कूल आते तो’ प्रकाशित। (नई शिक्षा नीति 2020 के आलोक में।) हिमाचल सरकार के प्रेरणा कार्यक्रम सहित पढ़ने की आदत विकसित करने संबंधी कार्यक्रम के तहत छह राज्यों के बुनियादी स्कूलों में 13 कहानियां शामिल। राजस्थान, एस.सी.ई.आर.टी द्वारा 2025 में विकसित हिंदी पाठ्यपुस्तक की कक्षा पहली में कहानी ‘चलता पहाड़’ सम्मिलित। राजस्थान, एस.सी.ई.आर.टी द्वारा 2025 में विकसित हिंदी पाठ्यपुस्तक की कक्षा चौथी में निबंध ‘इसलिए गिरती हैं पत्तियाँ’ सम्मिलित। बीस से अधिक बाल कहानियां असमियां और बंगला में अनुदित। गंग ज्योति पत्रिका के पूर्व सह संपादक। ज्ञान विज्ञान बुलेटिन के पूर्व संपादक। पुस्तकों में हास्य व्यंग्य कथाएं, किलकारी, यमलोक का यात्री प्रकाशित। ईबुक ‘जीवन में बचपन प्रकाशित। पंचायत प्रशिक्षण संदर्शिका, अचल ज्योति, प्रवेशिका भाग 1, अचल ज्योति भाग 2, स्वेटर निर्माण प्रवेशिका लेखकीय सहयोग। उत्तराखण्ड की पाठ्य पुस्तक भाषा किरण, हँसी-खुशी एवं बुराँश में लेखन एवं संपादन। विविध शिक्षक संदर्शिकाओं में सह लेखन एवं संपादन। अमोली पाठ्य पुस्तक 8 में संस्मरण-खुशबू याद है प्रकाशित। उत्तराखण्ड के शिक्षा विभाग में भाषा के शिक्षक हैं। वर्तमान में: रा.इं.कॉ.कालेश्वर,पौड़ी गढ़वाल में नियुक्त हैं। सम्पर्कः गुरु भवन, पोस्ट बॉक्स-23 पौड़ी, पौड़ी गढ़वाल.उत्तराखण्ड 246001.उत्तराखण्ड. मोबाइल एवं व्हाट्सएप-7579111144 #manoharchamolimanu #मनोहर चमोली ‘मनु’

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *