‘‘मनोहर नमस्ते! मैं के॰आर॰शर्मा! कैसे हो?’’
कालू राम शर्मा जी का यह तकिया कलाम था। याद नहीं कि मैं उन्हें कम से जानता रहा हूँ। शायद बीस-इक्कीस साल का परिचय तो रहा है। कुछ कार्यशालाओं और सेमिनार की अमिट यादें हैं। लेकिन घंटों फोन पर जो बातें हुईं हैं उनमें कई बातें,सलाहें,यादें,अनुभव और समझ मेरी थाती हैं। यही कह सकता हूँ।
‘‘मनोहर नमस्ते! मैं के॰आर॰शर्मा! कैसे हो?’’
कालान्तर में मैं कहने लगा था कि सर आपका नंबर मोबाइल पर नाम से डिसप्ले होता है। यह सुनकर वे हंसते और कहते यार आदत हो गई है जैसे आप सर-सर कहते हैं न।
केदारनाथ आपदा के समय, श्रीनगर में अलकनंदा के उफान के समय,चमोली में अभी रैणी गांव के आस-पास हुई आपदा के समय जैसी स्थितियों में उनका फोन आता। फिर बात शिक्षा,समाज,अंधविश्वास और लेखन की ओर चली जाती।
जब मैं और मेरा पूरा परिवार कोरोना की चपेट में आया तब भी उनका दो बार फोन आया। वे बड़े चिंतित थे। यार ध्यान रखो भाई। कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा है। वे हिन्दी लेखन में छीने जा रहे रोजगार को लेकर बहुत चिंतित थे।
‘‘मनोहर नमस्ते! मैं के॰आर॰शर्मा! कैसे हो? यार पत्र-पत्रिकाओं के पते देना जो मुझ जैसे के नीरस लेख छाप दें।’’ मैंने उन्हें संदर्भ में छपे कुछ लेखों के शीर्षक याद दिलाए तो वे हैरान हो गए। मैंने बताया कि मैं उनके सारे लेखों की सूची बना रहा हूँ जो संदर्भ आदि में छपे हैं। कहने लगे तो क्या कुछ गड़बड़ है जो मुझे टारगेट कर रहे हो?
खैर……अब इन सब बातों का कोई मतलब नहीं रह गया क्या?
जी हाँ। रहेगा। अपनो के देहान्त की ख़बर कुछ देर के लिए ही सही विचलित तो कर ही देती है। कल अपराह्न से मन खिन्न हो गया है। अब उनका फोन नहीं आएगा। वे जब बात करते थे, तो भूल जाते थे कि हम घंटों बात कर चुके हैं। ऐसे कई मित्र हैं जो लम्बी बातचीत करते हैं। किसी फिल्म की तरह मित्रों के फोन कॉल की याद में जाओं तो खजाना मिलेगा। ऐसा खजाना जो किताबों में नहीं मिलता।
कोरोना की वजह से हम एक लाख अड़सठ हजार भारतीयों को खो चुके हैं। आपकी ही तरह मेरे भी कई परिचितों को कोरोना ने छीन लिया है। मौतों का आँकड़ा उस समय छोटा पड़ जाता है जब आपका कोई अपना 1 इकाई के तौर पर इस तथ्य के साथ शामिल होकर परिजनों का दुःख बड़ा भी कर देता है और बढ़ा भी देता है।
वरिष्ठ साथी, शिक्षक,लेखक,सामाजिक एक्टीविस्ट, संस्कृतिकर्मी, प्रकृति,पर्यावरण,विज्ञान और शिक्षा के अध्येता कालू राम शर्मा जी की। खरगौन से मेरा कोई परिचय नहीं है। बस मैं उन्हीं से खरगौन को जानता रहा हूँ। अब ऐसा लग रहा है कि खरगौन किसी ऐसे मुल्क में चला गया है जहां की खैर-खबर मिल पाना चाँद को छूना है। पता नहीं क्यों? मुझे ऐसा क्यों लग रहा है? क्या दुनिया वाकई इतनी बड़ी है। वे विद्या भवन,ज्ञान विज्ञान आंदोलन,अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन,शिक्षा विभाग,दिगन्तर, एनसीईआरटी, एससीईआरटी,चकमक, एकलव्य, पिटारा,इकतारा,प्लूटो,साइकिल की खूब बात करते थे। उनकी बहुचर्चित किताब खोजबीन का आनन्द वाणी प्रकाशन ने छापी है। छोटे जीवों से जान पहचान को एनबीटी ने प्रकाशित किया है। वे सोशल मीडिया में, अध्यापकों के मध्य में खूब सक्रिय थे। वे इतना कारगर लिख चुके हैं कि गाहे-बगाहे पाठकों को पढ़ते-पढ़ते कुछ इस तरह मिल जाएंगे-‘केआर शर्मा’ या कालू राम शर्मा’
कभी अलविदा नहीं हमारे केआर !
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