कथा किलकारी: समानता के मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध बाल कथा संग्रह है
– महेश पुनेठा
इन दिनों बाल कहानी संग्रह ” कथा किलकारी” की खूब चर्चा है। यह संग्रह अपने आवरण पृष्ठ से ही ध्यान आकर्षित करता है, जो अनु चक्रवर्ती द्वारा बनाया गया है। अंदर भी हर कहानी के साथ उनके बनाए मनमोहक चित्र हैं। अनु के चित्र अपनी एक अलग ही पहचान रखते हैं। चित्र के साथ उनका नाम भी न हो तो पहचान में आ जाते हैं। लोक कला का पुट दिखाई देता है उनके चित्रों में। कहानीकार के साथ आवरण पृष्ठ में चित्रकार का नाम होना चाहिए जैसा कि हमें इकतारा द्वारा प्रकाशित किताबों में दिखाई देता है।
उक्त कहानी संग्रह के कहानीकार हैं मनोहर चमोली, जो बच्चों के लिए कहानियां लिखने के साथ साथ बाल साहित्य क्या,क्यों और कैसे? पर भी लगातार लिखते रहे हैं। बाल साहित्य के सौंदर्यशास्त्र की उनकी गहरी समझ है। उनकी इस संग्रह की कहानियों पर अपनी प्रतिक्रिया देने से पहले बाल साहित्य पर उनकी दृष्टि की यहां चर्चा करना चाहता हूं। उनका स्पष्ट मानना है बाल साहित्य ऐसा हो जिसे बच्चे आनन्द के साथ पढ़ें। जिसे देखकर-पढ़कर बच्चे मुस्कराएं। थोड़ी देर सोचें। सवाल करें। उनका कहना है,”वह सब बाल साहित्य है जिसे पढ़ते हुए बाल पाठक आनंदित हो। बाल साहित्य आनन्द से ओत-प्रोत होता है। वह जिज्ञासा जगाता है। उसकी पहली शर्त आनंद है। एक बच्चा जो अक्षरों की दुनिया से अभी वाक़िफ नहीं है। उसने राह चलते एक चित्रात्मक पोस्टर देखा। बशर्ते वह पोस्टर सूचनात्मक-तथ्यात्मक न हो। पोस्टर देखकर उसका अनुभव समृद्ध हुआ। उसे एक नई दृष्टि मिली। समझ का विस्तार हुआ। उसने बड़ों से चर्चा की। सवाल पूछे।” मनोहर मनाते हैं,”बाल साहित्य एक खिड़की है। इस खिड़की से बच्चे दुनिया में झांकने का शऊर सीखते हैं।” मैं तो बाल साहित्य को एक आंगन कहना चाहूंगा,जहां से वे एक बड़ी दुनिया का परिचय प्राप्त करते हैं। मनु भाई का यह मानना एकदम सही है कि झांकने की ललक यदि जग गई तो फिर बच्चे खुद-ब-खुद साहित्य के सहारे समूची दुनिया तक पहुँच जाते हैं। बाद उसके वह दुनिया को बेहतर बनाने में भी भागेदारी करते हैं।
मनोहर पूछते हैं कि क्या हम बच्चों को उनकी नज़र से सपने देखने की आज़ादी देते हैं? खुद वह इसका उत्तर भी देते हैं कि बाल साहित्य ऐसी आजादी देता है। वह बच्चों को और रचनात्मक बनाने की ताकत देता है। वह आगे कहते हैं कि बाल साहित्य को चाहिए कि वह बच्चों की कल्पनाशीलता का सम्मान करे। इससे आगे वह उसकी कल्पना को पंख भी दे और उड़ान का हौसला भी दे।
मनोहर चमोली को परियों की रोचक कहानियों से इनकार नहीं है , लेकिन उनका साफ कहना है कि हम उन्हें स्थापित कर रहे हैं तो गलत है।
मनोहर कहते हैं,”परी और भूत के किस्से बच्चों को हैरान करते हैं। तो कराइए न ! लेकिन उन्हें इस तरह से प्रस्तुत तो मत कीजिए कि बच्चे यह मान ही लें कि भूत होते हैं। परियां आती है और सारी समस्याएं चुटकी में हल कर देती हैं। “
मनोहर चमोली साहित्य को पाठ्यपुस्तक -सा बनाने से बचने की सलाह देते हैं क्योंकि ऐसा करना बच्चे की पढ़ने की ललक को कुंद करता है। उनकी यह मान्यता बिल्कुल सही है कि यदि बाल साहित्य ललक या चस्का नहीं जगा सका तो बाल पाठक साहित्य से दूर बहुत दूर चले जाते जाएंगे।
हम पाते हैं कि कहानी लिखते हुए मनोहर उक्त बातों का ध्यान रखते हैं।
मनोहर चमोली हमेशा समानता के मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध रही है प्रस्तुत संग्रह की कहानियों में भी उनकी यह प्रतिबद्धता साफ-साफ देखी जा सकती है। बहुत सारी कहानी इस संकलन में ऐसी हैं, जो बड़े छोटे के भेदभाव को ना मानने का संदेश देती हैं। इन कहानियों में आए हुए पात्रों के नाम में भी हम इस प्रतिबद्धता को देख सकते हैं। उनके कहानियों के पात्र हर वर्ग, जाति, धर्म और लिंग से आते हैं। मनोहर सचेत रूप से ऐसा करते हैं। हम कह सकते हैं कि मनोहर जी की कहानियों की विषयवस्तु में तो विविधता है ही साथ ही उनकी कहानियों में आई देशकाल और परिस्थितियां काफी सांस्कृतिक और सामाजिक विविधता भरी हुई हैं। उनकी कहानियों में बहुलतावादी समाज दिखाई देता है।
ये कहानियां मेहनत, सहयोग, साझेदारी, एकजुटता,संघ की शक्ति, प्रकृति प्रेम जैसे मूल्यों को बिना कहे बच्चों के भीतर विकसित करने में समर्थ हैं। “बड़ा हुआ छोटा”,”भागा शेर”,”ऊंचा कौन”,”छोटे भी हैं बड़े” जैसी कहानियों को पढ़ते हुए बाल पाठक के मन में कमजोर और उपेक्षित के पक्ष में खड़े होने का भाव स्वमेव पैदा हो जाएगा। साथ ही उसके मन में आत्मविश्वास पैदा होगा। तथाकथित छोटों का बड़ों के काम आने या किसी अहंकारी, अन्याई और ताकतवर के हराने से संदर्भित कहानियां रोमांचक हैं। ऐसी कहानियां बच्चों को पसंद भी आती हैं। शायद बड़े भी अपवाद नहीं।
“स्कूल बैग में कबाड़” और “ड्राइंग और जुनेरा” कहानियों की विषय वस्तु एकदम अलग हैं। नएपन से चौंकती हैं। यह कहानी बच्चों से अधिक बड़ों को सोचने के लिए प्रेरित करती हैं। दरअसल हम बच्चों की जिन गतिविधियों को बेकार का समझते हैं, उनके पीछे बच्चों की गहरी रचनात्मक छुपी होती है और उसका अपना महत्व होता है। “जारी है सीखना” कहानी भी विषय वस्तु की दृष्टि से नयापन लिए हुए है लेकिन कहानीपन की दृष्टि से थोड़ा इस पर और काम करने की आवश्यकता महसूस होती है। इस विषय वस्तु में एक लंबी कहानी बनने की बहुत संभावना दिखाई देती है। संग्रह की अंतिम कहानी तो मनोहर भाई की बहुचर्चित कहानी है। इसको बहुत अधिक पढ़ भी गया है और सराहा गया है। विभिन्न भाषाओं में इसका अनुवाद भी हो चुका है। यह कहानी खाद्य श्रृंखला को समझने की दृष्टि से भी बेहतरीन कहानी है। बिना कुछ कहे ही यह खाद्य श्रृंखला की समझ बच्चों के भीतर पैदा कर देती है। अंत तक उत्सुकता भी बनी रहती है।
मनोहर चमोली कहानी में सीधे-सीधे उपदेश देने या जानकारी या सूचनाओं देने के खिलाफ हैं। वह मानते हैं कि इस तरह की कहानी बच्चों को विशेष पसंद नहीं आती हैं। इन कहानियों में उनकी कोशिश रही है कि इस प्रवृत्ति से बचा जाय। अधिकांश कहानियों में वह सफल भी रहे हैं। मुझे लगता है कि बावजूद इसके कुछ कहानियों के अंत में आते-आते उनके पात्र उपदेश देने की भाषा में बोलने लगते हैं। यदि यह कहानी कुछ पहले खत्म कर दी जाती है या वह संवाद विशेष पात्र के मुंह से नहीं कहलवाया जाता तो बेहतर होता। जैसे “ऊंचा कौन” कहानी में जिराफ जामुन खाने के बाद कहता है , “आज समझ में आया आकार में ऊंचा होना बड़ा होना नहीं है। आदतों में ऊंचा होना बेहतर है। यह खरगोश मुझसे अधिक ऊंचे हैं।” मुझे लगता है कि यदि यह संवाद कहानी से हटा भी दिया जाय,तब भी कहानी से यह संदेश निकल रहा है।
जहां तक कहानियों की भाषा का सवाल है। कहना होगा कि छोटे छोटे वाक्यों में अपनी बात सहज सरल तरीके से आम बोलचाल की भाषा में संवेदनशील तरीके से कहानी कहते हैं। उनकी भाषा पाठक से सीधा संवाद स्थापित करती है।
महेश पुनेठा समकालीन कवियों में जाना-पहचाना नाम है