”बाल साहित्य को एक आंगन कहना चाहूंगा, जहां से वे एक बड़ी दुनिया का परिचय प्राप्त करते हैं.”
शिक्षक महेश पुनेठा उन समकालीन कवियों में शुमार हैं जो कई मोर्चों पर निरन्तर एक साथ सक्रिय रहते हैं। विद्यालयी गतिविधियों में शामिल रहना और पठन-पाठन करना उनका मौलिक कार्य है ही है। पाठ्य पुस्तक लेखन के साथ-साथ वह लोक के गहरे अध्येता भी हैं। देश भर के समकालीन कवियों की बात कभी हो और महेश पुनेठा को शामिल न किया जाए तो समझिए अध्ययन अधूरा रह गया। दीवार पत्रिका, शिक्षण में लोक कथाओं का महत्व, पारम्परिक मानव जीवन की धरोहरों का अध्ययन हो या शिक्षा के दस्तावेज़ों पर चर्चा हो, वह उपस्थित रहते हैं। सार्वजनिक शिक्षा में रचनात्मक आंदोलन को खड़ा करने वालों में भी वह शामिल हैं। सार्वजनिक शिक्षकों द्वारा सामूहिकता से प्रकाशित हो रही पत्रिका शैक्षिक दख़ल के सम्पादक भी हैं। अपनी कविता ‘सड़क अब पहुँची हो तुम, जब सारा गाँव शहर जा चुका है’ से अक्सर चर्चाओं में रहने वाले महेश पुनेठा ने ‘कथा-किलकारी’ के बहाने मुझे भी समृद्ध किया है। आप भी पढ़िएगा-
‘‘इन दिनों बाल कहानी संग्रह ‘कथा किलकारी’ की खूब चर्चा है। यह संग्रह अपने आवरण पृष्ठ से ही ध्यान आकर्षित करता है, जो अनु प्रिया द्वारा बनाया गया है। अंदर भी हर कहानी के साथ उनके बनाए मनमोहक चित्र हैं। अनु के चित्र अपनी एक अलग ही पहचान रखते हैं। चित्र के साथ उनका नाम भी न हो तो पहचान में आ जाते हैं। लोक कला का पुट दिखाई देता है उनके चित्रों में। कहानीकार के साथ आवरण पृष्ठ में चित्रकार का नाम होना चाहिए जैसा कि हमें इकतारा द्वारा प्रकाशित किताबों में दिखाई देता है।
उक्त कहानी संग्रह के कहानीकार हैं मनोहर चमोली, जो बच्चों के लिए कहानियाँ लिखने के साथ-साथ बाल साहित्य क्या, क्यों और कैसे? पर भी लगातार लिखते रहे हैं। बाल साहित्य के सौंदर्यशास्त्र पर उनकी गहरी समझ है। उनके इस संग्रह की कहानियों पर अपनी प्रतिक्रिया देने से पहले बाल साहित्य पर उनकी दृष्टि की यहां चर्चा करना चाहता हूं। उनका स्पष्ट मानना है बाल साहित्य ऐसा हो जिसे बच्चे आनन्द के साथ पढ़ें। जिसे देखकर-पढ़कर बच्चे मुस्कराएं। थोड़ी देर सोचें। सवाल करें। उनका कहना है,‘‘वह सब बाल साहित्य है जिसे पढ़ते हुए बाल पाठक आनंदित हो। बाल साहित्य आनन्द से ओत-प्रोत होता है। वह जिज्ञासा जगाता है। उसकी पहली शर्त आनंद है। एक बच्चा जो अक्षरों की दुनिया से अभी वाकिफ नहीं है। उसने राह चलते एक चित्रात्मक पोस्टर देखा। बशर्ते वह पोस्टर सूचनात्मक-तथ्यात्मक न हो। पोस्टर देखकर उसका अनुभव समृद्ध हुआ। उसे एक नई दृष्टि मिली। समझ का विस्तार हुआ। उसने बड़ों से चर्चा की। सवाल पूछे।’’

मनोहर मानते हैं,‘‘बाल साहित्य एक खिड़की है। इस खिड़की से बच्चे दुनिया में झांकने का शऊर सीखते हैं।’’ मैं तो बाल साहित्य को एक आंगन कहना चाहूंगा, जहां से वे एक बड़ी दुनिया का परिचय प्राप्त करते हैं। मनु भाई का यह मानना एकदम सही है कि झांकने की ललक यदि जग गई तो फिर बच्चे खुद-ब-खुद साहित्य के सहारे समूची दुनिया तक पहुँच जाते हैं। बाद उसके वह दुनिया को बेहतर बनाने में भी भागेदारी करते हैं।
मनोहर पूछते हैं कि क्या हम बच्चों को उनकी नज़र से सपने देखने की आज़ादी देते हैं? खुद वह इसका उत्तर भी देते हैं कि बाल साहित्य ऐसी आज़ादी देता है। वह बच्चों को और रचनात्मक बनाने की ताकत देता है। वह आगे कहते हैं कि बाल साहित्य को चाहिए कि वह बच्चों की कल्पनाशीलता का सम्मान करे। इससे आगे वह उसकी कल्पना को पंख भी दे और उड़ान का हौसला भी दे।
मनोहर चमोली को परियों की रोचक कहानियों से इनकार नहीं है, लेकिन उनका साफ कहना है कि हम उन्हें स्थापित कर रहे हैं तो गलत है।
मनोहर कहते हैं,‘‘परी और भूत के किस्से बच्चों को हैरान करते हैं। तो कराइए न ! लेकिन उन्हें इस तरह से प्रस्तुत तो मत कीजिए कि बच्चे यह मान ही लें कि भूत होते हैं। परियां आती है और सारी समस्याएं चुटकी में हल कर देती हैं।’’
मनोहर चमोली साहित्य को पाठ्यपुस्तक-सा बनाने से बचने की सलाह देते हैं क्योंकि ऐसा करना बच्चे की पढ़ने की ललक को कुंद करता है। उनकी यह मान्यता बिल्कुल सही है कि यदि बाल साहित्य ललक या चस्का नहीं जगा सका तो बाल पाठक साहित्य से दूर, बहुत दूर चले जाते जाएंगे।
हम पाते हैं कि कहानी लिखते हुए मनोहर उक्त बातों का ध्यान रखते हैं।
मनोहर चमोली हमेशा समानता के मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध रहे हैं। प्रस्तुत संग्रह की कहानियों में भी उनकी यह प्रतिबद्धता साफ-साफ देखी जा सकती है। इस संकलन में तीन-चार कहानियां ऐसी हैं, जो बड़े छोटे के भेदभाव को ना मानने का संदेश देती हैं। इन कहानियों में आए हुए पात्रों के नाम में भी हम इस प्रतिबद्धता को देख सकते हैं। उनके कहानियों के पात्र हर वर्ग, जाति, धर्म और लिंग से आते हैं। मनोहर सचेत रूप से ऐसा करते हैं। हम कह सकते हैं कि मनोहर जी की कहानियों की विषयवस्तु में तो विविधता है ही साथ ही उनकी कहानियों में आई देशकाल और परिस्थितियां काफी सांस्कृतिक और सामाजिक विविधता भरी हुई हैं। उनकी कहानियों में बहुलतावादी समाज दिखाई देता है।

ये कहानियां मेहनत, सहयोग, साझेदारी, एकजुटता, संघ की शक्ति, प्रकृति प्रेम जैसे मूल्यों को बिना कहे बच्चों के भीतर विकसित करने में समर्थ हैं। ‘बड़ा हुआ छोटा’, ‘भागा शेर’, ‘ऊंचा कौन’, ‘छोटे भी हैं बड़े’ जैसी कहानियों को पढ़ते हुए बाल पाठक के मन में कमजोर और उपेक्षित के पक्ष में खड़े होने का भाव स्वमेव पैदा हो जाएगा। साथ ही उसके मन में आत्मविश्वास पैदा होगा। तथाकथित छोटों का बड़ों के काम आने या किसी अहंकारी, अन्याई और ताकतवर को हराने से संदर्भित कहानियां रोमांचक हैं। ऐसी कहानियां बच्चों को पसंद भी आती हैं। शायद बड़े भी अपवाद नहीं।
‘स्कूल बैग में कबाड़’ और ‘ड्राइंग और जुनेरा’ कहानियों की विषय वस्तु एकदम अलग हैं। नएपन से चौंकाती हैं। यह कहानी बच्चों से अधिक बड़ों को सोचने के लिए प्रेरित करती हैं। दरअसल हम बच्चों की जिन गतिविधियों को बेकार का समझते हैं, उनके पीछे बच्चों की गहरी रचनात्मकता छुपी होती है और उसका अपना महत्व होता है। ‘जारी है सीखना’ कहानी भी विषय वस्तु की दृष्टि से नयापन लिए हुए है लेकिन कहानीपन की दृष्टि से थोड़ा इस पर और काम करने की आवश्यकता महसूस होती है। इस विषय वस्तु में एक लंबी कहानी बनने की बहुत संभावना दिखाई देती है। संग्रह की अंतिम कहानी तो मनोहर भाई की बहुचर्चित कहानी है। इसको बहुत अधिक पढ़ा भी गया है और सराहा भी। विभिन्न भाषाओं में इसका अनुवाद भी हो चुका है। यह कहानी खाद्य शृंखला को समझने की दृष्टि से भी बेहतरीन कहानी है। बिना कुछ कहे ही यह खाद्य शृंखला की समझ बच्चों के भीतर पैदा कर देती है। अंत तक उत्सुकता भी बनी रहती है। मनोहर जी की कहानियों में विज्ञान और गणित की विषयवस्तु भी पूरी रोचकता और कथापन लिए हुए आती है।

मनोहर चमोली कहानी में सीधे-सीधे उपदेश देने या जानकारी या सूचनाओं को देने के खिलाफ हैं। वह मानते हैं कि इस तरह की कहानी बच्चों को विशेष पसंद नहीं आती हैं। वह पढ़ने से दूर हो जाता है। इन कहानियों में उनकी कोशिश रही है कि इस प्रवृत्ति से बचा जाय। अधिकांश कहानियों में वह सफल भी रहे हैं। मुझे लगता है कि बावजूद इसके कुछ कहानियों के अंत में आते-आते उनके पात्र उपदेश देने की भाषा में बोलने लगते हैं। यदि यह कहानी कुछ पहले खत्म कर दी जाती या वह संवाद विशेष पात्र के मुंह से नहीं कहलवाया जाता तो बेहतर होता। जैसे ‘ऊंचा कौन’ कहानी में जिराफ जामुन खाने के बाद कहता है, ‘‘‘आज समझ में आया आकार में ऊंचा होना बड़ा होना नहीं है। आदतों में ऊंचा होना बेहतर है। यह खरगोश मुझसे अधिक ऊंचे हैं।’’’ मुझे लगता है कि यदि यह संवाद कहानी से हटा भी दिया जाय, तब भी पूरी कहानी से यह संदेश निकल रहा है।
जहां तक कहानियों की भाषा का सवाल है। कहना होगा कि वह छोटे-छोटे वाक्यों में अपनी बात सहज, सरल तरीके से आम बोलचाल की भाषा में संवेदनशील तरीके से कहानी कहते हैं। उनकी भाषा पाठक से सीधा संवाद स्थापित करती है। मुझे आशा है कि ये कहानियां बच्चों को आनंदित करने के साथ साथ सोचने और सवाल करने के लिए प्रेरित करेंगी। पिछले संग्रह की कहानियों को सुनाते हुए मैंने यह बात अनुभव की। ये कहानियां भी मैं बच्चों के बीच सुनाऊंगा। 000
बढ़िया! शानदार ! बहुत अच्छा। वाह ! अरे! इस सबसे इतर कोई शब्द ही नहीं सूझ रहा है। आप सही कह रहे हैं कहानी ‘ऊँचा कौन’ में वह कहलवाने की आवश्यकता नहीं। इसका दूसरा संस्करण आएगा तो मैं इसे संपादित करूँगा। दूसरा आपने ‘जारी है सीखना’ कहानी को लंबी कहानी कहने का सुझाव दिया है। मैंने अभी दोबारा इस कहानी को पढ़ा। मैं सहमत हूँ । मैं इस कहानी का फिर पुनर्लेखन करूँगा। लक्ष्मण सिंह बिष्ट ‘बटरोही’ जी के बाद आपकी ओर से यह विस्तृत टिप्पणी नहीं है बल्कि मेरे रचनाकर्म का सिंहावलोकन भी है। कहना आसान होता है करना उतना ही कठिन। मैं बड़ी आसानी से यह कहता फिरता हूँ कि बाल साहित्य में यह हो, वह हो। लेकिन मेरा अपना योगदान क्या है? जिस ओर आपने इशारा किया, वह हमारे नये सृजन में झलकना चाहिए। अनुप्रिया जी का उल्लेख उस तरह से आना चाहिए था। दूसरे संस्करण में इसे ठीक किया जाएगा। आगे से किसी भी संग्रह में चित्रकार को बराबर का स्थान देना मेरी प्राथमिकता में होगा। वादा रहा। मुझे प्रसन्नता है कि मेरे छिटपुट लेखन को खरीदकर पढ़ना। समझना और फिर उस पर गहन, असरदार रायशुमारी देना बड़ी बात है। यह मुझे हमेशा याद रहेगा।
किताब का विवरण :
किताब: कथा किलकारी
विधा: कहानी
सन्दर्भ: बाल साहित्य
लेखक: मनोहर चमोली
प्रकाशक: साहित्य विमर्श प्रकाशन
मूल्य: 130 रुपए
फिलहाल छूट पर: 99 रुपए
संस्करण वर्ष: दिसम्बर, 2024
पृष्ठ: 60
कहानियाँ: 15
विशेष: प्रत्येक कहानी के साथ पूरे पृष्ठ का चित्र
रंग: श्याम-श्वेत
चित्रांकन एवं आवरण: अनुप्रिया
पुस्तक क्रय लिंक: https://www.sahityavimarsh.in/katha-kilkari/
प्रकाशक से बातचीत के लिए सम्पर्क नं.-9310599506
लेखक से सम्पर्क: 7579111144
इसका ई-संस्करण भी उपलब्ध है।
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