‘‘शिक्षकों को छड़ी लौटा दीजिए वो देश में अनुशासन लौटा देंगे।’’

यह एक अदद ‘वाक्य’ भर नहीं है। यह वाक्य ‘सामन्ती सोच’ का पर्याय है। यह ‘दमनकारी नीति’ का हिस्सा है।

यदि यह वाक्य बुनियादी स्कूलों-इण्टरमीडिएट कॉलेजों में पढ़ रहे विद्यार्थियों के लिए कहा जा रहा है तो साफ नज़र आता है कि हमें जिज्ञासु विद्यार्थी नहीं चाहिए। चुपचाप हामी भरते और सिर हिलाते हुए मूक श्रोता चाहिए। यही विद्यार्थी आगे चलकर हाँके पर चलनी वाली भेड़ बन जाते हैं। ऐसे शिक्षक जो छड़ी के समर्थक हैं वह रचनात्मकता से इतर निरुत्साही भीड़ तैयार करते हैं।

दरअसल, यह हमारा स्वभाव है। हम सरल से सरल उपाय अपनाना चाहते हैं। हम जिन तरीकों से सीखते-पढ़ते हैं, उन्हीं तरीकों का हस्तान्तरण करते हुए सिखाना-पढ़ाना चाहते हैं।

जब हम पढ़ना-लिखना सीखते हैं और जब हम पढ़ाना-लिखाना सिखाने योग्य (उम्र के स्तर पर) हो जाते हैं, तब देशकाल का अन्तर ही लगभग, अठारह से बाईस साल का हो जाता है।

दुनिया तेजी से बदल रही है। मौसम बदल रहा है। रहन-सहन, खान-पान बदल रहा है। सामाजिक, पारिवारिक, सामुदायिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिवेश भी तेजी से बदल रहा है। ऐसे में हम यह कैसे मान सकते हैं कि जिस तरह से, जिन तरीकों से, जिन प्रणालियों से हमने सीखा-समझा-जाना और माना है, उसी तरह से बीस-पच्चीस साल बाद भी हम उन्हीं तौर-तरीकों से सिखाएँ ? उस पर तुर्रा यह कि सेवारत् रहते हुए आगामी पच्चीस-तीस साल तक अनवरत् अड़े रहें कि हुजूर आपकी बात सही है पर पतनाला वहीं गिरेगा।

भारत की बात करें तो आज़ादी के बाद से ही लगभग पचास साल तक अमूमन छड़ी के समर्थकों के पास ही शिक्षा की बागडोर रही है। यशपाल समिति की सिफारिशों के बाद ही पहली बार शिक्षकों के मध्य यह विचार पनपा कि ‘भयमुक्त’ और’ बिना बोझ के शिक्षा’ भी कारगर है। नहीं-नहीं। शायद, यह कहना ठीक होगा कि बिना बोझ के ही शिक्षा कारगर है। नब्बे के दशक के आस-पास ही यह विचार तेजी से पनपा और विस्तारित हुआ कि बच्चे ‘कोरी स्लेट’ नहीं होते। वे मिट्टी का लौंदा नहीं होते। लेकिन, आज भी बात-बेबात पर तमाम शिक्षक पूरे आत्मविश्वास के साथ सार्वजनिक मंचों पर बच्चों को कच्चा घड़ा, मिट्टी का लौंदा और कोरी स्लेट कहते नहीं अघाते।

लेकिन, ऐसे शिक्षक कम ही मिलेंगे जो यह बात समझते हैं कि अभी-अभी स्कूल जाना शुरू करने वाले बच्चे हष्ट-पुष्ट बीज हैं। यदि उन्हें उचित परवरिश, प्यार, हौसला और उत्साह से युक्त खाद-पानी,हवा-प्रकाश और वैज्ञानिक नज़रिए का स्पर्श मिले तो बच्चे विशालकाय स्वतंत्र व्यक्तित्व का सदाबहार वृक्ष बनेंगे। इन खास और सकारात्मक विचारों के समर्थक कम और विरोधी ज़्यादा हैं। आज भी हैं।

दरअसल। शिक्षा को आम उत्पादन के क्षेत्र के साथ नहीं जोड़ा जा सकता। शिक्षा कोई माध्यमिक, स्नातक और परास्नातक की परीक्षा मात्र नहीं है। कोई विद्यार्थी पन्द्रह-सत्रह साल विद्याअध्ययन करे और एटीएम मशीन की तरह रुपया बटोरने लग जाए। यह शिक्षा नहीं है। फिर शिक्षा क्या है? शिक्षा तो आमरण चलती है।

हम और आप आज ड्रोन को मोबाइल से संचालित कर सकते हैं? शायद नहीं। यदि हाँ। तो याद कीजिए कि ड्रोन संचालित करते हुए हम कितना तनाव लेने लगे! कितने सवाल हमारे मन-मस्तिष्क में कौंधे होंगे? क्या एक-एक फंक्शन को पहली ही बार समझ लिया? क्या कई बार के प्रयासों के बाद भी हम ड्रोन से वह काम कर पाए जो हम चाहते हैं? यकीनन, नहीं। जबकि हम प्रौढ़ हो चुके हैं।

इसके विपरीत हम कक्षा कक्ष में अपनी आयु से बेहद छोटे बच्चों को जो अभी-अभी कक्षा में आया है। पठन-पाठन और अक्षर ज्ञान के स्तर पर उसे जूझना है। उसके ज़ेहन में कई शंकाएँ हैं। कई सवाल हैं? वह अगर-मगर, या, क्या, क्यों के स्तर पर हमसे मदद चाहता है। और हम? हम क्या कर रहे हैं? क्या करना चाहते हैं? हम चाहते हैं कि वह दो और दो चार बोलना सीख ले। दो और दो चार होते हैं। यह लिखना सीख ले। लेकिन वह यह न पूछे कि दो और दो चार क्यों होते हैं? कैसे होते हैं? इस प्रक्रिया पर सवाल न करे। हम क्यों चाहते हैं कि बच्चे पत्तियों का रंग हरा ही बनाएँ। यदि कोई विद्यार्थी काला या बैंगनी गुलाब बना दे तो हम बौखला जाते हैं। क्यों? हमने गुलाब गुलाबी ही देखा है। हमने पीली, काली, सुनहरी और बैंगनी पत्तियाँ देखी नहीं हैं। हम बड़े अँखोड़ा पहने हुए हैं और बच्चे नींद में भी आँखें खुली रखते हैं।

आज भी तमाम शिक्षक ऐसे हैं जिन्हें विद्याध्ययन के दौर के पाठ अच्छे लगते हैं। उन्हें उस दौर में जैसे भी, जिन कारणों से वे पाठ अच्छे लगते थे, वह दौर आज नहीं है। यह ठीक उसी तरह का मामला है जैसे पिता के पिता ने परवरिश की। पिता भी पुत्र की वैसी ही परवरिश कर रहा है। पुत्र से भी यही चाहता है कि वह भी ऐसा ही करे।

और अन्त में, यह पुरातनपंथी सोच के समर्थक पिछले दस सालों में पाँच मोबाइल बदल चुके हैं। घर का फर्नीचर बदल चुके हैं। अपना पहनावा तक बदल चुके हैं। समय के साथ-साथ खान-पान तक बदल चुके हैं। बस नहीं बदले हैं तो अपनी सोच कि इस युग में कम से कम सीखने-सिखाने में छड़ी बच्चों को जिज्ञासु नहीं हिंसक ही बनाएगी।


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By manohar

परिचयः मनोहर चमोली ‘मनु’ जन्मः पलाम,टिहरी गढ़वाल,उत्तराखण्ड जन्म तिथिः 01-08-1973 प्रकाशित कृतियाँ ऐसे बदली नाक की नथः 2005, पृष्ठ संख्या-20, प्रकाशकः राष्ट्रीय पुस्तक न्यास,नई दिल्ली ऐसे बदला खानपुरः 2006, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः राज्य संसाधन केन्द्र (प्रौढ़ शिक्षा) 68/1,सूर्यलोक कॉलोनी,राजपुर रोड,देहरादून। सवाल दस रुपए का (4 कहानियाँ)ः 2007, पृष्ठ संख्या-40, प्रकाशकः भारत ज्ञान विज्ञान समिति,नई दिल्ली। उत्तराखण्ड की लोककथाएं (14 लोक कथाएँ)ः 2007, पृष्ठ संख्या-52, प्रकाशकः भारत ज्ञान विज्ञान समिति,नई दिल्ली। ख्खुशीः मार्च 2008, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः राज्य संसाधन केन्द्र (प्रौढ़ शिक्षा) 68/1,सूर्यलोक कॉलोनी,राजपुर रोड,देहरादून बदल गया मालवाः मार्च 2008, पृष्ठ संख्या-12, प्रकाशकः राज्य संसाधन केन्द्र (प्रौढ़ शिक्षा) 68/1,सूर्यलोक कॉलोनी,राजपुर रोड,देहरादून पूछेरीः 2009,पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः राष्ट्रीय पुस्तक न्यास,नई दिल्ली बिगड़ी बात बनीः मार्च 2008, पृष्ठ संख्या-12, प्रकाशकः राज्य संसाधन केन्द्र (प्रौढ़ शिक्षा) 68/1,सूर्यलोक कॉलोनी,राजपुर रोड,देहरादून अब बजाओ तालीः 2009, पृष्ठ संख्या-12, प्रकाशकः राज्य संसाधन केन्द्र (प्रौढ़ शिक्षा) 68/1,सूर्यलोक कॉलोनी,राजपुर रोड,देहरादून। व्यवहारज्ञानं (मराठी में 4 कहानियाँ अनुदित,प्रो.साईनाथ पाचारणे)ः 2012, पृष्ठ संख्या-40, प्रकाशकः निखिल प्रकाशन,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। अंतरिक्ष से आगे बचपनः (25 बाल कहानियाँ)ः 2013, पृष्ठ संख्या-104, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-81-86844-40-3 प्रकाशकः विनसर पब्लिशिंग कम्पनी,4 डिसपेंसरी रोड,देहरादून। कथाः ज्ञानाची चुणूक (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः उलटया हाताचा सलाम (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः पुस्तके परत आली (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः वाढदिवसाची भेट (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः सत्पात्री दान (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः मंगलावर होईल घर (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः सेवक तेनालीराम (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः असा जिंकला उंदीर (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः पिंपलांच झाड (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः खरं सौंदर्य (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः गुरुसेवा (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः खरी बचत (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः विहिरीत पडलेला मुकुट (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः शाही भोजनाचा आनंद (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः कामाची सवय (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः शेजायाशी संबंध (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः मास्क रोबोट (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः फेसबुकचा वापर (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः कलेचा सन्मान (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः सेवा हाच धर्म (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः खोटा सम्राट (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः ई साईबोर्ग दुनिया (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः पाहुण्यांचा सन्मान (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। जीवन में बचपनः ( 30 बाल कहानियाँ)ः 2015, पृष्ठ संख्या-120, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-81-86844-69-4 प्रकाशकः विनसर पब्लिशिंग कम्पनी,4 डिसपेंसरी रोड,देहरादून। उत्तराखण्ड की प्रतिनिधि लोककथाएं (समेकित 4 लोक कथाएँ)ः 2015, पृष्ठ संख्या-192, प्रकाशकः समय साक्ष्य,फालतू लाइन,देहरादून। रीडिंग कार्डः 2017, ऐसे चाटा दिमाग, किरमोला आसमान पर, सबसे बड़ा अण्डा, ( 3 कहानियाँ ) प्रकाशकः राज्य परियोजना कार्यालय,उत्तराखण्ड चित्र कथाः पढ़ें भारत के अन्तर्गत 13 कहानियाँ, वर्ष 2016, प्रकाशकः प्रथम बुक्स,भारत। चाँद का स्वेटरः 2012,पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-81038-40-6 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। बादल क्यों बरसता है?ः 2013,पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-81038-79-6 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। जूते और मोजेः 2016, पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-84697-97-6 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। अब तुम गए काम सेः 2016,पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-84697-88-4 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। चलता पहाड़ः 2016,पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-84697-91-4 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। बिल में क्या है?ः 2017,पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-86808-20-2 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। छस छस छसः 2019, पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-89202-63-2 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। कहानियाँ बाल मन कीः 2021, पृष्ठ संख्या-194, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-91081-23-2 प्रकाशकः श्वेतवर्णा प्रकाशन,दिल्ली पहली यात्रा: 2023 पृष्ठ संख्या-20 आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-5743-178-1 प्रकाशक: राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत कथा किलकारी: दिसम्बर 2024, पृष्ठ संख्या-60, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-92829-39-0 प्रकाशक: साहित्य विमर्श प्रकाशन कथा पोथी बच्चों की: फरवरी 2025, पृष्ठ संख्या-136, विनसर पब्लिकेशन,देहरादून, उत्तराखण्ड, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-93658-55-5 कहानी ‘फूलों वाले बाबा’ उत्तराखण्ड में कक्षा पाँच की पाठ्य पुस्तक ‘बुराँश’ में शामिल। सहायक पुस्तक माला भाग-5 में नाटक मस्ती की पाठशाला शामिल। मधुकिरण भाग पांच में कहानी शामिल। परिवेश हिंदी पाठमाला एवं अभ्यास पुस्तिका 2023 में संस्मरण खुशबू आज भी याद है प्रकाशित पावनी हिंदी पाठ्यपुस्तक भाग 6 में संस्मरण ‘अगर वे उस दिन स्कूल आते तो’ प्रकाशित। (नई शिक्षा नीति 2020 के आलोक में।) हिमाचल सरकार के प्रेरणा कार्यक्रम सहित पढ़ने की आदत विकसित करने संबंधी कार्यक्रम के तहत छह राज्यों के बुनियादी स्कूलों में 13 कहानियां शामिल। राजस्थान, एस.सी.ई.आर.टी द्वारा 2025 में विकसित हिंदी पाठ्यपुस्तक की कक्षा पहली में कहानी ‘चलता पहाड़’ सम्मिलित। राजस्थान, एस.सी.ई.आर.टी द्वारा 2025 में विकसित हिंदी पाठ्यपुस्तक की कक्षा चौथी में निबंध ‘इसलिए गिरती हैं पत्तियाँ’ सम्मिलित। बीस से अधिक बाल कहानियां असमियां और बंगला में अनुदित। गंग ज्योति पत्रिका के पूर्व सह संपादक। ज्ञान विज्ञान बुलेटिन के पूर्व संपादक। पुस्तकों में हास्य व्यंग्य कथाएं, किलकारी, यमलोक का यात्री प्रकाशित। ईबुक ‘जीवन में बचपन प्रकाशित। पंचायत प्रशिक्षण संदर्शिका, अचल ज्योति, प्रवेशिका भाग 1, अचल ज्योति भाग 2, स्वेटर निर्माण प्रवेशिका लेखकीय सहयोग। उत्तराखण्ड की पाठ्य पुस्तक भाषा किरण, हँसी-खुशी एवं बुराँश में लेखन एवं संपादन। विविध शिक्षक संदर्शिकाओं में सह लेखन एवं संपादन। अमोली पाठ्य पुस्तक 8 में संस्मरण-खुशबू याद है प्रकाशित। उत्तराखण्ड के शिक्षा विभाग में भाषा के शिक्षक हैं। वर्तमान में: रा.इं.कॉ.कालेश्वर,पौड़ी गढ़वाल में नियुक्त हैं। सम्पर्कः गुरु भवन, पोस्ट बॉक्स-23 पौड़ी, पौड़ी गढ़वाल.उत्तराखण्ड 246001.उत्तराखण्ड. मोबाइल एवं व्हाट्सएप-7579111144 #manoharchamolimanu #मनोहर चमोली ‘मनु’

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