‘नवल’ पत्रिका साहित्य समाज संस्कृति की त्रैमासिकी है। पिछले 45 सालों से प्रकाशित हो रही है। मैं कह सकता हूँ कि यदि समूचे उत्तराखण्ड को जानना-समझना है तो समग्रता में नवल एक कारगर साक्ष्य हो सकता है। हरि मोहन ‘मोहन’ अडिगता से और सही मायनों में ऐसे सम्पादक हैं जो साहित्य साधना में रत हैं। यकीनन यह उनकी प्रतिबद्धता है। नवल जिस तरह से साहित्य जगत से जुड़े हर पक्ष का सम्मान करता है यह प्रणम्य है।
पत्रिका में बहुत कुछ नियमित है। आलेख, शोध आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, लघुकथाएँ, पुस्तकों की समीक्षा, उत्तराखण्ड की लोक कथाएं नियमित जगह पाती हैं। अंक में पचास फीसदी उत्तराखण्ड की कला, संस्कृति, आम जीवन, प्रकृति, परिवेश, रहन-सहन आधारित रचना सामग्री का समावेश मिलता है। बी॰मोहन नेगी जी को नवल कभी नहीं भूलता। बी॰मोहन नेगी का नवल से अगाध प्रेम रहा है। संभवतः यही कारण होगा कि यह पत्रिका हर अंक में बी॰मोहन नेगी के चित्र, कविता पोस्टरों को भरपूर जगह देती है।
पत्रिका बड़ी सादगी से छपती है। यह श्याम-श्वेत है। अलबत्ता अपनी गरिमा के साथ बदस्तूर पाठकों के लिए समय पर दस्तक देती है। हरि मोहन ‘मोहन’ आजकल के तथाकथित स्वयंभू सम्पादकों की भीड़ में अलग दिखाई देते हैं। वह किसी सम्मान,पुरस्कार, विज्ञापन-चंदा की आकांक्षा नहीं रखते। शायद ही किसी से पत्रिका के लिए आर्थिक गुहार लगाते होंगे। आप चाहें तो इस पत्रिका से जुड़ सकते हैं। पत्रिका डाक से नियमित आपको मिलती रहेगी। यह भरोसा मैं आपको दिला सकता हूँ।
पत्रिका: नवल
कालांश: त्रैमासिक
अंक का मूल्य: 15 रुपए
द्विवार्षिक: 100 रुपए
संपादक: हरि मोहन ‘हरि’Page : 36
पता: नवल, उत्तराखण्ड प्रेस, रानीखेत रोड, रामनगर 244715
पत्रिका रोचक लग रही है। सदस्यता ले लूँगा। उम्मीद है गुरुग्राम पहुँचती होगी।