आज भी प्रासंगिक और समसामयिक सी कथा
एनिड ब्लाइटन सीक्रेट 7 एक शानदार बाल उपन्यास है। मज़ेदार बात यह है कि भले ही इस उपन्यास का पहला पाठक बच्चा है। लेकिन यह इतना शानदार है कि इसे पिता पाठक भी पढ़ना चाहेंगे। माताएँ भी पढ़ना चाहेंगी। वे सब पाठक भी पढ़ना चाहेंगे जिनका संबंध कहीं न कहीं अपराध जगत से है। वे भी पढ़ना चाहेंगे जिन्हें रहस्य, रोमांच, जासूसी और जिज्ञासाएं जगाती सामग्री पढ़ने का शौक है। मैं तो हतप्रभ हूँ !
60 के दशक में जो उपन्यासकार इस दुनिया को छोड़ चुकी हो उसके लिखे गए उपन्यास साठ-सत्तर साल बाद भी खूब पढ़े जा रहे हैं। है न कमाल की बात। एक ऐसी लेखक जिसका जन्म 1897 को हुआ हो। हम उस दौर की भारतीय सन्दर्भ में बात करें तो यह अविश्वसनीय है। भारत की साक्षरता दर तो आजाद भारत के वक्त 11 फीसदी भी नहीं थी। आज भी इस लेखक की किताबें अनुदित होती रहती है। माना जाता है कि लगभग नब्बे भाषाओं में इनकी रचनाएं अनुदित होकर दुनिया के बच्चे पढ़ रहे हैं। ऐसा माना जाता है कि उनकी पुस्तकों की बिक्री लाखों में नहीं करोड़ों में है। वह रहस्य, रोमांच, जासूसी और अपराध का ऐसा जोड़ बनाते है कि पाठक अंत तक किताब को पढ़े बिना नहीं रह पाता।
यदि इस किताब सीक्रेट 7 की बात करें तो यह पेपरबैक में है। पेजों की संख्या 120 है। प्रकाशक मंजुल पब्लिशिंग हाउस हैं। इस उपन्यास का अनुवादक डॉ सुधीर दीक्षित, रजनी दीक्षित ने किया है। किताब का मूल्य 50 रुपए है। यदि पुनर्प्रकाशन किया गया होगा तो मूल्य बढ़ गया होगा। बहरहाल, उपन्यास बच्चों में पढ़ने की ललक बनाए रखता है। बारह छोटे-छोटे अध्याय रखे गए हैं। आठ से बारह पेज के यह अध्याय हैं। एक के बाद दूसरा और फिर तीसरा पढ़ने का मन बना रहता है।
सार यह है कि सात बच्चे हैं। उनका एक ग्रुप है। यह दुनिया से खुद को अलग मानते हैं। कुछ अनसुलझा काम करना चाहते हैं। जब भी मिलते हैं तब सभी को बैज लगाकर आना होता है और पासवर्ड बोलना पड़ता है। तभी मीटिंग की जगह में उसे प्रवेश मिलता है। बहरहाल वह मिलते हैं और फिर बर्फ में खेलते हैं। पासवर्ड भी बदल देते हैं। खैर… जब सब अपने घर लौट आते हैं तो जैक को रात नौ बजे ख़याल आता है कि उसका बैज कहीं खो गया है। वह सोचता है कि यदि इस वक़्त न खोजा गया तो बर्फ पड़ने पर या अगली सुबह वह गुम हो जाएगा। बस, वह रात ही उसे खोजने निकल पड़ता है। रात को जब वह उस मैदान पर जहाँ उन्होंने बर्फ के पुतले बनाए थे पहुँच जाता है। बस यही से उपन्यास में नया मोड़ आता है। रात साढ़े नौ बजे मैदान में किसी गाड़ी का आना और उसके पीछे किसी वैन का जुड़ा होना। दो आदमियों का उतरना और किसी तीसरे का सिसकना-खींचना-गुत्थम-गुत्था सा होना। कुछ देर बाद गाड़ी का वापिस चले जाना। रात के अंधेरे में कुछ खास पता न चलना जैक को परेशान करता है। वह फिर अपने इस ग्रुप के सामने इस टास्क को रखने का फैसला करता है और रात के अंधेरे में ही लिखित सूचना देने वाले नियम को फोलो करता है। अगली सुबह पूरी टीम इस टॉस्क पर बढ़ते है और दिन के उजाले में मैदान में और बूढ़े लेकिन गंूगे पहरेदार वाले बंगले में जा पहुंचते हैं। फिर कुछ ऐसा उन्हें पता चलता है कि रात का इन्तज़ार करते हैं। अंत में रहस्य से परदा खुलता है। यह सात बच्चे जिनमें पीटर, जेनेट, जैक, कॉलिन, पैम, बारबरा, जॉर्ज हैं उनका यही है ग्रुप- सीक्रेट 7। स्कैम्पर भी उनकी टीम में है। वैसे यह पीटर और जेनेट का पालतू कुत्ता है। लड़कों में पीटर, कॉलिन, जार्ज, जैक और लड़कियों में बारबरा,जेनेट और पैम मिलकर इस रहस्य को सुलझाते हैं। उपन्यास में इन सात के अलावा सूजी जैक की बहन है। मिस एली सूजी की आया है। डैन मैदान के पास पुराने मकान का चौकीदार है। जिसके इर्द-गिर्द सारा उपन्यास बुना गया है।
मैंने बचपन में जासूसी कथाएँ खूब पढ़ी हैं। जो कुछ पढ़ा है हिन्दी में ही पढ़ा है। युवा साहित्यकार और पेशे से इंजीनियर विकास नैनवाल ने मुझे यह अनुभव और मृगांक के लिए भेंट किया। मंजुल प्रकाशन के लिए इस किताब को हिन्दी में सुधीर दीक्षित और रजनी दीक्षित लाए हैं। अनुवाद शानदार है। इस उपन्यास के अलावा भी इस शंखला के सारे उपन्यास पढ़ना चाहूंगा।
इस किताब की बात करें तो सबसे बड़ी बात मुझे यह लगी कि अनुवाद बेहद धारदार और प्रभावी है। प्रूफ की गलतियाँ नहीं हैं। फोंट शानदार है। फोंट का आकार भी बच्चों के लिहाज़ से बड़ा है। कवर पेज अच्छा मोटा है। भीतर के पेज भी ठीक-ठाक हैं। यदि बारह अध्याय के हिसाब से एक-एक चित्र भी होता तो आनन्द बढ़ सकता था। उपन्यास में अमूमन चित्र नहीं होते। लेकिन यह बाल उपन्यास है तो चित्र रखे जा सकते थे। हिन्दुस्ताीन भाषा का ख़याल रखा गया है। यह काबिल-ए-तारीफ़ है।
उपन्यास का आग़ाज़ आप भी पढिएगा –
पीटर ने जेनेट से कहा, ‘अच्छा होगा कि हम सीक्रेट सेवन सोसायटी की मीटिंग जल्दी ही कर लें। हमारी मीटिंग काफ़ी समय से नहीं हुई है।’
जेनेट झट से अपनी किताब बंद करते हुए बोली, ‘हाँ, यह बहुत अच्छा रहेगा। पीटर, हम अपनी सोसायटी को भूले नहीं थे। क्रिसमस की छुट्टियों में हमें इतने सारे मज़ेदार काम करने थे कि हमारे पास मीटिंग करने का समय ही नहीं था।’
पीटर ने कहा, ‘लेकिन अब हमें मीटिंग कर ही लेनी चाहिए। सीक्रेट सोसायटी बनाने का तब तक कोई मतलब नहीं है, जब तक कि इसके सदस्य कोई काम न करें। अच्छा चलो, अब हम बाक़ी सभी सदस्यों को मीटिंग की ख़बर भिजवाते हैं।’
जेनेट ने आलस से कहा, ‘पाँच चिट्ठियाँ लिखनी पड़ेंगी। तुम मुझसे जल्दी लिख लेते हो, पीटर इसलिए तुम तीन चिट्ठियाँ लिखना और मैं दो लिखूँगी।’
यदि आप इस संवाद को पढ़ लें तो पूरा उपन्यास पढ़ने की जिज्ञासा नहीं होगी ? शायद , होगी ! उपन्यास से ही एक अंश यह भी है-
पहली आवाज़ ने कहा, ‘एक बार देख तो लो, कहीं कोई है तो नहीं।’
जब जैक ने टॉर्च की ज़ोरदार चमक देखी, तो वह चुपचाप गेट से नीचे उतरकर बर्फ़ीली बागड़ के पीछे छिप गया और उसने अपने ऊपर बर्फ डाल ली। बागड़ के पास बर्फ़ पर क़दमों की चर्र चर्र आहट सुनाई दी। टॉर्च की रोशनी गेट पर पड़ी और उस आदमी ने चौंकते हुए कहा ।
‘वहाँ कौन है ? तुम कौन हो ?”
जैक का दिल इतनी ज़ोर से धड़का कि उसे सीने में दर्द होने लगा। वह उठकर यह बताने ही वाला था कि वह कौन है, तभी गेट पर खड़ा आदमी हँसने लगा ।
‘क़सम से, देखो तो सही, निब्स यहाँ पर बर्फ़ के पुतले खड़े हुए हैं! पहले तो मैंने सोचा कि वे ज़िंदा आदमी हैं और हमें देख रहे हैं! मैं सचमुच घबरा गया था।’ –
दूसरा आदमी धीरे से पहले आदमी के पास आया और वह भी बर्फ़ के पुतलों को देखकर हँसने लगा। ‘मुझे लगता है कि यह बच्चों का काम है,’ उसने कहा। ‘हाँ, इस रोशनी में वे सचमुच ज़िंदा इंसान दिखते हैं। इतनी रात को यहाँ आस-पास भला कौन होगा, मैक! चलो भी | अब हम अपना काम शुरु करते हैं।’
वे कार की तरफ़ लौट गए। जैक काँपता हुआ वहीं बैठा रहा। आख़िर ये लोग एक पुराने वीरान मकान के बाहर, इतने बर्फीले मौसम और अँधेरे में कर क्या रहे हैं? क्या उसे देखना चाहिए कि वे किस फ़िराक में हैं? वह ऐसा क़तई नहीं करना चाहता था। वह तो जल्दी से जल्दी अपने घर पहुँचना चाहता था।वह रेंगता हुआ गेट तक गया। तभी उसे वैन की तरफ़ से अजीब सी आवाजें सुनाई दीं। ऐसा लग रहा था, जैसे वे लोग किसी दरवाज़े की साँकल खोल रहे थे। शायद वे वैन का दरवाज़ा खोल रहे थे।
तभी अचानक एक ज़ोरदार आवाज़ आई। ऐसा लग रहा था, कोई गुस्से में कूद रहा था और चीख़ रहा था। फिर ऐसा लगा, जैसे दोनों आदमी हाँफते हुए और गालियाँ देते हुए किसी से ज़ोरदार संघर्ष कर रहे हों ! जैक से अब सहन नहीं हुआ। उसने हड़बड़ाकर सिर पर पैर रखकर गेट लाँघा और जान छुड़ाकर गली में भागने लगा !
जैक को यह मालूम नहीं था कि वे कैसी आवाज़े थीं। और सच तो यह है कि उसे इस बात की ज़रा भी परवाह नहीं थी। वह तो बस इतना चाहता था कि उसे कुछ हो , इससे पहले ही वह सही -सलामत घर पहुँच जाए.