कभी तीन साल एक बुनियादी स्कूल से जुड़ने का मौका मिला था। तब मैं स्नातक में था। प्रधानाध्यापिका अकेली थीं। गांधी जयंती, स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस में जाना होता था। संभवतः इसी कारण मुझे यह अवसर मिला। प्रधानाध्यापिका ने निजी तौर पर तीन सौ रुपया महीना देना तय किया था। मुझे एक-दो घण्टा पढ़ाना होता था।’’ तीन सौ रुपए कम ने थे। इसी के चलते मुझे पचास रुपए महीना कुछ बच्चे ट्यूशन के लिए मिल गए थे।

तब सोच सतही थी। अब बदल रही है। शिक्षा के असल मक़सद पता न थे। गृहकार्य देना और विद्यार्थियों के लिखे हुए को लाल कलम से घेरना ज़रूरी काम समझता था। विद्यार्थियों को खड़ा करना, डंडा मारना और मुर्गा बनाना गलत है। इस पर कभी सोचा ही नहीं था। प्रधानाध्यापिका बेहद सख़्त थीं। वह खुश थीं कि मैं नियमित पढ़ाने आता हूँ। जब वहाँ दूसरी अध्यापिका आईं तो मेरा काम खत्म हो गया था।


मैं बहुत गलत था ! बी॰एड॰ के दौरान शिक्षा के दस्तावेज़ों को पढ़ा। भारत ज्ञान विज्ञान समिति से जुड़ा। यशपाल समिति की सिफारिशों को पढ़ा। एक नई दृष्टि मिली। पारम्परिक शिक्षण के दोष समझ आने लगे। ढर्रेदार तरीकों के संवाहक शिक्षकों से मोह छूटा। पत्रकारिता ने रही-सही कसर पूरी कर दी। दस साल ज़ीरों ग्राउण्ड पर काम किया था। शिक्षा विभाग के कई आयोजनों में सहभागिता दी। तब ‘भाषा रश्मि’ की पाठ्य पुस्तक हुआ करती थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेशोपरांत किताबों में पर्यावरणीय दृष्टिकोण जोड़े जाने थे। उसमें सहभागिता का अवसर मिला। यह कार्यशाला नैनीताल स्थित डायट भीमताल में हुई थी। शिक्षा जगत को जानने-समझने का मौका मिलता रहा। फिर मैं 2005 को उत्तराखण्ड के शिक्षा विभाग में एल.टी. भाषा का अध्यापक बन गया।


राजकीय सेवा में बतौर शिक्षक पहला दिन याद आता है। प्रधानाध्यापक सभी कक्षाओं में ले गए थे। मेरा परिचय उन्होंने ही दिया था। फिर कहा था,‘‘इसी साल स्कूल हाईस्कूल हुआ है। सबसे बड़ी कक्षा नौ ही है। चाहो तो किसी एक कक्षा में जाकर बातचीत कर सकते हो।’’ कई सारी आँखें मुझे देख रही थीं। बालिकाओं के सिर पर दो-दो फूल सफेद रंग के खिले थे। रिबन से बँधी चुटिया अच्छी लग रही थीं। मैंने कहा था,‘‘जब मन नहीं करेगा तो पढाई नहीं करेंगे।’’

खैर ……यह साल राष्ट्रीय पाठ्यचर्या 2005 का था। अखिल भारतीय जन विज्ञान नेटवर्क ने सेवा में आने से पहले ही इस महत्वपूर्ण पाठ्यचर्या में शरीक होने का मौका दे दिया था। इसी क्रम में नई किताबों की निर्माण कार्यशाला में सहभागिता करने का अवसर भी मिला। लगभग तीन से चार महीने की कई महत्वपूर्ण कार्यशालाओं में जुड़ाव रहा। फिर हँसी-खुशी भाग एक से लेकर पाँच और बुराँश भाग एक से तीन हिन्दी की किताबें प्रकाशित हुईं। शिक्षा विभाग में मुझे कई अवसर मिले। सेवारत् प्रशिक्षणों में बतौर संदर्भ व्यक्ति, प्रशिक्षण साहित्य में लेखन के कई अवसरों ने नई रोशनी दी। विमर्श के अवसर मिले। पत्रकारिता राजकीय सेवा में आते ही छूट गई थी। लेखन की आदत ने बाल साहित्य की ओर मोड़ दिया।


इन सब स्थितियों ने सोच-समझ का स्तर बदला। अज़ीम प्रेमजी फाउण्डेशन के साथियों के साथ शिक्षा के विमर्श ने और समझ दी। इतना सब कुछ होने के बाद भी सत्र समाप्त होते-होते हर साल मन बैठ जाता है। मुझे पता रहता ही है कि सीखने-सिखाने में क्या-क्या और कितना रहा-बचा! फिर ठान लेता हूँ कि आगामी अप्रैल से ‘ये-ये’ करूँगा। करते-करते फिर मार्च आ जाता है।

फिर बहुत कुछ छूट जाता है। कभी ये भी लगता है कि रणनीति के स्तर पर नए सिरे से सोचने की ज़रूरत है। इस सीखने के सफ़र में सिखाने वाला भाव भी कई बार हावी होने लगता है। कक्षा में साझा करने वाली स्थिति रखता हूँ। नीरसता न रहे। ऐसी कोशिश करता हूँ। मैं अपने विद्यार्थियों पर ज़रूरत से ज़्यादा उम्मीदें करता हूँ। कई बार वे उम्मीदें खरी उतरती हैं। अब ये खरा उतरने का साँचा क्या हो? बच्चों के साथ मैं अकेला तो नहीं हूँ। साथी अध्यापक भी होते हैं। माता-पिता, परिवार के सदस्य, सहपाठी और समुदाय भी तो होता है। फिर मैं कैसे कह दूँ कि बच्चे जिस मुकाम पर पहुँचते हैं वह मेरी ही देन हैं? मैं हर साल खासकर परिषदीय परीक्षाओं के परिणाम पर चिन्तित होता हूँ। सैकड़ों परिचित अध्यापकों को उच्च स्कोर पाने वाले छात्रों का स्वयंभू गुरु घोषित करता हुआ पाता हूँ।


विद्यार्थियों को होेशियार-कमज़ोर की श्रेणी में रखना मुझे कभी रास नहीं आया। कक्षा में भाँति-भाँति के बच्चों को एक-सा बनाने की कोशिश मुझे कभी अच्छी नहीं लगी। जब बच्चे ऐसी स्थिति में दिखाई देते हैं तो मैं उनमें आशा,उम्मीद और हौसले के बीज बोने की कोशिश करता हूँ। यह हर बार नहीं बार-बार कहता हूँ कि स्कूलों की परीक्षाओं के बाद समाज कई परीक्षाएं लेने को तैयार बैठा है। स्थिति-परिस्थितियों के बीच अपनी जगह बनानी है। निराश न हों। प्रयास की पकड़ ढीली मत करो। बच्चे कई बार समझते हैं, कई बार नहीं भी समझते। मुझे परीक्षा के नाम पर बच्चों को बार-बार हिदायत देना कभी अच्छा नहीं लगा। उनकी परीक्षा लेना आज तक हज़म नहीं हुआ। किताब पढ़ाना, कॉपी पर अद्यतन काम कराने का नियम मुझे कभी नहीं भाया। प्रातःकालीन सभा का औचित्य मुझे कभी समझ नहीं आया। बच्चों को प्रतियोगिता के नाम पर पहला, दूसरा और तीसरा नंबर लाने की होड़ में झोंकना कभी ठीक नहीं लगा। कला और खेल को महत्व देने के हर संभव प्रयास अच्छे लगते हैं। लेकिन इन्हें पीछे रखने पर उदासी बढ़ती ही जाती है। रटने पर जोर देने के विद्यालयी प्रयासों का मैं खुलकर विरोध नहीं कर पाया। स्कूल में इनाम देने की प्रवृत्ति फलती-फूलती जा रही है। इसे मैं ठीक नहीं समझता।


पहाड़ में बच्चों के पास केवल पढ़ाई करना एक काम नहीं है। स्कूल आने से पहले और स्कूल से जाने के बाद कई काम उनकी राह देख रहे होते हैं। मैंने देखा है, बरसात में या किसी मृत्यु के कारण समय से पहले छुट्टी होती है तो कई बच्चे घर नहीं जाना चाहते। छुट्टी होने पर वे खुश नहीं होते। उन्हें पता है कि घर जाएंगे तो रोजमर्रा के कामों के अलावा कई घरेलू काम उनका बस्ता रखते ही कांधे पर चढ़ जाएंगे। बच्चों में निजी सफलता की बजाय सामूहिकता की गतिविधियों को बढ़ाने के प्रयास अक्सर परवान नहीं चढ़ पाते। विद्यार्थियों में सवाल करने की आदत विकसित नहीं कर पाया। व्यवस्थाओं के प्रति आवाज़ उठाने का भाव बच्चों में नहीं दिखाई देता तो दुःख होता है। स्कूल ऐसी संस्था नहीं बन पा रही है जहां बच्चे संवैधानिक मूल्यों के प्रति सजग हों। वे जीवन की पढ़ाई में आगे बढ़ते हुए पीछे रह गए संगी -साथियों की मदद कर सकें। जहाँ से निकल कर वह समाज की बेहतरी के लिए संघर्ष करते हुए दिखाई दें।


जिन विद्यार्थियों में तार्किकता दिखाई दी, वे आगे चलकर प्रखर हुए हों, ऐसे उदाहरण कम हैं। कक्षाओं में धर्म निरपेक्षता बनाए और बचाए रखने के प्रयास भी कमोबेश कोरे साबित हुए,लगता है। प्रेम, भाईचारा, सहयोग और सद्भाव पर जितना ज़ोर दिया, वे बहुत ही हलके साबित हुए। मैं कभी पढ़ाकू विद्यार्थियों को अधिकाधिक अवसर देने के पक्ष में नहीं रहा। लेकिन उन्हें हतोत्साहित नहीं किया। खोए हुए बच्चों को चुप्पी तोड़ने के लिए प्रोत्साहित किया। बार-बार प्रेरित किया। सहपाठियों की मदद करें। इसके ख़ूब प्रयास किए। लेकिन अपेक्षा से कम ही परिणाम सामने आए हैं। पढ़ाकू और न ही वे जो खेल, कला और शिल्प में शानदार थे,कहीं नहीं पहुँचे। ‘कहीं पहुँचने’ से मेरा आशय दूसरा है। जिन कक्षाओं में सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में भाग लिया उन कक्षाओं के पचास से साठ फीसदी बच्चे बाल-बच्चे वाले हो गए हैं। वे घर-गृहस्थी में रमे हुए हैं। लेकिन उन आँखों में तैरते हुए सपने आज भी अधूरे पाता हूँ। वे आजीविका के तमाम तरीकों में जीवन बसर कर रहे हैं। लेकिन मैं और मेरी कक्षा उन्हें तनावमुक्त रहना नहीं सीखा सकी। जीवनपर्यन्त वे शिक्षार्थी रहें।

यह न हो सका। विवेचनात्मक चिंतन के साथ जीवन जी सकें। ऐसा न हो सका। वे वैज्ञानिक नज़रिए के साथ जीवन जी रहे हैं! यह नहीं हो सका। इस अपहुँच में मेरी भी तो भूमिका है ! मैं जब ऐसे समूह की कल्पना करता हूँ जिसमें एक हजार लोग हों। उनकी आँखें मुझे देख रही हों। तो मैं सोचता हूँ कि इन एक हजार लोगों में सौ-डेढ़ सौ वे तो हैं ही, जिन्होंने मेरे साथ स्कूल में पाँच-छःह साल बिताए हैं। मैं उन्हें पहचानने की कोशिश करता हूँ। मैं उन्हें नहीं पहचान पाता। जिस दिन समाज के नागरिक हो चुके अपनी कक्षा-कक्ष के पचास फीसदी छात्रों को मैं पहचानने लगूँगा तब मान लूँगा कि मैंने कुछ सीखा और सिखाया। बस ! यही कह सकता हूँ कि सफ़र में हूँ।
॰॰॰
मनोहर चमोली ‘मनु’,भाषा अध्यापक,रा॰इ॰कॉ॰केवर्स,पौड़ी गढ़वाल।

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By manohar

परिचयः मनोहर चमोली ‘मनु’ जन्मः पलाम,टिहरी गढ़वाल,उत्तराखण्ड जन्म तिथिः 01-08-1973 प्रकाशित कृतियाँ ऐसे बदली नाक की नथः 2005, पृष्ठ संख्या-20, प्रकाशकः राष्ट्रीय पुस्तक न्यास,नई दिल्ली ऐसे बदला खानपुरः 2006, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः राज्य संसाधन केन्द्र (प्रौढ़ शिक्षा) 68/1,सूर्यलोक कॉलोनी,राजपुर रोड,देहरादून। सवाल दस रुपए का (4 कहानियाँ)ः 2007, पृष्ठ संख्या-40, प्रकाशकः भारत ज्ञान विज्ञान समिति,नई दिल्ली। उत्तराखण्ड की लोककथाएं (14 लोक कथाएँ)ः 2007, पृष्ठ संख्या-52, प्रकाशकः भारत ज्ञान विज्ञान समिति,नई दिल्ली। ख्खुशीः मार्च 2008, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः राज्य संसाधन केन्द्र (प्रौढ़ शिक्षा) 68/1,सूर्यलोक कॉलोनी,राजपुर रोड,देहरादून बदल गया मालवाः मार्च 2008, पृष्ठ संख्या-12, प्रकाशकः राज्य संसाधन केन्द्र (प्रौढ़ शिक्षा) 68/1,सूर्यलोक कॉलोनी,राजपुर रोड,देहरादून पूछेरीः 2009,पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः राष्ट्रीय पुस्तक न्यास,नई दिल्ली बिगड़ी बात बनीः मार्च 2008, पृष्ठ संख्या-12, प्रकाशकः राज्य संसाधन केन्द्र (प्रौढ़ शिक्षा) 68/1,सूर्यलोक कॉलोनी,राजपुर रोड,देहरादून अब बजाओ तालीः 2009, पृष्ठ संख्या-12, प्रकाशकः राज्य संसाधन केन्द्र (प्रौढ़ शिक्षा) 68/1,सूर्यलोक कॉलोनी,राजपुर रोड,देहरादून। व्यवहारज्ञानं (मराठी में 4 कहानियाँ अनुदित,प्रो.साईनाथ पाचारणे)ः 2012, पृष्ठ संख्या-40, प्रकाशकः निखिल प्रकाशन,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। अंतरिक्ष से आगे बचपनः (25 बाल कहानियाँ)ः 2013, पृष्ठ संख्या-104, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-81-86844-40-3 प्रकाशकः विनसर पब्लिशिंग कम्पनी,4 डिसपेंसरी रोड,देहरादून। कथाः ज्ञानाची चुणूक (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः उलटया हाताचा सलाम (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः पुस्तके परत आली (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः वाढदिवसाची भेट (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः सत्पात्री दान (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः मंगलावर होईल घर (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः सेवक तेनालीराम (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः असा जिंकला उंदीर (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः पिंपलांच झाड (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः खरं सौंदर्य (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः गुरुसेवा (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः खरी बचत (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः विहिरीत पडलेला मुकुट (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः शाही भोजनाचा आनंद (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः कामाची सवय (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः शेजायाशी संबंध (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः मास्क रोबोट (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः फेसबुकचा वापर (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः कलेचा सन्मान (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः सेवा हाच धर्म (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः खोटा सम्राट (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः ई साईबोर्ग दुनिया (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः पाहुण्यांचा सन्मान (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। जीवन में बचपनः ( 30 बाल कहानियाँ)ः 2015, पृष्ठ संख्या-120, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-81-86844-69-4 प्रकाशकः विनसर पब्लिशिंग कम्पनी,4 डिसपेंसरी रोड,देहरादून। उत्तराखण्ड की प्रतिनिधि लोककथाएं (समेकित 4 लोक कथाएँ)ः 2015, पृष्ठ संख्या-192, प्रकाशकः समय साक्ष्य,फालतू लाइन,देहरादून। रीडिंग कार्डः 2017, ऐसे चाटा दिमाग, किरमोला आसमान पर, सबसे बड़ा अण्डा, ( 3 कहानियाँ ) प्रकाशकः राज्य परियोजना कार्यालय,उत्तराखण्ड चित्र कथाः पढ़ें भारत के अन्तर्गत 13 कहानियाँ, वर्ष 2016, प्रकाशकः प्रथम बुक्स,भारत। चाँद का स्वेटरः 2012,पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-81038-40-6 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। बादल क्यों बरसता है?ः 2013,पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-81038-79-6 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। जूते और मोजेः 2016, पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-84697-97-6 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। अब तुम गए काम सेः 2016,पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-84697-88-4 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। चलता पहाड़ः 2016,पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-84697-91-4 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। बिल में क्या है?ः 2017,पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-86808-20-2 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। छस छस छसः 2019, पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-89202-63-2 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। कहानियाँ बाल मन कीः 2021, पृष्ठ संख्या-194, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-91081-23-2 प्रकाशकः श्वेतवर्णा प्रकाशन,दिल्ली पहली यात्रा: 2023 पृष्ठ संख्या-20 आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-5743-178-1 प्रकाशक: राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत कथा किलकारी: दिसम्बर 2024, पृष्ठ संख्या-60, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-92829-39-0 प्रकाशक: साहित्य विमर्श प्रकाशन कथा पोथी बच्चों की: फरवरी 2025, पृष्ठ संख्या-136, विनसर पब्लिकेशन,देहरादून, उत्तराखण्ड, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-93658-55-5 कहानी ‘फूलों वाले बाबा’ उत्तराखण्ड में कक्षा पाँच की पाठ्य पुस्तक ‘बुराँश’ में शामिल। सहायक पुस्तक माला भाग-5 में नाटक मस्ती की पाठशाला शामिल। मधुकिरण भाग पांच में कहानी शामिल। परिवेश हिंदी पाठमाला एवं अभ्यास पुस्तिका 2023 में संस्मरण खुशबू आज भी याद है प्रकाशित पावनी हिंदी पाठ्यपुस्तक भाग 6 में संस्मरण ‘अगर वे उस दिन स्कूल आते तो’ प्रकाशित। (नई शिक्षा नीति 2020 के आलोक में।) हिमाचल सरकार के प्रेरणा कार्यक्रम सहित पढ़ने की आदत विकसित करने संबंधी कार्यक्रम के तहत छह राज्यों के बुनियादी स्कूलों में 13 कहानियां शामिल। राजस्थान, एस.सी.ई.आर.टी द्वारा 2025 में विकसित हिंदी पाठ्यपुस्तक की कक्षा पहली में कहानी ‘चलता पहाड़’ सम्मिलित। राजस्थान, एस.सी.ई.आर.टी द्वारा 2025 में विकसित हिंदी पाठ्यपुस्तक की कक्षा चौथी में निबंध ‘इसलिए गिरती हैं पत्तियाँ’ सम्मिलित। बीस से अधिक बाल कहानियां असमियां और बंगला में अनुदित। गंग ज्योति पत्रिका के पूर्व सह संपादक। ज्ञान विज्ञान बुलेटिन के पूर्व संपादक। पुस्तकों में हास्य व्यंग्य कथाएं, किलकारी, यमलोक का यात्री प्रकाशित। ईबुक ‘जीवन में बचपन प्रकाशित। पंचायत प्रशिक्षण संदर्शिका, अचल ज्योति, प्रवेशिका भाग 1, अचल ज्योति भाग 2, स्वेटर निर्माण प्रवेशिका लेखकीय सहयोग। उत्तराखण्ड की पाठ्य पुस्तक भाषा किरण, हँसी-खुशी एवं बुराँश में लेखन एवं संपादन। विविध शिक्षक संदर्शिकाओं में सह लेखन एवं संपादन। अमोली पाठ्य पुस्तक 8 में संस्मरण-खुशबू याद है प्रकाशित। उत्तराखण्ड के शिक्षा विभाग में भाषा के शिक्षक हैं। वर्तमान में: रा.इं.कॉ.कालेश्वर,पौड़ी गढ़वाल में नियुक्त हैं। सम्पर्कः गुरु भवन, पोस्ट बॉक्स-23 पौड़ी, पौड़ी गढ़वाल.उत्तराखण्ड 246001.उत्तराखण्ड. मोबाइल एवं व्हाट्सएप-7579111144 #manoharchamolimanu #मनोहर चमोली ‘मनु’

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