मम्मी मेरा ब्याह करा दे
छोटी सी दुलहनियां ला दे
अंगुली पर मैं उसे नचाऊँ
बात न माने मार लगाऊँ
घोड़ी पर मुझको बिठला दे
मम्मी मेरा ब्याह करा दे
माँ तुझको आराम कराऊँ
हाथ पैर तेरे दबवाऊँ
सेवा में यदि कमी करे तो
झटपट पीहर को पहुँचाऊँ
राजकुँवर सा मुझे सजा दे
मम्मी मेरा ब्याह करा दे
मैं उसको आदेश सुनाऊँ
सब घर का झाड़ू लगवाऊँ
अगर बात माने न मेरी
तब डंडे से मार लगाऊँ
झट रिश्ते की बात चला दे
मम्मी मेरा ब्याह करा दे
छोटी सी दुल्हनियाँ ला दे।

इक्कसवीं सदी के इस दौर में वह रचना बालोपयोगी है ही नहीं जिसमें बच्चों की आवाज़ें न हो। यदि बाल सुलभ, बाल मन दर्शाना ही है तो उसमें कल्पना की ऐसी अतिरंजना न हो जो उसकी सोच को घटिया दर्शाताी हो। बच्चों को और उनकी बातों को बचकाना समझना किसी भी दशा में उचित नहीं है। ये कविता इस लिहाज़ से बच्चों की दुनिया का प्रतिनिधित्व नहीं करती। हाँ ! यह कहना ज़रूरी होगा कि किसी भी कविता को हम आज के दौर के हिसाब से अप्रासंगिक तो कह सकते हैं लेकिन उसका परिवेश,देशकाल,परिस्थितियाँ और रचनाकार को याद रखना ज़रूरी हो जाता है। बीस के दशक में यानि आज से सौ साल पहले की कविता से हम सूचना, विज्ञान और तकनीकी की उम्मीद करें या उसमें इन पहलूओं को खगालने लगेंगे तो हासिल क्या होने वाला है। हाँ! यह ज़रूरी होगा कि हम सन् दो हजार इक्कीस में भी उन्नीस सौ बीस की कविता को आज के सन्दर्भ में सटीक,प्रासंगिक और ज़रूरी बताने लगेंगे तो यह तार्किक न होगा।

एक बात तो यह है कि ब्याह करा देने में बच्चों की ध्वनियां शामिल हैं। लेकिन ब्याह कर लाने वाली दुल्हनियां के बारे में बच्चे के जो विचार गढ़े गए हैं वे कल्पनाएं नहीं आज के सन्दर्भ में कुकल्पनाएं हैं। यदि बकौल कवि कोई बच्चा ऐसा कह सकता है तो इसका अर्थ यह हुआ कि वह जिस घर में पल-बढ़ रहा है वहां बहुत कुछ गड़बड़ है। यह बच्चा अपनी मां को किसी गुलाम की तरह देख कर बड़ा हो रहा है क्या? कहीं ऐसा तो नहीं परिवार में पुरुषवाद हावी है। उस घर में महिलाएं चाहें वह माँ हो या चाची या दादी सब शोषित हैं और इस बच्चे के पिता, चाचा और दादा किसी हिटलर से कम नहीं। कोई बच्चा इतना घटिया और बुरा कैसे हो सकता है? वह सोलहवीं सदी की सोच वाला कैसे हो सकता है कि वह अपनी होने वाली सहधर्मिणी पत्नी को अर्धागिनी को अँगुली पर नचाने की बात करेगा? इससे हास्यास्पद बात क्या होगी कि बात न मानने पर मारने की बात कर रहा है। मानो पत्नी नहीं गुलाम है। पशु है।


हद है। आज तो पशुओं के अधिकारों की बात हो रही है। मानवाधिकार की बात हो रही है। विडम्बना देखिए कि एक परिवार अपने घर में बहू को सदस्य के तौर पर नहीं देख रहा है। सास को आराम करने और बहू से नौकरानी सरीखे के बर्ताव को एक बच्चा तक महसूस कर रहा है! सेवा करना मात्र बहू का दायित्व नहीं है। परिवार भी एक समाज है। समाज सामाजिक संबंधों का जाल है। वहां कुछ नियम होते हैं। लेकिन नियम किसी को सामंत बना दे और किसी को गुलाम ! वाह! बात-बेबात पर पीहर पहुंचाने का स्वर घर से बाहर निकाल देने जैसा प्रतीत हो रहा है। राजे-रजवाड़े का युग गया लेकिन ये कैसा परिवार है जो बच्चों को आज भी राजा बनने के ऐसे सपने दिखा रहा है जो हमारी संवैधानिक व्यवस्था के ही ठीक उलट है। ऐसे कौन से कारण आज तलक जिन्दा क्यों हैं कि मां भी अपने बच्चे को राजा बेटा कहना नहीं भूलती। पूरी की पूरी कविता सामंती सोच के दायरे में दम तोड़ रही है। पूरी कविता की ध्वनि ऐसी दुलहनियां की मांग ही नहीं कर रही है बल्कि उसे स्थापित सा महसूस कराती है। महसूस ही नहीं करा रही है बल्कि साफ संकेत दे रही है कि पहले भी ऐसा चला आ रहा है और नई पीढ़ी में भी ये बदस्तूर चलता रहेगा। ये किस तरह के आदेश की बात कर रही है? आदेश में आज भी राज-रजवाड़े और विदेशी हुकूमत की बू आती है। क्या हम आजाद भारत के सत्तर साल के बाद की कविताई कर रहे हैं? ताड़न के अधिकारी की सोच से कब हमारा साहित्य बाहर आएगा?


मैं कविताओं पर बात नहीं करता। कारण? मेरे अभिन्न मित्र खूब कविताई करते हैं। अक्सर मैं उन्हें बतौर पाठक यह बताने की कोशिश करता हूं कि कविता कैसे समझी जा रही है। कविता की दिशा क्या है। कई मान जाते हैं और कई मुझे ही सीखाने लगते हैं कि भाव को ऐसे समझो। वैसे समझो। लेकिन मैं क्या कोई भी पाठक इतनी तमीज़ तो जानता ही है कि एक कविता का असल धर्म क्या है। यही कारण है कि मैं कविताओं पर बात ही नहीं करता। आप बताइएगा कि क्या वाकई मुझमें बतौर पाठक कविता पर बात करने की तमीज़ नहीं है? पहले तमीज़ सीखकर आऊँ या जैसा समझ में आता है उसे बगैर लाग लपेट कर कहता रहू? बताइएगा जरूर। क्यों बेकार में कवियों-कवयित्रियों को नाराज़ करता फिरूँ?

बेटा अनुभव जब दूसरी कक्षा में पढ़ता था तब उसने मुझसे पूछा था कि पापा मेरी शादी कब होगी। मुझसे ही नहीं, उसने यह बात स्कूल में अपनी अध्यापिका से भी कही। अनुभव ने मुझे बताया कि मैडम ने कहा कि शादी कुछ पढ़ लेने के बाद होती है। कुछ कर लेने के बाद होती है। जब तुम हमारी तरह बड़े हो जाओगे तब तुम भी शादी कर लेना।

मैं सबसे पहले क्षमा-याचना के साथ अपनी क्षमताओं को बता देना अपना दायित्व समझता हूँ। मैं अमूमन कविताएं नहीं लिखता। सो, मैं किसी कविता पर कम ही बात करता हूँ। वह भी इसलिए कि इसे बाल कविता कहा गया है। बच्चों के क्षेत्र में काम करता हूँ। बच्चों को समझना चाहता हूँ तो इस कविता पर मेरी बहुत सारी आपत्तियां हैं। मैं इस कविता के कवि/कवयित्री से भी खेद के साथ यह भी कहना चाहता हूँ कि मुझे इस कविता की ध्वनियों से आपत्ति है, उनसे नहीं। उनकी और सभी की कई बेहतरीन कविताओं का भी समय-समय पर बात करना चाहूंगा।
॰॰॰
-मनोहर चमोली ‘मनु’

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By manohar

परिचयः मनोहर चमोली ‘मनु’ जन्मः पलाम,टिहरी गढ़वाल,उत्तराखण्ड जन्म तिथिः 01-08-1973 प्रकाशित कृतियाँ ऐसे बदली नाक की नथः 2005, पृष्ठ संख्या-20, प्रकाशकः राष्ट्रीय पुस्तक न्यास,नई दिल्ली ऐसे बदला खानपुरः 2006, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः राज्य संसाधन केन्द्र (प्रौढ़ शिक्षा) 68/1,सूर्यलोक कॉलोनी,राजपुर रोड,देहरादून। सवाल दस रुपए का (4 कहानियाँ)ः 2007, पृष्ठ संख्या-40, प्रकाशकः भारत ज्ञान विज्ञान समिति,नई दिल्ली। उत्तराखण्ड की लोककथाएं (14 लोक कथाएँ)ः 2007, पृष्ठ संख्या-52, प्रकाशकः भारत ज्ञान विज्ञान समिति,नई दिल्ली। ख्खुशीः मार्च 2008, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः राज्य संसाधन केन्द्र (प्रौढ़ शिक्षा) 68/1,सूर्यलोक कॉलोनी,राजपुर रोड,देहरादून बदल गया मालवाः मार्च 2008, पृष्ठ संख्या-12, प्रकाशकः राज्य संसाधन केन्द्र (प्रौढ़ शिक्षा) 68/1,सूर्यलोक कॉलोनी,राजपुर रोड,देहरादून पूछेरीः 2009,पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः राष्ट्रीय पुस्तक न्यास,नई दिल्ली बिगड़ी बात बनीः मार्च 2008, पृष्ठ संख्या-12, प्रकाशकः राज्य संसाधन केन्द्र (प्रौढ़ शिक्षा) 68/1,सूर्यलोक कॉलोनी,राजपुर रोड,देहरादून अब बजाओ तालीः 2009, पृष्ठ संख्या-12, प्रकाशकः राज्य संसाधन केन्द्र (प्रौढ़ शिक्षा) 68/1,सूर्यलोक कॉलोनी,राजपुर रोड,देहरादून। व्यवहारज्ञानं (मराठी में 4 कहानियाँ अनुदित,प्रो.साईनाथ पाचारणे)ः 2012, पृष्ठ संख्या-40, प्रकाशकः निखिल प्रकाशन,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। अंतरिक्ष से आगे बचपनः (25 बाल कहानियाँ)ः 2013, पृष्ठ संख्या-104, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-81-86844-40-3 प्रकाशकः विनसर पब्लिशिंग कम्पनी,4 डिसपेंसरी रोड,देहरादून। कथाः ज्ञानाची चुणूक (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः उलटया हाताचा सलाम (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः पुस्तके परत आली (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः वाढदिवसाची भेट (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः सत्पात्री दान (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः मंगलावर होईल घर (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः सेवक तेनालीराम (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः असा जिंकला उंदीर (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः पिंपलांच झाड (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः खरं सौंदर्य (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः गुरुसेवा (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः खरी बचत (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः विहिरीत पडलेला मुकुट (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः शाही भोजनाचा आनंद (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः कामाची सवय (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः शेजायाशी संबंध (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः मास्क रोबोट (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः फेसबुकचा वापर (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः कलेचा सन्मान (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः सेवा हाच धर्म (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः खोटा सम्राट (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः ई साईबोर्ग दुनिया (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः पाहुण्यांचा सन्मान (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। जीवन में बचपनः ( 30 बाल कहानियाँ)ः 2015, पृष्ठ संख्या-120, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-81-86844-69-4 प्रकाशकः विनसर पब्लिशिंग कम्पनी,4 डिसपेंसरी रोड,देहरादून। उत्तराखण्ड की प्रतिनिधि लोककथाएं (समेकित 4 लोक कथाएँ)ः 2015, पृष्ठ संख्या-192, प्रकाशकः समय साक्ष्य,फालतू लाइन,देहरादून। रीडिंग कार्डः 2017, ऐसे चाटा दिमाग, किरमोला आसमान पर, सबसे बड़ा अण्डा, ( 3 कहानियाँ ) प्रकाशकः राज्य परियोजना कार्यालय,उत्तराखण्ड चित्र कथाः पढ़ें भारत के अन्तर्गत 13 कहानियाँ, वर्ष 2016, प्रकाशकः प्रथम बुक्स,भारत। चाँद का स्वेटरः 2012,पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-81038-40-6 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। बादल क्यों बरसता है?ः 2013,पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-81038-79-6 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। जूते और मोजेः 2016, पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-84697-97-6 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। अब तुम गए काम सेः 2016,पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-84697-88-4 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। चलता पहाड़ः 2016,पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-84697-91-4 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। बिल में क्या है?ः 2017,पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-86808-20-2 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। छस छस छसः 2019, पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-89202-63-2 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। कहानियाँ बाल मन कीः 2021, पृष्ठ संख्या-194, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-91081-23-2 प्रकाशकः श्वेतवर्णा प्रकाशन,दिल्ली पहली यात्रा: 2023 पृष्ठ संख्या-20 आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-5743-178-1 प्रकाशक: राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत कथा किलकारी: दिसम्बर 2024, पृष्ठ संख्या-60, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-92829-39-0 प्रकाशक: साहित्य विमर्श प्रकाशन कथा पोथी बच्चों की: फरवरी 2025, पृष्ठ संख्या-136, विनसर पब्लिकेशन,देहरादून, उत्तराखण्ड, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-93658-55-5 कहानी ‘फूलों वाले बाबा’ उत्तराखण्ड में कक्षा पाँच की पाठ्य पुस्तक ‘बुराँश’ में शामिल। सहायक पुस्तक माला भाग-5 में नाटक मस्ती की पाठशाला शामिल। मधुकिरण भाग पांच में कहानी शामिल। परिवेश हिंदी पाठमाला एवं अभ्यास पुस्तिका 2023 में संस्मरण खुशबू आज भी याद है प्रकाशित पावनी हिंदी पाठ्यपुस्तक भाग 6 में संस्मरण ‘अगर वे उस दिन स्कूल आते तो’ प्रकाशित। (नई शिक्षा नीति 2020 के आलोक में।) हिमाचल सरकार के प्रेरणा कार्यक्रम सहित पढ़ने की आदत विकसित करने संबंधी कार्यक्रम के तहत छह राज्यों के बुनियादी स्कूलों में 13 कहानियां शामिल। राजस्थान, एस.सी.ई.आर.टी द्वारा 2025 में विकसित हिंदी पाठ्यपुस्तक की कक्षा पहली में कहानी ‘चलता पहाड़’ सम्मिलित। राजस्थान, एस.सी.ई.आर.टी द्वारा 2025 में विकसित हिंदी पाठ्यपुस्तक की कक्षा चौथी में निबंध ‘इसलिए गिरती हैं पत्तियाँ’ सम्मिलित। बीस से अधिक बाल कहानियां असमियां और बंगला में अनुदित। गंग ज्योति पत्रिका के पूर्व सह संपादक। ज्ञान विज्ञान बुलेटिन के पूर्व संपादक। पुस्तकों में हास्य व्यंग्य कथाएं, किलकारी, यमलोक का यात्री प्रकाशित। ईबुक ‘जीवन में बचपन प्रकाशित। पंचायत प्रशिक्षण संदर्शिका, अचल ज्योति, प्रवेशिका भाग 1, अचल ज्योति भाग 2, स्वेटर निर्माण प्रवेशिका लेखकीय सहयोग। उत्तराखण्ड की पाठ्य पुस्तक भाषा किरण, हँसी-खुशी एवं बुराँश में लेखन एवं संपादन। विविध शिक्षक संदर्शिकाओं में सह लेखन एवं संपादन। अमोली पाठ्य पुस्तक 8 में संस्मरण-खुशबू याद है प्रकाशित। उत्तराखण्ड के शिक्षा विभाग में भाषा के शिक्षक हैं। वर्तमान में: रा.इं.कॉ.कालेश्वर,पौड़ी गढ़वाल में नियुक्त हैं। सम्पर्कः गुरु भवन, पोस्ट बॉक्स-23 पौड़ी, पौड़ी गढ़वाल.उत्तराखण्ड 246001.उत्तराखण्ड. मोबाइल एवं व्हाट्सएप-7579111144 #manoharchamolimanu #मनोहर चमोली ‘मनु’

9 thoughts on “कैसी कविता ? किसकी कविता?”
    1. वैसे तो आपने लिख ही दिया है। फिर भी यही कहूँगा कि किसी एक कालखंड में रचे गए साहित्य की विवेचना दूसरे कालखंड में करना उपयुक्त नहीं। जब यह कविता लिखी गई होगी तब ऐसा ही माहौल रहा होगा।

      1. सही बात है। लेकिन उस कालखंड की कविता का इस कालखंड में उल्लेख करना इसलिए भी ज़रूरी लगा मुझे क्योंकि आज के दर्जनों रचनाकार अभी भी उस कालखंड सरीखी कविताएं बुन रहे हैं। जबकि पीसे हुए आटा को पुनः नहीं पीसा जाना चाहिए. आभार आपका

  1. वाकई,आप अपनी सख्त बातों को तर्कपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करते हैं! बहुत अच्छा लगता है! आपका जो यह दृष्टिकोण है, उसे बनाए रखें, आदरणीय,, उससे उलट न हों।
    – अनुज पाण्डेय

    1. साहित्य का कोई भी अंश जब हम पढ़े तो प्रतिक्रिया से पहले ये देखना चाहिए कि वह किस प्रदेश, देश या काल में लिखा गया है।
      प्रस्तुत कविता 25-30 साल पहले के हिसाब से ठीक है पर आज के समय की यदि है तो निश्चित ही गलत है।
      अगर इसके विषय की बात करूँ तो मेरे हिसाब से तो किसी भी काल में इसमें दिया संदेश गलत है।

      1. जी आपसे पूरी सहमति है। साहित्य बेहद जिम्मेदारी देता है। आज हम और आप कुछ भी लिख देते हैं। लेकिन यह तय है कि हमारे लिखे हुए का मूल्यांकन कल होने वाला है। सादर,

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