-मनोहर चमोली ‘मनु’
‘‘हम कब बाहर जाएँगे?’’ नन्हीं चींटी ने माँ से पूछा।
माँ ने जवाब दिया, ‘‘अभी नहीं।’’
चींटा बोला,‘‘बच्चों, बाहर की दुनिया ही अलग है। बहुत बड़ी है। वहाँ हरियाली है। रोशनी है। जल है। कई बैरी भी हैं।’’
एक नन्ही चींटी ने पूछा,‘‘बैरी?’’ माँ बीच में बोल पड़ी,‘‘सब समझ जाओगे। अभी हमारा दल खाने का सामान लेने जा रहे हैं। तुम सब यहीं रहना।’’ नन्ही चींटियाँ अँधेरे में ही दुबक गईं।
एक सुबह चींटियों का दल भोजन की तलाश में बाहर निकला। चींटियों के बच्चों ने भी बाहर जाने का मन बना लिया था। कुछ देर बाद वे भी कतार में बाहर निकल गईं। भीतर तो अँधेरा था। वे आज पहली बार बाहर आईं थीं। वे सभी उजाला देखकर घबरा गईं।
सबसे आगे चल रही नन्ही चींटी बोली,‘‘माँ ने बताया तो था। धरती के ऊपर सूरज की रोशनी मिलेगी। ये वही है। आओ।’’ वे चलती गईं। एक बार फिर वे चलते-चलते ठहर गईं। कतार में सबसे पीछे चल रही चींटी ने पूछा,‘‘अब क्या हुआ? कोई बैरी तो नहीं है?’’ किसी ने जवाब दिया,‘‘अचानक अँधेरा हो गया है!’’
हर कोई सिर उठाकर यहाँ-वहाँ देख रहा था। किसी ने लंबी सांस लेते हुए कहा,‘‘अरे! ये तो कोई पेड़ है। हम उसके सामने आ गए हैं। हमें रास्ता बदलना होगा।’’ एक चींटी बोली,‘‘प्यास लग रही है।’’ पेड़ पर एक मकड़ी थी। उसने कहा,‘‘तालाब बहुत दूर है। लगातार चलोगे तो भी तीन दिन बाद ही पहुंचोगे।’’ यह सुनकर चींटियां परेशान हो गईं।
एक ने पूछा,‘‘अब क्या होगा?’’ मकड़ी ने हौसला बढ़ाया,‘‘किसी तरह सुबह तक रुको। मैं तुम्हारी प्यास बुझाऊँगी।’’ एक मक्खी बोली,‘‘घबराओं नहीं। ऐसा करो। पेड़ की जड़ में चली जाओ। सुबह तक आराम करो।’’ नन्हीं चींटियों के दल ने कतार तोड़ दी। वे पेड़ की जड़ों के बीच में बची जगह के भीतर चली गईं।
सुबह हुई। मकड़ी का जाला ओस से लदा हुआ था। ओस की बूँदें जाले में लटक रही थीं। मकड़ी ने आवाज लगाई,‘‘अरे बच्चों। उठो। आओ। अपनी प्यास बुझाओ।’’ चींटियां जाले की ओर चल पड़ीं। सबने अपनी प्यास बुझाई। मकड़ी से विदा लेकर चींटियां वापिस लौटने लगीं। चलते-चलते वापिस अपने बिल के पास पहुँच गईं। बिल के पास चींटियों का दल उन्हें खोज रहा था। बच्चों को कतार में लौटता देख चींटियाँ खुश हो गईं। नन्हीं चींटियां दौड़कर बड़ों से लिपट गईं।
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-मनोहर चमोली ‘मनु’