उन पाठकों के लिए खास जिनकी दोस्ती सरल शब्दों से हुई है। नए शब्द मदद से पढ़ पाते हैं।
हँसना मना है’ बहुत ही प्यारी किताब है। मासूम-सी! बालमन से सराबोर !
आकण्ठ बाल स्वभाव से लबरेज़। पाठक इसे मुहाँमुँह मुहब्बत से नवाज़ेंगे।

किताब मात्र बारह पन्ने की है। मात्र पैंतीस वाक्य! छुटकी-सी कहानी।
जिज्ञासा और कौतूहल जगाती यह कहानी पल भर में समाप्त हो जाती है और पाठक
मुस्कराए बिना नहीं रहता।
‘क्या हुआ होगा? शांति आज उदास क्यों है? वह हँस-खेल क्यों नहीं रही है?
यह सवाल पाठक के मन में किताब के शीर्षक से ही उठने लगते हैं।
किताब की कहानी कुछ इस तरह शुरू होती है-
‘शांति और अरुण अच्छे मित्र हैं। वे एक साथ खेलते-कूदते हैं। घर के
रास्ते में दौड़ लगाते हैं और शांति हमेशा खुश रहती है।’

यहाँ तक कहानी एक विवरण की तरह पाठक के सामने आती है। चूँकि शीर्षक इतना
लुभावना है कि पाठक कुछ खोजता हुए आगे बढ़ता है। फिर कहानी यह कहती है-
‘एक दिन शांति धीरे से अपनी कक्षा में घुसी। उसका सिर झुका हुआ था। वह
उदास दिख रही थी।’
बस ! यह वह वाक्य है जो पाठक को सतर्क कर देता है। वह एकाग्रता के साथ
कहानी में रमने लगता है।
कहानी अब संवादों के जरिए आगे बढ़ती है। शांति के सहपाठी उससे पूछते हैं
कि आखिर वह उदास क्यों है। किसी के डाँटने, तबियत खराब होने, घर में छोटे
भाई की तबियत खराब होने, पालतू कुत्ते के ठीक न होने, दादी की तबियत खराब
होने की आशंका के सवाल उठने लगते हैं। शांति बस न में सिर हिलाकर जवाब
देती है। फिर? आखिर में अरुण को एक उपाय सूझता है। वह उपाय काम कर जाता
है। बस! सबको असल कारण पता चल जाता है। शांति के उदास होने का कारण सामने
आ जाता है। फिर ऐसा भी होता है कि शांति हँस जाती है।
बस ! इत्ती-सी है इस किताब की कहानी!

शेरिल राव की यह कहानी गजब की है। शेरिल बच्चों के लिए खूब लिखती हैं।
अनेक प्रकाशकों ने उनकी किताबें छापी हैं। चित्रकार सौरभ पाण्डे ग्राफ़िक
डिज़ाइनर भी हैं। बच्चों की कई किताबों के चित्र बनाते रहते हैं। किताब की
लोकप्रियता का अंदाज़ा इस तथ्य से भी लगाया जा सकता है कि यह किताब 2015
में प्रथम बुक्स ने प्रकाशित की थी। चार साल ही में उसका चौदहवां संस्करण
आ गया था। पिछले चार सालों में इस किताब के और भी संस्करण आ गए होंगे। यह
तय है।
कहानी सरल शब्दों-वाक्यों में बुनी गई है। सिर्फ अंत में ही एक वाक्य
बहुत लम्बा है-‘तब अरुण और बाकी सबने देखा कि क्यों वह पूरे दिन, ना हँस
रही थी और ना बातें कर रही थी!’

इस वाक्य को छोड़कर सभी वाक्य छह-सात से ग्यारह-बारह शब्दों में अपनी बात
कहते नज़र आते हैं।

चित्र बेहद शानदार है। किताब का डिजाइन और परिकल्पना बेजोड़ है। हालांकि
यह किताब उन बच्चों को ध्यान में रखकर तैयार की गई है जो सरल शब्दों के
साथ ही दोस्ती कर पाए हैं और मदद के साथ नये शब्दों से भरे वाक्यों को पढ़
लेते हैं। लेकिन कहानी की बुनावट और चित्रों का मेल इतना असरदार है कि हर
वय वर्ग को यह किताब भा रही है। आप भी पढ़िएगा।

किताब: हँसना मना है
विधा: कहानी
लेखक: शेरिल राव
चित्रांकन: सौरभ पाण्डे
पृष्ठ: 12
मूल्य: 45 रुपए
प्रकाशक: प्रथम बुक्स
प्रस्तुति: मनोहर चमोली
सम्पर्क: 7579111144
