चौंक गए न?
सिद्धार्थ चक्रवर्ती कृत ‘आकाश में व्हेल’ किताब प्रथम बुक्स ने प्रकाशित की है। किताब के मनमोहक चित्र कावेरी गोपालकृष्णन ने बनाए हैं।
आवरण में किताब का टाइटल आकर्षित करता है। लेकिन बादलों का चित्रण पाठक के मन में कहानी का एक चित्र बनाने में सहायक है। दूसरे ही पल पाठकों को लग जाता है कि आकाश में व्हेल का मतलब बादलों में व्हेल का अक्स उभर जाने से है।
ऐसा है भी। लेकिन लेखक ने दादू और मुज़्नाह के बहाने व्हेल के अनजाने पक्ष को बहुत ही शानदार तरीके से कहानी में रखा है। यह कहानी का कौशल ही तो है कि सूचनात्मक जानकारी कहानी में इस तरह पिरोई जाती है कि पाठक को लगता ही नहीं कि कहानी का आस्वाद लेते हुए उसे सूचनात्मक जानकारी भी दी जा रही है। इस कहानी में भी ऐसा है।
लेखक ने कुशलता से व्हेल की जानकारी इस तरह से संवाद में पिरोई है कि वह संख्यात्मक-तथ्यात्मक और जानकारी देने के ध्येय से दी गई प्रतीत नहीं होती। यह बड़ी बात है।
पाठक को पढ़ते-पढ़ते यह पता चलता है कि व्हेल तो हाथी और उससे पहले के डायनासोर से भी बड़ी है।
बाल पाठकों के लिए व्हेल के कद का अनुमान लगाने के लिए लेखक ने बड़ा सुन्दर संवाद बुन दिया है।
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‘‘ये इतने बड़े होते हैं कि तुम इनके दिल के अन्दर बैठ सकती हो।’’ दादू ने समझाते हुए कहा।
एक और संवाद बातों ही बातों में पाठकों को यह बताता है-
‘‘तुम्हारी कल्पना भी खूब है, मुज़्नाह !’’ दादू ने हँसते हुए कहा।
‘‘व्हेल की नाक उसकी पीठ पर होती है!’’
यह किताब यूँ तो उन पाठकों के लिए खास है जिन्होंने समुद्र नहीं देखा है। मछलियाँ नहीं देखी हैं। वैसे भी इस किताब के प्रथम पाठक वे हैं जो खुद पढ़ने की मशक्कत कर रहे हैं। लेकिन यह किताब उन पाठकों को भी भाएगी जो व्हेल मछली के बारे में जानना चाहते हैं।
मैं पहाड़ के उन पाठकों के बारे में सोच रहा हूँ जिनके आस-पास पहाड़ी धारों के छोटे-छोटे जल स्रोत यानि चश्मे हैं। उनके आस-पास कोई नदी नहीं बहती। बाज़ार भी कोसो दूर हैं। तैरती हुई मछलियाँ जिन्होंने नहीं देखी हैं। उन्होंने कभी हाथी नहीं देखा है। वह पिण्डर, अलकनंदा, भागीरथी, भिलंगना, कोसी, टोंस नदी से भी बहुत दूर हैं। उनके लिए सागर अकल्पनीय है।
लेकिन यह किताब जिज्ञासा भी जगाती है और उन जिज्ञासाओं को अनुमान और कल्पना के सहारे अपने अनुभवों के आधार पर अपने लिए एक खाका बनाने के लिए जमीन तैयार करती है।
बादलों में बनने वाले-चलने वाले चित्रों से बच्चों का रिश्ता रहा है। प्रकृति के चितेरे किसी भी उम्र के हों वे भी आकाश में बादलों के चित्र निहारते रहते हैं। व्हेल के प्रति सहज रूप से वह भी सरलता से बच्चों के स्तर पर कहानीपन लिए हुए कुछ लिखना आसान नहीं है। सिद्धार्थ यह कर पाने में कामयाब हुए हैं।
किताब: आकाश में व्हेल
लेखक: सिद्धार्थ चक्रवर्ती
चित्रांकन: कावेरी गोपालकृष्णन
मूल्य: 50 रुपए
पेज: 16
प्रथम संस्करण: 2017
दूसरा संस्करण: 2019
प्रकाशक: प्रथम बुक्स
प्रस्तुति: मनोहर चमोली मनु
सम्पर्क: 7579111144
मेल: chamoli123456789@gmail.com